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सपने नहीं दे सकता

सपने नहीं दे सकता

पुत्रियाँ इतनी जल्दी युवा क्यों हो जाती हैं ! युवा होकर सपने क्यों देखती है ! सपने भी इन्द्रधनुषी !

सपनों में वे हिरनियों - सी कूदती - फांदती, किलोल करती , मदन - मस्त विचरण करती है। हिरनी जैसी आँखों को देखकर सपनों का राजकुमार पीछा करता है । वह रोमांचित हो उठती है। अंग - प्रत्यंग मस्ती में चूर'। इस उमर में इतनी मस्ती आती कहाँ से है !

घोड़े पर सवार राजकुमार फिर उसके सपने में आता है । वे वन में अठखेलियां कर रहे है। आँख मिचौनी खेल रहे है । राजकुमार, आँख पर पट्टी बंधी अपनी राजकुमारी को आलिंगन में ले लेता है ।

बेटी , सपना देख, लेकिन सपने में राजकुमार को मत देख । किंतु युवती का सपनों पर वश नहीं है । वे आते हैं और आते ही चले जाते हैं। एक रोमानी खुमारी और मीठी चुभन छोड़ जाते हैं। वह सपनों के बाहर नहीं आ पाती , सपनों का सौंदर्य और माधुर्य अलौकिक है। रोमांस भरे दृश्य उसकी आंखो में तैरते हैं। वह खुली आंखो से सपने देखती है।

इन सपनों में वह पति नहीं, चिर प्रेमी को देखती है। बस एक आकर्षण है, भविष्य के सपने है, लेकिन भविष्य के परिणाम से निश्चिंत है, वह अतीत में नहीं है,भविष्य में भी नहीं है। सिर्फ वर्तमान में है, सपने में है । उसे लग रहा है जैसे पूरा अस्तित्व उसके साथ उत्सव मना रहा हो, प्रेम में परिपूर्ण आनन्द है ।

पिता चिंतित है क्योंकि उन्होनें उसकी आंखो में सपना देख लिया है । पिता समझाते है , सच देख , सपने नहीं। 'मैं तुम्हें सपने नहीं दे सकता । ' स्त्री यहाँ सपने नहीं देखती वह सपनों में भी यथार्थ देखती है। अपना हौसला कर बुलंद कि सपनों में यथार्थ देख सके । समाज में औरत की नियति देख । परिवार में औरत की नियति देख ।

सपने टूटने लगते है, और टूटते ही चले जाते हैं । कहीं आत्मा के चटखने की आवाज भी सुन लेती है युवती । एक आत्महीन युवती का जीवन सामाजिक यथार्थ बन जाता है ।

लेकिन सपने देखने वाले ही सामाजिक यथार्थ को बदलते है । नहीं , तू देख सपने और मुस्तैदी से देख, कि तू औरत की नियति बदल सके ।

सुनहरे भविष्य का बीमा

समधी जी हमने शादी ब्याह की सब बातें तो पक्की कर ली लेकिन एक बात तो भूल ही गये .

इस ‘”लेकिन” शब्द को सुनते ही कितनी पुत्रियों के पिताओं को धरती घूमती नजर आई होगी । कितनी ही कन्याओं की जान ले ली होगी और कितनी ही कन्याओं के जीवन को नरककुंड बना दिया होगा जो आत्मग्लानि से ग्रसित जीवन जीने की इच्छा ही समाप्त कर बैठी होगी ।

आपकी पुत्री सुन्दर है, सुशील है और हर दृष्टि से योग्य है लेकिन रीति -रिवाज और अपनी मान - प्रतिष्ठा के अनुसार दान दहेज तो देना ही पड़ेगा ।

बेटी का बाप कुछ हिचकिचाने लगता है ।

‘’किस कंजर से पाला पड़ा है वो घनश्यामजी सीधे - सीधे पांच लाख दे रहे थे लेकिन ये कपूत छोरी की सुन्दरता पर लट्टू हो गये, नहीं तो पांच लाख छः साल में दस लाख हो जाते और एक अच्छी खासी कोठी बनवा देते’ । बेटे का बाप मन में विचार कर रहा था।

‘’कुछ नहीं तो एक फ्लेट ही बेटी के नाम बुक करा दें.’

बेटी का पिता कुछ प्रत्युत्तर देता उसके पहले ही समधिन ने अपने बाण छोड़े

‘’अब देखिये भाईसाहब , इंजीनियर जमाई चाहिए और वो भी फ्री चाहिए । कर लेते अपनी बेटी का ब्याह किसी चपरासी से या बेरोजगार से । सपने देंखेंगे कि बेटी रानी बनकर राज करेगी । लेकिन कानी कौड़ी खर्च नहीं करेंगे यह भी कोई बात है.’

उल्टे सिद्धातो का भाषण पिला देंगे

बेटी का बाप हिचकिचाकर अपनी कुछ मजबूरी बताने का प्रयत्न करता है कि दूल्हे के पिता फिर उन्हें समझाने लगते हैं।

‘अब आप यही समझ लीजिए कि आप अपनी बेटी के सुनहरे भविष्य ई एम आई नहीं बल्कि प्रीमियम भर रहे है। मेच्योर होने पर ब्याज व बोनस सहित राशि मिलेगी और बेटी ताजिन्दगी प्रसन्न रहेगी और परिवार की मालकिन बनेगी . बस बेटी के नाम फलेट बुक करा दीजिए और किश्तों में पैसा देते जाइये । आपको भारी भी नहीं पडेगा ।

बेटी का बाप असमंजस में पड़ा कुछ नहीं बोल पाया । केवल सिर हिलाकर रह गया ।

अतिथि

हाँ मैं पराया धन हूँ मुझे अपने घर से युवावस्था में विदा कर दिया अब उस घर से मेरा रिश्ता महज रस्मों-रिवाज का रह गया है।

पिया का घर ही मेरा वास्तविक घर है. यह तो ठीक वैसे ही हुआ कि नर्सरी में पौध तैयार की और खेत में रोप दी लेकिन वहां किसान पौध का कितना ख्याल रखता है समय पर खाद पानी और अपने हाथों का ताप और दिल का प्यार देता है । तब जाकर पौध फलती -फूलती है और किसान को देखकर लहलहाने लगती है।

पिया का घर प्यारा लगे अगर वहाँ प्यार अपनापन थोड़ा सम्मान और थोड़ी स्वतंत्रता मिले। यही नहीं कि दिनभर दूसरों के इशारे पर नाचते रहो और जली-कटी सुनते रहो।

मेरा सौभाग्य था कि मेरे पिया की सर्विस चैन्नई में थी और ससुराल भोपाल में । पिया ने खाने -पीने की दिक्कत बताकर माँ से हाँ भरवाली कि वह मुझे चैन्नई ले जायेगा। इस मामले में पिया के साहस की प्रशंसा करनी पडेगी । नहीं तो ऐसे मामलों में लड़के मां -बाप के सामने गूंगे हो जाते है। अब मेरे मन का डर मुझ पर हावी होने लगा कि कहीं सास साथ न चली आए क्योंकि वे बार - बार आग्रह कर रहे थे कि माँ तुम भी साथ चलो । लेकिन उन्होंने आग्रह टालते हुए कहा कि बाद में आउंगी हफ्ते भर के लिए।

विवाह के सप्ताह भर बाद हम दोनों चैन्नई चले गये । न बाबूल के घर न पराये (ससुराल)घर बल्कि मेरे अपने घर जिसे मैं अपनी पंसद से सजाऊँ -संवारू । क्या खाना बनाऊं ? क्या पहनूं ?कब सोऊं ? कब घूमने जाऊँ? कोई डिक्टेट करने वाला नहीं ।

मुझे जैसे पंख लग गये थे। हम प्रेम में भीगे-भीगे] बौछारो में मस्ती करते सागर के किनारे हाथ में हाथ लिए डूबते सूरज को निहारते] लहरों का संगीत सुनते और फिर किसी रेस्त्रां में डिनर कर घर पहुंच जाते ।

समाज अब भी वही है वे ही मान्यताएँ और मूल्य हैं । फिर भी मुझे जो थोड़ा स्पेस मिला है उसमें मैं खुले में सांस ले सकती हॅू। और अपने फैफड़ों में जीवन की सांसे भर सकती हूँ । पिता या ससुर के घर हफ्ते - दो हफ्ते की आवाजाही रही है। वहाँ अब मेरी हैसियत अतिथि की रह गई है।

मैरिज एनवर्सरी

‘आज हमारे विवाह को सत्रह साल हों गए हैं “ पत्नी ने कहा .

“वो तो होने ही थे” पति ने बहुत ही ठंडा रेस्पोंस दिया .

“क्या तुम्हें कोई खुशी नहीं है?” पत्नी का सारा उत्साह बुझ गया .

“इसमे खुशी की क्या बात है ? वर्ष तो पूरे होंगे ही ,समय चक्र जो चलता रहता है “ स्वर काफी निराशाजनक था .

“यानि सत्रह वर्ष के सफल वैवाहिक जीवन पर तुम मुझे बधाई नहीं दोगे !”

“बधाई देनी ही है तो तुम मुझे दो ,मेरी वजह से वैवाहिक जीवन के सत्रह साल पूरे हुए हैं “

“वो कैसे ! जरा मैं भी तो जानू ?”

“जानकर क्या करोगी ?यह सफल विवाह असफल हो जायगा “

“कैसे हो जायगा !मैं इसे हर सूरत में सफल बनाकर रहूंगी “

“तो फिर ठीक है ,कल से मैं अपनी ओर से एडजस्टमेंट करना बंद कर दूँगा “

“तुम्हारा मतलब तुम्हारे एडजस्टमेंट की वजह से ये सत्रह साल पूरे हुए हैं “

“हाँ ,इसमे क्या शक है !”

“मैं जो कुर्बानी –दर –कुर्बानी दे रही हूँ ,उसका क्या ?”

पति चुप .

फिर पत्नी चुप .

आगे कुछ कहने का मतलब युद्ध के लिए तैयार रहना .

दोनों दो द्वीप .एक दूसरे से कटे –कटे .

पत्नी सोच रही थी ‘कितना केयर करती हूँ ,इनका ,बच्चों का ,परिवार वालों का ,फिर भी ......? पूरा मूड खराब कर दिया . कंजूस केवल पार्टी का पैसा बचाना चाहता है .”

पति सोच रहा था सफल विवाह क्या साल दर साल पूरा होने को कहते हैं .कोई जीवंत साहचर्य तो है नहीं .परिवार के आगे भी जहाँ है इसे यह कब समझ मैं आयगा ?

बंदी जीवन

विवाह पश्चात पत्नी ने पति से कहा ,”अब हम पति –पत्नी है .”

‘क्या ऐसा नहीं हों सकता कि हम अविवाहित प्रेमी –प्रेमिका बन जाय .”

‘हम प्रेमी –प्रेमिका तो बन सकते है ,लेकिन अविवाहित नहीं ,क्योंकि हमारा विवाह हो चुका है ”

“भूल जाओ कि हमारा विवाह हुआ है .ऐसे रहो जैसे प्रेमी –प्रेमिका रहते है .”

“वो छुप छुप कर मिलना,वो चौकन्ना होकर घर से निकलना,कोई देख न ले इसका हर वक्त डर. रात भर आहें भरना ,तारे गिनना ,एक दिन न मिलो तो विरह वेदना भोगना ,विवाह के बाद ये सब कैसे संभव है ? फिर रहना भी तो तुम्हारे घर-परिवार के साथ है .”

‘कोशिश करके तो देख सकते है .”

‘ये तब संभव होगा जब हम डेटिंग यानि हनीमून पर दो तीन महीने के लिए चल दें .”

‘क्या ख़ूब आइडिया है इसकी तो परमिशन मिल ही जायगी .हो सकता है उस उन्मुक्त माहौल में प्रेम अंकुर फूट ही जाएँ .

‘युवक-युवतियों में देह का आकर्षण तो रहता है क्योंकि देह की अपनी जरूरते है यह आकर्षण स्वाभाविक है पर यह प्रेम नहीं है’

‘जब हम दिल से एक दूसरे को चाहेंगे तो प्रेम तो होना ही है .प्रेम जीवन को निर्भार कर देता है ,जीवन में पंख लग जाते है उडान आसान हो जाती है .”

बात तुम्हारी ठीक है , विवाह ने हमें लॉक कर दिया. विवाह तो बंधन ही है .अब तो बंदी जीवन को जितना खुश हाल रख सकते हो दोनों मिलकर रखें .

“विवाह में भी प्रेम संभव है “

साथ –साथ रहते तो जानवरों से भी प्रेम हो जाता है

भाग शिल्पा भाग

अभी मैं बत्तीस वर्ष की हूँ लेकिन देखने में चालीस की लगती हूँ ।जब बाईस वर्ष की उम्र में ,मैं ब्याह करके आई थी तो सपनों का एक संसार साथ लेकर आई थी

लेकिन कुछ ही महीनों में यथार्थ के जलते अंगारों का ताप मेरे पांव महसूस करने लगे। मेरी दुनिया झाडू पौंछा बर्तन कपडे और किचन में सिमट गई।

मुझ से सबको अपेक्षाएं थी जिन्हें पूरा करना मेरा कर्त्तव्य था लेकिन मेरे प्रति किसी का कोई दायित्व नहीं था। खाना-कपडा मिल रहा है,रहने के लिये अच्छा-खासा मकान है, खाता-पीता घर है, क्या कमी है !

जब मैं पहली बार प्रेगनेंट हुई तो पति तव्वजो देने लगे ,सास बलाईयां लेने लगी ,अब इस घर का वारिस आ ही जायगा , मन्नत मांगने मुझे रुहानी बाबा की मजार ले जाया गया वहां मुझसे चादर चढवाई गई,देवी मंदिर में माँ से पोता मांगा और माँ का भंडारा किया । गुरेद्वारे जा कर अरदास भी की और लंगर भी छकाया।

सास कभी किसी बाबा को बुलाकर भभूत दिलवाती,कभी किसी से अभिमंत्रित डोरा बंधवाती किसी मौलाना से ताबिज लाकर मेरी बांह पर बांध दिया जाता

यह सब देखकर मैं बुरी तरह घबरा गई कि अगर मेरे बेटा नहीं हुआ या उनकी भाषा में कहूं तो अगर मैनें उन्हें बेटा नहीं दिया तो ,मेरी क्या गत बनेगी इसका सहज ही अन्दाजा लगाया जा सकता है

इन सारे क्रिया-कर्म के बावजूद पति आश्वस्त नहीं थे वे अपने विश्वसनीय डाक्टर के सम्पर्क में थे सोनोग्राफी करवा कर गर्भ में पल रहे भ्रूण का लिंग मालूम करना चाहते थे अच्छी खासी रकम देकर. डाक्टर ने कहा जै माता दी देवी मां का आशीर्वाद है

अब नयी समस्या आ खडी हुई कि इस देवी से कैसे छुटकारा पाया जाय ? एक बार फिर डाक्टर की जेब भरकर अबोर्शन करवा दिया और इस तरह मेरा पहला गर्भपात हुआ, खूब खून बहा और मैं कमजोर हो गई. मेरा बचा- खुचा आत्मविश्वास भी मेरा साथ छोड गया. बाद के वर्षों में जब ऐसा तीसरी बार हुआ तो डाक्टर ने कहा कि रिस्क है और आगे से अब नहीं होगा

उनका मानना था कि औलाद तो बेटे ही होते है बेटियां तो पराया धन होती है अब घर मे मेरे पति की दूसरी शादी की बात हो रही है तो पति सरोगेट मदर की बात कर रहे है मैं डरी-डरी,सहमी-सहमी जी रही हूं शरीर पूरा निचुड चुका है कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि इस नरक से भाग जाउं। कहां ?कोई भी जगह इससे तो बेहतर होगी, भाग शिल्पा भाग, अब तेरा यहां गुजारा नहीं और अपमानित होकर, और जलील होकर जीना, नहीं अब बस भागना ही अन्तिम विकल्प था और मैं भाग आई .