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अभिषप्त ज़िन्दगी

2 - अभिषप्त ज़िन्दगी

ठण्डी बर्फीली हवा जैसे ही बदन को छूती सारे शरीर में कंपकंपी-सी दौड़ जाती । मगर उससे भी ज़्यादा चन्दा बाई के अब तक ना आने से ज़ोरा का दिल कांप रहा था । सुबह दस बजे की निकली अब तक तो उसे आ ही जाना चाहिये था । अभी कुछ ही देर में ग्राहक आने लग जायेंगे और फिर वही बोटियां नुचवाने का सिलसिला शुरू हो जायेगा । सब की सब व्यस्त हो जायेगी धन्धे में । किसी को चंदा बाई की हालत पूछने का समय नहीं मिलेगा । वह रह-रहकर मन को समझाती रही -‘आ ही जायेगी । उसके साथ गुलाबो जो गई है, रूक गई होगी कुछ खरीदारी करने के लिये....।‘ मगर फिर भी जैसे-जैसे उजाला अंध्ंोरे की गिरफ्त में आने लगा वैसे-वैसे ही ज़ोरा बाई का ध्यान चन्दा की ओर अधिक खिंचने लगा । कई बार उसने मन को समझाना चाहा- ‘हो सकता है खून की जांच रिपोर्ट में देर हो गई हो..या हालत ज़्यादा बिगड़ गई हो ।‘ उसका ध्यान जमीला की पींठ पर अचानक लगी धौल से टूट गया ‘अरी क्या सोच रही है बैठी-बैठी तैयार नहीं होना क्या ? अभी थोड़ी ही देर में ग्राहकी शुरू हो जायेगी, वो तेरा ट्रक वाला आज ही की तो कह गया था...।‘

वह कुछ ना बोली । दूर आकाष में उड़ते पंछी के एक जोड़े को ताककर बोली, ‘जमीला देख, हमसे तो अच्छे ये परिंदे हैं । इनका भी एक जोड़ा होता है, एक आषियाना होता है । मगर हम अभागिन का कुछ नहीं, कोई नही.....। हमें नोंचने वाले हज़ारों चले आते हैं मगर ज़िन्दगी भर का साथ निभाने का दम कोई नहीं भरता । ‘ कहते-कहते ज़्ाोरा की मायूस आंखों में आंसू तैर आये । उसके आंसू पोंछते हुये जमीला उसी के पास बैठ गई, ‘आज ये तू उखड़ी-उखड़ी-सी क्यों है ?‘ ज़्ाोरा कुछ नहीं बोली, खामोष रही । उसे देख कुछ देर पहले चहकती आई जमीला भी खमोषी के साथ आसमान में उड़ते हुये परिंदों के जोड़ों को निहारने लगी ।

बस्ती से दूर हाई-वे पर सड़क को रौंदते ट्रकों की आवाज़ें उनके कानों में पिघलती रही । अंधेरा उनके मन और बाहर धीरे-धीरे बढ़ने लगा । शायद वे दोनों ही अपनी लाचारी, किस्मत और अभिषप्त ज़िन्दगी के किसी छोर पर अटक गई थीं । ज़ोरा उस दिन की पीड़ा को कभी नहीं भुला पाती जब तेरह वर्ष की उम्र में मेले से उसका अपहरण, फिर बलात्कार हुआ और जब आंख खुली तो मुन्नी बाई के कोठे पर ले जाकर रोती बिलखती छोड़ दी गई थी । वह तड़पती रही थी मां-बाप के बिना । रो-रोकर अधमरी हो गई थी वह । तब अगर चन्दा और गुलाबो ने ना संभाला होता उसे तो वो मर ही जाती । चन्दा ही थी जिसने अपनी छोटी बहन-सा प्यार दिया और मुन्नी बाई के दलालों की मार खुद खा-खाकर उसकी जगह अपना बदन नुचवाती रही थी । फिर एक दिन मुन्नी बाई के चन्दा पर जु़ल्म देखकर वह खुद ही एक ग्राहक की गोद में जा बैठी थी और तब से आज तक वह ग्राहकों की ही होकर रह गई । मुन्नी बाई को कर्मो की सज़ा मिली और वह कैंसर से मर गई । तब तक बहुत देर हो चुकी थी । वो इस बदनाम बस्ती की सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली वैष्या बन चुकी थी ।

जमीला का कुसूर इतना था कि वह अपने प्रेमी पर विष्वास कर मां-बाप की मर्जी के खिलाफ उसके साथ ब्याह रचाने भाग गई थी । कई दिनों की गुमनाम ज़िन्दगी जीने के बाद आखिर मां-बाप की रिपोर्ट पर पकड़ ली गई थी । थाने में उसके कथित पति की पिटाई के बाद पुलिस ने पांच हज़ार की जमानत लेकर छोड़ दिया था उसे । तब वह ना पति की रही थी और ना घर वालों की ही । रात भर घर के दरवाज़े पर रोती बिलखती रही थी मगर ना तो उसके पति के घर वालों ने ही उसे अपनाया था और न ही उसके घरवालों ने । तब उसने मज़बूर होकर बदनाम ज़िन्दगी जीने से अच्छा मर जाना समझा था । मगर बचा ली गई थी मरने से और फिर दर-बदर की ठोकरें खाती एक ट्ªक वाले के साथ यहां इस बदनाम बस्ती में छोड़ दी गई थी । तब उसे अच्छा लगा था । प्रेमी पति और समाज से ठुकराई को इस बस्ती ने अपने परिवार-सा प्यार दिया था । तब से आज तक वह इसी बस्ती की होकर रह गई है ।

अनायास ही ज़ोरा की नौ साल की बेटी ने खामोष वातावरण को अपनी मासूम आवाज़ से झकझोर दिया -‘मां...! ओ मां..! अंधेरा हो गया मुर्गियां बन्द कर दूं ? वे दोनेां जैसे हड़बड़ाकर सोते से जाग गईं । फिर ज़ोरा ने धीरे से कहा, ‘हां बन्द कर दे और दाना-पानी डाल दे ।‘ फिर जमीला की ओर मुखातिब हो बोली, ‘पता नहीं मन आज क्यूं उचाट हो रहा है । चन्दा का ख्याल बार-बार दिमाग को धुन रहा है । एक अनजाना डर मन में घर करता जा रहा है ।

‘क्यों ऐसा क्या हुआ ?‘‘कुछ नहीं रे, चन्दा और गुलाबो सुबह की अस्पताल गईं हैं अभी तक नहीं आई । चन्दा को अपनी खून की रिपोर्ट लेनी थी और डाक्टर को दिखाना भी था । अब तू ही बता बेचारी कितने दिनों से बीमार चल रही है । अगर ऐसे ही बीमार रही तो खायेगी क्या ? फिर ग्राहक शराब के नषे में धुत्त ये थोड़ी देखता है कि तबियत ठीक है या नहीं । चन्दा ठीक हो जाये तो मैं तो सवा पांच रूपये का परसाद चढ़ाऊंगी ।”तभी एक बस रूकी और उसने देखा कि चन्दा को पकड़े गुलाबो उनकी ओर धीरे-धीरे बढ़ी आ रही है । नज़दीक आते-आते वो दोनों भी उठ बैठीं, “अरे राह तकते-तकते तो मेरे प्राण ही निकाल दिये तुम दोनों ने ? सुबह से गई अब आ रही हो ? कोई बात हो गई या ....। रिपोर्ट मिल गई ..?” ज़ोरा ने उत्सुकतावष प्रष्नों की झड़ी लगा दी । मगर दोनों के ही मुंह से कुछ नहीं निकला ।“ अरी बताओ तो क्या बताया डाक्टर ने ? कोई खतरे की बात है क्या ?” गुलाबो गंभीर थी, चन्दा डरी, सहमी-सी । गुलाबो ने सुना फिर चन्दा को अन्दर खाट पर ले जाकर लिटाने लगी । जमीला और ज़ोरा भी उसके पीछे-पीछे हो लीं । गुलाबो ने चन्दा को खाट पर लिटाया फिर उसकी ठोड़ी अपने हाथों से सहलाकर बोली, “बस ! अब आराम करो और बेफिक्र होकर सो जाओ । डाक्टर ने कहा है कुछ नहीं है तुम्हें जल्दी ही ठीक हो जाओगी ।” उसे अकेला छोड़ तीनों कमरे से बाहर आ गईं । जमीला को जल्दी थी सो वह अपने घर चली गई ।

अब तक पूरी रात उनकी बस्ती पर उतर आई थी । ग्राहकों की नषे में डूबी आवाज़ें गुलाबो के दिल को चीरने लगी । ज़ोरा बत्ती जलाने को उठी तो गुलाबो ने मना कर दिया, “रहने दे ज़ोरा आज अंधेरा ही रहने दे ।”

“क्यों क्या हुआ ? चन्दा की रिपोर्ट में कुछ ऐसा-वैसा निकला क्या ?”“हां ! मगर तू मेरी कसम खा चन्दा को नहीं बतायेगी । और बस्ती वालों को तो भूलकर भी नहीं ।”“तेरी कसम गुलाबो ! क्या तुझे मुझ पर इतना भी भरोसा नहीं ? क्या तू नहीं जानती कि मेरी जान चन्दा में बसी है । वो मेरी सहेली ही नहीं बड़ी बहन की तरह है । मगर ऐसी कौन-सी बीमारी बता दी जो तू.....?” घबराहट से उसकी आवाज़ कांप उठी और अनजाने भय से ज़ोरा का दिल डूबने लगा ।“डॉक्टर ने इसे एड्स बताया है जो इसे मौत की नींद सुला देगा । हम जो शरीर बेचकर पेट भरती हैं उसी से हुआ है ये सब ।” कहते-कहते गुलाबो का गला रूंध गया । वह अपने पर संयम रखने की कोषिष करती हुई आगे बताने लगी -“डॉक्टर ने मुझे बताया कि एड्स रोगी के सम्पर्क मे आने या ऐसे रोगी का खून लेने से यह बीमारी होती है । ज़रूर कोई ना कोई इस बीमारी का रोगी चन्दा के सम्पर्क में आया होगा । ज़ोरा मुझे तो डर लगने लगा है कि कहीं हम भी...।” कहते-कहते उसकी सिसकी बंध गई । तभी उसके मुंह पर ज़ोरा ने हाथ रख दिया-“षुभ-षुभ बोल गुलाबो...। और तूने ही तो कसम दिलाई है किसी को ना बताने की । अगर चन्दा ने सुन लिया तो वो तो...। और अगर किसी ग्राहक को पता लग गया तो हम तो भूखें ही मर जायेंगे । कौन है हमें आसरा देने वाला....।” ज़ोरा अपनी बात पूरी करती उससे पहले ही चन्दा लड़ख़ाती चली आई और उनके बीच गिर पड़ी । उसे अचानक इस हालत में देख गुलाबो और ज़ोरा की चीख ही निकल पड़ी । उनकी चीख सुनकर आस-पास के झौंपडों से और भी औरतें निकल कर क्या हुआ, क्या हुआ करती जमा हो गई । चन्दा के हाथ में चूहे मारने वाली दवा थी और मुंह से झाग बह रहे थे । ज़ोरा और गुलाबो उसका सिर अपनी गोदी में लिए फूट-फूटकर रोने लगी थीं । बड़ी मुष्किलों के बाद चन्दा ने आंखें खोलीं और बोलना शुरू किया- मेरी प्यारी गुलाबो तेरे छुपाने से कहीं मेरी मौत टल सकती थी ? मैंने...मैंने चुपचाप डॉक्टर को कहते सुन लिया था कि मुझंे एड्स हो गया है और अब मैं नहीं बचूंगी । तभी मैंने फैेसला कर लिया था कि मैं अपनी बस्ती को इस अभिषाप से मुक्त करके ही रहूंगी । हम गैरों का दिल बहलातीं हैं, उनकी गंदगी अपने पेटों में पालती हैं मगर फिर भी किसी का दिल नहीं पिघलता । सब दिल बहलाते हैं और चले जाते हैं । हमें कोई नहीं अपनाता । मगर आज के बाद इस बस्ती की कोई भी औरत धन्धा नहीं करेगी । मेरे मरने से पहले ये वचन तुम सबको मुझे देना होगा....।” कहते-कहते उसकी सांसें उखड़ने लगीं । “नहीं चन्दा ! नहीं..! तू नहीं मरेगी । ऐसा मत बोल ....।” ज़ोरा और गुलाबो उसका सिर गोदी में पकड़े फूट पड़ी थीं और बस्ती की तमाम औरतें आष्चर्य और दुःख से चन्दा को दम तोड़ते देख रहीं थीं । चन्दा ने एक हिचकी लेकर फिर आंखें खोल दीं-“ज़ोरा ! तू....तुझे मेरा एक काम करना है । बोल करेगी न....।”“हां ! हां....बोल चन्दा, बोल । तेरे लिये तो मैं मर भी सकती हूं ।” चन्दा ने अपनी डूबती सांसों को हिम्मत करके समेटा -“अरी पगली तू मरेगी तो मेरा काम कौन करेगा ? मैं जानती हूं कि मेरी बीमारी की खबर के बाद अब तुम लोगों के पास कोई ग्राहक नहीं आयेगा । मैंने अपने बुढ़ापे के लिये मेरे कमरे में अपनी कमाई का पैसा जमा करके रखा है । तुम लोग उससे कोई अच्छा काम शुरू ...।” कहते-कहते उसका सिर एक ओर लुढ़क गया । ज़ोरा एक तेज चीख के साथ चन्दा की लाष पर सिर रखकर फूट पड़ी ।

दूर कहीं सूखे पेड़ पर बैठा निषाचर चन्दा की मौत के साथ ही चीखता-चिल्लाता उड़ गया । सारे वातावरण में ज़ोरा की चीखें, गुलाबो की सिसकियां और बस्ती की औरतों की दबी आह समा गई । बस्ती से दूर हाई-वे पर सड़क को रौंदते ट्रकों की आवाज़ें बढ़ने लगीं थीं ।

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