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ठेकेदारनी

ठेकेदारनी

“कल उपराज्यपाल महोदय ने उदघाटन करना है और तुम लोगों ने अभी तक भी काम पूरा नहीं किया,” अपर अभियंता ने सभी को झाड लगाते हुए कहा, “मैं दस बजे फिर आऊँगा, आप सब कान खोल कर सुन लो जब तक काम पूरा नहो होगा तुम में से कोई यहाँ से हिलेगा भी नहीं।” फिर ठेकेदार की तरफ घूम कर बोले, “प्रवेश, तुम्हारा काम तो हमेशा समय से पहले पूरा हो जाता था, इस बार कैसे लटक गया?”

प्रवेश ने बस इतना ही कहा, “त्रिखा साहब, आप चिंता न करें, मैं पूरी रात यहीं रुक कर काम करवाऊँगा और काम खत्म होने के बाद ही घर जाऊंगा।”

“ठीक है, मुझे तुम पर पूरा भरोसा है लेकिन फिर भी मैं रात में दस बजे फिर आऊँगा और एक बार फिर समीक्षा करूंगा, अब तुम लोग काम में जुट जाओ,” इतना कहकर त्रिखा साहब चले गए।

प्रवेश नई दिल्ली नगर पालिका का एक सुलझा हुआ और इज्जतदार ठेकेदार था, चपरासी से लेकर चेयरमैन तक सब उसकी इज्जत करते थे, कभी भी उसका कोई काम किसी भी कार्यालय या मेज पर अटकता नहीं था।

इस बार उसने अपने मुंशी होशियार सिंह की बात मान ली और उसी का नतीजा था कि काम में देरी हो गयी। होशियार सिंह मुंशी कम घर का सदस्य ज्यादा था, ठेकेदारनी को घर पर जाकर प्रवेश की सारी बातें बताया करता था इसलिए वह ठेकेदारनी का ज्यादा मुंह लगा था।

पूरा काम सही से निबटा कर प्रवेश तरो ताजा होने घर चला गया। सहायक अभियंता विनोद और कनिष्ठ अभियंता दिनेश तो पहले ही जा चुके थे।

सब लोग समय से पहले ही तैयार होकर उदघाटन स्थल पर पहुँच गए, उपराज्यपाल महोदय भी समय पर आ गए और जन सुविधा परिसर का उदघाटन करके उस क्षेत्र के लोगों के लिए सुविधाओं का नया केंद्र खोल दिया।

प्रवेश का अभी चार जगह और काम चल रहा था, प्रवेश तो हँसते हँसाते हुए सब काम पूरे कर देता था लेकिन जब से नया मुंशी होशियार सिंह आया था, उसके कारण कई बार काम खराब हो जाता जिसको तोड़कर फिर से करना पड़ता, समय और पैसा दोनों की बरबादी होती और यह सब होता था होशियार सिंह की बेवकूफी कंजूसी के कारण।

एक दिन अचानक प्रवेश के सीने में दर्द हुआ, तुरंत ही उसको अस्पताल ले गए, डॉक्टर ने जांच करके एंजिओग्राफी की सलाह दी लेकिन काम की अधिकता के कारण प्रवेश एंजिओग्राफी के लिए समय नहीं निकाल पाये। एक दिन तेज दर्द हुआ और अस्पताल पहुँचने से पहले ही प्रवेश अपनी पत्नी सुनीता और दो बच्चों को रोता बिलखता छोड़ कर चले गए।

सुनीता का तो संसार ही उजड़ गया, प्रवेश का अचानक यूं गुजर जाना मानो उसके ऊपर पहाड़ टूट पड़ा हो।

ज़्यादातर लोग तो सुनीता को ठेकेदारनी नाम से ही जानते थे, सुनीता नाम तो कभी किसी को पता ही नहीं था लेकिन प्रवेश के गुजरने के बाद जब उसने ठेकेदार के बचे हुए कामों को पूरा करने के लिए अपना नाम न.दि.न.पा. के कार्यालय में लिखवाया तब सबको पता चला कि ठेकेदारनी का नाम सुनीता है।

सुनीता तो काम के बारे में कुछ भी नहीं जानती थी उसके पास मुंशी होशियार सिंह के ऊपर विश्वास करने के अलावा कोई चारा नहीं था अतः उसने सारे काम का जिम्मा मुंशी पर छोड़ दिया। मुंशी जैसे सलाह देता सुनीता वैसे ही करती लेकिन काम करने के लिए धन की आवश्यकता थी अतः होशियार सिंह ने सुनीता से कहा, “ठेकेदारनी, ये सारे अधिकारी प्रवेश की बहुत इज्जत करते हैं अतः तू इनके सामने जाकर गिड़गिड़ाना और पैसे मांगना, ये जरूर तेरी मदद करेंगे।”

होशियार सिंह उम्र में तो ठेकेदारनी से दुगुना था लेकिन उसकी निगाहें साफ नहीं थीं और वह उसका श्गुभचिंतक भी नहीं था। सुनीता अकेली थी, सुंदर और जवान भी थी अतः वह किसी तरह सुनीता को साधन बनाकर ज्यादा से ज्यादा धन और सुनीता का रूप यौवन दोनों को लूट कर भाग जाने वाला था।

सुनीता ने जब अधिकारियों से सहायता मांगी तो वे प्रवेश के व्यवहार को देखते हुए तैयार हो गए। सभी अधिकारियों के सहयोग से चारों काम पूरे हो गए, भुगतान भी हो गया। सुनीता सभी के पैसे वापस करने उनके कार्यालय में मुंशी होशियार सिंह के साथ गयी और एक एक करके सभी के पैसे लौटा दिये। जब सुनीता अधिकारियों को उनसे उधार लिया हुआ पैसा लौटा रही थी तभी होशियार सिंह ने बड़ी चालाकी से उन सब का विडियो बना लिया। यह विडियो होशियार सिंह ने सुनीता को बताए बिना ही प्रैस में दे दिया और उन्हे बताया कि एक बेचारी विधवा ठेकेदारनी ने अपने पति की पृत्यु के बाद जैसे तैसे करके बचे हुए काम पूरे किए लेकिन अधिकारियों ने उसका भुगतान करने के लिए उससे भी रिश्वत ली, जो सब कुछ इस विडियो में दर्ज है।

प्रैस में यह बात आते ही चेयरमैन ने सभी संबन्धित अधिकारियों को आनन फानन मे सस्पैंड कर दिया और इस सब की जांच के लिए जांच आयोग बना दिया। सुनीता को जब इस बात का पता चला तो वह पूरी सच्चाई सामने लाने ही वाली थी जिससे सभी अधिकारी आरोपमुक्त हो जाते, लेकिन होशियार सिंह ने बहुत बड़ा दांव खेला और उसने सुनीता को कुछ ऐसा समझाया, “अगर तुम इन अधिकारियों को बचाने की कोशिश करोगी तो सब अधिकारी मिल कर तुम्हारे ऊपर मानहानि का केस करेंगे और तुम्हें जेल भिजवा देंगे।” सुनीता डर कर चुप बैठ गयी।

सुनीता से गलती तो हुई थी उसने होशियार सिंह को अपना समझा और उसकी बातों में आकर झुक गयी एवं प्रैस में उसने वही कहा जो उसको मुंशी होशियार सिंह ने कहने को बोला। लेकिन सुनीता की गवाही जांच आयोग के सामने नहीं हुई थी उसने ये सब सिर्फ प्रैस में कहा था।

इसके बाद होशियार सिंह सुनीता और बच्चों को लेकर अंजान जगह पर चला गया और किसी को भी मिलने नहीं दिया। अधिकारियों ने सुनीता से मिलने की हर तरह से कोशिश की जिससे वो उससे विनती कर सकें कि वह जांच आयोग के सामने सच्चाई बता दे और वे लोग आरोप मुक्त हो सकें।

लेकिन होशियार सिंह बहुत चतुर व चालाक भी था वह अधिकारियों को सुनीता से मिलने ही नहीं देता था एवं अधिकारियों को यह और कह दिया कि आयोग के सामने सच्चाई बताने के लिए सुनीता दो करोड़ रुपए मांग रही है।

अधिकारियों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि इतने अच्छे व्यवहार कुशल ठेकेदार की पत्नी उनके साथ ऐसा व्यवहार करेगी, लेकीन उसका यह व्यवहार मुंशी होशियार सिंह की चालाकी के कारण था, होशियार सिंह ने सुनीता को सब्ज बाग दिखा रखे थे और समझा रखा था, “मैं तुम्हारा और तुम्हारे बच्चों का भविष्य सुरक्षित कर रहा हूँ।” इन अधिकारियों का क्या, ये अपनी नौकरियाँ बचाने के लिए दो करोड़ रुपए भी देंगे।

सुरेन्द्र नई दिल्ली नगर पालिका में प्रवेश के समकक्ष एवं समकालीन ही ठेकेदार था, सुरेन्द्र की भी विभाग में काफी इज्जत थी। प्रवेश और सुरेन्द्र भी एक दूसरे की इज्जत और समय पड़ने पर सहयोग करते थे। सुरेन्द्र को सुनीता के इस व्हवहार से काफी कष्ट हुआ और उसने इस सारे मामले की तह तक जाने की ठान ली। अधिकारियों ने भी सुरेन्द्र से संपर्क करके इस मामले को किसी भी तरह निपटवाने की विनती की।

होशियार सिंह उत्तराखंड के पौड़ी गड़वाल का रहने वाला था, उसने स्वयं को अविवाहित बता रखा था उम्र तो काफी थी अतः सुरेन्द्र ने उसके गाँव जाकर पड़ताल की। गाँव में होशियार सिंह की बीवी और बच्चे रहते थे, मकान भी पक्का बनवा रखा था। होशियार सिंह ने ज्यादा से ज्यादा पैसा सुनीता से लेकर अपने गाँव के मकान में लगा रखा था और यह बात सुरेन्द्र की समझ में आ गयी कि होशियार सिंह सुनीता को लूट भी रहा है और मूर्ख भी बना रहा है।

सुरेन्द्र ने होशियार सिंह के बीवी बच्चों को सारी बात विस्तार से समझाई और उनको लेकर दिल्ली आ गया, सुरेन्द्र ने उन्हे अपने घर पर ही ठहरा लिया, वहीं पर होशियार सिंह को भी बुलवा लिया। होशियार सिंह अपने बीवी बच्चों को देखकर दंग रह गया लेकिन उसकी असली परेशानी तब शुरू हुई जब सुरेन्द्र ने होशियार सिंह से कहा कि वह उनको लेकर सुनीता के घर जाएगा और सुनीता को तेरी सारी सच्चाई बताएगा कि किस तरह तूने सुनीता को मूर्ख बनाकर उसका सारा पैसा लूट लिया है।

होशियार सिंह सुरेन्द्र के पैरों पर गिर कर गिड्गिड़ाने लगा, “साहब! आप ऐसा ना करें, जैसे भी आप कहेंगे मैं वैसा ही करूंगा।” तब सुरेन्द्र ने कहा, “ठीक है, मैं इन्हे सुनीता के घर नहीं ले जाऊंगा, ये यहीं रहेंगे लेकिन तुम कल सुनीता को लेकर जांच आयोग के सामने सारी सच्चाई बताओगे और इसमे कोई भी चालाकी नहीं चलेगी नहीं तो याद रखना तेरे बीवी बच्चे मेरे घर पर हैं।” इस धमकी से होशियार सिंह टूट गया और अगले दिन वह सुनीता को लेकर जांच आयोग के सामने चला गया।

सुनीता ने जांच आयोग के सामने सारी सच्चाई साफ साफ बता दी और माफी भी मांगी तब जाकर सब अधिकारी उस आरोप से मुक्त हुए जो उन्होने किया ही नहीं था।

होशियार सिंह तो मुंह छुपाकर बिना बताए ही गुम हो गया लेकिन सुनीता को कंगाल करके छोड़ गया। सुनीता को मुंशी होशियार की सच्चाई पता चली तो उसको बड़ा दुख हुआ क्योंकि होशियार सिंह पर सुनीता ने पूरा भरोसा किया था।

आज सुनीता कंगाल हो गयी थी, और परेशान भी कि अपने बच्चों का पालन कैसे करेगी।

अधिकारियों को जब सुनीता की इस स्थिति का पता चला तो विभाग के अधिकारियों ने कार्यालय में ही एक कियोस्क सुनीता को दिलवा दिया था जिसमे उसने चाय नाश्ते की दुकान खोल ली। यह सब उन्होने ठेकेदार प्रवेश के अच्छे व्यवहार के कारण किया। “ठेकेदारनी टी स्टॉल” जहां सुनीता दिन भर ऑफिस वालों के लिए चाय नाश्ता बनाकर उनकी सेवा करती और अपने दोनों बच्चों का लालन पालन करती और होशियार सिंह जैसे लोगों से होशियार रहने की सलाह भी देती।

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