Chhotu nahi - Ghar ka mukhiya books and stories free download online pdf in Hindi

छोटू नहीं - घर का मुखिया

छोटू नहीं - घर का मुखिया

ऑफिस के पास वाली चाय की दुकान पर ही हम लोग अक्सर चाय पीने जाया करते थे। उस दुकान पर काम करने वाले लड़के को हम छोटू कह कर बुलाते थे, वही दुकान का सारा काम संभालता था, चाय बनाना, मैगी, ऑमलेट, ब्रेड बटर, फ्रूट चाट, जूस वगैरह बनाना सब काम जानता था और संभालता भी बड़े सलीके से था। ग्राहकों के साथ उसका व्यवहार सुमधुर था, पूरे दिन साहब जी, सर जी, अंकल जी बोल बोल कर सबको खुश करता रहता था। मुझे भी छोटू से लगाव हो गया था, महिना भर पहले ही तो आया था वह इस दुकान पर। आज छोटू जब चाय लेकर मेरे पास आया तो कहने लगा, “सर जी, आप मेरा खाता स्टेट बैंक में खुलवा दोगे? मैं अपनी पगार बैंक में ही डाल दिया करूंगा, गाँव में मेरी माँ का खाता भी स्टेट बैंक में ही है, पैसे आसानी से ट्रान्सफर हो जाया करेंगे।” उस दिन तो मैंने उसे बस इतना ही कहा, “हाँ कोशिश करूंगा।” इतना कहकर उस दिन तो मैं चाय पीकर वापस आ गया।

अगले दिन साँय जब कार्यालय बंद हो गया, सभी लोगों के जाने के बाद दुकान पर काम भी कम था तब मैंने एक चाय लेकर छोटू को बुलाया। छोटू चाय लेकर आया और आकर मेरे पास ही बैठ गया, हम दोनों आपस में बातें करने लगे, तब मैंने पूछा, “छोटू, तुम्हारा नाम क्या है?” छोटू बोला, “सर जी मेरा नाम विनय है और मैं सातवीं कक्षा में पढ़ाई छोड़ कर आया हूँ, परिस्थितियाँ ही ऐसी थी कि मैं आगे पढ़ नहीं सका। मेरी तीन बहने जो मेरे से बड़ी हैं उनको मैं पढ़ा रहा हु, उनका खर्चा भेजना पड़ता है, बापू के पास दो बीघा जमीन थी जिसमे माँ मेहनत करके धान उगाती थी, बापू ने किसान होने का फ़ायदा उठाया और बैंक से पचास हजार कर्ज़ ले लिया था, उस कर्ज़ की किस्त भी देनी पड़ती है, अब माँ भी बीमार रहने लगी है तो उसको दवा के लिए भी पैसे चाहिए, इसलिए मैं सोच रहा था कि बैंक में खाता खुल जाएगा तो पैसे भेजना आसान रहेगा, मेरा तो खाना रहना यहाँ मुफ्त है, पगार पूरी बच जाती है, भेज दिया करूंगा।” मैंने पूछ लिया, “बापू किसान था, कर्ज़ लिया था, लेकिन बापू क्यो नहीं देते कर्ज़ और बाकी खर्चा।” छोटू की आँखों में आँसू आ गए और कहने लगा, “बापू होते तो मैं अभी आगे पढ़ाई करता, यहाँ आकार छोटू नहीं बनता।” “क्या हुआ था?” मैंने पूछ लिया।

मैंने पानी का गिलास जो छोटू मेरे लिए लाया था, छोटू को पीने को दिया और उससे उसका दिल दुखने के लिए क्षमा मांगी। छोटू बोला, “सर जी, इसमे क्षमा मांगने वाली कोई बात नहीं है, पुरानी बातें याद आ गयी और आँसू निकल आए। मैं सातवीं कक्षा में पढ़ता था, मेरी तीनों बहनें मुझसे बड़ी हैं, वे तीनों भी पढ़ रही थीं। किसानो को सस्ते ब्याज पर कर्ज़ मिल रहा था, बापू ने भी कर्ज़ लेने के लिए प्रार्थना दे दी थी, उस दिन माँ और बापू में बहुत झगड़ा हुआ था, माँ नहीं चाहती थी कि किसी भी तरह का कर्जा लिया जाए, लेकिन बापू ने माँ की एक न सुनी और बैंक से पचास हजार का कर्ज़ ले लिया। उस रात बापू घर नही आए, माँ पूरी रात सो नहीं सकी थी, हम चारों भाई बहन भी परेशान थे, लेकिन कुछ पता नहीं चल पाया, हाँ, सुबह ही हमारे पड़ोसी ने आकर आवाज़ लगाई थी, गोमती, मेरे साथ चल, धर्मेश ने आत्महत्या कर ली है, रात को जुए में पचास हजार रुपए हार गया था।”

माँ इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं थी कि बापू ने जुआ खेला और उसमे पचास हजार रुपए हार कर आत्महत्या कर ली। हमारे ऊपर तो मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था, कोई भी सहारा नजर नहीं आ रहा था। माँ को पूरा विश्वास था कि बापू के साथ धोखा हुआ है क्योंकि उन्होने कभी भी जुआ नहीं खेला था और न ही शराब पी थी। जिन लोगों ने धोखे से धर्मेश को मारा था और उसके पचास हजार रुपए लूटे थे, उन्होने ही जल्दी जल्दी मे धर्मेश के मृत शरीर का दाह संस्कार भी करवा दिया, माँ रोती, बिलखती, चिल्लाती रही लेकिन किसी ने भी उनकी एक न सुनी। बाद में खाना पूर्ति के लिए पुलिस भी आई, माँ ने अपनी शंका भी पुलिस को बताई लेकिन सब लीपा पोती करके चले गए। हमारे परिवार का ही एक बुजुर्ग कहने लगा, “गोमती, धर्मेश तो चला गया, पैसे भी चले गए अब तू अपने बच्चों पर ध्यान दे ले, वो लोग बहुत खतरनाक है, कुछ भी कर सकते हैं तू उनसे दुश्मनी लेकर अपने बच्चों के रास्ते में कांटे मत बो। उसके बाद माँ बिल्कुल शांत हो गयी, बीमार भी रहने लगी।”

“मैंने अपनी तीनों बहनों को पढ़ाई नहीं छोडने दी, घर का खर्च, बहनों की पढ़ाई का खर्चा, माँ के इलाज़ का खर्च और ऊपर से कर्ज, इन सब के होते हुए मैं अपनी पढ़ाई जारी नहीं रख सका। शहर में काम ढूंढते-ढूंढते मैं एक चाबी बनाने वाले के पास गया उसने मुझे काम पर रख लिया और काम भी सिखाने लगा। कुछ ही दिनों में मैं चाबी बनाने का काम सीख गया और लोगों के साथ ताला खोलने या चाबी बनाने के लिए जाने लगा। एक दिन एक लड़का दुकान पर आया और उसने मुझे सौ रुपए देकर साथ चलने के लिए कहा, जब कि हम उन दिनों दस दस रुपए में चाबी बना दिया करते थे। वह लड़का मुझे अपने घर ले गया और वहाँ पर उसने एक अलमारी का ताला खुलवाया, डुप्लिकेट चाबी भी बनवाई, उस समय घर पर कोई नहीं था। मैं अपना काम करके दुकान पर वापस आ गया और मैंने सौ रुपए मालिक को दे दिये, लेकिन मालिक ने यह कह कर रुपए मुझे वापस कर दिये कि यह तो तेरी अपनी मेहनत की कमाई है, इसे तू ही रख। सौ रुपए लेकर मैं बहुत खुश हुआ और घर आकर मैंने माँ को पैसे दे दिये। एक हफ्ते बाद फिर वही लड़का दुकान पर आया और इस बार उसने मुझे दो सौ रुपए देकर साथ चलने को कहा। मैं उसके साथ उसके घर चला गया, इस बार भी घर पर कोई नहीं था, उसने मुझे एक सन्दूक का ताला खोलने के लिए कहा। मैंने सन्दूक के ताले की डुप्लिकेट चाबी बनाई और ताला खोल दिया। ताला खोल कर मैंने सन्दूक का ढक्कन भी ऊपर उठा दिया और देखा कि सन्दूक नोटो की गड्डियों से पूरा भरा हुआ है, मैंने तुरंत ही ढक्कन बंद कर दिया एवं किसी अनिष्ट की आशंका से तुरंत ही वहाँ से वापस दुकान पर आ गया। इस बार मैं समझ गया था कि दाल में जरूर कुछ काला है, इसलिए ही वह ज्यादा पैसे देकर जाता है।

उसके दो तीन दिन बाद एक लड़का और आया, मोटरसाइकल का ताला खुलवाने के लिए अपने साथ ले गया। एक मोटरसाइकल जो सड़क किनारे खड़ी थी उसका उसने ताला खोलने के लिए कहा और स्वयं भी वहीं खड़ा हो गया, मोटरसाइकल का ताला खोल कर मैंने डुप्लिकेट चाबी भी उसके हाथ में थमा दी, उसने मुझे दस रुपए ही दिये और मैं लेकर वापस आ गया। शाम को दुकान पर पुलिस आ गयी और पूछताछ के लिए मुझे अपने साथ ले गयी। मुझे पता चला कि उस लड़के ने किसी और की मोटरसाइकल का ताला खुलवा कर मोटर साइकल चोरी करके ले गया। पुलिस ने पूछताछ करके मुझे छोड़ दिया लेकिन मैं घबरा गया और सोचा कि इस काम में तो बहुत खतरा है, मैंने तभी की तभी उस काम को छोड़ा, दिल्ली में आकर यहाँ नौकरी कर ली और छोटू बन गया।”

मैं चुपचाप बैठ कर छोटू की बातें सुनता रहा, समय का कुछ पता ही नहीं रहा कब आठ बज गए और मैं अनायास ही कह उठा, “छोटू नहीं, घर का मुखिया है तू तो।” अगले दिन मैंने छोटू का आधार कार्ड अपने घर के पते पर बनवाया और स्वयं अभिभावक बन कर उसका स्टेट बैंक मे खाता भी खुलवाया क्योंकि छोटू अभी नाबालिग था।

‘छोटू का यह काम तो हो गया अब वह निश्चिन्त होकर अपनी माँ को पैसे भेज दिया करेगा’ मैं सोच ही रहा था कि चाय की दुकान का मालिक आकर आभार प्रकट करने लगा एवं विनती करने लगा, “साहब जी, हम तो अनपढ़ हैं बस काम चलाऊ पढ़ लिए थे लेकिन ये छोटू तो अभी बच्चा है, होशियार भी है अगर किसी तरह उसकी पढ़ाई का ऐसा जुगाड़ बन जाए कि ये काम के साथ-साथ पढ़ाई भी कर ले तो बच्चे का जीवन सुधर जाएगा।” उसकी ये बातें सुनकर मुझे सुखद अहसास हुआ और फिर हम दोनों ने मिलकर छोटू को शिक्षा का उपहार देकर उसको उसकी खुशी लौटा दी।