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दंगलोत्सव

दंगलोत्सव

यूं तो हरयाणा के हर गांव —शहर में लड़कों को कुश्ती का षेक होता है लेकिन दानपुर में शयद ही ऐसा कोई घर बचा हो जिसमें कोई पहलवान न हो। दानपुर में हर वर्ष एक मेले के दौरान एक दंगल का भी आयोजन होता है। आयोजन इतना भव्य होता है कि इसमे हिस्सा लेने दुसरे प्रदेशें से भी पहलवान आते हैं। इस दंगल को जीतने वाला पहलवान बड़ा मान पाता है। अभी अगले साल के दंगल में 6—7 महीने का वक्त था। लेकिन इसके लिए तैयारियां तो पूरे साल चलती हैं। गांव के आस पास चारो और अखाड़ों में पहलवान तैयारियां करते हैं। उन्हें देखने के लिए कुछ दर्शक भी जमा हो जाते थे। रम्या, दानपुर का जाना माना पहलवान था। पिछले बरस दंगल वो ही जीता था। उसने कई दंगल जीते थे। अपने बलिष्ठ शरीर और चीते सी फुर्ती पर बड़ा अभिमान था। लेकिन अभिमान और घमण्ड के बीच गीले पतंगी कागज की दीवार होती है। ऐसा ही कुछ रम्या के साथ भी हुआ। एक दिन जब रम्या कुछ अन्य पहलवानों के साथ अखाड़े पर अभ्यास कर रहा था तो वहां गांव वाले भी दर्शकों के रूप में खड़े थे। उसी भीड़ में नाम का एक युवक भी खड़ा था। वैसे तो बजरंग का स्वाथ्य काफी अच्छा था फिर भी उसे कुश्ती का कोई शैक न था। बजरंग का स्वभाव भी काफी शंत था। रम्या के साथ अभ्यास करने वाले एक पहलवान ने हंसी मजाक के तौर पर बजरंग से कहा — आजा बजरंग दो — दो हाथ कर ले।

बजरंग ने मुस्कुराते हुए ना कर दी। इस हंसी मजाक के बीच रम्या कूद पड़ा यकायक बोला — रैण दै हरि, कुश्ती जैसे खेल मर्दों के हों जनानीयों के ना।

बजरंग चुप था।

इस पर रम्या फिर बोला — हडि्‌डयां मै पाणी है के? देह देखण कु पाळ राखी सै।

बजरंग — देख रै रम्या, तू बढ़िया पहलवान सै, पर घणा घमण्ड ठीक ना।

रम्या — क्ंयू तू के कर लेगा?

बजरंग — मैं कुछ करण कु ना कहरा। मैं तो कहूं सूं घमण्ड़ रावण का ना रहा।

रम्या — फेर तोड़ दे मेरा घमण्ड़। ना तो चुड़ि पहर लै।

बजरंग — चल ठीक सै। टेम रख ले फेर।

रम्या — बड़े दंगल मै लड़ेंगे।

बजरंग नै चुनोती स्वीकार कर ली। लेकिन चिंतामग्न हो गया। अब उसे कोई मार्ग ना सूझे कि क्या करे।

इसी उधेड ़— बुन में कई दिन गुजर गये। एक दिन बजरंग ने रतन चाचा को आते देखा। रतन भी अपने समय का माना हुआ पहलवान था।

बजरंग — राम—राम चाचा।

रतन — राम राम और बजरंग क्या हाल है?

बजरंग — चाचा वैसे तो सब ठीक सै।

रतन — फिर के पिरेसानि सै बता दै।

बजरंग नै सारा वाक्य कह सुनाया।

रतन बोला — देख बजरंग हार मानण सै कुछ कोनि होवै। इब तो तैयारी कर।

बजरंग — मैनै तो कुश्ती के अ, आ, कोनि आवै। अर रम्या मंझा हुया पहलवान सै।

रतन — श्खिा तो मैं दूंगा, पर दिन रात एक करने पड़ेंगे।

बजरंग — इज्जत खातर मैं सब करूंगा।

बजरंग, रतन और गांव के एक दो पहलवान पूरी मेहनत और जी — जान से तैयारी में जुट गये। बजरंग ने अपनी खुराक भी बढ़ा दी औत जी कस मेहनत करने लगा। धीरे धीरे दंगल का समय निकट आने लगा।

अच्छी खुराक के बावजूद बजरंग का स्वास्थय पहले जैसा भी ना रहा। वह कुछ चिंतित सा भी रहता था। एक दिन रतन ने उससे उसकी परेशनि का कारण पुछा तो बजरंग ने कहा — चाचा रम्या एक अच्छा पहलवान है मुझै चित करण मै एक मिनट बी नी लगण दै।

रतन बोला — देख बजरंग रम्या एक अच्छा पहलवान है या बात तेरे खातर घणी बढ़िया सै। अगर तू उसके सामी कुछ देर ठहर गीया ना तो सब तेरी जय जयकार करेंगे। अर कदि तू जीत गीया तो बस। तेरे तो दोनों हाथां मै लडडू सै।

बात बजरंग को जच गयी। और वह पूरे मन से तैयारी मे लग गया। अब उसका स्वास्थय भी निखर आया।

आस पास के गांवों में भी ये बात चर्चा का विषय बनी हुई थी। जो भी सुनता वही रम्या को घमण्ड़ी और बजरंग को मुर्ख कहता। लोगों को बजरंग की आश्चर्यजनक जीत की उम्मीद थी। ताकि रम्या का घमण्ड़ चूर चूर हो जाये। लेकिन होनी तो होकर रहती है।

दंगल का दिन आ पहुंचा। सबको उनकी कुश्ती का ही इंतजार था। और जैसे ही उनका नाम बुला दर्शकों का ये इंतजार भी खत्म हुआ।

दौनो पहलवान अखाड़े के बीच में आ गये निर्णायक ने दौनों के हाथ मिलवाये और कुश्ती के नियम समझाये।

दर्शक बिलकुल शंत होकर देख रहे थे। सब यही चाहते थे कि जीत बजरंग की हो।

बजरंग के मन के किसी कोने में अभी भी ड़र था लेकिन उसने उसे पर्दशित नही होने दिया।

दुसरी और रम्या को अपनी जीत का पक्का यकीन था। उसने सोचा की पहले बजरंग को कुछ देर खिलायेगा, रमायेगा फिर पटखनी देगा।

कुश्ती षुरू हुई। बजरंग अपनी पूरी ताकत और फुर्ति से लड़ा जबकि रम्या ढ़ीला ढ़ाला। अभी कुछ ही देर हुई थी कि बजरंग का ऐसा दांव चढ़ा की उसने रम्या को सर पर उठा लिया। कितना भी अच्छा पहलवान हो यहां से कुछ नही कर सकता। अब रम्या हवा में झटपटाने लगा लेकिन कर कुछ ना सका।

चारों और से दर्शक चिल्लाने लगे पटक दो बजरंग पटक दो। सबको लगने लगा कि अब रम्या चाह कर भी कुछ नही कर सकता।

लेकिन अगले ही पल ये देखकर ष्ांत हो गये कि बजरंग ने रम्या को धीरे से सम्मानपूर्वक नीचे उतार दिया। अब दर्शकों के समझ मे कुछ ना आया बस उत्सुक्तापूर्वक देखते रहे कि अब आगे क्या होगा। बजरंग ने इतना अच्छा मौका क्ंयू गवा दिया। लेकिन रम्या बलरंग के इस दांव से बोखला गया। उसने बजरंग के सामने गिड़गिड़ाते हुए कहा — मुझे माफ कर दे बजरंग मेरे सै बहोत बड़ी भूल होगी सै पर इब नी होणे की।

बजरंग ने बड़ी ही विनम्रता से कहा — देख रम्या तू म्हारे गांव की षान सै। आज तक कोई कुश्ती नी हारा तो आज कैसे हार जाता। अर तनै तो पता सै मनै कुश्ती का षौक है कोनि,,, कोई बाहर का पहलवान आकै म्हारे गांम के सबसे बड़े पहलवान कु ललकारण लगा फेर।

तू ही तो गांम की इज्जत बचावेगा।

रम्या की आँख से खुशी का एक आंसू छलका। दौनों ने एक दूसरे को हंसते — हंसते गले लगाया।

ये कुश्ती बराबर पर छुटने के बावजूद बजरंग इसमे विजयी रहा।।