Mayke ka moh nahi chhuta to apna ghar nahi basa paogi books and stories free download online pdf in Hindi

मायके का मोह नहीं छूटा तो अपना घर नहीं बसा पाओगी

विदाई के वक़्त ही वो जैसे दहलीज़ छूट चुकी थी, रस्मों की शुरुआत बढ़ते दिन के साथ शुरू हो रही थी, आज़ादी के पंखों पर जैसे किसी ने चादर डाल दी इतनी भारी साड़ी कल्पना को बोझ के सिवा कोई और अनुभव नहीं दे रही थी. कहा था मैंने मेरी ननद को कल शादी की थकान से हालात खराब थी, उस पर इतनी भारी साड़ी पूरे दिन नहीं पहन पाऊँगी ,पर वो सुनने को तैयार नहीं थी ।

नाक कटवानी है क्या भाभी सभी समाज के लोग होंगे, इतनी साधारण साड़ी पहनोगी तो क्या कहेंगे सब?

मेरा मन कह रहा था क्या कहेंगे सब ये जरूरी है पर मुझ पर जो बीत रही है, और मैं जो कह रही हूँ वो जरूरी नहीं, कैसे रिवाज़ हैं ये जो खुल कर साँस लेने नहीं देते| 

आज मेरे माँ बाबा के ट्रेन की रवानगी है, मन चाहता है कि आज जब तक ट्रेन छूट नहीं जाती मैं उनके साथ रहूँ, पर ऐसा बोलना भी शायद इन लोगों को पाप लगे, इंतज़ार की घड़ी दिल को धक धक धड़कने पर मजबूर कर रही थी| कहाँ हो तुम इतनी औरतों के बीच मुझे क्यों अकेले छोड़ा है, मुझे जरूरत है तुम्हारी अभी, जल्दी आ जाओ रोहित, मुझे मेरे माँ बाबा के पास ले चलो, अभी तो फासला बस चार कदम का है, जब वो चले जायेंगे तो पता नहीं कब नजरें रूबरू होंगी| पर ये कल्पना मैं खुद से ही कर रही थी, चीख रही थी अंदर ही अंदर, पर आवाज नहीं आ रही थी, सारी औरतें बस रस्मों में व्यस्त थी, कभी ये हाथ जोड़ दो, कभी ये चढ़ा दो पता नहीं क्या क्या, और मेरा दिल बस यही कह रहा था छोड़ दो मुझे कुछ वक्त के लिए,ऐसा लग रहा था कि शादी नहीं कोई जुर्म किया है और इतने पुलिस वाले तैनात कर दिए गए है मेरे लिए, की ये यहाँ से निकल ना जाये|

जैसे तैसे रोहित की झलक दिखी, दरवाजे पर, उसकी निगाहें मुझे देख रही थी, तभी एक आँसू मेरी हथेली पर आ गिरा, शायद उम्मीद का आँसू था, मैंने कुछ नहीं सोचा कि लोग क्या कहेंगे, आवाज़ लगा दी|

रोहित सुनो, सबकी निगाहें मुझे ऐसे घूर रही थी जैसे किसी राजा महाराजा को मैंने नाम से पुकारा और दुनिया का सबसे बड़ा अपराध कर दिया हो|

तभी आवाज़ आयी , अपने पति का नाम नहीं लेते, ये संस्कार अच्छे नहीं है, और मेरा दिल बस जैसे इंतज़ार कर रहा था आंसुओं की बरसात का|

रोहित ने जैसे ही देखा वो तुरंत मेरे पास आ गया, शायद ये अगर अरेंज मैरिज होती तो वो मेरी नहीं सुनता, बंधा रहता माँ के पल्लू से, पर शुक्र है लव मैरिज थी मेरा प्यार उसे खींच लाया, वो जैसे ही मेरे पास आया मैंने कहा मुझे ले चलो यहाँ से, मैं अपने माँ बाबा से मिलना चाहती हूँ ,कुछ देर मे उनकी ट्रेन है, वो चले गए तो पता नहीं कब मिल पाऊँगी|

बस इतनी सी बात के लिए तुम्हें इतने आँसू बहाने पड़े, मुझे माफ़ कर दो मैं तुम्हारी पीड़ा समझ ना सका, तुम सब कुछ अपने जान से ज्यादा प्यारे माँ बाबा को भी छोड़ कर आ रही हो सिर्फ और सिर्फ मेरे लिए और मैं इतना भी तुम्हारे लिए नहीं कर सकता| 

वो तुरंत मुझे ले गया माँ बाबा के पास , जैसे ही मैं जाने को हुई पीछे से आवाज़ आयी , रुको रोहित, औरतों के मामले में तुम मत पड़ो, जो रस्में है वो वैसे ही होगी, रस्मों के मामले में मैं कोई ग़लती नहीं करना चाहती, और अब शादी हो गयी है बहु को मायके का मोह छोड़ना होगा वरना नया घर बसा नहीं पाएगी|

नहीं माँ रस्मों के लिए पूरा दिन पड़ा है , पर कल्पना के माँ बाबा की ट्रेन कुछ घंटों में रवाना हो जाएगी, अभी अभी तो आयी है,वो कितना तड़प रही होगी अपने माता पिता से मिलने को, जो जरूरी है वो पहले होना चाहिए, इन रस्मों को कैद मत बनाओ, और न कल्पना कैदी है जो यहाँ से जा नहीं सकती|

अभी से रोहित तो पराया हो गया दीदी, आपका इतने सालों के प्यार पर भारी पड़ गया बहु का प्यार| 

तमतमाई माँ बोली तुने सुना नहीं कि बहु नहीं जा सकती , बोला ना मायके का मोह अब छोड़ना होगा उसे|

ये सुनकर रोहित ने कहा तो शादी तो दोनों की हुई है तो किसी एक को माता पिता का मोह क्यों छोड़ना होगा, अगर ऐसी बात है तो मुझे भी इस नियम का पालन करना चाहिए|

शब्द रोहित के थे पर उंगली के निशाने पर मैं खड़ी थी, सबकी बातों का दोष मेरे लिए था, औऱ मैं उनके कटघरे में बुरी साबित हो चुकी थी, पर समझ नहीं पायी की मेरा कसूर क्या था| न मैंने उन रस्मों को पूरा करने से मना किया न किसी से बदतमीजी की, बस अपने माता पिता से मिलने का समय मांगा, मेरे माता पिता जिन्होंने मुझे जन्म दिया ,जिनका हक़ दुनिया में किसी के भी हक़ से ऊपर होता है, जिनसे मिलने के लिए मुझे किसी की इजाजत की जरूरत नहीं होनी चाहिए, तब भी मैंने मिन्नतें की,और फिर भी दोषी ठहराई| अगर ऐसा ही न्याय था उनकी अदालत का तो मुझे मंजूर था, पर क़दम वापस नहीं लिए मैंने|

रोहित का हाथ थाम मैं चल दी माँ से मिलने, दिल तो भरा ही था, तो माँ को देख फूट भी गया| क्या हुआ कल्पना बेटा क्यों इतना रो रही हो, पर मेरे होंठ जैसे सील गए थे, क्या कहती, रोहित से शादी का फ़ैसला मेरा था, जो उन्होंने सर आँखों पर मंजूर किया| शायद मैं भूल गयी थी कि शादी तो पूरे परिवार से करनी थी मुझे, बस रोहित को मुझ से शादी करनी थी|

कुछ नहीं माँ आपसे अलग कभी रही नहीं तो रह नहीं पा रही थी थोड़ी देर में आपकी ट्रेन है सोचा समय आपके साथ बिता लूँ|

बेटा इजाजत लेकर आई हो ना कहीं तुम्हारे ससुराल वालों को बुरा ना लगे?

कैसे कहती बुरा ना लगे, मैं तो जंग करके आयी थी,  माँ मैं आपसे माफ़ी माँगना चाहता हूं वादा किया था आपसे की आपकी बेटी की आंखों में एक आँसू की बूंद नहीं आने दूँगा पर आज एक दिन भी ये वादा निभा नहीं पाया, कोशिश करूँगा की आगे से कल्पना को हर ख़ुशी उसके कहने से पहले दूँ।

बस बेटा तुमने कह दिया माता पिता को इससे ज्यादा क्या चाहिए, मेरी बेटी का ध्यान रखना, और तुम कल्पना अपनी नादानी में ऐसा कुछ मत करना कि रोहित को कभी एक तरफा फैसला लेना पड़े| अब तुम उस घर की अमानत हो तुम्हें उनका कहा मानना चाहिए|

ऐसा लग रहा था जैसे माँ को पता चल गया था कि कुछ ग़लत हुआ है|

पर मेरी दृष्टि में मैंने कुछ गलत नहीं किया, दोनों तरफ निर्णय सुना दिया गया पर मेरा दिल क्या चाहता है ये किसी ने पूछा नहीं किसी ने रस्मों का हवाला देकर दोषी ठहराया और किसी ने अमानत कहकर निःशब्द कर दिया,  बड़ी अजीब बिडम्बना है हमारे समाज की सही और गलत से परे ही अपनी हिसाब की सीमा निर्धारित कर देते है,जो पक्षपात की जननी होती है, और फिर भी ये परम्परायें सबको सर आँखों पे मान्य होती है,परम्परा का न्याय हमेशा एक तरफा होता है, पलड़ा हमेशा एक नारी का हल्का रहता है, और इसकी पहल करने वाली भी एक नारी होती है जो परम्परा के नाम पर एक नारी की हार को स्वीकृति देती है।

धन्यवाद 

सोनिया चेतन कानूनगों