मुझे तुम याद आएं... - Novels
by Saroj Verma
in
Hindi Love Stories
अरी,भाग्यवान! सत्या कहाँ है?नाश्ते का समय हो गया है और साहबजादे अभी तक फरार हैं,सेठ जानकी दास जी बोले.....
अरे,सुबह-सुबह निकल गया था,पता नहीं क्यों नहीं लौटा अब तक?,कल्याणी ने टेबल पर नाश्ता लगाते हुए कहा....
वैसे नाश्ते में क्या बनाया ...Read Moreजानकीदास ने कल्याणी से पूछा।।
वही आपकी पसंद के गोभी-आलू के पराँठे ,प्याज वाला रायता और हरी चटनी,कल्याणी बोली।।
वाह..भाई...वाह आज तो मज़ा ही आ जाएगा नाश्ते का,लेकिन ये सत्या कहाँ?उसके आने तक पराँठे ठण्डे हो जाएंगे,सेठ जानकी दास जी बोले।।
ए..जी! उसकी चिन्ता मत कीजिए,वो कह रहा था कि नाश्ते में वो घी के पराँठे नहीं खाएगा,उसने नमकीन दलिया बनाने को कहा तो बना दिया और बोल रहा था कि कुछ फल काट देना,उसी का नाश्ता करेगा,कल्याणी बोली।।
ये क्या है जी?विलायत से डाक्टरी पढ़कर आने पर तो उसके मिजाज़ ही बदल गए,सेठ जानकीदास जी बोले....
अरी,भाग्यवान! सत्या कहाँ है?नाश्ते का समय हो गया है और साहबजादे अभी तक फरार हैं,सेठ जानकी दास जी बोले..... अरे,सुबह-सुबह निकल गया था,पता नहीं क्यों नहीं लौटा अब तक?,कल्याणी ने टेबल पर नाश्ता लगाते हुए कहा.... वैसे नाश्ते में ...Read Moreबनाया है?सेठ जानकीदास ने कल्याणी से पूछा।। वही आपकी पसंद के गोभी-आलू के पराँठे ,प्याज वाला रायता और हरी चटनी,कल्याणी बोली।। वाह..भाई...वाह आज तो मज़ा ही आ जाएगा नाश्ते का,लेकिन ये सत्या कहाँ?उसके आने तक पराँठे ठण्डे हो जाएंगे,सेठ जानकी दास जी बोले।। ए..जी! उसकी चिन्ता मत कीजिए,वो कह रहा था कि नाश्ते में वो घी के पराँठे नहीं खाएगा,उसने
कजरी बगीचे से चली तो गई लेकिन जाते जाते सत्यसुन्दर के अँखियों की निन्दिया और दिल का चैन छीन कर ले गई,कोई लड़की इतनी सुन्दर भी हो सकती है ये सत्यसुन्दर ने कभी नहीं सोचा था,वो तो विलायत से ...Read Moreआया था,वहाँ तो उसने एक से एक गोरी मेंम देंखीं थीं लेकिन जो सादगी कजरी में थी शायद वो सादगी किसी देवी की मूरत मे देखने को मिलती है।। वो खुशी खुशी फार्महाउस लौट आया तब तक सेठ जानकीदास जी आराम कर चुके थे और उन्होंने सत्या से जमीन देखने को कहा... सब जमीन देखने गए और उन सबको
सत्या झोला लेकर बगीचें में पहुँचा,कुछ देर उसने पेड़ के नीचे बैठकर कजरी का इन्तज़ार किया लेकिन कजरी नहीं आई,जब कजरी नहीं आई तो उसने बड़े खराब मन से नींबू तोड़े और सोचा चलो कुछ देर और कजरी का ...Read Moreकर लेता हूँ,सत्या इन्तज़ार करते करते थक गया लेकिन फिर भी उस दिन कजरी बगीचें में नहीं आई,तब निराश होकर सत्यसुन्दर फार्महाउस वापस आ गया,सत्या को देखकर काशी ने पूछा... आ गए छोटे मालिक! हाँ!काका! सत्या ने बड़े बोझिल मन से जवाब दिया।। का हुआ छोटे मालिक! इत्ता उदास काहें दिख रहो हो,ज्यादा थक गए क्या? काशी ने पूछा।। नहीं
सत्या फार्महाउस आया और काशी का इन्तज़ार करे लगा और उधर काशी ने सोचा कि ऐसा ना हो छोटे मालिक अभी भी रामाधीर के घर में बैठे हो इसलिए जा पहुँचा उन्हें खोजते रामाधीर के घर और बाहर से ...Read Moreदेते हुए बोला..... रामाधीर.....रामाधीर भाई! कहाँ हो? अरे,काशी ! आओ....आओ...भीतर आओ,बड़े दिनों बाद दर्शन दिए,रामाधीर ने कहा।। क्या करूँ भाई? फार्महाउस से फुरसत ही नहीं मिलती,काशी ने भीतर जाके जवाब दिया।। बिटिया! जरा अपने काका को पानी तो पिला,रामाधीर बोला।। हाँ!बापू! अभी लाई,इतना कहकर कजरी पानी लेने चली गई।। क्या हुआ ? लेटे क्यों हो? तबियत ठीक नहीं है क्या?
कजरी और सत्यसुन्दर ने मिलकर फूल तोड़े,फूल तोड़ने के बाद कजरी बोली.... अच्छा! तो बाबू ! मैं चलती हूँ... कल आओगी ना! सत्या ने कजरी से पूछा।। कह नहीं सकती,कजरी बोली।। लेकिन क्यों? सत्या ने पूछा।। अच्छा,कोशिश करूँगी आने ...Read Moreबोली।। और दोनों साथ साथ बगीचें से बाहर निकले और अपने अपने रास्तों पर चल पड़े.... सत्या फार्महाउस आया और मोटर में बैठकर घर की ओर रवाना हो गया और इधर कजरी भी धीरे धीरे चलकर घर के करीब पहुँची ही थी कि उसे रास्ते में बाँकें मिल गया.... कहाँ गईं थी कजरी रानी? बाँकें ने पूछा।। तुझसे मतलब,कजरी बोली।।
अन्जना के जाते ही कजरी बोली.... सुन्दर बाबू! ये आपने अच्छा नहीं किया,हम जैसे गरीब लोगों के लिए आपने अन्जना जी से कुछ ज्यादा ही भला बुरा कह दिया... तुमने देखा ना!कि उसे कितना घमंड है,रईस होगी तो अपने ...Read Moreरईसी अपने घर में ही झाड़े,सत्यसुन्दर बोला।। लेकिन सुन्दर बाबू! ये अच्छा नही हुआ,रामाधीर बोला।। अरे,आप लोंग उस पर नहीं,खाने पर ध्यान दो,सत्यसुन्दर बोला।। लेकिन सुन्दर बाबू! अगर सेठ जी को कुछ पता चल गया तो,कजरी बोली।। बाबूजी को उसके बारें में सब पता है,वो कुछ नहीं कहेंगें,सत्या बोला।। और उधर अन्जना गुस्से में घर पहुँची तो उसके पिता
कजरी अपने घर में उदास खड़ी थी एकाएक उसे बाहर से बाँकें ने पुकारा.... कजरी रानी! मेले नहीं चलोगी मेरे संग,चलो ना साइकिल पर बैठाकर ले चलता हूँ।। तू फिर से आ गया मेरी जान खाने,नासपीटे मरता क्यों नहीं ...Read Moreकजरी बोली।। क्यों ? मन नहीं लग रहा क्या डाँक्टर बाबू के बिना? उसी के संग मेला जाओगी क्या? बाँके बोला।। तुझसे क्या मतलब ? मैं किसी के भी संग जाऊँ,तू कौन होता है पूछने वाला? कजरी बोली।। हाँ! भाई! अब सब कोई तो तेरा वो डाक्टर बाबू हो गया है,दिखता नहीं है क्या मुझे? महीनों से उसके साथ ही
अब कजरी बिल्कुल अकेली हो चुकी थी,इसलिए उसे कुछ दिनों के लिए सिमकी काकी ने अपने घर में रख लिया,सिमकी काकी को बेचारी कजरी पर बहुत दया आती,एक तो अनाथ ऊपर से देख नहीं सकती,अब जाने क्या होगा इसका?वो ...Read Moreसोचा करती।। कजरी के बापू की मौत की ख़बर सुनकर कल्याणी भी उससे कभी कभी मिलने आ जाती और उसे सान्त्वना देती,लेकिन जब इन्सान मन दुखी होता है तो किसी की भी हमदर्दी उस के दुख को दूर नहीं कर सकती,जिसके ऊपर बीतती है केवल वही जानता है,वैसे इंसान को खुद ही अपने दुखो से उबरना होता है और
सत्या के साथ इतना कुछ घटित होने के बाद अन्जना और उसके पिता सत्या की मदद के लिए सामने आएं,अन्जना ने शहर के सबसे बड़े वकील को सत्या का केस लेने को कहा.... वकील ने मुँहमाँगी ...Read Moreमाँगी और वो सब अन्जना और उसके पिता ने दी,इधर कल्याणी पति की मौत और सत्या के जेल जाने से टूट सी गई,दिनभर उदास होकर यूँ ही बैठी रहती,ना कुछ खाती और ना कुछ पीती,कल्याणी की देखभाल के लिए सिमकी उनके पास आकर ठहर जाती,एक दो दिन रूकती फिर वापस आ जाती।। लेकिन सिमकी के हमदर्दी के बोल भी कल्याणी के
कजरी कुएंँ पर पहुँची,मटके और पीतल के कलश को जमीन पर रखा,फिर कलश में रस्सी बाँधकर जैसे ही कुएँ में लटकाया तो किसी ने पीछे से पुकारा.... सुनिए! बहुत प्यास लगी है,थोड़ा पानी मिलेगा क्या? ...Read Moreने पीछे पलटकर देखा तो कोई नवयुवक था,जो कि इस गाँव का नहीं लग रहा था,उसे देखकर कजरी बोली.... हाँ..हाँ..क्यों नहीं? मैं अभी कुएँ से पानी खींचकर आपको पिलाती हूँ,इतना कहकर कजरी ने कुएँ से पानी से भरा कलश खींचा और उस नवयुवक से कहा... लीजिए,पानी लीजिए... फिर कजरी कलश से नवयुवक की अंजुली में पानी भरने लगी और नवयुवक अंजुली
कजरी को नीचें बैठता देख सोमनाथ ने उसके पास जाकर उसे सहारा देकर खड़ा किया फिर कुर्सी पर बैठाकर उसके एड़ी को देखकर छूते हुए पूछा.... कहाँ चोट लगी है?यहाँ पर या यहाँ पर... सोमनाथ के ...Read Moreका कजरी ने कोई जवाब नहीं दिया तो सोमनाथ ने जरा तेज आवाज में कहा... मुँह में दही जमा है क्या? बोलती क्यों नहीं? मुझे चोट-वोट नहीं लगी है,मुझे घर जाना है,कजरी बोली।। खड़ा तो हुआ नहीं जा रहा,देवी जी! चलकर घर जाएंगीं,सोमनाथ बोला।। आपको इससे क्या? मेरा पाँव टूट भी जाएं लेकिन पहले आप डाँट लीजिए,कजरी बोली।।
और उधर सेठ रामलाल जी ने बाबा शंखनाद के स्वागत- सत्कार का काम पुरोहित जी को सौपते हुए कहा..... पुरोहित जी! बाबा शंखनाद का ख़ास ख्याल रखिएगा,किसी भी चीज की कमी ना होने पाएं,मैने अपनी पुरानी महाराजिन ...Read Moreउनके खाने-पीने का प्रबन्ध करने को कह दिया है,वें ही उन सबके लिए शुद्ध एवं सात्विक भोजन बनाआ करेंगी,बूढी है बेचारी,मै ने कहा तो मान गई,बोली धरम-पुन्न का काम है,कैसे मना करती हूँ,इसी बहाने अगला जनम सुधर जाएगा।। ये बिल्कुल सही किया आपने सेठ जी! खाने पीने का इंतज़ाम करवा कर ,मेरे घर पर भी लहसुन-प्याज का प्रयोग होता है,कहीं
सत्या के पैर में चोट लगी थी इसलिए वो प्रवचन सुनने ना गया,कजरी को उलझनों ने घेर रखा था और सोमनाथ को बाबाओं के प्रवचन ढ़ोग लगते थे।। सत्या लेटकर कजरी ...Read Moreबारें में सोच रहा था कि उससे मैं कैसे पूछूँ कि जब तुम जिन्दा थी तो मेरे पास वापस क्यों नहीं आई? और कजरी ये सोच रही थी कि जब सत्या ने मुझे देखा तो पहचाना क्यों नहीं,बोला क्यों नहीं?ये सत्या है भी या नहीं।। सोमनाथ सोच रहा था कि आज एक भी मरीज नहीं आएं,सब उस ढ़ोगी बाबा के प्रवचन सुनने चले गए,शायद अब