Mann Kasturi re - 15 books and stories free download online pdf in Hindi

मन कस्तूरी रे - 15

मन कस्तूरी रे

(15)

ये बुखार कई दिन चला। कभी चढ़ जाता तो कभी दवा के असर से उतर जाता है। एक दिन भी ऐसा नहीं रहा जब दोनों वक्त बुखार न चढ़ा हो! दवा बराबर चलती रही! डॉक्टर घोष ने बताया था माँ कि वायरल है, इन दिनों हवा में है! अब हुआ है तो इसकी कुछ दिन की अवधि है! ये कुछ दिन तक तो रहेगा ही तो ज्यादा घबराने की बात नहीं है। तो बुखार आता रहा, उतरता रहा! बुखार जब भी आता तो इतना तेज़ आता कि घबरा जाती थीं माँ! उन्हें लगने लगा कहीं कुछ और तो नहीं!

यूँ भी उनसे कुछ छिपा नहीं था! उन्हें पता था किस अवसाद से गुजर रही है स्वस्ति! तो उनकी चिंता का एक बड़ा सॉलिड और जायज कारण ये भी था! वे खुद भी स्वस्ति को कभी अकेला नहीं छोडती और कोशिश करतीं कि उनकी अनुपस्थिति में कार्तिक या सुनंदा स्वस्ति के साथ बने रहें! इधर कई दिन बीत गये तो डॉक्टर ने भी एक बार ब्लड टेस्ट आदि कराने की सलाह दे दी!

आज सुबह ऑफिस जाने से पहले कार्तिक उसे क्लिनिक ले गया था! कुछ टेस्ट हुए हैं स्वस्ति के ताकि ये तस्दीक की जा सके कि यह साधारण बुखार ही है कुछ और नहीं! वैसे भी इतने तरह के बुखार-फ्लू हो रहे हैं इन दिनों की माँ को चिन्ता होना भी ठीक ही है! पूरा समय वह यही सब सोचती रहती हैं!

क्लिनिक में कुछ देर अपनी बारी की प्रतीक्षा में बैठना पड़ा स्वस्ति को! इस बीच कार्तिक एक फोन अटेंड करने बाहर गया! वह बैठी थी तो यूँ ही वह इन्स्टाग्राम खोलकर देखने लगी! पिछले कई दिनों से उसने इन्स्टाग्राम, फेसबुक आदि से दूरी बना ली थी! खोलते ही सामने रोशेल की एक तस्वीर थी गोवा बीच पर ऋत्विक के साथ मस्ती करते हुए! रोशेल के प्रोफाइल पर भी ऐसी बहुत सी तस्वीरें थीं! रोशेल को चूमते हुए ऋत्विक की सेल्फी वह काफी देर तक देखती रही! उसकी ख़ुशी और संतोष से भरा मन अब एक अलग ही ट्रेक पर चलने लगा था!

उसका मन लौटने लगा था अतीत के गलियारों में और तभी स्क्रॉल करते हुए सामने शेखर की कुछ तस्वीरें आने लगीं! उसका मन बेचैन हो उठा! ये मन भी नहीं कुछ भी तो नहीं भूलता है! जिन यादों को, जिन बातों को, जिन घटनाओं को और जिन व्यक्तियों को भूल जाने का भ्रम पाल लेते हैं हम वह वास्तव में हकीकत नहीं भ्रम ही होता है! मात्र एक तस्वीर उन तमाम लम्हों को साकार करके सामने ला खड़ा करती है जिन्हें भूल जाने के संतोष में आगे बढ़ रहे होते हैं और वे कहीं मन के ही किसी कोने में एक सुषुप्त ज्वालामुखी की भांति बस एक घटना, एक बात की प्रतीक्षा में सिर झुकाएं शांत पड़े रहते हैं विस्मृति की चादर ओढ़े हुए!

ये बेचैनी मार डालेगी स्वस्ति को! जब खुद पर काबू नहीं हुआ तो एकाएक उसने एक कदम उठाया! उसने शेखर के प्रोफाइल पर जाकर उन्हें अनफोलो किया पर उसे फिर भी तसल्ली नहीं हुई तो उसने उसे ब्लॉक कर दिया! उसे अपने बचपने पर कुछ देर क्षोभ भी हुआ पर अगले जो पल उसने महसूस किया कभी कभी ये बचपना भी कर लेना चाहिए! ये सोचने के साथ उसने बहुत हल्का महसूस किया! इतना हल्का कि उसे लगा उसके मेमरी कार्ड से काफी फालतू का स्पेस जैसे खाली हो गया है!

मन की टूटन का असर देह पर इस रह होगा स्वस्ति ने कभी नहीं सोचा था! क्या अब भी वह शेखर से प्रेम करती है? क्या अब भी वह उन्हें उतनी ही शिद्दत से याद करती है कि उनकी एक झलक ने उन्हें इस कदर बेचैन कर दिया कि वह बर्दाश्त नहीं कर पायी! इस स्थिति में मानसिक संतुलन खोने जैसी नौबत आना खतरे के अलार्म से कम नहीं स्वस्ति के लिए! उसे खुद पर काबू पाना ही होगा! इस तरह कमजोर नहीं पड़ेगी वह! इसके बाद तो कभी भी नहीं! अपने इस निर्णय की मजबूती को इतनी गम्भीरता से महसूस किया उसने कि उसकी मुट्ठियाँ भींच गईं, उसके जबड़े कस गए, उसे चेहरे पर अब विवशता नहीं दृढ़ता परिलक्षित हो रही थी!

ये सच है कि उसे सम्भलने में कुछ वक़्त लगा पर उसने कोशिश नहीं छोड़ी! इस बीच दो बार रोशेल के फोन आया! बहुत अधिक बात नहीं कर पाई स्वस्ति पर विवाह की तैयारियों को उसकी आवाज़ की ख़ुशी और उत्साह से महसूस करती रही स्वस्ति! वह रोशेल के लिए बेहद खुश थी! यही वे क्षण थे जब वह अपने मूड स्विंग्स के कारण आते अवसाद और दुःख की परतों से बाहर निकलकर ताजगी महसूस करती थी!

एक सच्चा दोस्त वही होता है जो दोस्त की ख़ुशी में अपनी ख़ुशी ढूंढ ले! यूँ भी रोशेल को बहुत ज्यादा मिस कर रही है इन दिनों स्वस्ति! उसका मन होता एक बार उसके गले लगकर जोर से रो पड़े! खूब कोस ले शेखर को और मुक्ति पा ले उसके ख्यालों से हमेशा के लिए! वैसे मुक्ति पाने के लिए कम कोशिश नहीं कर रही रही! उसे लग रहा है जैसे यह वक़्त नहीं, जलता अलाव है जिसमें वह एक एक उसकी यादों की कतरनों को डालते हुए उनसे दूर जा रही है!

दो दिन माँ ने स्कूल से छुट्टी लीं और कार्तिक सुबह शाम आता जाता रहा! सुनंदा आंटी जिदकर उसके लिए कुछ न कुछ बना लातीं! कभी खिचड़ी तो कभी साबूदाने की तहरी! कभी मूंग की दाल तो कभी वेजिटेबल दलिया! आंटी साक्षात् अन्नपूर्णा हैं! उनके हाथों में जैसे जादू है! पर इन दिनों स्वस्ति का जायका जैसे बिल्कुल बदल गया है! कुछ खाने को मन नहीं होता! भूख तो जैसे लगना ही बंद हो गई है पर कार्तिक कैसे भी यत्न कर उसे खिला ही देता है! कभी वह अपने हाथों से उसे फल खिलाता तो कभी उसके लिए फ्रेश जूस निकालकर पिलाता! इन कुछ दिनों में उसका जीवन जैसे स्वस्ति के इर्द गिर्द सिमट आया था! वह हर वक्त उसकी ही चिंता में खोया रहता है जानती है, समझती है स्वस्ति! कभी कभी उसे गिल्ट भी फील होने लगता है कि एक उसके कारण सब परेशान हो रहे हैं!

इसी बीच वीकेंड था तो कार्तिक अगले दो दिन वहीँ रहा। उस दिन चमकीली सुबह थी! स्वस्ति के इशारे पर उसने खिड़की से परदे हटाए और वहीँ साइड टेबल पर लगी किताबों को ठीक से जमाते हुए उसने पूछा,

कुछ पढ़ने का मन हो तो बताओ, जानेमन। कई दिन से तुमने कुछ पढ़ा नहीं। अमां यार, ज़िन्दा कैसे हो तुम? तुम स्वस्ति ही हो न? ओके यू टेल मी....क्या पढ़ना है बताओ तो मैं कुछ पढ़कर सुनाऊं? कुछ भी तुम्हारी पसंद का! चलो बताओ क्या पढूं?”

ना, रहने दो, कार्तिक। मन नहीं है और वैसे भी तुम्हे बोर नहीं करना है मुझे। मुस्कुराते हुए स्वस्ति ने उत्तर दिया और दोनों एक साथ हंस पड़े।

आज पांचवा दिन है। आज माँ दिन भर घर रहीं। स्वस्ति कुछ अच्छा महसूस कर रही है। आज दिन भर में कई बार उसका मन चाहा कि कार्तिक से बात करे पर जब भी ऐसा सोचा खुद कार्तिक का फोन आ गया उसका हालचाल लेने के लिए। ऑफिस में भी उसे इस बात की चिंता रही कि स्वस्ति कैसी है। इस बीच रोशेल के फॉरवर्ड किये मेसेजेज को स्क्रॉल करते हुए उसने एक मेसेज को बार-बार पढ़ा और उसे लगा जैसे यह मेसेज नहीं उसकी ही मनोदशा को एक इशारा है, रोशेल ने लिखा था....

जीवन उस इंसान के साथ बिताएँ जो आपको खुशी दे, उसके साथ नहीं जिसे आप को हमेशा प्रभावित करना पड़े।

गुड मॉर्निंग स्टे ब्लेस्ड

बुखार ने बदन को जैसे तोड़कर रख दिया था। अब भी कमजोरी जरूर है पर कल रात से बुखार नहीं चढ़ा और और कार्तिक अभी कुछ देर पहले ही ऑफिस से उसके पास आया है। कार्तिक डॉक्टर से उसकी रिपोर्ट्स भी लेकर आया है जिसमें सब नार्मल है तो इसे लेकर कुछ संतोष महसूस कर रही है स्वस्ति। उसने धीमे से कार्तिक के हाथ को थाम लिया और बालकनी में बैठकर उसकी उँगलियों से खेलने लगी। पता नहीं उसे क्यों लगा कि यह बुखार उसकी दैहिक कम और मानसिक दशा का परिणाम ज्यादा है। पर अब उसके अंतर्मन के गुंजलक उतने भी उलझे नहीं रह गए हैं। उसकी उलझनों के सिरे अब सुलझ रहे हैं। इस सुलझाव का असर उसके चेहरे पर झलक रहा है।

आज उसे दिन भर बुखार नहीं आया! अभी रोशेल का फोन आया था! उसका वेडिंग गाउन आ गया! बिल्कुल वैसा ही जैसा उसने हमेशा से सोचा था! हमेशा से उसकी कल्पना में ये वेडिंग गाउन था, तब भी जब वह स्कूल में थी! यह एक बड़े सपने के सच हो जाने का समय था जो उसके जीवन में कितनी खुशियाँ लेकर आया था! कितनी खुश लग रही थी रोशेल! विडियो कॉल था! वे दोनों बारी बारी बात कर रहे थे! इधर से स्वस्ति और कार्तिक और इधर से रोशेल और ऋत्विक! रोशेल सब तैयारियों के बारे में बताते हुए सब स्वस्ति को दिखा रही थी! उसके चेहरे की ख़ुशी उसके मन के हाल को खूब दर्शा रही थी! सचमुच बहुत खुश थी वह और ऋत्विक और उन्हें खुश देखकर वह और कार्तिक भी तो बहुत खुश थे! शादी में अब दस दिन बचे हैं!

रोशेल बोल रही थी जोर जोर से,

सबको आना है, तुम्हे भी कार्तिक को भी, आंटी को भी! सुनंदा आंटी और अंकल को भी वरना सोच लो.... मैं नहीं करने वाली मैरिज! चर्च में एंटर ही नहीं करुँगी! मेरी ब्राइड्स मेड तो स्वस्ति को ही बनना है और कार्तिक बनेगा बेस्ट मैन! अदरवाइज मैरिज कैंसिल! जल्दी आओ तुम्हारे लिए भी तो गाउन सेलेक्ट करना है मुझे स्वस्ति! ओके ये बताओ ये कैसा रहेगा?”

रोशेल एक-एककर अपनी ड्रेसेस दिखा रही है! ख़ुशी और उत्तेजना उसके चेहरे से झलकी पड़ रही है और उसकी ये ख़ुशी यहाँ इस ओर के लोगों को भी ख़ुशी से भर रही है!

ऋत्विक गिडगिडाते हुए नाटकीय ढंग से बोल रहा है,

आ भी जाओ यार, वरना मैं कुंवारा ही रह जाऊंगा! इसका क्या भरोसा! कैंसिल बोला तो कैंसिल!!!

माँ समेत सब हंस पड़े ये सुनकर! माहौल कितना खुशनुमा हो गया था रोशेल के फोन और शादी की बातों से!

कितना हल्का हो चला है स्वस्ति का मन इस कॉल के बाद! वाकई फूल सा हल्का हो चला है मन! उनके फ्लाइट रिजर्वेशन तो पहले ही करा लिए थे कार्तिक ने! वे दोनों जाने वाले हैं रोशेल की शादी में ये पहले से तय था! स्वस्ति मन ही मन योजना बनाने लगी अपनी गोवा ट्रिप की! सच तो ये है कि वह बहुत उत्साहित है इस ट्रिप के लिए! बस जल्दी से ठीक हो जाना है उसे!

अब वह नियमित रूप से कॉलेज जा रही है! कॉलेज से लौटते हुए आज कैब में उसने कार्तिक को फोन किया! गोवा में रोशेल की शादी के लिए शॉपिंग करनी थी स्वस्ति को! कहीं भीतर से वह जानती है यह सिर्फ बहाना है! उसका मन था आज डिनर पर कार्तिक के साथ जाने का! कार्तिक के साथ अब ज्यादा से ज्यादा वक़्त बिताती है स्वस्ति! माँ और सुनंदा आंटी उन दोनों के रिश्ते में आये इस बदलाव से कितनी खुश हैं ये वे ही जानती हैं! सुनंदा अपने भरोसे की जीत पर मुग्ध हैं और माँ के रातों में अब गाढ़ी नींद का कब्जा हो चला है! उनकी सारी उलझनें जैसे पंख लगाकर कहीं उड़ गई हैं! अपने पहाड़ से लंबे जीवन में उन्होंने पहली बार अपनी संतान के भविष्य के प्रति आश्वस्ति का स्वाद चखा है और वे जानती हैं इससे बेहतर और कुछ नहीं!

स्वस्ति के इस फोन का कार्तिक को जैसे सदियों से इंतज़ार था! उसे कब इनकार था! उसने स्वस्ति को शाम को तैयार रहने को बोला! कार्तिक को कॉल करने के बाद कुछ सोचकर स्वस्ति ने इन्स्टाग्राम, फेसबुक खोलकर शेखर को अनब्लॉक किया! उसका मन स्थिरता की ओर बढ़ चला है! अब उसे किसी याद से भय नहीं, आकर्षण की चिंता नहीं! उसने अब उन्हें इग्नोर करना सीख लिया है! सिर्फ इग्नोर ही नहीं उनका सामना करने को भी पूरी तरह तैयार है स्वस्ति! शायद जीवन में स्थिरता की तलाश उसे जहाँ लेकर आई है वही उसकी मंजिल है बाकी सब भटकाव ही था और कुछ नहीं!

प्रेम और आकर्षण के बीच की दुविधा से उबरना सीखने में कितनी सफल हुई स्वस्ति इसका उत्तर आनेवाले वक़्त की कोख में है पर इतना जरुर है कि वह जान चुकी है कि अब जो उसके हाथों में यह कार्तिक का हाथ नहीं है, स्मृतियाँ नहीं, सपने भी नहीं हैं, ये तो उसकी आकांक्षाओं के सिरे हैं जिनकी तलाश में वह जीवन के रेगिस्तान में कब से भटक रही थी। स्वस्ति ने उन्हे कसकर थाम लिया है।

उस शाम को बहुत पहले आ जाना चाहिए पर देर से ही सही वह आई जरूर! जीवन में प्रेम कई चेहरे लेकर हमारे सामने आता है पर ठहरता वही है जो स्थायित्व लेकर आये! इस स्थायित्व और पूर्णत्व के अभाव में जो रिश्ता है वह प्रेम कहा जरूर जा सकता है पर प्रेम होता नहीं! इकतरफ़ा रिश्ते की मृगमरीचिका में भटकते हुए उसने जीवन के सबसे अच्छे रिश्ते को नजरअंदाज़ किया है!

उसे माँ की कही बात याद आ रही है! वे ठीक ही तो कहती हैं, “मृग जिस कस्तूरी की तलाश में बावला होकर जीवन भर भटकता है वह कहीं और नहीं उसके ही भीतर होती है! जिस दिन वह जान लेगा, कस्तूरी और कुछ भी नहीं उसका मन है, उसे उसकी भटकन से मुक्ति मिल जाएगी!” स्वस्ति ने भी अपने भीतर की कस्तूरी का पता जान लिया है! उसे भी भटकने से मुक्ति मिल जाएगी! पा लेगी वह अपने भीतर के अमृत घट को जो सदा से उसके बेहद करीब था!

वे लोग एक रोमांटिक शाम बिताने के बाद डिनर से लौट रहे हैं! कार्तिक ड्राइव कर रहा है! उसका सिर कार्तिक के कंधे पर है और उसकी देह कार्तिक के बेहद करीब। वह उस घेरे में और करीब सिमट गई। उसकी बंद आँखों में फिर एक समयरेखा उभर रही है पर आज समयरेखा पर उसके पाँव बिल्कुल डगमगा नहीं रहे हैं। कहीं कोई उलझन नहीं है और न ही कोई दुविधा है। उन बंद आखों से भी, इन उलझनों से बाहर निश्चिंतता की रोशनी में सब कुछ साफ़ और स्पष्ट नज़र आ रहा है स्वस्ति को। आज कहीं कोई उलझन है ही नहीं जैसे उसकी तमाम उलझनों के सिरे सुलझने की शाम है यह! वह दो बार नहीं सोचना चाहती क्योंकि पूरी तरह आश्वस्त है अपने फैसले को लेकर। उसने आँखें बंद कर ली! अब वह समयरेखा पर दस कदम गिन रही है और वह जानती है कि वे किस दिशा में होंगे।

- समाप्त -

कथाकार : अंजू शर्मा