Ashadh ka fir vahi ek din book and story is written by PANKAJ SUBEER in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Ashadh ka fir vahi ek din is also popular in Moral Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
आषाढ़ का फिर वही एक दिन - Novels
by PANKAJ SUBEER
in
Hindi Moral Stories
टिंग-टिड़िंग टिड़िंग-टिड़िंग, टिंग-टिड़िंग टिड़िंग-टिड़िंग, ये मोबाइल का अलार्म है । जो रोज़ सुबह खंडहर हो चुके सरकारी आवासों वाली तीन मंज़िला बिल्डिंग के दूसरे माले में बजता है । क़तार में खड़ी, पीले रंग से पुती हुई इन बिल्डिंगों में कई कई परिवार समाये हुए हैं । समाये हुए हैं दो कमरों, किचिन, लेट बाथ वाले मकानों की दुनिया में । उन्हीं में से एक मकान में ठीक पाँच बजे बजता है ये मोबाइल । वैसे तो लगभग हर घर में इसी समय किसी न किसी रूप में ये अलार्म बजता है । मगर कहानी चूँकि भार्गव बाबू की है सो बात को उन तक ही केन्द्रित रखा जाये ।
आषाढ़ का फिर वही एक दिन (कहानी: पंकज सुबीर) (1) टिंग-टिड़िंग टिड़िंग-टिड़िंग, टिंग-टिड़िंग टिड़िंग-टिड़िंग, ये मोबाइल का अलार्म है । जो रोज़ सुबह खंडहर हो चुके सरकारी आवासों वाली तीन मंज़िला बिल्डिंग के दूसरे माले में बजता है । ...Read Moreमें खड़ी, पीले रंग से पुती हुई इन बिल्डिंगों में कई कई परिवार समाये हुए हैं । समाये हुए हैं दो कमरों, किचिन, लेट बाथ वाले मकानों की दुनिया में । उन्हीं में से एक मकान में ठीक पाँच बजे बजता है ये मोबाइल । वैसे तो लगभग हर घर में इसी समय किसी न किसी रूप में ये अलार्म
आषाढ़ का फिर वही एक दिन (कहानी: पंकज सुबीर) (2) दूसरा कमरा जिसे ड्राइँग रूम कहा जा सकता है उसमें अब भार्गव बाबू नाश्ते के लिये आ चुके हैं । घड़ी साढ़े आठ के आस पास है । भार्गव ...Read Moreके घर समाचार पत्र नहीं आता । वे सुबह की ख़बरें टीवी से प्राप्त करते हैं । पराँठे के कौर, अचार के मसाले के साथ उदरस्थ करने में जुटे हैं भार्गव बाबू । बीच बीच में किसी नेता को टीवी पर देख लेते हैं तो मुँह ही मुँह में बुदबुदा देते हैं ‘सब चोर हैं...’ और वाक्य में आदत के
आषाढ़ का फिर वही एक दिन (कहानी: पंकज सुबीर) (3) फाइलें साइन होने के बाद भार्गव बाबू तुरंत बाहर आ गये हैं । अब वे अपनी कुसी पर वापस बैठ गये हैं, जहाँ अब कुछ भीड़ सी हो रही ...Read More। ‘आप सब लोग लंच के बाद आइये... अभी ज़रा साहब के साथ मीटिंग है ।’ भार्गव बाबू ने सबको हाथ से इशारा करते हुए कहा । ‘लंच से पहले कोई काम नहीं होगा, यहाँ भीड़ बढ़ाने से कोई मतलब नहीं है, साहब देखेंगे तो नाराज़ होंगे ।’ साहब की नाराज़ी से सब डरते हैं, फाइल तो उनने ही साइन