Vedita ka Spaceship - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

वेदिता का स्पेसशिप 2 (तीन बाल कथाएँ)

चैतन्य का दोस्त हाथी

चैतन्य की गाय ने एक छोटी सी प्यारी सी बछिया को जन्म दिया तो चैतन्य ने उसका नाम रानी रखा, जब वह थोड़ी बड़ी हो गई तो चैतन्य उसके साथ खेलने लगा। कभी-कभी वह रानी को अपने साथ जंगल में घुमाने ले जाता, वहाँ पर दोनों बड़ी मस्ती करते और एक दूसरे को दौड़ाते रहते। जंगल में एक गहरा गड्ढा था, चैतन्य हमेशा अपनी बछिया रानी को उस गड्ढे से दूर रखता क्योंकि वह डरता था कि कहीं उछल कूद करते हुए रानी उस गड्ढे में न गिर जाए।

गाय दोनों बच्चों को, चैतन्य और रानी को, खूब सारा दूध पिलाया करती जिससे वे दोनों ही ताकतवर हो गए। गाय का दूध बल और बुद्धि बढ़ाने मे बहुत उपयोगी होता है और वह भी तब जबकि दूध सीधे गाय के थन से पिया जाए। चैतन्य तो दूध हमेशा रानी की तरह गाय के थन में मुंह लगाकर ही पीता था। अब चैतन्य अपना होम वर्क भी जल्दी-जल्दी और बिना किसी से पूछे ही कर लेता था। कक्षा में प्रथम आने लगा तो उसकी टीचर और मम्मी पापा उससे और भी ज्यादा प्यार करने लगे।

एक दिन चैतन्य अपनी बछिया रानी को लेकर जंगल में घूमने गया। अचानक उसे किसी हाथी के चिंघाड़ने की आवाज आई, चैतन्य आवाज सुनकर पहले तो डर गया लेकिन जब उसने ध्यान से आवाज सुनी तो वह हाथी के बच्चे के कराहने की आवाज थी। हाथी का एक छोटा बच्चा जंगल में अकेले घूमते समय उस गहरे गड्ढे में गिर कर घायल हो गया था। चैतन्य ने जब देखा किं हाथी का एक छोटा बच्चा गहरे गड्ढे में घायल अवस्था मे पड़ा कराह रहा है तो चैतन्य को उस पर बड़ी दया आई और वह भी चैतन्य की तरफ आशा भरी निगाह से देख रहा था है कि शायद यह मुझे बाहर निकाल देगा।

चैतन्य दौड़ा-दौड़ा पापा के पास गया और पापा को उस गड्ढे के पास ले जाकर बड़ी ही करुण आवाज में हाथी के बच्चे को गड्ढे से बाहर निकालने की विनती करने लगा। पापा ने वन्य जीव संरक्षक विभाग में फोन करके सारी परिस्थिति समझाई तो वे लोग अपना सब सामान और दवाइयाँ लेकर वहाँ पहुँच गए। बड़ी मेहनत के बाद वे लोग उस हाथी के बच्चे को बाहर निकालने में कामयाब हो सके।

घायल हाथी के बच्चे का इलाज जरूरी था अतः डॉक्टर ने उसके सभी घावों पर दवा लगाई जिसमे चैतन्य ने भी सहायता की। चैतन्य ने पापा से कहा, “पापा, जब तक यह हाथी का बच्चा ठीक नहीं हो जाता क्यो न हम इसको अपने बाड़े में रख लें।” पापा ने वन्य जीव संरक्षक अधिकारियों से बात की तो वे मान गए और डॉक्टर ने सभी दवाइयाँ देकर समझा दिया कि कैसे इस हाथी के बच्चे की देखभाल करनी है। चैतन्य उस हाथी के बच्चे की पूरी लगन से सेवा करने लगा तो बच्चा जल्दी ही ठीक हो गया और उछल कूद करने लगा। अब तो चैतन्य हाथी के बच्चे के साथ रानी को लेकर घूमने जाने लगा और हाथी का बच्चा चैतन्य को अपनी सूंड में उठाकर अपनी पीठ पर बैठा लेता और पूरे जंगल की सैर कराता। चैतन्य को और भी ज्यादा मजा आने लगा।

अभी चैतन्य की हाथी के बच्चे से भली-भांति दोस्ती हुई भी नहीं थी कि वन्य जीव संरक्षक संस्था से अधिकारी हाथी के बच्चे का निरीक्षण करने आ गए और निरीक्षण करके बोले, “अब यह बिलकुल ठीक हो गया है॰ हमे इसको जंगल में छोडना पड़ेगा।” उनकी इस बात को सुनकर चैतन्य उदास हो गया और वह हाथी के बढ़ते बच्चे को जंगल में छोडने के लिए तैयार ही नहीं था लेकिन पापा ने चैतन्य को समझाया, “देखो बेटा, इसको भी अपनी माँ की याद आती होगी और इसकी माँ भी उदास होगी इसको ढूंढ रही होगी, इसकी माँ भी इसको उतना ही प्यार करती है जितना रानी की माँ रानी से , तुम्हारी मम्मी तुम से करती है। और बेटा तुम्हारी मम्मी भी तो परेशान हो जाती है जब तुम जंगल में घूमते हुए बहुत देर कर देते हो।” पापा के समझाने पर चैतन्य मान गया।

हाथी का बच्चा भी उदास मन से विदा लेकर चल दिया और जाते-जाते चैतन्य को अपनी पीठ पर बैठाकर थोड़ी दूर तक सवारी कराई। चैतन्य को अपनी पीठ से उतार कर वह दूर जंगल में अदृशय हो गया।

काफी दिन बीत गए थे, फिर कभी हाथी के बच्चे से चैतन्य की मुलाक़ात नहीं हुई, तभी यह खबर फैल गयी जंगल में शेर आया हुआ है, इसके बारे में चैतन्य को कुछ भी पता नहीं था, अतः वह रोज की तरह ही अपनी रानी बछिया को लेकर जंगल में घूमने चला गया। जंगल में शेर की उपस्थिती का जनवारों को आभास हो जाता है और वही आभास रानी को भी हो गया। शेर का आभास होने पर रानी रंभाने लगी। रानी के रंभाने की आवाज सुनकर शेर दौड़ कर उनकी तरफ ही आने लगा, उसकी दृष्टि बड़ी ही क्रूर थी जिससे वह रानी और चैतन्य को देख रहा था।

चैतन्य घबरा तो गया लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी और शेर से खुद बचने और रानी को बचाने के लिए विचार करने लगा। चैतन्य अभी सोच ही रहा था कि क्या करूँ, तभी झड़ियों में हलचल हुई तो देखा कि एक हाथी दौड़ कर उनकी तरफ ही आ रहा है तो चैतन्य और भी डर गया। लेकिन हाथी ने तुरंत वहाँ पहुँच कर शेर को अपनी सूंड में लपेटा और बहुत दूर फेंक दिया। हाथी को इस तरह करते देख चैतन्य हतप्रभ रह गया और वह समझ गया कि यह वही हाथी का बच्चा है जिसकी उसने घायल अवस्था मे सेवा की थी, आज वह अपनी दोस्ती निभाने आया है।

शेर पर अचानक होने वाले हाथी के वार से शेर डर कर भागने लगा लेकिन हाथी उसको तब तक पटकता रहा जब तक शेर जंगल छोड़ कर भाग नहीं गया। अब हाथी ने अपने दोस्त चैतन्य को अपनी पीठ पर बैठाया और रानी सहित घर पर छोडने के लिए चल दिया। घर पर पहुँचकर चैतन्य ने जब मम्मी-पापा से यह बात बताई तो वे दोनों हाथी के माथे पर हाथ फिरा कर उसे धन्यवाद देने लगे, चूंकि हाथी बड़ा हो गया था फिर भी चैतन्य और मम्मी पापा ने उसको पहचान लिया और कहा, “वाह भई वाह, आज हाथी के बच्चे ने अपनी सच्ची दोस्ती निभाई।”

***

रुद्र और खरगोश

स्कूल से आने के बाद रुद्र प्रतिदिन अपने पापा के साथ खेत पर घूमने जाता था। उसे वहाँ हरे-भरे खेत और रंग-बिरंगे पक्षी देखना बड़ा अच्छा लगता था। रुद्र के पापा का एक बाग था जिसमे तरह तरह के फलों के पेड़ लगे हुए थे। जब पेड़ पर फल पक जाते तो रुद्र को पेड़ से टूटकर गिरने वाले फल बहुत स्वादिष्ट लगते थे।

बाग के पेड़ों पर गिलहरी, गौरैया, तोता और बहुत तरह के पक्षी मिलते थे जो रुद्र को देख कर चहचहाने लगते। ऐसा लगता था कि रुद्र के आने से सब पक्षी प्रसन्न हो गए है और चहचहा कर अपनी प्रसन्नता व्यक्त कर रहे हैं।

मोर तो रुद्र को देखकर इतना प्रसन्न होता था कि वह अपने पंख फैला कर नाचने लगता। रुद्र ने कहा, “पापा, देखो मोर नाचता हुआ कितना सुंदर लग रहा है।” पापा ने देखा और खुश होकर कहा, “हाँ बेटा, वह तुम्हें देखकर खुशी में नाच रहा है और बीच बीच में बड़ी मधुर आवाज भी निकाल रहा है।”

वहीं बाग में एक सुंदर खरगोश ने अपना बिल बनाया हुआ था। खरगोश ज़्यादातर अपने बिल में ही रहना पसंद करता था, जब उसे सुरक्षित लगता तभी वह खाना ढूंढने बिल से बाहर आता था और पेड़ से गिरे हुए फल उठाकर जल्दी से दौड़कर अपने बिल में घुस जाता था।

सभी पक्षियों की खुशी की चहचहाट और मोर की आवाज सुनकर खरगोश को लगा कि बाहर का माहौल सुरक्षित होगा तो वह अपने बिल से बाहर आ गया। सफ़ेद सुंदर मुलायम बालों वाले खरगोश को देख कर रुद्र बहुत खुश हुआ। रुद्र ने पापा से कहा, “पापा देखो कितना सुंदर है, वह क्या है?” पापा ने बताया, “बेटा, वह खरगोश है, खरगोश बहुत तेज दौड़ता है और उसको अपने तेज दौड़ने पर बड़ा घमंड है। अपने घमंड के कारण ही वह एक बार धीमी गति से चलने वाले कछुवे से हार गया था।”

“अच्छा पापा, मैं तो कभी घमंड नहीं करता पर पापा मुझे खरगोश बहुत सुंदर लग रहा है क्यो न हम उसको घर लेकर चलें।” रुद्र ने पापा से कहा। तब तक खरगोश दौड़ कर अपने बिल में घुस गया था।

पापा बोले, “बेटा, खरगोश को गाजर खाना बहुत पसंद है, कल हम इसके लिए घर से गाजर ले कर आएंगे।”

अंधेरा होने लगा था पापा रुद्र को लेकर घर की तरफ चल दिये। घर पहुँच कर प्रतिदिन की तरह रुद्र ने सारी बातें मम्मी को बताई। जब रुद्र सारी बातें मम्मी को बता रहा था तो वेदिता और चैतन्य भी अपना खेल छोड़ कर रुद्र की बातें सुनने लगे और कहने लगे, “कल से हम भी खेत में घूमने जाया करेंगे।”

अगले दिन स्कूल से आकर रुद्र गाजर लेकर खेत पर जाने के लिए पापा का इंतज़ार कर ही रहा था कि पापा आ गए और रुद्र तुरंत ही पापा के पैरों से लिपट कर खेत पर चलने की जिद करने लगा। पापा ने रुद्र के हाथ में गाजर देखी तो समझ गए कि आज रुद्र खरगोश के साथ खेलना चाह रहा है। तभी मम्मी बोली, “रुद्र पहले पापा को खाना खाने दो और तुमने भी स्कूल से आकर कुछ नहीं खाया, चलो पापा के साथ तुम भी थोड़ा खाना खा लो।” पापा बेटा दोनों खाना खाकर खेत की तरफ चल पड़े।

आज रुद्र को कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था, बस वह तो खरगोश की ही प्रतीक्षा कर रहा था, हाथ में गाजर लेकर उसके बिल के मुंह पर बैठा देख रहा था कि खरगोश कब बाहर आए और वो उसके साथ खेले। कुछ क्षण बाद ही खरगोश बाहर आया और रुद्र के हाथ से गाजर लेने लगा। रुद्र ने खरगोश को पकड़ कर अपनी गोद में बैठा लिया और उसे गाजर खिलाने लगा। खरगोश भी बड़े प्यार से गाजर खाये जा रहा था जैसे उन दोनों में बड़ी पुरानी दोस्ती हो।

रुद्र बोला, “पापा, हम खरगोश को घर ले चलेंगे, अब यह वहीं मेरे साथ ही रहेगा।” पापा के काफी मना करने पर भी रुद्र नहीं माना और हार कर पापा को खरगोश घर लेकर आना पड़ा। एक पिंजरा बनवा कर खरगोश को उसमे रखा, रुद्र रोज स्कूल से आकर उसे गाजर खिलाता और अपनी गोद में उठाकर घुमाने ले जाता।

एक दिन जब रुद्र खरगोश को लेकर घुमाने गया तो एक कुत्ता उसके पीछे पड़ गया। रुद्र को लगा कि अगर कुत्ते ने खरगोश को पकड़ लिया तो वह तो इसको मार ही डालेगा। रुद्र खरगोश को लेकर खरगोश से भी तेज दौड़ने लगा लेकिन कुत्ता कहाँ पीछा छोडने वाला था, वह तो अच्छा हुआ कि सामने से पापा आ गए और उन्होने कुत्ते को भगा दिया।

अगले दिन स्कूल मे 15 अगस्त मनाया गया और 15 अगस्त को स्वतन्त्रता दिवस क्यो कहते हैं इसके बारे में भी समझाया। मैम ने बताया कि गुलामी कितनी कष्टदायक होती है इसीलिए हमने अंग्रेजों से लड़ाई लड़ कर आजादी हासिल की है, चूंकि हमें आजादी 15 अगस्त 1947 को मिली इसलिए हम इस दिन को स्वतन्त्रता दिवस के रूप में मनाते हैं। मैम ने समझाया, “बेटा, न तो हमें किसी की भी गुलामी स्वीकार करनी चाहिए और न ही किसी को गुलाम बनाकर रखना चाहिए। कुछ लोग अपने शौक के लिए पशु पक्षियों को पिंजरे में क़ैद करके रखते हैं, पर यह सब गलत है। हम तो इंसान है हमने तो आज़ादी की लड़ाई लड़ ली लेकिन पशु पक्षी तो बेजान होते हैं वो अपनी व्यथा किसी से कह भी नहीं सकते। चुपचाप गुलाम बनकर पिंजरे में पड़े रहते हैं। उनका भी मन करता है खुली हवा में आज़ादी से घूमने का, इसलिए हमें चाहिए कि हम उन्हे क़ैद करने की बजाय आज़ाद कर दें।”

मेम की बातों का रुद्र पर बहुत गहरा असर पड़ा और उसने आज़ादी की सारी बातें पापा से दोबारा समझी। जब पापा ने समझाया, “बेटा जैसे तुमने इस खरगोश को क़ैद कर लिया तो यह भी गलत है।” रुद्र बोला, “अच्छा पापा मैं इसके लिए सॉरी करता हूँ और चलो हम अभी इसको इसके घर पर छोड़ आते है, जहां पर यह आज़ादी से रहेगा। जब भी मेरा मन करेगा, मैं इससे वहीं मिल लिया करूंगा।”

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वेदिता का स्पेसशिप

ड्राइंग टीचर ने सभी बच्चों को स्पेस शिप का चित्र बनाने के लिए कहा। वेदिता ने स्पेस शिप का बहुत ही सुंदर चित्र बना कर अपनी ड्राइंग टीचर को दिखाया तो टीचर बहुत खुश हुई और उसने वेदिता को गोद में उठाकर ढेर सारा प्यार किया। वेदिता बहुत खुश हुई और घर आकर सारी बात अपनी मम्मी को बताई। मम्मी ने जब वेदिता का स्पेस शिप देखा तो उसको भी वह बहुत सुंदर लगा, मम्मी ने वेदिता के स्पेस शिप वाले चित्र को फ्रेम करवा कर वेदिता के कमरे की दीवार पर टांग दिया।

एक दिन वेदिता अपने प्यारी डॉल के साथ खेल रही थी, खेलते-खेलते उसकी निगाह स्पेस शिप वाले चित्र पर पड़ी और वह उसे बड़े ध्यान से देखने लगी, देखते ही देखते स्पेस शिप फ्रेम से बाहर निकल कर उड़ने लगा और वेदिता की प्यारी डॉल वेदिता के हाथ से निकल कर स्पेस शिप में जाकर बैठ गयी, वह वेदिता को भी स्पेस शिप की सैर करने के लिए बुलाने लगी। वेदिता ने डॉल से कहा, “ना बाबा ना, मुझे तो डर लगता है।” लेकिन डॉल ने वेदीता से कहा, “आओ ना वेदिता देखो ना कितना आनंद आ रहा है, हम स्पेस शिप में बैठ कर चाँद सितारों की सैर करके आएंगे, कितना अच्छा लगेगा।” वेदिता ने डॉल की बात मान ली एवं वह भी स्पेस शिप पर चड़ गयी। अब स्पेस शिप दोनों को लेकर बड़ी तेजी से आकाश की ओर उड़ने लगा। जैसे जैसे स्पेस शिप आसमान में और ऊपर जा रहा था, वैसे वैसे चाँद सितारे नजदीक आ रहे थे। देखते ही देखते वह चाँद के इतना नजदीक पहुँच गया कि चाँद को हाथ से छू सकते थे, लेकिन डॉल ने वेदिता से मना कर दिया।

चाँद बहुत सुंदर लग रहा था, थोड़ी ही देर में स्पेस शिप झिलमिलाते सितारों के बीच उड़ने लगा। सभी सितारे ऐसे नजर आ रहे थे जैसे वह सब भी उनके साथ-साथ दौड़ रहे हों। डॉल ने वेदिता को बताया, देखो दूर से हमारी पृथ्वी भी कितनी सुंदर नीली-नीली नजर आ रही है और वह बुध ग्रह जो हरा-हरा चमक रहा है, मंगल ग्रह देखो कैसे लाल-लाल चमक रहा है और वह देखो वेदिता शुक्र ग्रह कैसी चाँदी जैसी रोशनी में नहाया हुआ है। वेदिता सभी ग्रहों को बड़े ध्यान से देखे जा रही थी और सोच रही थी कि अगर अबकी बार ड्राइंग टीचर ने सौर मण्डल बनाने को कहा तो मैं पूरे सौर मण्डल का सजीव चित्रण कर दूँगी। वेदिता ने डॉल से कहा कि मुझे ब्रहस्पति, शनि, राहू और केतू ग्रह भी देखने हैं। डॉल ने कहा, नहीं आज नहीं, उन्हे कल देखेंगे, वो तो अभी दूर हैं और हमें देर हो जाएगी, अब मैं स्पेस शिप को वापस घर कि तरफ मोड रही हूँ, लेकिन वेदिता तो अभी और ग्रहों को देखना चाहती थी। डॉल ने स्पेस शिप को वापस घर की तरफ मोड़ा तो वेदिता ने डॉल को रोकने के लिए उसका हाथ कस कर पकड़ लिया, और जैसे ही वेदिता ने डॉल का हाथ कसा तो वह दब गया और डॉल से सीटी की आवाज बड़े ज़ोर से निकल गयी। सीटी की तेज आवाज सुन कर मम्मी दौड़ी-दौड़ी वेदिता के कमरे में आई तो देखा कि वेदिता ने डॉल का हाथ बहुत ज़ोर से दबाया हुआ है और नींद में ही कुछ बड़बड़ाए जा रही है। मम्मी ने बस इतना सुना कि वेदिता कह रही है, “डॉल, मुझे बाकी के सारे ग्रह भी देखने हैं, मैं अभी वापस नहीं जाना चाहती। ”मम्मी ने वेदिता को जगाया, थोड़ा पानी पीने को दिया और अपनी गोद में बैठाकर पूछने लगी, “बेटा, कोई सपना देख रही थी क्या?” वेदिता बोली, “नहीं मॉम मैं तो स्पेस शिप में बैठ कर सभी चाँद सितारों की सैर करने गयी थी।” फिर वेदिता ने मम्मी को सारी बात कह सुनाई। वेदिता की बात सुन कर दोनों ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगीं।