Haweli book and story is written by Lata Tejeswar renuka in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Haweli is also popular in Love Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
हवेली - Novels
by Lata Tejeswar renuka
in
Hindi Love Stories
जंगल के बीचोंबीच एक पुरानी हवेली, जहाँ रात की स्तब्धता में कुछ चीख- पुकार सुनाई देती है। हवाओं की सनसनाती आवाजें उस हवेली से गुजरते हुए कुछ राज़ की बातें बयान करना चाहती हैं, लेकिन किसी अनजान शक्ति के दबाव में आकर उनकी आवाजें जैसे गले में ही दबकर रह जाती हैं। उस हवेली में छिपी कई राज़ की बातें उन मिट्टी, पत्थरों में दफन होकर रह गईं हैं। रात के अंधेरे में हवाओं के सनसनाहट के साथ घुँघरू की झंकार उस निस्तब्ध हवेली में गूँज उठती है। उस हवेली की लंबी दीवारों के पीछे कुछ अनचाही और अनसुनी सच्चाइयाँ, समय के साथ दफन हैं। जिनकी छटपटाहट उन सारी बातों को चीख-चीखकर कहने की कोशिश करतीं हैं। उस हवेली में गुज़रा हुआ कल, रात के अंधेरे में जागरुक हो उठता है।
सालों पहले उस हवेली के सुख-दुख की भागी बन सामने खड़ा वह बरगद, आज भी मिट्टी में पैर फैलाए उस इतिहास का साक्षी बन खड़ा है। उस वृक्ष से बिखरा हुआ हर एक पत्ता, एक नई कहानी बयान करता है। उड़ते हुए धूल-मिट्टी के साथ-साथ सूखे पत्तों की सरसराहट उस स्तब्धता को और भी भयानक बना रही थी। इन सबसे दूर आकाश में काले बादलों के बीच अधखिला चाँद अपने अस्तित्व को बादल में छिपाते, माँ के आँचल में खेलते हुए एक बच्चे की तरह अँधेरे से आँखमिचौली खेल रहा था।
काला घना अँधेरा, लम्बे-लम्बे देवदारु वृक्षों की बाँहों में से निकलकर धरती की गोद में समा रहा था। जंगल में हवा की सन-सन आवाज़, चमगादड़ के फड़फड़ाहट के साथ-साथ उल्लू के भयानक चीख़ हवा में लहराते-लहराते मेंहदी के कानों में गूँज रही थी। दूर कहीं नदी की बहती हुई धारा में चाँद की हल्की रोशनी का एक झलक उस कमरे में प्रतिबिंबित हो रहा था। नया परिसर और अजीबोगरीब आहटों से आँखों से नींद ओझल हो चुकी थी। पलकें भारी होने के बावजूद नींद का नामोनिशान नहीं थी। अस्त-व्यस्त पलंग पर पड़े-पड़े असहनीय महसूस होने से उठकर वह खिड़की के सामने आकर खड़ी हो गई।
(...एक प्रेम कथा...) लेखिका : श्रीमती लता तेजेश्वर 'रेणुका' विभिन्न घटनाओं से गुजरती हवेली का सच" फोन पर अपरिचित स्वर था, “संतोष जी, मैं लता तेजेश्वर उड़ीसा से आयी हूँ। मैंने एक उपन्यास लिखा है, मेरी इच्छा है उपन्यास ...Read Moreभूमिका आप ही लिखें।” मैं लता जी के इस विनम्र आग्रह से अभिभूत थी। 'हवेली' पढ़ते हुए उनके ये विनम्र वाक्य मेरे साथ रहे। हिन्दी में उपन्यास लिखना एक अहिन्दी भाषी प्रदेश के व्यक्ति के लिए सचमुच चुनौती है। उपन्यास का शीर्षक 'हवेली' रोमांचक लगता है जैसे हम किसी खण्डहर बन चुकी हवेली में हों, जहाँ रात के सन्नाटे में
## 2 ## अमावास का गहरा अँधकार चारों तरफ फैला हुआ है। लंबे-लंबे वृक्षों के बीच गहन अँधकार और भी भयानक लग रहा था। उस रात के अंधेरे में उन जंगलों के बीच एक आदमी चुपचाप चलता जा रहा ...Read Moreचेहरा उसका पसीने से भीगा हुआ से था, काँपते हुए होंठों को दाँत के बीच दबाये हुए अन्यमनस्क चला जा रहा है। भयभीत आँखें, लग रहा था जैसे उस जंगल में कहीं रास्ता भटक गया हो। बार-बार वह भयभीत नेत्र से इधर-उधर देख रहा था। कहीं कोई उसका पीछा तो नहीं कर रहा है। इस बात से अनजान था कि
## 3 ## सुबह जब अन्वेशा की आँख खुली,घड़ी में आठ बज चुके थे। उसने अपने कमरे से निकलकर बाहर आई। घर में ऊपर का कमरा अन्वेशा ने अपने लिए चुना था। सीढ़ी के बाएँ तरफ राहुल का कमरा ...Read Moreफिर मास्टर बेडरूम है। हॉल के दूसरी ओर गेस्ट हाउस है। हॉल के बीचोंबीच ऊपर जाने के लिए सीढ़ी घर की दोनों तरफ फैली हुई थी। सीढ़ियों के ठीक सामने मुख्य दरवाजा और मध्य भाग में सोफा रखा हुआ है। घर के हर छोटे-मोटे काम के लिए हर वक्त नौकर हाजिर रहते हैं। बँगले के एक कोने में नौकरों के
## 4 ## पुणे शहर से 200 किलोमीटर दूर जंगल की ओर बढ़ती एक सूनी-सी सड़क। सड़क के दोनों तरफ सूखे मैदान और कंटीले पौधों से भरा रास्ता। उस रास्ते पर कुछ दूर जाने के बाद बस एक कच्चे ...Read Moreमें सफर करने लगी। दोनों तरफ लंबे-लंबे वृक्ष खड़े और साथ-साथ ऊबड़-खाबड़ रास्ते। लग रहा था बस कहीं जंगल के भीतर प्रवेश कर रही है। जैसे-जैसे बस आगे बढ़ती गई जंगल और भी घना होने लगा। सूरज की रोशनी को भी जंगल के अंदर प्रवेश करते इन वृक्षों के बीच से गुजरना पड़ रहा था। कहीं-कहीं उल्लू की कुडु-कुडु आवाज
## 5 ## अजनीश, बैंक पहुँचा पैसे निकालने थे। माँ की चिट्ठी उसे परेशान कर रही थी। अचानक बाबूजी की तबियत खराब होने से अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। बड़े उम्र की लंबी बीमारी के बाद कुछ ही दिन ...Read Moreघर लौटे थे। दवाई के खर्चे के साथ-साथ अस्पताल का खर्चा अजनीश को बहुत भारी पड़ रहा था। कोई हाथ बँटाने वाला नहीं था । छोटा भाई जिसने अभी-अभी कॉलेज में पहला साल पूरा किया है पढ़ाई के साथ-साथ छोटे बच्चों की ट्यूशन लेकर अपना ख़र्चा बहुत मुश्किल से जुटा पाता है। करे भी तो क्या करे, नयी नौकरी होने