Bhakti sadhan bhi, saadhya bhi books and stories free download online pdf in Hindi

भक्ति साधन भी, साध्य भी

भक्ति साधन भी, साध्य भी

श्री बालकिशन दास चांडक उम्र 92 वर्ष माहेश्वरी समाज में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक प्रतिष्ठित व्यक्तित्व है। वे विभिन्न समाजसेवी संस्थाओं के माध्यम से देश व समाज की सेवा में संलग्न है। इतनी उम्र्र होने के बाद भी यथाशक्ति सक्रियता बनाए हुये हैं।

उनका कहना है कि वास्तव में मनुष्य जीवन मृत्यु के विधान से कर्मानुसार बंधा हुआ है। हमारे शास्त्र तो हमें यही प्रेरणा देते है कि चौरासी लाख योनियों में भटक कर यह मनुष्य जन्म प्राप्त हुआ है। मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जिसमें विवेक है व विवेक के आधार पर वह अपना जीवन सफल कर सकता है। इस विषय को बहुत कुछ अध्ययन व सत्संग के माध्यम समझा है। यही कहा जाए तो श्रीमद् भगवद्गीता द्वारा इस संबंध में सभी कुछ भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन के माध्यम से हम सभी को समझाया है।

श्री चांडक जी ने विभिन्न संस्थानों में अनेक पदों पर कार्य करने के उपरांत अगस्त 1998 को 69 वर्ष की आयु में स्वेच्छा से अपने को कार्यभार से मुक्त करके सामाजिक, राष्ट्रीय व धार्मिक संस्थाओं से जुडने का निर्णय ले लिया एवं तभी से वनवासी कल्याण आश्रम, सेवाभारती एवं पुष्टीमार्गीय संप्रदाय के विभिन्न आयोजनों एवं उत्सवों में सक्रियता से भाग लेना प्रारंभ कर दिया।

श्री विष्णु स्वामी संप्रदाय प्रवर्तित आचार्य चरण श्रीमद वल्लभाचार्य जी ने शुद्धाद्वैत के रूप में हमें जीवन दर्शन दिया है। आपके पूर्व के आचार्यों ने अपने अपने संप्रदाय, ब्रह्म सूत्र, वेद व गीता पर आधारित विचार रखे है। आचार्य चरण ने इन तीन के साथ श्रीमद् भागवत महापुराण को लिया है। इसमें वर्ण, जाति, लिंग भेद को स्थान नही दिया है। प्रत्येक मनुष्य को इस मार्ग में बताये अनुसार सेवा का अधिकार मिला है।

मुझे जीवन में पारिवारिक स्वजनों को साथ लेकर प्रभु सेवा ही सबसे सरल प्रतीत होती है। इसमें साधन भी प्रभु सेवा व फल भी प्रभु सेवा ही है। जीवन कितना शेष है यह तो नही मालूम परंतु अभी जिस हिसाब से प्रभु की चरण वंदना की सेवा मिल रही है, प्रभु से यही प्रार्थना है कि मृत्यु के उपरांत अपनी शरण में रखें। हमारे परिवार के सभी सदस्यगण मेरी पूरी देखभाल करते है और मुझे इस उम्र में क्या चाहिए ? वे समय भी देते है और स्वास्थ्य व अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति भी कर देते है।

जीवन में कुछ घटनायें जिसमें ईश्वर ने स्वयं मदद की संभवतः जीवन अभी तक जीने का यही कारण हो। हाँ एक कार्य जो कि अत्याधिक कठिन लग रहा था, वह प्रभु ने किस प्रकार आनंद पूर्वक संपन्न करा दिया इसकी कल्पना से ही उनकी अपार कृपा का दिग्दर्शन होता है। जून 1967 में कारखाना बंद होने के कारण नौकरी से बाहर हो गया था। उस समय मेरी आयु 38 वर्ष की थी। ज्येष्ठ संतान के रूप में पुत्री थी, इसकी आयु 18 वर्ष की थी। विवाह की चर्चा चल रही थी। मेरे बजट को देखते हुए संबंध में मध्यस्थ व्यक्ति उसे सिर्फ सगाई की राशि कहते थे। उस समय राशन प्रणाली थी, गेहूँ व शक्कर उपलब्ध नही था। संबंध पक्का कर दिया गया व विवाह जुलाई 1967 को सम्पन्न होना निश्चित हुआ। विवाह आनंदपूर्वक कैसे संपन्न हुआ इसकी आज कल्पना भी नही कर सकता। प्रभु ने पग पग पर आने वाली कठिनाईयों को किस प्रकार दूर किया यह वही जाने। मुझे आज भी ऐसा महसूस होता है कि वास्तव में विवाह कार्य स्वयं प्रभु ने पूरा किया है। समाज का जो सहयोग पारिवारिक सदस्यों के रूप में मिला अकथनीय है।

जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है। जीवन और मृत्यु के बीच में मनुष्य जो कार्य करता है, अधिकांशतः पूर्व जन्मों के कर्मानुसार है। प्रभु ने उसे विवेक दिया है और विवेक से वह इस जीवन में जो अच्छे बुरे कार्य करता है वह आगामी जीवन के लिये कर रहा है। हाँ प्रभु ने इतनी बडी कृपा इस कलयुग में की है कि जो उसकी शरण में चला जाता है तथा ईश्वर को केंद्र बिंदु में रखकर कार्य करता है, कर्म को कर्म के लिये विवेकपूर्वक करता है उसमें विचलित नही होता है एवं उन्हें ईश्वरीय कार्य समझकर करता है उसके इस भक्तिपूर्वक किये गये कार्य को ईश्वर स्वीकार करता है, जिसकी विस्तृत मीमांसा गीताजी के योगक्षेम के अंतर्गत की गई है।

आज समाज का दृष्टिकोण बदल गया है। पहले यह समाज पूर्णरूप से सेवा भावी था किंतु आज पद की प्रतिष्ठा बन गई है। यद्यपि पदेन अधिकारी, अपने आपको सेवक अवश्य कहते है किंतु वास्तविकता कुछ और है, इसमें कुछ व्यक्ति अपवाद रूप में आज भी समाज सेवा में लगे हुए है, फलस्वरूप उच्चाधिकारी ऐसे व्यक्तियों को महत्व भी देते है।

जहाँ तक समाज के लिये मार्ग दर्शन का प्रश्न है आज मशीनी युग है। साथ ही शैक्षणिक स्तर भी बढा है। अंतर्जातीय विवाह आम बात हो गई है। इससे अब बहुत कम परिवारों में पुराना कल्चर बचा हुआ है। यह अब शनैः शनैः आगे बढता जायेगा व इसे स्वीकार करना होगा। हमारी आयु के लोगों को उसमें एडजस्ट होना ही उनके लिये श्रेयस्कर है।

वे राष्ट्र की वर्तमान आरक्षण नीति से सहमत नही है। उनका कथन है कि इसके कारण अपेक्षित प्रगति नही हो पा रही है और कुछ राष्ट्र जो हमारे बाद स्वतंत्र हुये थे, हमसे कही आगे बढ गए है। आरक्षण के कारण अयोग्य व्यक्ति, योग्य व्यक्ति का अधिकार छीन रहा है। इससे योग्य व्यक्ति कुंठित होता है और अपनी योग्यतानुसार कार्य ना करके आगे नही बढ पाता है। आज हमारी अनेकों प्रतिभाएँ इसी कारण विदेशो में जा रही हैं। राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं के कारण नेता इस समस्या को दूर भी नही करना चाहते चाहे देश को कितना भी नुकसान पहुँचता रहे। देश में बेरोजगारी बढ रही है और सरकार सेवानिवृत्ति की आयुसीमा बढाती जा रही है जो कि पूर्व में 55 वर्ष थी जिसे बढाकर 62 वर्ष कर दिया गया है।

वे कहते है कि अनेंकों अपराधों की जड मदिरा है जिसका सेवन करके मनुष्य दानव हो जाता है और अवांछनीय कृत्य करता है। मेरा चिंतन है कि यदि व्यक्ति शराब पीना छोड दे अनेकों स्वमेव समाप्त हो जायेंगे। वे वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना को ही अपना जीवन मानते है।

सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कष्चिद् दुखः भाग भवेत्।