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Rasbi kee chitthee Kinzan ke naam by Prabodh Kumar Govil | Read Hindi Best Novels and Download PDF

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रस्बी की चिट्ठी किंजान के नाम by Prabodh Kumar Govil in Hindi
Novels

रस्बी की चिट्ठी किंजान के नाम - Novels

by Prabodh Kumar Govil Matrubharti Verified in Hindi Fiction Stories

(27)
  • 13.1k

  • 32k

  • 1

आजा, मर गया तू? मैं बरसों से चुप हूं। कुछ नहीं बोली। बोलती भी क्या? न जाने ये सब कैसे हो गया। मैं मर ही गई। मैं यहां परलोक में आ गई। तू वहीं रह गया था दुनिया में। मैं अभागी ...Read Moreरो भी न सकी। कैसे रोती? दुनिया कहती कि कैसी पागल औरत है, इस बात पर रोती है कि इसका बेटा मरा नहीं। अरे बात तो एक ही है न। तू जीवित रहा, पर मैं तो मर गई न। बिछुड़ तो गए ही हम। मैं जब मर कर यहां आई तो मैंने तुझे खूब ढूंढा। पर तू मुझे कैसे मिलता? तू तो वहीं दुनिया में ही था। जब मुझे पता चला कि मेरे साथ धोखा हो गया है। मैं मर गई और तू वहीं है, मरा नहीं, तो मैं चुप हो गई। कहती भी क्या? किससे कहती? पर अब मैं बोलूंगी। मुझे तुझसे कुछ नहीं कहना। पर दुनिया को तो बताना है न। तुझसे क्या कहूंगी? तुझे देख पा रही हूं यही बहुत है मेरे लिए। बरसों इंतजार किया है मैंने तेरा। समय ने कैसा गुल खिलाया कि मैं, तेरी मां, बरसों से तेरे मरने का इंतजार कर रही हूं। अब दुनिया को बताना तो पड़ेगा न, कि ये सब क्या गोरखधंधा है। नहीं तो दुनिया मुझे पागल समझेगी। धूर्त समझेगी। ऐसी पिशाचिनी समझेगी जो अपने पुत्र के मरने की बात करती है।

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रस्बी की चिट्ठी किंजान के नाम - Novels

रस्बी की चिट्ठी किंजान के नाम - 1
आजा, मर गया तू? मैं बरसों से चुप हूं। कुछ नहीं बोली। बोलती भी क्या? न जाने ये सब कैसे हो गया। मैं मर ही गई। मैं यहां परलोक में आ गई। तू वहीं रह गया था दुनिया में। ...Read Moreअभागी तो रो भी न सकी। कैसे रोती? दुनिया कहती कि कैसी पागल औरत है, इस बात पर रोती है कि इसका बेटा मरा नहीं। अरे बात तो एक ही है न। तू जीवित रहा, पर मैं तो मर गई न। बिछुड़ तो गए ही हम। मैं जब मर कर यहां आई तो मैंने तुझे खूब ढूंढा। पर तू मुझे
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रस्बी की चिट्ठी किंजान के नाम - 2
वो कौन थी? वो मेरी मां थी। बताया ना। बहुत मुश्किल जगह में रहती थी। सब सोचेंगे कि ये मुश्किल जगह क्या होती है। जगह या तो ठंडी होती है, या गर्म। ज़्यादा बरसात वाली होती है। पथरीली, बंजर, ...Read Moreमैदानी... पर ये मुश्किल जगह क्या होती है! मुश्किल माने ऐसी जगह जहां अच्छे लोग नहीं होते। उसे इस बात का दुख नहीं होता था कि उसे चार किलोमीटर दूर से पीने का पानी लाना पड़ता है और गांव में ज़रूरत की चीज़ों तक की कोई दुकान नहीं है, बिजली नहीं आती, उबड़- खाबड़ रास्तों पर पैदल ही इधर -
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रस्बी की चिट्ठी किंजान के नाम - 3
फ़िर मेरा जन्म हुआ। मेरे पैदा होने से पहले ही मेरे पिता मेरी मां को छोड़ कर जा चुके थे। कत्ल की आरोपी "खूनी" मां के साथ भला कौन रहता। सिवा मेरे, क्योंकि मैं तो उसके पेट में ही ...Read Moreमेरी मां बताती थी कि एक बड़ा रहमदिल अफ़सर उसे मिला जिसने सब लिखा - पढ़ी करवा कर मेरे जन्म की व्यवस्था भी करवा दी और मुझे मां के साथ जेल में ही रखे जाने की बात भी सरकार और कानून से मनवा दी। बेटा, अब तक तो मैंने सब सुनी सुनाई कही, पर अब तुझे मेरी आंखों देखी और
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रस्बी की चिट्ठी किंजान के नाम - 4
कुछ ही दिनों में मेरी ज़िन्दगी में एक बहुत मज़ेदार दिन आया। मैं आज भी पूरे दिन इस मज़ेदार दिन की बातें चटखारे लेकर करती रह सकती हूं। ये था ही ऐसा। मेरे जीवन का एक अहम दिन। इस ...Read Moreमैंने एक साथ सुख और दुख को देखा, एक दूसरे से लिपटे हुए। छोटी सी तो मैं, और इतना बड़ा सुख? छोटी सी मैं, हाय, इतना बड़ा दुःख?? बेटा, ज़्यादा पहेलियां नहीं बुझाऊंगी, वरना तू खीज कर गुस्सा हो जाएगा। बताती हूं। सब बताती हूं साफ़- साफ़। हुआ यूं, कि वो जो अच्छे लोग हमारे जेल में आए थे वो
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रस्बी की चिट्ठी किंजान के नाम - 5
ये समय मेरे लिए तेज़ी से बदलने का था। बहुत सी बातें ऐसी थीं जिनमें मैं अपनी मां के साथ रहते- रहते काफ़ी बड़ी हो गई थी। अब मम्मी के साथ आकर मैं फ़िर से बच्ची बन गई। दूसरी ...Read Moreकई बातें ऐसी भी थीं जिनमें मैं अपनी मां के साथ रहते हुए बिल्कुल अनजान बच्ची ही बनी हुई थी पर मम्मी के साथ तेज़ी से बढ़ने लगी। ये दुनिया भी खूब है। जो मुझे दुनिया में ले आया उसने कुछ नहीं दिया और जिन्होंने मुझ पर तरस खाकर मुझे अपनाया उन्होंने मेरे लिए तमाम खुशहाली के रास्ते खोल दिए।
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रस्बी की चिट्ठी किंजान के नाम - 6
जॉनसन से मेरी शादी हो गई। और संयोग देखो, शादी के बाद तुरंत ही एक बार फ़िर मेरा देश छूट गया। हम अमरीका आ गए। जॉनसन ने मेरा सब कुछ बदल दिया। वो बहुत प्यारा इंसान था। उसने मेरा ...Read Moreतो बदला ही, मेरा नाम भी बदल दिया। मैं अब रस्बी हो गई। मैं भी प्यार से उसे जॉनी कहने लगी। प्यार बड़ी अद्भुत चीज़ है। ये दुनिया की तमाम बातों से आपका ध्यान हटा देता है। ये जीने के दस्तूर ही बदल देता है। आप अपने से ज़्यादा किसी दूसरे के लिए जीने लगते हैं। वो आहिस्ता- आहिस्ता आपके
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रस्बी की चिट्ठी किंजान के नाम - 7
तू धीरे धीरे बड़ा होने लगा और तुझे देख देख कर ज़िन्दगी पर मेरा भरोसा बढ़ने लगा। मैं ख़ुश रहने लगी। ये कितनी अजीब बात है न? इमारतें, सड़कें, पुल, झीलें, झरने, बग़ीचे, बाज़ार, मोटर, रेल, दुकानें, खेत... ये ...Read Moreहमें और भी अच्छे लगने लगते हैं जब हमारे साथ कोई प्यारा सा अपना हो। हर काम में जी जुड़ता है। खाने- चहकने- खिलखिलाने की इच्छा होती है। देखते देखते तू स्वस्थ सुंदर किशोर बनने लगा। मेरी ढलती हुई युवावस्था और तेरे पिता की मजबूती जैसे हम से निकल कर तेरे बदन में समाने लगी। दुनिया भी खूब है। शरीर
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रस्बी की चिट्ठी किंजान के नाम - 8
मैं सतर्क हो गई। मैंने मन में ठान लिया कि तुझे इस नासमझी से रोकना ही है। अब मैं तेरी हर छोटी से छोटी बात पर नज़र रखने लगी। तुझे पता न चले, इस बात का ख्याल रखते हुए ...Read Moreमैं तुझ पर निगाह गढ़ाए रहने लगी। तू क्या करता है, कहां जाता है, तुझे मिलने कौन आता है, तेरे दोस्त कौन - कौन हैं और वे कहां रहते हैं, तेरे पास कितनी रकम है... मैं ये सब चुपचाप देखने लगी। मैं उखड़ी- उखड़ी रहने लगी। हर बात में तुझे डांटती, तेरी उपेक्षा करती। लेकिन मैं मन ही मन तुझसे
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रस्बी की चिट्ठी किंजान के नाम - 9
कभी - कभी मुझे तुझ पर जबरदस्त गुस्सा आ जाता था। मैं सोचती, आख़िर तेरी मां हूं। तुझसे इतना क्यों डरूं? एक ज़ोर का थप्पड़ रसीद करूं तेरे गाल पर, और कहूं- खबरदार जो ऐसी उल्टी- सीधी बातों में ...Read Moreखराब किया। छोड़ो ये सब और अपनी पढ़ाई में ध्यान दो। पहले पढ़- लिख कर कुछ बन जाओ तब ऐसे अजीबो- गरीब शौक़ पालना! पर बेटा, तभी मैं डर जाती। मैं सोचती कि अब मैं इंडिया में नहीं अमेरिका में हूं। इंडिया में तो एक अस्सी साल का बूढ़ा आदमी भी अपने पचास साल के बेटे को डांट सकता है,
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रस्बी की चिट्ठी किंजान के नाम - 10
बेटा फ़िर एक दिन मैंने सोचा कि तूने तो अपने पिता को भी ढंग से नहीं देखा। तू तो छोटा सा ही था कि वो अचानक हम सब को छोड़ कर इस दुनिया से ही चले गए। तू भी ...Read Moreमन ही मन उन्हें मिस करता होगा। अपने दूसरे दोस्तों के पिता को देख कर कभी न कभी तुझे भी तो उनकी याद आती ही होगी। अपनी मां का अकेलापन और उदासी भी तो तुझे कुछ कहती ही होगी। मेरे मन में आया कि क्यों न मैं तुझे उनकी याद दिलाऊं। उनके नाम का सहारा लूं। शायद तू अपने परिवार
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रस्बी की चिट्ठी किंजान के नाम - 11
किंजान! बेटा बुढ़ापे को तो सब बेकार समझते हैं। है न! युवा लोग तो बूढ़े होना ही नहीं चाहते। उन्हें लगता है कि ये भी क्या कोई ज़िन्दगी है? बाल उड़ जाएं, दांत झड़ जाएं। हाथ कांपें, पैर लड़खड़ाएं। ...Read Moreइसीलिए जवानी में लोग खतरों से खेलते हैं कि उन्हें कभी बूढ़ा न होना पड़े। बुढ़ापे से मौत भली। ठीक कह रही हूं न मैं? पर बेटा ऐसा नहीं है। बुढ़ापा बहुत शान और सलीके का दौर है। मैं तुझे बताऊं, इंसान को असली आराम तो इसी समय मिलता है। बुढ़ापा जीवन का ऐसा दौर है कि सब तब तक
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रस्बी की चिट्ठी किंजान के नाम - 12
छी- छी... हे भगवान! ये मैंने क्या किया? हे मेरे परमात्मा, तू ही कोई पर्दा डाल देता मेरी आंखों पर। ऐसा मंजर तो न देखती मैं! पर तुझे क्या कहूं, ग़लती तो मेरी ही थी सारी। मैं क्या करूं, ...Read Moreखुद भी अपने बस में कहां थी? मैं भी तो बावली हुई घूम रही थी। उतावली कहीं की। बस, अब पड़ गया चैन? अपनी ही आंखों से देख लिया न सब कुछ! बेटा, मुझे माफ़ कर दे। लेकिन बाबू, सारी ग़लती मेरी भी तो नहीं है। तू कौन सा बाज आ गया था अपनी करनी के जुनून से। मैं डाल
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रस्बी की चिट्ठी किंजान के नाम - 13
अब जो हो गया सो तो हो गया। उसे तो मैं बदल नहीं सकती थी। विधाता मुझे जो सज़ा देगा वो तो भुगतूंगी ही। अपराध तो था ही। कहते हैं कि दुनिया में सबसे बड़ा दुःख है अपनी औलाद ...Read Moreमरा मुंह देखना। पर बेटा, दुनिया में सबसे बड़ी शर्मिंदगी है अपनी संतान को वो करते हुए खुली आंखों से देखना जो तू कर रहा था। मैं चोर की तरह दबे पांव जब दरवाज़ा खोल कर भीतर आई तो तू बिल्कुल उस अवस्था में था, जैसे मेरे पेट से जन्म लेते समय! चलो, तुझे ऐसे देखने की तो मैं अभ्यस्त
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रस्बी की चिट्ठी किंजान के नाम - 14
नहीं। मेरी बात नहीं मानी उस लड़की ने। वो तो उल्टे मुझे ही समझाने बैठ गई। बोली- आंटी, मैं उसके मिशन में उसका साथ देने के लिए उसकी मित्र बनी हूं, उसे रोकने के लिए नहीं। वो बोली- "मुझे ...Read Moreबेटे का यही साहस तो लुभाता है कि वो छोटी सी उम्र में दुनिया जीतने का ख़्वाब देखता है। ज़िन्दगी जान बचाने में नहीं है आंटी, बल्कि जान की बाज़ी लगा देने में है। वो ज़रूर कामयाब होगा। आपने देखा नहीं उसका जज़्बा? सब उसे हेल्प कर रहे हैं। और आप मां होकर भी उसका रास्ता रोक रही हैं।" लो,
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रस्बी की चिट्ठी किंजान के नाम - 15
अब ये बात बहुत पीछे छूट गई कि मैं तुझे जान पर खेलकर नायग्रा झरना पार करने से रोक पाऊंगी। मैं हार गई थी। तू अपनी नाव पर किसी रसायन का लेप लगवाने के लिए न्यूयॉर्क जाकर आया था। ...Read Moreमें तेरे काफ़िले को हज़ारों लोगों ने देख कर तुझे सलामती की दुआएं भी दे डाली थीं। लोगों का जोश और तेरा जुनून देख कर तेरे इरादे की खबर मीडिया ने भी छापी थी। इसे पढ़कर ब्राज़ीलियन पप्पी की मालकिन की भांति और भी कई लोगों ने तरह- तरह से धन से तेरी मदद कर डाली थी। अब तू ख़र्च
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रस्बी की चिट्ठी किंजान के नाम - 16 (अंतिम भाग)
चल बेटा, अब बंद करती हूं। मैं ये तो नहीं कहूंगी कि तू मेरी ज़िंदगी से कोई सीख ले, पर ये ज़रूर कहूंगी कि मेरी ज़िंदगी ने ख़ुद मुझे बहुत सिखाया। वैसे भी, ये बेकार की बातें हैं कि ...Read Moreके जीवन से हम बहुत सीखते हैं। सच तो ये है कि हम सब अपने ही जीवन से सीखते हैं। यदि दूसरों की ज़िंदगी हमें सिखा दे, तो खुद अपनी ज़िंदगी का हम क्या करें? कहा जाता है अपने अपने जीवन में हम सब अकेले हैं। पर मुझे तो हमेशा से ये लगता है कि कोई अकेला नहीं है, अपने
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