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मुश्क़िल वक़्त

बहुत समय पहले की बात है। जब महात्मा बुद्ध सभी लोगों के मन को अपने प्रवचनो से मोह लेते थे। और सभी को ज्ञान का पाठ पढ़ाया करते थे।
उसी समय की बात है कि एक बार कुछ लोग बहुत तेज़ी से चलते हुए महात्मा बुद्ध की कुटिया के पास से निकलकर गये। उस समय महात्मा बुद्घ भगवान का ध्यान लगाए बैठे हुए थे। उन लोगों के पैरो की आहट ने महात्मा बुद्घ जी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। उन्होने अपनी आँखें खोली और अपने एक शिष्य से कहा कि ' ज़रा जाकर देखो तो सही ये कौन लोग हैं, और इतनी शीघ्रता से कहाँ जा रहे हैं..?'
वो शिष्य महात्मा बुद्ध के कहे अनुसार उन लोगों के पास चला गया। और वहाँ जाकर उनसे उनके विषय में जानने की जिज्ञासा ज़ताई। तो उन लोगों ने उस शिष्य की ओर देखा। उस शिष्य की साधू-सन्त के जैसी वेश-भूषा देख कर, उन लोगों में से एक बुज़ुर्ग व्यक्ति ने आगे आकर कहा कि ' हे गुरू महात्मा, हम सभी यहाँ पास ही के गॉंव के हैं। हम सभी बहुत बड़े ही मुश्क़िल वक़्त से गुज़र रहे हैं।
और इस मुश्क़िल वक़्त से बाहर आने के लिए हमने आप जैसे ही एक महान साधू से इसका उपाय पूछा। तो उन्होनें हमें इस मुश्क़िल वक़्त  से बाहर अाने का उपाय बताया है। उसी के लिए हम जा रहे हैं।
' लेकिन कहाँ... और क्या उपाय बताया उन्होनें.?' शिष्य ने उन लोगों से जिज्ञासा पूर्वक पूछा।
उस शिष्य के ऐसा पूछने पर सब लोग ऐसे शांत हो गये, जैसे बहुत सारे गुन्ड़ों ने उन सब की गर्दन पर तलवार रख कर कहा हो कि ' अगर किसी ने साँस भी निकाली तो उसकी गर्दन उसके धड़ से अलग होगी।'
बहुत देर की खामोशी के बाद उस शिष्य ने फिर से वही सवाल दौहराया। और कहा कि ' तुम सब ऐसे चुप क्यों हो। क्या हुआ..?'
उन्हीं लोगों में से फिर एक व्यक्ति आगे आया, और सिर झुका-कर क्षमा मागते हुए बोला ' हे गुरूवर, आप तो महापुरूष हैं आप सभी बातों को भली-भांती जानते होंगे। लेकिन हम आपको ये सब नही बता सकते कि हम कहॉं जा रहे हैं। और वहॉं जाकर क्या करेंगे। क्योंकि उन गुरू जी ने ये सब किसी को भी से बताने मना किया है। उन्होनें कहा कहा है कि अगर आप इस उपाय को किसी और के साथ साझा करोगे, तो आप इस कार्य में निःसफ़ल हो जाओगे।'
फिर उस शिष्य ने अपना परिचय देते हुए कहा कि ' जो भी बात है आप बिना संकोच किए मुझे बता दीजिए। क्योंकि जहाँ तक मेरा मानना है कि मुश्क़िल वक़्त से बाहर निकलने का कोई भी उपाय नही होता है। वो कुछ समय पश्चात खुद ही हमारे जीवन से चला जाता है। आप हमें सच्चाई बता दीजिए। हो सकता हो मैं आप लोगों की कुछ साहयता कर दूँ। या अगर मैं कुछ नही कर सका तो मेरे परम पूजनीय गुरू जी महात्मा श्री गौतम बुद्ध आपकी समस्या का ज़रूर कोई ना कोई हल निकाल ही देंगे।'
महात्मा बुद्ध जी का नाम सुनते ही उन्होनें उस शिष्य से कहा कि ' कृप्या आप हमें उनके पास ही लेकर चले। हम उन्हें सब बता देंगे, जो भी हमें उपाय बताए गये हैं। 
वो शिष्य उन सभी को अपने गुरू महात्मा बुद्ध के पास ले गया। और वहॉं जाकर शिष्य ने अपने गुरू को उन सब के बारे में और उनकी परेशानी के बारे में बता दिया।
अब महात्मा बुद्ध ने भी उन लोगों से वो सब पूछा, जिसका उत्तर उन लोगों से उनके शिष्य को नही मिला था।
पर चूंकि वे लोग पहले ही कह चुके थे कि  'हम सच्चाई महात्मा बुद्ध जी के ही सामने बतायेंगे। और वो लोग जानते भी थे कि इस मामले में महात्मा बुद्ध उन्हें एक दम सही बात और नयी बात बताएंगे।
उन लोगों ने महात्मा बुद्ध जी को सब सही बता दिया कि ' उन्हें कोई साघू मिले। और उन लोगों ने उस साधू से खुद को मुश्क़िल वक़्त से निकालने का उपाय पूछा। तो उस साधू ने उन्हें बताया कि यहॉं से एक सौ चौबालिस किलो मीटर की दूरी पर एक बहुत बड़ी चट्टान है। आपको वहॉं पैदल जाकर उस चट्टान को तोड़ना है। लेकिन ये कार्य तीन दिन में समाप्त हो जाना चाहिए। नही तो ये उपाय पूरा नही हो पाएगा।
महात्मा बुद्ध उनकी बात सुनकर पहले तो थोड़े से मुस्कुराए और फिर कहा कि ' तुम सभी सचमुच बहुत ही भोले हो। अापने ये ज़रा भी नही सोचा कि चट्टानो को तोड़ कर अाज तक कोई मुश्क़िलों से बाहर अाया है। या किसी की मुश्क़िलें दूर हुई हैं।'
सभी ने अपनी ग़लती मानकर अपनी निग़ाहों को नीचे की ओर कर लिया।
महात्मा बुद्ध जी ने कहा कि ' वो जो भी व्यक्ति है। जिसने आप सभी को इस तरह का ज्ञान दिया। वो शायद अपने मतलब के लिए आप सभी को गुमराह कर रहा है।
क्योंकि शायद वो ये नही जानता कि ' मुश्क़िल वक़्त का एक ही उपाय है, और वो है " धैर्य "।'
मुश्क़िल वक़्त का सहारा इंसान स्वंय होता है। और इंसान को सहारा देती है, उसकी अपनी ' धैर्यता '। 
मुश्क़िल वक़्त बहुत ज़्यादा समय तक नही रहता है। इसीलिए हर घड़ी हर समय घैर्य रखना सीखो। क्योंकि- " समय बदलते समय नही लगता है।"
सभी लोग महात्मा बुद्ध जी बात सुनकर संतुष्ट हो गये। और उनसे अपनी ग़लती की क्षमा मॉंग कर, अपने-अपने घरों को लौट गये।
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मंजीत सिंह गौहर