Mahema jo Hamara Hota Hai books and stories free download online pdf in Hindi

Mahema jo Hamara Hota Hai

मेहमां जो हमारा होता है

विनोद विप्लव

सुख, शांति और सुकून उनके लिए मृग मरीचिका बन गए थे। जब वे पटना में थे तो इन्हें पाने के लिए वे मकान पर मकान बदलते रहे, लेकिन ये उन्हें हासिल नहीं हुए। अंत में उन्होंने सुख—चैन और शांति की तलाश में भाग—दौड़, खर्च और पैरवी करके अपना तबादला दिल्ली कराया।

जब तक वे पटना में थे तब तक उनके यहां शांति और सुकून के नामो—निशान नहीं थे। उनकी शादी हुए दो साल से अधिक हो गए थे, लेकिन शायद ही कोई ऐसा दिन गुजरा होगा जब दोनों पति—पत्नी ने इत्मीनान और बेफिक्री के साथ दाम्पत्य सुख भोगा होगा। वे अपने घर में भी आपस में खुलकर प्यार—मोहब्बत की बातें तो क्या, हंस—बोल भी नहीं पाते। वे ऐसा कर भी कैसे पाते— घर में हर घड़ी—हर पल कोई न कोई मौजूद होता—चाहे परिवार के लोग हों, चाहे रिश्ते के, चाहे गांव के लोग हों, चाहे ससुराल के। और अगर ये लोग नहीं होते तो पास—पड़ोस के लोग तो होते ही थे, जिनका वक्त—बेवक्त घर पर आ धमकना, घंटों गप्पें हांकना, कोई सामान मांग कर ले जाना और लौटाने का नाम तक नहीं लेना परमाधिकार था। लोगों के आने—जाने के कारण उनके घर से दाम्पत्य और पारिवारिक सुख और शांति ने जैसे यह कहते हुए अलविदा ले लिया था कि इस घर में या तो मेहमान रहेेंगे या वे।

मेहमानों को लेकर पति—पत्नी में रोज झगड़ा होता। घर में अगर सौभाग्य से मेहमान नहीं मौजूद होते तब भी पति—पत्नी के दिमाग में मेहमानों की खौफनाक छाया मंडराते रहती। ऐसे में दोनों मेहमानों के प्रकोप के लिए एक—दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे होते, आपस में झगड़ रहे होते या मेहमान समस्या से निजात पाने के उपायों पर विचार कर रहे होते। एक तरह से मेहमानों के कारण उनका जीना हराम हो गया था और घर में हमेशा शीत या गर्म युद्ध चलता रहता। पत्नी रोजाना ही धमकी देती रहती, ‘आगे से कोई आया तो कहे देती हूं, मायके चली जाऊंगी।'

ऐसा नहीं था कि गुप्ता जी मेहमानों के कारण पत्नी हो होने वाली परेशानी नही समझते थे। उन्हें जितनी दिक्कत होती थी उससे कई गुना अधिक परेशानी पत्नी को होती थी। लेकिन वह क्या करें। वह मेहमानों को बुलाते तो नहीं थे। अगर कोई मेहमान आ जाये तो उसे भगाया तो नहीं जा सकता। गुप्ता जी को पत्नी की धमकी, गुस्सा और रूठना तो झेलना ही पड़ता— मकान मालिक की टोका—टोकी और चेतावनी भी सुननी पड़ती, ‘ अगर आग भी इसी तरह मेहमान आते रहे तो कहे देता हूं— या तो किराया दोगुना कर दीजिएगा या कोई और मकान ढूंढ लीजिएगा। यह घर है— होटल या धर्मशाला नहीं कि रोज आप मेरे मकान में बाहरी लोगों को ठहराते रहें।'

गुप्ता जी की जान तो चारों तरफ से आफत में फंसी थी— मेहमानों के कारण। ऊपर से खर्च भी अधिक होता। आधा वेतन तो मेहमानों को खिलाने पर खर्च हो जाता। मेहमानों से छुटकारा पाना— उनके जीवन का मुख्य ध्येय बन गया था। उन्होंने दसियों मकान बदले— मकान के पते गांव और रिश्ते के लोगों से बचा कर रखे— लेकिन मेहमान जासूस की तरह हर बार मकान ढूंढते—ढूंढते उनके यहां धावा बोल ही देते। पति—पत्नी ने घर बदलने तथा पता गुप्त रखने के अलावा मेहमानों को धोखा देने तथा उन्हें टरकाने के अनेक उपायों पर अमल किया— लेकिन मेहमान चकमा नहीं खाये। मसलन घर में होने पर भी दरवाजे पर ताले लगा देने की तरकीब निकाली, दरवाजे पर किसी दूसरे व्यक्ति के नेम प्लेट लटकाये, मेहमान के आने पर खुद, पत्नी या बेटे के बीमार होने के बहाने बनाये— लेकिन उनके सभी उपाय विफल होते गये। अंत में दोनों ने कोई और तदवीर नजर नहीं आने पर दिल्ली तबादला कराने का उपाय सोचा। महीनों की दौड़—धूप, पैरवी और अधिकारियों की जब गर्म करने के बाद अपना तबादला कराने में सफल हुये।

दिल्ली तबादला कराने का उनका उपाय वाकई सफल रहा और वे मेहमान समस्या से छुटकारा पा गये। कभी—कभार भूले—भटके कोई मेहमान भले ही आ जाते, लेकिन उनके घर पर मेहमानों का वैसा लगातार हमला नहीं हुआ जैसा पटना में हुआ करता था। यहां उन दोनों ने पूरी तन्मयता, बेफिक्री और शांति के साथ दाम्पत्य सुख का भोग किया।

दिल्ली में उन दोनों को न केवल मेहमानों से बल्कि पड़ोसियों के अतिक्रमण से भी बचाव हो गया था। दिल्ली के पड़ोसी शांत और सौम्य किस्म के थे, जिन्हें दूसरों के मामलों में दखलअंदाजी और टांग अड़ाने में कोई दिलचस्पी नहीं थी। यहां के पड़ोसी पटना के पड़ोसियों की तरह नहीं थे जिन्हें अपने घर में बैठने में बुखार आता था और दूसरों के घर में घुसे रहने में आनंद आता था। दिल्ली के पड़ोसी सभ्यता के उस मुकाम तक पहुंच चुके थे जहां ‘ न उधो से लेना न माधो को देना' आदर्श वाक्य बन जाता है। यहां के पड़ोसी अगर कभी भूले से दूसरों के घर जाते तो एकाध मिनट से ज्यादा नहीं रूकते जबकि पटना में बार—बार हर समय घर में कोई न कोई पड़ोसी टपकता रहता— जो घंटों वहां से नहीं टरकता। किसी को चाय पीने की पेशकश करने की गलती करने पर आधे दिन का समय बर्बाद होना तो तय था। पटना के पड़ोसी ऐसे भीषण ‘समय नष्टक' थे जिनके बारे में सोचते ही भीषण गर्मी में भी कंपकंपी हो जाती। दूसरी तरफ दिल्ली के पड़ोसी थे— सभ्य, शांत और सौम्य। इनके प्रति दोनों पति—पत्नी के मन में श्रद्धा उत्पन्न हो गई थी। ऐसे खलल विरोधी पड़ोसी पाकर दोनों को अपने आप पर गुमान होने लगता। वे दोनों अपने पड़ोसियों की ‘गुट निरपेक्षता और अहस्तक्षेप' की नीति की सराहना करते नहीं थकते।

दिल्ली में मेहमानों और पड़ोसियों की दखलअंदाजी से मुक्ति पाने पर दोनों को प्यार करने, घर—परिवार पर ध्यान देने और घर की बढ़ती जरूरतों की पूर्ति के लिए अधिक से अधिक पैसा कमाने का समय मिलने लगा। पटना में जन्म लेने वाला उनका लड़का स्कूल में पढ़ने लगा था। दिल्ली में उन्हें एक पुत्री की प्राप्ति हुई। घर में जगह और पैसे की किल्लत होने लगी। उन्होंने पैसा कमाने के लिए शेयर के धंधे शुरू कर दिये। भाग—दौड़ और पैरवी करके अपनी पत्नी को एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी पर लगवाया। इस तरह पैसे की किल्लत दूर हुई और उनका बैंक बैलेंस भी बढ़ने लगा। ये दोनों तमाम तरह की उपभोक्ता सामग्रियों के साथ — साथ जंगल से पॉश कॉलोनी में तब्दील हो गए इलाके में बने बहुमंजिले महाकाय अपार्टमेंट में एक अपार्टमेंट खरीद कर महानगरीय जीवन में पूरी तरह घुल—मिल गए।

वे दोनों इस तेज रफ्तार महानगरीय जीवन का पूरा मजा उठा रहे थे। उन दोनों के आनंद में थोड़ी बाधा उस समय पहुंची जब गुप्ता जी बुरी तरह बीमार पड़ गये। गुप्ता जी एक दिन बीमारी के कारण दफ्तर से छुट्‌टी लेकर बिस्तर पर पड़े थे कि अचानक उनके सीने में तेज दर्द उठा। पत्नी ऑफिस गई हुई थी और बच्चे स्कूल। उन्हें लगा कि अगर उनहेंतुरंत अस्पताल नहीं पहुंचाया गया तो उनकी जान ही निकल जाएगी। उन्होंने पत्नी को फोन किया। पत्नी का दफ्तर दूर था और उनके आने में घंटा—दो घंटा लगना मुमकिन था। इस बीच उन्होंने आस—पड़ोस में रहने वाले कई परिचितों को फोन करके उनसे जल्दी आकर उन्हें अस्पताल ले जाने का अनुरोध किया— लेकिन कोई भी उस वक्त समय निकालने की स्थिति में नहीं था। यह सौभाग्य ही थी कि उनका लड़का स्कूल से जल्दी घर आ गया। उन्होंने लड़के को भेजकर टैक्सी मंगायी और अस्पताल पहुंचे।

गुप्ता जी जितने दिन अस्पताल में या घर पर बिस्तर पर रहे तब तक उनके आराम में खलल डालने न तो कोई पड़ोसी आया, न कोई दोस्त, न कोई परिचित और न ही कोई सहकर्मी। अस्पताल से घर आने के बाद वह घर में अकेले रह जाते, क्योंकि पत्नी ऑफिस चली जाती और बच्चे स्कूल। डॉक्टर ने उन्हेें कई सप्ताह आराम करने को कहा था। ऐसे में उनकी आंख दरवाजे पर और कान कॉलबेल की तरफ लगे रहते। जब भी कॉलबेल बजने या दरवाजा खटखटाने की आवाज आती तो वह तेजी से उठकर दरवाजा खोलते। लेकिन हर बार कोई सेल्स मैन या किसी कंपनी का प्रचार एजेंट होता। उनसे मिलने या उनका हाल—चाल जानने के लिए आने वाला उनका कोई दोस्त, परिचित, सहकर्मी या पड़ोसी नहीं आया जिसका वह दिन—रात इंतजार करते। ऐसे समय में उन्हें लगने लगा कि अगर कोई मेहमान आ जाता तो उनका वक्त आराम से कट जाता और खुदा ने करे अगर उन्हें अचानक कुछ हो जाता तो उन्हें वह तुरंत अस्पताल ले जाता या डॉक्टर को बुला लाता।

पिछली गर्मी में पत्नी को टायफाइड होने पर भी उन्हें ऐसा ही लगा था, मेहमानों या मिलने आने वालों की तीव्र जरूरत अपनी बीमारी में महसूस की। पत्नी को भी बीमारी की हालत में घर में अकेले रहना पड़ता— क्योंकि वह ऑफिस चले जाते और बच्चे स्कूल। पत्नी उस समय अकसर कहती कि वह घर में अकेले पड़े—पड़े बोर हो जाती है और अपने को अनाथ—असहाय महसूस करने लगती है। गुप्ता जी यह सुनकर उल्टे पत्नी को डांट देते कि इस महानगर की व्यस्त जिंदगी में किसके पास इतना फालतू वक्त पड़ा है कि लोग एक—दूसरे के यहां आयें—जायें।

गुप्ता जी अपनी बीमारी के बाद बिल्कुल बदल गये थे। एक समय था जब दोनों के बीच मेहमानों, पड़ोसियों और मिलने वालों के आने को लेकर झगड़ा होता था लेकिन अब उनके नहीं आने को लेकर झगड़ा होता। दोनों अब उस वक्त को कोसते जब उनके मन में पहली बार तबादले को विचार आया था। सुख, शांति और सुकून एक बार फिर उनसे दूर चले गये थे।

दोनों पति—पत्नी ने गांव—घर के लोगों, सगे—संबंधियों और दूसरे शहरों में रहने वाले दोस्तों—रिश्तेदारों को पत्र लिख कर उन्हें दिल्ली आने तथा उनके यहां मेहमान बन कर दिल्ली घूमने के लिए आमंत्रित करने लगे। ऑफिस के लोगों और महानगर में रहने वाले दोस्त—परिचितों को कहने लगे। जब भी कोई पड़ोसी मिलता— भले ही उससे नाम मात्र की जान—पहचान हो— घर आने की दावत दे देते। दोनों घर में भी किसी न किसी के आने की आशा में बैठे रहते। जब भी कॉलबेल बजती अथवा दरवाजे पर दस्तक होती— झट से दरवाजा खोलने दौड़ पड़ते। लेकिन आने वाला कोई सेल्स मैन, एजेंट, अखबार वाला, दूध वाला या कूड़ा उठाने वाला होता— वह नहीं जिसका वे दोनों इंतजार करते—करते थक गये थे।

मेहमानों और मिलने वालों के बगैर घिसट रहे जीवन के दौर में एक सुबह जब पति—पत्नी एक—दूसरे से लिपट कर गहरी नींद में सोये थे— दरवाजे पर जोरदार दस्तक हुई। दोनों हड़बड़ा कर उठ पड़े। इतनी सुबह कौन आ सकता है? गुप्ता जी ने घड़ी पर निगाह डाली—पांच बज रहे थे और इतना सबेरे किसी सेल्समैन, एजेंट, दूध वाले, अखबार वाले आदि के आने का कोई सवाल नहीं था। फिर कौन हो सकता है? जरूर कोई ऐसा आदमी है जो उनके यहां रोजाना नहीं आता। क्या पता कोई दोस्त, परिचित या मेहमान हो—जिसकी वह लंबे समय से बाट जोह रहे थे। उनका दिल अज्ञात किन्तु नाजुक किस्म की उम्मीद और खुशी से धड़क रहा था जैसे बेरोजगारी के दिनों में अखबार में प्रतियोगी परीक्षा की रिजल्ट देखने के समय धड़कने लगता था। वह अपने कपड़े ठीक करते हुए दरवाजे की ओर तेजी से बढ़ गए।

दरवाजा खोलने में देर होने के कारण दरवाजे पर दोबारा दस्तक हुई जिससे उनकी उम्मीद को और बल मिल गया। उनकी उम्मीद खरी निकली। दरवाजा खोलने पर अधेड़ उम के धोती—कुर्ता पहने व्यक्ति का दर्शन हुआ। गुप्ता जी को बेइंतहा खुशी हुई। इतनी खुशी में वह भूल गये कि किसी मेहमान के घर आने पर क्या बोला जाता है। उन्होंने मेहमान के हाथ से सूटकेस अपने हाथ में ले ली। वह बेलगाम खुशी सक चहक रहे थे, ‘ आइए, आइए। आप यहां बैठिए। कुर्सी पर नहीं, सोफे या गद्‌दे पर बैठिए। आराम रहेगा। थक गए होंगे। पैर फैला लीजिए। अपना ही घर समझें। आप क्या लेंगे—चाय या कॉफी। आप चाहें तो पहले हाथ—मुंह धो लें। तब तक चाय तैयार हो जाती है। अरे भाई, देखो तो कौन आए हैं। आप किस गाड़ी से आए हैं। गाड़ी लेट तो नहीं थी। आप पटना से आ रहे हैं.....।' आगंतुक ने बताया कि वह पटना से नहीं, भोपाल से आए हैं जहां उनका लड़का नौकरी करता है। पूरा परिवार वहीं है। उनके लड़के ने बताया कि आप दोनों बचपन के दोस्त रहे हैं।

गुप्ता जी को तत्काल याद नहीं आया कि उनका कोई बचपन का दोस्त भोपाल में नौकरी करता है। लेकिन उन्होंने दिमाग पर जोर डालना फिलहाल मुनासिब नहीं समझा। हो सकता है कि कोई दोस्त भोपाल में भी नौकरी करता हो। बचपन के दोस्त तो बिछड़ गए। नौकरी के चक्कर में कौन कहां पहुंच गया इसका कोई हिसाब नहीं है। आजकल पत्राचार करने की फर्सत ही कहां मिलती है। खैर अब तो दोस्त के पिताजी आ गए हैं— दोस्त की विस्तार से खबर ली जाएगी। अभी जल्दी क्या है? कहीं ऐसा न हो अभी पूछने पर बुरा मान जायें।

तब तक पत्नी भी कपड़े बदल कर और बाल ठीक कर आ गई थी। गुप्ता जी ने पत्नी से आगंतुक का परिचय कराया— बचपन के दोस्त के पिताजी हैं। भोपाल में रहते हैं।

पत्नी ने आगंतुक को आदर पूर्वक प्रणाम किया और चाय बनाने में जुट गई। दोनों बच्चे भी जाग गये थे। वे आंख मलते हुए ड्राइंग रूम में आ गए। गुप्ता जी ने दोनों बच्चों से कहा— ‘ये बाबा हैं। इन्हें प्रणाम करो।'

दोनों ने आगंतुक को प्रणाम किया। आगंतुक ने बच्चों को मिठाई का डिब्बा थमा दिया।

महमान के आने से घर में रौनक और चहल—पहल आ गई थी। चाय तैयार हो गई थी। सबने साथ चाय पी। बातचीत हुई। पटना, भोपाल, दिल्ली और घर—गांव की बातें हुई। अखबार आने पर सबने अखबार पढ़े और देश—दुनिया के बारे में चर्चा होने लगी। गुपता जी बातचीत में इस कदर मशगूल हो गए थे कि वह भूल गये कि मेहमान आने पर क्या—क्या किया जाता है। पत्नी ने उन्हें जगाया, ‘बातें होती रहेंगी या पिताजी स्नान भी करेंगे। नहाने का पानी गर्म हो गया है।'

आगंतुक स्नानघर चले गए, पत्नी नाश्ता बनाने की तैयारी करने लगी और गुप्ता जी ताजी सब्जी लाने बाहर निकल गए। मेहमान ने बातचीत के दौरान बताया कि वह अपनी लड़की की शादी के लिए लड़का देखने आये हैं जो दिल्ली में किसी प्राइवेट कंपनी में कम्प्यूटर इंजीनियर है। गुप्ता जी ने ऑफिस से छुटृटी लेकर आगंतुक के साथ जाकर लड़के से मिलने का कार्यक्रम बनाया। गुप्ता जी नहा — धोकर तैयार हुए। पत्नी ने भी आज छुट्‌टी ले ली थी। उसने पूरे मन के साथ स्वादिष्ट खाना बनाया था। दोनों ने साथ खाना खाया। पत्नी ने मेहमान को जबरन कई बार पूरियां और चावल परोसे। वर्षों के बाद गुप्ता जी ने ऐसा लजीज खाने का मजा उठाया था। खाना खाने के बाद दोनों ने आराम किया। शाम होने के पहले दोनों लड़का देखने के लिए घर से निकले। दोनों देर शाम होने पर लौटे। चाय पीने के बाद गपशप करत ेहुए सबने कुछ देर टेलीविजन देखने का मजा उठाया। बहुत दिन बाद उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि टेलीविजन देखना भी मजेदार हो सकता है। उसके बाद सबके लिए मेज पर खाना लगया गया। खाना खाने के बाद मेहमान को थोड़ी चहलकदमी करने की आदत थी। जब वह बाहर जाने लगे तो गुप्ता जी भी उनके साथ हो लिए। मेहमान के सोने के लिए बक्से से गद्‌दे, रजाई और तकिया निकाले गए जो खास तौर पर मेहमान के लिए वर्षों पहले बनवाये गए थे लेकिन मेहमान के इंतजार में ये बक्से में ही पडे़ रहते थे।

दूसरे दिन मेहमान के साथ—साथ घर के लोग भी सबेरे उठ गए। मेहमान के लिए चाय—नाश्ते का प्रबंध होने लगा। मेहमान को सुबह घूमने की आदत थी। गुप्ता जी मेहमान के साथ घूमने बाहर निकल गए। सुबह उठने और ताजा हवा मिलने के कारण गुप्ता जी का चित्त प्रसन्न था। वर्षों से उन्होंने उगते सूरज की शक्ल नहीं देखी थी। देर से सोने और देर से उठने की आदत थी उनकी। उठने के बाद भी वह अपने अपार्टमेंट में बंद रहते और ऑफिस जाने की तैयारी करते रहते।

दोनों घूमने के बाद घर लौटे। चाय पीते हुए पति—पत्नी ने मेहमान के सामने कुछ दिन दिल्ली में ठहरने और दिल्ली घूमने का प्रस्ताव रखा। लेकिन मेहमान ने कहा कि वह आज शाम की गाड़ी से भोपाल लौट जाना चाहते हैं। लड़की के शादी—ब्याह के मामले को पक्का करना चाहते हैं। शादी—ब्याह में देर करने से बात गड़बड़ा जाती है। लड़का पसंद आ ही गया है। वहां जाकर लड़के के परिवार वालों से शादी की बात पक्की करनी है।

मेहमान के आज की लौट हाने की बात सुनकर पति—पत्नी को निराशा हुई। अचानक गुप्ता जी ने जैसे कुछ याद करते हुए मेहमान को बताया कि भोपाल के ही एक परिचित बगल के अपार्टमेंट में रहते हैं। जब वे दिल्ली आये हैं तो उनसे भी मिल लेना ठीक होगा। दोनों नाश्ता करने के बाद परिचित से मिलने घर से निकल पड़े। रास्ते में गुप्ता जी ने मेहमान से वह भेद खोला जिसे वह कल सुबह से ही अपने दिल में दबाये हुए थे। गुप्ता जी ने बताया कि वह कल सुबह उनके आने के बाद ही समझ गए थे कि वह गलत पते पर आ गए हैं। लेकिन वर्षों बाद घर आए मेहमान को लौटा देना अच्छा नहीं लगता इसलिए उन्होंने यह भेद छिपाये रखा। उन्हें जिस व्यक्ति के यहां जाना था वह बगल के अपार्टमेंट्‌स में रहते हैं। दोनों अपार्टमेंट्‌स के नामों में काफी समानता है और इस कारण किसी ने उन्हें इस अपाार्टमेंट का पता बता दिया होगा।

गुप्ता जी ने अपने यहां उन्हें मेहमान बनाकर रखने के लिए क्षमा मांगी कि अगर उनकी खातिरदारी में कोई कमी रह गई हो तो उसे भूल जाएंगे क्योंकि वे लोग वर्षों से मेजबानी के अनुभव से वंचित थे। वैसे तो वे चाहते थे कि वह कुछ और दिन उनके यहां मेहमान बन कर रहें, लेकिन चूंकि उन्हें आज ही लौट जाना है इस कारण उनका अपने सही मेजबान से मिल लेना उचित होगा। वैसे दिन का खाना उनके घर बन रहा है इसलिए वे खाने के समय हमारे घर ही आ जाएं।

गुप्ताजी मेहमान को उनके सही पते पर पहुंचाकर घर लौट आए। उन्होंने अपने घर का कॉलबेल बजाया। दरवाजा उनकी पत्नी ने खोला। पत्नी के चेहरे पर खुशी चमक रही थी। पत्नी ने धीमे से बताया कि कोई और मेहमान आए हैं। गुप्ता जी को नये मेहमान को पहचानने में देर नहीं लगी। उनके बचपन के दोस्त श्यामल के पिताजी थे।

श्यामल के पिताजी ने बताया, ‘ वैसे तो वह कल सुबह ही श्रमजीवी एक्सप्रेस से यहां पहुंच गए थे। लेकिन वह गलती से दूसरे अपार्टमेंट्‌स में सत्तासी नंबर के मकान में चले गए थे। दोनों अपार्टमेंट के नाम में इतनी समानता है कि पता नहीं चला। लेकिन उन्होंने आने नहीं दिया। बोले कि कल सुबह पहुंचा देंगे। बहुत भले आदमी हैं। बड़ी खातिरदारी की। अभी छोड़कर गए हैं।

गुप्ता जी सुन कर अवाक रह गए।