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ऐसा हाे तो

कहानी

ऐसा हो तो .........

हरियश राय

बी. ए करने के बाद बैजनाथ को एक मैन्‍यूफैक्‍चरिंग कंपनी में एकाउंटस का काम करने का मौका मिला तो उसने इस मौक़े को अपने हाथ से जाने नहीं दिया. यह उसकी काबलियत के मुताबिक नौकरी थी. पैसे भी उसे ठीक ही मिल रहे थे. नौकरी शुरु करते ही उसे एहसास हो गया था कि इस नौकरी में किसी हुनर की जरूरत नहीं है. उसमें और कोई खास हुनर था भी नहीं. कोई बड़े - बड़े सपने उसने अपने मन में पाले भी नहीं थे और इससे ज्यादा वह चाहता भी नहीं था. ‘हमन को दुनिया से यारी क्या’ की तर्ज पर बैजनाथ मैन्‍यूफैक्‍चरिंग कंपनी में काम करते हुए आराम से अपनी जिंदगी के दिन काटने लगा था.

वह रोज सुबह पाँच बजे उठ जाता और थोड़ी देर बाग़ में सैर करके आता था क्योंकि उसका मानना था कि सुबह की सैर पूरे दिन तरोताजा रखती है और काम में मन भी लगता है. लिहाज़ा वह रोज सुबह उठकर सैर करने के बाद घर आकर आनन - फानन में तैयार होकर अपने काम के लिए सुबह आठ बजे तक निकल जाता. उसकी मां रोज उसके लिए चार फुलके और एक सब्जी उसके टिफिन में रख देती जिसे वह दोपहर के समय बड़े चाव से खाता. रात को आते- आते उसे नौ बज जाते और वह थोड़ी देर टेलीविज़न देखता और दस बजते - बजते वह यह संकल्प करके सो जाता कि सुबह जल्दी उठकर सैर के लिए जाना है . यही दिनचर्या थी उसकी.

बैजनाथ अपनी मां और पिता के साथ दिल्ली के नजफगढ़ इलाक़े में दो कमरों के घर पर रहता था. साठ गज वर्ग मीटर के दायरे में यह घर बना हुआ था जो कि उसके पिता ने किसी से लोन लेकर बनाया था.रिटायरमेंट से पहले उसके पिता ने उसका शुभ विवाह कर दिया था और वह बड़ी सुकून मय जिंदगी बिता रहा था. उसके दो बच्‍चे हुए एक बेटी और एक बेटा . बेटी का नाम प्रियंका रखा और बेटे का नाम राहुल रखा. उम्र बीतने के साथ- साथ उसके दोनों बच्‍चे भी बड़े हो गये. वह अधेड़़ हो चला था. उम्र उसकी पचास साल के लगभग हो गई थी. प्रियंका ने बीए की पढ़ाई पूरी कर एम. बी. ए. में दाखिला ले लिया. यह उसका आखिरी साल था. एक दो महीने में उसका प्लेसमेंट किसी अमरीकी कंपनी में होने वाला था. इसका प्रियंका को पूरा यकीन था और ऐसा ही यकीन बैजनाथ को भी था. उसका बेटा राहुल बारहवीं क्‍लास तक पहुंच कर अपने इंजीनियर बनने के सपने देखने लगा था. सबका जीवन मंथर गति से चल रहा था.

एक दिन शाम को बैजनाथ जब घर आया तो उसका चेहरा उतरा हुआ था. गुमसुम होकर बिना किसी से बात किए अपने कमरे पर जाकर पलंग पर औंधा होकर पसर गया . पत्नी कल्‍पना इस तरह अपने पति को गुमसुम और फिक्रमंद देख घबराई. आज तक ऐसा नहीं हुआ था कि वह पत्नी से बिना कुछ कहे चुपचाप अपने कमरे में चला जाए . बैजनाथ इस कद्र कभी गमगीन नहीं हुआ था जितना कि आज और इस वक्‍त था . पत्नी ने पूछा,’ क्या हुआ आज इस तरह चुपचाप क्‍यों हो. तबियत तो ठीक है ’’
बैजनाथ ने पत्नी की तरफ सूनी आंखों से देखा और कहा ‘कुछ नहीं.’
उसकी आंखों के वीराने पन और चेहरे पर उड़ती हवाईयां को कल्‍पना ने सहज ही समझ लिया था. पच्‍चीस साल हो गये थे उसके साथ रहते हुए. वह उसके हर वाक्य को सुनकर समझ जाती थी कि उसके पति के मन में क्या चल रहा है. उसका कहा गया ‘कुछ नहीं’ बहुत सारगर्भित था. वह इस ‘ कुछ नहीं’ का मतलब समझना चाहती थी. उसने पूछा
‘ कुछ नहीं मतलब.....’
‘मतलब ‘ कुछ नहीं ’. बैजनाथ की उदासीनता ज्‍येां की त्‍यों रही.
‘तो फिर मुंह क्‍यों लटका हुआ है तुम्हारा और इस तरह औंधे क्‍यों पसर गये.’
पत्नी की इस बात पर बैजनाथ झल्ला गया था. बोला ‘’अब तुम्हें क्या बताएं.’’
‘’कुछ बताओ तो सही. बताओगें नहीं तो कैसे पता चलेगा कि बात क्या है. ‘’ कल्‍पना ने भी झल्‍लाकर कहा.

बैजनाथ ने अपनी पत्नी की तरफ निरीह आंखों से देखा और धीरे से कहा-
‘’ सरदार जी कहते हैं कि धंधा मंदा हो गया है. कंपनी के लिए नया बिजनिस लेकर आओ.’

कहकर बैजनाथ चुप हो गया और निर्विकार भाव से अपनी पत्नी के चेहरे को देखने लगा गोया कह रहा हो भारी मुसीबत आने वाली है. सरदार जी का मतलब मैन्‍यूफैक्‍चरिंग कंपनी के मालिक से था जिसकी नौकरी बैजनाथ ऊर्फ बैजू पिछले पच्‍चीस सालों से कर रहा था. कल्‍पना को उसकी बात की तह तक पहुंचन में कुछ वक्‍त लगा. फिर धीरे - धीरे उसके चेहरे पर उदासी आनी शुरु हुई और थोड़ी देर में उसका चेहरा भी अपने पति बैजनाथ ऊर्फ बैजू की तरह उदास और गमगीन हो गया. कुछ पल के लिए वह चुप रही उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहे. वह बैजू की बात को थोड़ा और तफसील से जानना चाहती थी. पूछा
‘फिर....’
‘ फिर कुछ नहीं’ कहकर बैजनाथ चुप हो गया . पत्नी भी उदास हो गई.

वे दोनों देर तक चुप रहे. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि आगे क्या बात की जाए. बैजनाथ ने अपनी पत्नी के सामने एक अजीब सा मंजर रख दिया था जिसके रहते पूरे घर में मौन के बादल छा गये. बार - बार उसके जेहन में बैजनाथ द्वारा कहे गये सरदार जी के बोल गूंज रहे थे कि धंधा मंदा हो गया है . बैजनाथ कहां से लाए नया बिजनिस . कल्‍पना ने बिना बोले रात का खाना बनाया. बैजनाथ ने चुपचाप एक शब्‍द बोले बिना खा लिया. बच्‍चों से उस दिन किसी ने कोई बात नहीं की. पूरे घर में सन्‍नाटा सा पसरा रहा.

अगले दिन जब बैजनाथ काम पर गया तो सुबह - सुबह सरदार परमिंदर सिंह ने उसे अपने केबिन में बुलाया. सरदार जी ने जब उसे बुलाया तो वह एक दम घबरा सा गया. उसे लगा कि आज कुछ अनहोनी होने वाली है, तभी सरदार जी ने सुबह - सुबह उसे बुलाया है वरना सरदार जी इतनी जल्दी उसे नहीं बुलाते. डरते- डरते उसने सरदार जी के केबिन में कदम रखा तो सरदार जी किसी से फोन पर बात कर रहे थे . वह चुपचाप खड़ा रहा और कातर भाव से सरदार जी को देखने लगा . जब फोन खत्‍म हो गया तो सरदार जी ने कहा . ‘’खलौता क्‍यों ऐं, बै जा.’’

वह सहमते - सहमते उनके सामने रखी कुर्सी पर बैठ गया. पहले कई बार वह बेतकल्लुफी से इस कुर्सी पर बैठा था, पर आज के बैठने और पहले के बैठने में जमीन आसमान का फर्क था. सरदार जी ने उसकी तरफ मुखातिब होकर कहा ,’’ देखो जी, पिछले कुछ टेम ता कंपनी दा कम्‍म काफी ठंडा पै गया ए. हुण तैनू कंपनी आस्‍ते नवाँ बिजनिस ल्‍याणा पयेगा.’’

कहकर सरदार जी चुप हो गये और उसकी तरफ एक - टक देखने लगे. उनकी बड़ी सी दाढ़ी बैजनाथ को बड़ी डरावनी लग रही थी .एक सिहरन सी दौड़ गई उसके शरीर में. पहले तो बैजनाथ को सरदार जी के इस वाक्य का मतलब समझ में ही नहीं आया लेकिन जब कुछ पल गुजर गये और सरदार जी के इस वाक्य का एक - एक शब्‍द हथौड़े की तरह उसके दिमाग में बजने लगा तो उसे महसूस हुआ जैसे उसे किसी ने तपते रेगिस्तान में खड़ा कर दिया गया हो, जहां पाँव के नीचे सुलगती रेत है और ऊपर आग बरसाती सूर्य की किरणें.
‘ जी की क्या तुसी .... ?’’ उसके मुंह से ये शब्‍द बहुत मुश्किल से निकले थे.
‘’देख बैजनाथ, आज्‍ज कल बिजनिस बहुत ठंडा हो गया ए . तैनू ते पता ही ए कि आज्‍जकल प्रोडक्‍शन एक दम ठप्‍प हो गया है . पैल्‍ले असी रोज पंज सो टूटियां बणादें सी. आज्‍ज घट्ट कै सौ वी नई बणा रहे आं. सानूं आर्डर मिलने ई बंद हो गए ने, जेड़ी पार्टी साडा माल चुकदी सी, उन्‍ने वी मना कर दित्‍ता ए होर मॉल लैण वास्‍ते.’’
सरदार जी ने उसे समझाने की कोशिश की कि उसे क्‍यों नया बिजनिस लाने के लिए कहा जा रहा है. बैजनाथ की समझ में कुछ - कुछ तो बहुत दिनों से आ रहा था. वह भी कंपनी को पहचानता था. उसने इस कंपनी को छोटी से बड़ी होते देखा था. बहुत सारे उतार चढ़ाव सहने के बाद भी यह कंपनी मजबूती से खड़ी रही. सरदार जी ने कभी उससे ऐसी बात नहीं की जैसी आज कर रहे हैं.
‘’क्‍यों, क्‍यों मना कर दिया.’’ बैजनाथ की जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी.
‘’कैंदे ने पैमैंट नई आ रई . सारा कंस्‍ट्रक्‍शन ठप्‍प हो गया ऐ. ते होर माल लै कै की करांगे ? साडी पैल्‍ले दिया पैमंटा वी अटकी हुइंया ने . हुण तू ए दफ्तर दा कम्‍म छड्ड, ते बार निकलया कर, चावड़ी बाजार विच जाया कर. उत्‍थे वडियां वडियां दुकाना हैगियां ने . तू दुकान दुकान जा, ते आर्डर ले के आ. तां तै कम्‍म्‍ चलेगा नईं ता तू कंपनी बंद ई समझ. मैं सारयां नू अइयों आख्‍या ऐ ‘’ सरदार परमिंदर सिंह ने आज अपनी बात दो टूक शब्‍दों में बैजनाथ को फिर से समझा दी.
यह तो बैजनाथ भी जानता था कि कम से कम नलों के हजार डिब्बे तैयार होकर गोदाम में पड़े हैं. सरदार जी कहीं नहीं भेज रहे. पिछले दो महीने से कुछ लोगों को तनखाह भी नहीं मिली थी. कंपनी में पैसा नहीं आ रहा है. एकाउंटस का काम वही देखता था. उसे यह भी पता था कि पिछले छ: महीने से कंपनी की ओर से भेजे गये माल का भुगतान नहीं आया.
‘’ मैं ते कदी मार्केट विच गया ई नईं.’’ बैजनाथ ने सरदार जी से कहा.
कहते - कहते वह गंभीर हो गया. ऐसी गंभीरता पहले कभी नहीं आई थी.
‘’पैल्‍ले नईं गया ते हुण जा. कम्‍म नईं वदया, ते अगले महीने तनख़ाह नहीं दे सकदा मैं तैनूं.’’ सरदार जी ने तकरीबन डाँटते हुए उससे कहा.

सरदार जी से यह सुनकर बैजनाथ के पैरों के नीचे से जमीन ही खिसक गई. पिछले पच्‍चीस साल से वह इस कंपनी में काम कर रहा था. पर कभी सरदार जी ने उससे न तो इस तरह बात की और न ही ऊंचे स्‍वर में बोले. सरदार जी सबसे ज्यादा उसी पर यकीन करते थे. वह उनके परिवार के सदस्‍य की तरह था. आज सरदार जी को इस तरह ऊंचे स्‍वर में बोलते देख वह भीतर तक हिल गया था. अगले महीने तनख़ाह नहीं मिलेगी तो बड़ी मुश्किल हो जायेगी. अभी तो राहुल और प्रियंका पढ़ ही रहे हैं. उनकी पढ़ाई कैसे पूरी होगी, उनका खर्चा कैसे पूरा होगा. सवालों के भँवर में फंस गया बैजनाथ.

पर बैजनाथ कैसे बढ़ाए सरदार परमिंदर सिंह का धंधा. आये दिन ख़बरें आ रही थीं कि जब से नया निजाम आया है, हर तरफ अफरा - तफरी मची हुई थी. छोटे- मोटे कारोबारियों का कारोबार बंद होने के कगार पर था. उनका पहले का माल ही नहीं बिक रहा था, उन कारोबारियों ने और माल बनाना बंद कर दिया. जो कुछ हो रहा था उसे देखकर बैजनाथ हैरान रह गया था. रोज ऐसे किस्से सुनता था कि आज फला की नौकरी छूट गई . नौकरी न होने से आज फला ने जहर खा लिया. पहले लोगों की लगी लगाई नौकरियां नहीं जाती थीं. पर अब ऐसे मंजर आ गये थे कि कंपनियां बद होने लगी थीं और जो लोग बीस - पच्‍चीस साल से नौकरी कर रहे थे, वे एकाएक बेरोजगार हो गये थे. वह सोच में पड़ गया कि कैसे बढ़ाए सरदार जी जैसे बड़े – बड़े लोगों का धंधा.

अगले दिन जब बैजनाथ दफ्तर जाने लगा तो पत्नी कल्‍पना ने रास्‍ता सुझाते हुए कहा ,’’ ऐसा करो कि तुम किसी दूसरी कंपनी में काम ढूंढ लो, पच्‍चीस साल से एकाउंटस का एक्‍सपीरियैंस है तुम्हें .कहीं न कहीं तो तुम्‍हें दूसरी नौकरी मिल ही जायेगी. मायापुरी में ऐसी बहुत सारी कंपनियां हैं. इससे पहले कि सरदारजी जी की कंपनी बंद हो, तुम खुद ही अपना हिसाब करके बाहर निकल जाओ.‘

बैजनाथ को यह विचार पसंद आया. वह भी ऐसा ही सोच रहा था. वह मकानों में लगने वाले पाइप बनाने वाली कंपनी के मालिक को जानता था. वे अक्‍सर सरदार परमिंदर सिंह जी के पास आते थे. सोचा उसने वहां जाकर बात करने में क्या हर्ज है. इसलिए अगले दिन सुबह सवेरे ही वह मायापुरी इलाक़े में मौजूद उनके आफिस पहुंच गया. उसे देखकर हैरानी हुई कि उस आफिस में ज्यादातर कुर्सियां खाली थीं. जहां तक उसे पता था करीब बीस पच्‍चीस लोग इस आफिस में काम करते थे, आज सिर्फ दो- तीन ही दिखाई दे रहे थे. वह समझ नहीं सका कि माजरा क्या है. वहां कंप्यूटर पर तीस- पैंतीस साल का एक आदमी कुछ काम कर रहा था. उसने उस आदमी से पूछा,’’ क्‍यों भैया, आज आफिस में कोई नहीं आया.’’

उस आदमी ने कम्‍प्‍यूटर स्‍क्रीन पर से अपनी नजरें हटाते हुए कहा ‘’ नहीं, आये तो हैं . कहिए, क्या काम है.’’
वह उससे क्या बताता कि वह किस काम से यहां आया है .कहा,’’ नहीं, कोई काम तो नहीं है ढेर सारी कुर्सियां खाली दिखाई दे रही हैं इसलिए मैंने पूछा.
उस आदमी ने बैजनाथ की तरफ ध्यान से देखा और कहा,’’ भाई साहब यह कंपनी अब बंद हो रही है . कहिए क्या काम है आपको ’’
यह सुनते ही एक ऐसा तेज झटका लगा बैजनाथ को जो उसकी सहन शक्ति के बाहर था. किसी तरह अपने आप को सँभाला.
‘’ बंद हो रही है मतलब.’’ एकाएक उसके चेहरे पर घबराहट सी आ गई थी. वह तो यहां अपने लिए काम मांगने आया था और यह कह रहा है कि कंपनी बंद हो रही है.
‘क्‍यों... क्‍यों बंद हो रही है.’’उसने घबराए स्‍वर में पूछा.
‘’ अब आपके इस सवाल का जवाब मेरे जैसा अदना आदमी तो नहीं दे सकता पर इतना पता है कि कंपनी बंद हो रही है.’’ उस आदमी ने फिर कहा .
‘’ पर आपको पता तो होगा ही.’’
बैजनाथ को इस तरह सवाल पूछते देख वह आदमी हैरान रह गया. बोला, ‘’ कंपनी में कोई काम नहीं बचा. सभी लोग यह कंपनी छोड़कर चले गये. बस मैं ही बचा हूं.’’
‘ क्‍यों छोड़ दी लोगों ने कंपनी ? ‘ बैजनाथ ने जानना चाहा .
‘’ छोड़ें न, तो क्या करें. छ: छ: महीनों से मुलाज़िमों को तनखाह नहीं मिली . बिना तनखाह के कोई कैसे काम कर सकता है. ’’ .उसने बताया.
यह बैजनाथ के लिए चौंकाने वाली खबर थी. उसे बात समझते देर नहीं लगी जो आग उसकी कंपनी में लगी थी, वही आग यहां भी है.
‘ अच्‍छा. छ: महीने से तनखाह नहीं मिली ? ’ बैजनाथ मायूस हो गया .
‘’ आपको कुछ काम था यहां.’’ उस आदमी ने पूछा.
‘’ नहीं ,कोई काम नहीं था.’’ बैजनाथ ने कहा और उल्‍टे पाँव वापस चला आया.

उसे अब समझ आया कि लगातार अखबारों में जो ख़बरें आ रही थीं ,उन खबरों का क्या मतलब है. लेकिन वह यह भी देख रहा था कि उसके अपने नजफगढ़ इलाक़े में बड़ी- बड़ी बिल्डिगें बन रही हैं. जहां एक - एक फ्लैट की कीमत कई करोड़ है. करोड़ों में क्रिकेट खिलाड़ी बिक रहे है. बड़ी- बड़ी कारों की बिक्री लगातार बढ़ रही है. आये दिन फाइव स्‍टार होटल खड़े हो रहें हैं. उसके मन में विचार आया कि वे कौन लोग हैं जो करोड़ों के घर ख़रीदते हैं, जो फाइव‍ स्‍टार होटलों में आकर ठहरते हैं, जो क्रिकेट के खिलाडि़यों को करोड़ों- करोड़ रुपयों में ख़रीदते हैं.

उस दिन के बाद से एक डर सा उसके मन में समा गया था. वह रोज सहमते - सहमते अपनी कंपनी पहुंचता. मन में हजार आशंकाएं जन्‍म लेती न जाने आज सरदार जी क्या कहें. उसने सरदारजी से मिलने की ठानी सोचा उसने मैं सरदार जी से मिलकर अपनी बात कहूँगा .कहूंगा कि उसे वह आधी तनखाह पर भी काम करने के लिए तैयार है पर उसे काम से अलग न करे . लेकिन सरदार जी उसे मिले नहीं. वह रोज सरदार जी से मिलकर अपने मन की बात कहना चाह रहा था लेकिन सरदार जी उसे मिल नहीं रहें थे. उसने पता किया तो मालूम चला कि सरदार जी कई दिनों से कंपनी में आ ही नहीं रहें है.

एक दिन जब वह अपने आफिस पहुंचा तो देखा कि आफिस के सारे लोग एक जगह इकट्ठा हो गये थे और सबके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं.
‘’ क्या हुआ, आप लोग इस तरह से क्‍यों इकट्ठा हो गये हैं.’’ उसने घबराहट से एक से पूछा.
जिस आदमी से उसने पूछा था, उसने उसकी तरफ ऐसे देखा गोया बैजनाथ ने कोई बे- सिर पैर का सवाल पूछ लिया हो.
‘’ तुम्हें नहीं पता.’
‘’ नहीं.... ‘
‘’ तुम को किसी ने कुछ नहीं बताया.’’
‘’नहीं, मुझे तो किसी ने कुछ नहीं बताया. आखिर बात क्या है.’’ उसकी घबराहट बढ़ती जा रही थीं.
‘’ सरदार जी यह कंपनी बंद कर रहे हैं. ’’
यह वाक्य बैजनाथ को ऐसे लगा जैसे कोई भारी भूकंप‍ आ गया हो.
‘’ बंद कर रहे हैं मतलब......
‘’ मतलब बंद कर रहे हैं.’’
उसे इस सच्‍चाई को अपने जेहन में उतारते हुए काफी वक्‍त लगा कि अब यह कंपनी बंद हो रही है और उसकी नौकरी खत्‍म हो रही है .
‘’तो हम लोग क्या करेंगे .हमारी तनख़ाह तो मिलेगी न ! ..... उसने घबराए स्‍वर में पूछा.
‘’ यही हम लोगों ने सरदार जी से कहा तो उन्‍होंने कहा कि हमें देने के लिए उनके पास पैसे नहीं हैa. सरदार जी खुद अपने भाई के पास कनाडा जा रहे हैa. हम सबको कोई और काम ढूंढने के लिए कह दिया है.’’
यह उसके लिए सबसे दारुण खबर थी.

अब बैजनाथ पचास साल की उम्र में कहां दूसरी नौकरी की तलाश करे. कौन देगा उसे नौकरी. नौजवान लड़कों को नौकरियां नहीं मिल रही हैं .पचास साल की उम्र के आदमी को कौन नौकरी पर रखेगा. उसके लिए अधेड़ावस्‍था में बेरोजगार होना युवा अवस्था में बेरोजगार होने से कहीं ज्यादा घातक था. आये दिन तो अखबारों में पढ़ता रहता है कि एक नौकरी के लिए लाखों लोग एप्‍लाई करते हैं. चपरासी जैसे पोस्‍ट के लिए तो एम.ए, पीएचडी किये हुए लड़के एप्‍लाई करते हैं. खुद उसके अपने घर में जो लड़की झाड़ू - पोचा करती है, वह बी. ए. पास है.

अब बैजनाथ अपने लिए काम मांगने के लिए कहां भटके. वह कई लोगों के पास गया. जहां जरा सी भी उम्मीद बनती ,वह दौड़ा चला जाता. लेकिन कहीं कोई काम नहीं बन रहा था. पचास साल के आदमी को कौन काम पर रखेगा. पच्‍चीस सालों की नौकरी में जो कुछ जमा था सब खर्च हो रहा था . पर बैजनाथ निराश नहीं था. उसे पता था. उसकी बेटी प्रियंका का एमबीए का यह फाइनल ईयर है और दो- तीन महीने में उसका प्लेसमेंट किसी मल्‍टीनेशनल कंपनी में होने वाला है. वह कई बार बता चुकी थी कि पिछले साल ज्यादातर बच्‍चों को अमेरिका की कंपनियां ने अच्छी खासी सैलरी में अपने यहां नौकरी पर रख लिया था. उसे भी एमबीए पूरा होने के बाद लखटकिया सैलरी की उम्मीद थी.

लेकिन जब प्लेसमेंट का वक्‍त आया तो प्रियंका के कालेज में कोई भी कंपनी नहीं आई नौकरी देने. बैजनाथ के लिए यह खबर जान लेवा थी. उसे अंदाजा नहीं था लाखों की फीस भरने के बाद भी उसकी बेटी को नौकरी नहीं मिलेगी. वह इस हकीकत को बर्दाश्त‍ नहीं कर पा रहा था. उस रात उसने इधर उधर करवटें बदलकर ही गुज़ारी. अगले दिन जब प्रियंका कॉलेज जाने लगी तो बैजनाथ ने घबराते हुए उससे कहा ‘’ क्या अब प्लेसमेंट की कोई उम्मीद नहीं है .’’
‘’नहीं, पापा ऐसा नहीं है. अभी उम्मीद बाकी है. लेकिन पिछले साल बहुत सारी आई थीं पर इस साल कोई कंपनी नहीं आ रही है. शायद अगले हफते कुछ और आएं.

आठ दस दिन इंतजार करने के बाद बैजनाथ ने प्रियंका से पूछा कि ‘’बेटा, प्लेसमेंट का क्या हुआ’’?

तो प्रियंका का मुंह लटक गया. गोया उससे कोई भारी अपराध हो गया हो. अपनी बेटी के लटके मुंह को देखकर बैजनाथ बहुत कुछ समझ गया था. उसने केवल इतना कहा था,’’ कोई बात नहीं बेटा, कोई न कोई रास्‍ता जरूर निकलेगा .’’
पर उसके सामने ढेरों सवाल उभर थे. उसका लोन कैसे चुकता होगा. कुछ महीनो में उसके लोन की किस्त भी शुरु हो जायेगी. घर गिरवी रखकर उसने बैंक वालों से लोन लिया था. कहीं ऐसा तो नहीं कि बैंक वाले उसके घर पर कब्जा कर लें. एक अज्ञात डर बैजनाथ के मन में समा गया .उसे कोई रास्‍ता नहीं समझ रहा था.

एक दिन शाम के समय बैजनाथ नजफगढ़ में घर के आगे खड़ा आते -जाते लोगों को निहार रहा था कि एक बाइक उसके सामने आकर रुक गई . बाइक सवार को वह पहचान नहीं पाया . हेलमेट पहन रखा था उसने. जब उसने हेलमेट उतारा तो बैजनाथ ने देखा कि अरे, यह तो उसका अपना बेटा राहुल है.
‘’अरे बेटा, तुम.... यह बाइक किसकी है?’’
‘’मेरी है.’’
‘’मेरी है मतलब.’’
‘’मेरी है मतलब मेरी है. कंपनी वालों ने दी है.’ उसने दोबारा कहा.
‘’कंपनी वालों ने, कौन सी कंपनी वालों ने .....’’
‘’पापा, आज से मैने एक डिलीवरी कंपनी ज्वाइन कर ली है और यह बाइक उन्‍होंने ही दी है.’’
हैरान रह गये बैजनाथ अपने बेटे राहुल से यह सुनकर.
‘’हां, पापा, डिलीवरी कंपनी में मुझे काम मिल गया है. अब मैं खाने की डिलीवरी किया करुंगा .हर डिलीवरी में पचास रुपये कमीशन मिला करेगा और पापा, यदि रोज बीस घरों में भी डिलीवरी कर दिया करुँ तो मैं हजार रुपये रोज कमा लूंगा . पापा, हजार रुपये.’’ उसके स्‍वर में उत्साह था और चेहरे पर खुशी .
‘’और तुम्‍हारी पढ़ाई .’’
‘’वह बाद में कर लूंगा .अभी कुछ कमा लूं. और फिर पढ़ने के बाद दीदी को कौन सी नौकरी मिल गई जो मुझे मिल जायेगी.’’ उसने लापरवाही से कहा और घर के अंदर चला गया.

यदि बैजनाथ ने अपने घर के दरवाजे का सहारा न लिया होता तो धड़ाम से फर्श पर गिर जाता .इस तरह उसके सपने हवा में तितर-बितर हो जायेंगे, उसके हिस्से की हर खुशी कम होती जाएगी( उसने कभी सोचा भी न था. उसे लगा कि उसका वजूद ही धीरे - धीरे खत्‍म हो रहा है . पहले उसके अपने सपने तबाह हुए, फिर बच्‍चों के . कैसे जिएंगें ? उसका दिन का चैन और रातों की नींद गायब हो चुकी थी . समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे ? बौरा सा गया था बैजनाथ.

एक दिन अल्‍ल सुबह बाग़ में टहलते हुए बैजनाथ ने अपनी व्यथा – कथा अपने सैर करने वाले एक साथी गोपाल राठी को बताई और अपने लिए कोई काम तलाश करने की गुजारिश की. बाग में जब भी राठी उसे मिल जाता था तो वह उससे कतरा कर निकल जाता था. उसे पता था कि यह राठी ज़मीनों की दलाली का काम करता है. राठी उसे पसंद नहीं था .पर कोई रास्‍ता न निकलते देख उसने राठी को इस उम्मीद से अपनी कथा सुनाई कि शायद यह कोई रास्‍ता बता दे. राठी ने बाग़ में चलते - चलते उसकी राम कथा सुनी और कहा ‘’ इसमें घबराण नी की बात से, घणें काम सै करण वास्तै.’’
‘’ वो तो ठीक है राठी साहब. ऐसा काम बताओ जो मैं इस उम्र में भी कर सकूं .’’ बैजनाथ ने अपनी आवाज में दयनीयता पैदा करते हुए कहा .
‘’काम तो तू सारे ही कर सकै है.’’ राठी ने चलते- चलते कहा.
‘’आपकी नजर में कोई ऐसा काम हो तो बताओ.’’
‘’देख भाई चुनाव आण वाले हैं. निगम के. अपणा चौधरी रणवीर सिंह खड़ा हो रैया है .तू उसके पास दौड़ जा . कोई न कोई काम दे देवेगा तने.’’ राठी ने रास्‍ता सुझाया.
‘’ कौन चौधरी रणवीर सिंह, वो जिनका दारु का ठेका है.’’
‘’ हाँ, वही चौधरी रणवीर. वो भी सैर को आता है. देख कदे आज आया होय. कर लेणा बात उससे.’’ राठी ने इधर- उधर नजरें दौड़ाते हुए कहा.
राठी को चौधरी कहीं नहीं दिखाई दिया फिर बैजनाथ से कहा,’’ आत्‍ता तो है. पण आज लगता है आया कौनी. मैं भी के दूंगा उनने. मणे तो शाम को रोज मिलै है.’’
डूबते को तिनके का सहारा. बैजनाथ यही तो चाहता था.
उस दिन से वह रोज जल्दी बाग़ में आ जाता ओर देर तक बाग़ में चौधरी रणवीर सिंह का इंतजार करता. पर रणवीर सिंह से उसकी मुलाकात नहीं होती. उसे पूरा यकीन था कि रणवीर सिंह चौधरी उसे कोई न कोई काम दिला देगा और उसकी रुकी हुई गाड़ी फिर से पटरी पर आ जायेगी. पर चौधरी अपने चुनाव के कामों में इस कद्र उलझ गया था कि उसे सैर करने की फुर्सत ही नहीं मिलती थी .लंबे समय तक बेरोजगार होने के कारण बैजनाथ पूरी तरह से हार चुका था. वह अपने आप को अपने परिवार अपनी सोसायटी से बाहर समझने लगा था. उसकी नींद उड़ चुकी थी. सोने की कोशिश करता पर नींद तो नहीं आती तमाम किस्म के ख्याल उसके जेहन में उमड़ते रहते. उसकी उम्र के हज़ारों लोगों की नौकरियां खत्‍म हो गईं . अब इस उम्र में कौन नौकरी देगा .हज़ारों लोग काम की तलाश में इधर से उधर ,उधर से इधर भटक रहे हैं. लोग अपना शहर छोड़ रहे हैं, अपना देश छोड़ रहे हैं कि कहीं कोई काम मिले.

जब चौधरी रणवीर सिंह सुबह की सैर के लिए नहीं आया और बैजनाथ रोज उसका इंतजार करते- करते थक गया तो एक दिन बैजनाथ पहुंच गया चौधरी रणवीर सिंह के ठेके पर. चौधरी रणवीर सिंह ठेके पर ही मिल गया. लंबा सा आदमी था चौधरी रणवीर सिंह. सर पर हमेशा सफेद रंग का साफा बांधे रहता था और चेहरे पर यह भाव हमेशा रहता था कि दुनिया तो म्‍हारे कहणे से चलै है. बैजू को देखते ही बोला ‘’आ भई आ बैजनाथ, आज कैसे आ लिया इधर.’’ .
‘’ बस चौधरी साहब आपके दर्शन के लिए आया था.’ उसने कहा.
‘’दर्शन - वर्शन तो ठीक सै. मुझे पता है तू काम के वास्तै आया है. कै काम करेगा तू.’’

चौधरी से अपने लिए तू का संबोधन सुनते ही बैजनाथ के मन में खलबली सी मच गई. पचास की उम्र हो आई थी. भले ही उसके पास कोई काम नहीं था लेकिन कोई उसे तू कहकर नहीं बुलाता था . लोग उसे बैजनाथ जी या बैजनाथ अंकल कहकर ही मुखातिब होते थे. कोई तू नहीं कहता. उसके आत्मसम्मान को ठेस लगी. मन मसोस कर रह गया लेकिन वह चौधरी के पास काम मांगने आया था. तहजीब से बोला, ‘’ जो काम आप बताएं मैं कर लूंगा.’’
‘’ देख अभी तो कोई काम है नहीं मेरे पास . एक बार कारपोरेटर का चुनाव जीत गया न, तो कुछ कर दूंगा थारे वास्तै.’’
‘’ चुनाव तो जीतेगें ही.’’
‘’ हां जीतनो तो पड़गो ही.’’ चौधरी कुछ सोच में पड़ गया फिर बोला ‘ तू ऐसा कर ये परचे ले जा और इसे नजफगढ़ के हर घर में बांट दे.’’
चौधरी रणवीर सिंह ने अपने चुनावी पोस्‍टर के एक ढेर की ओर इशारा किया और कहा,’’ इबके बार मैं जीत गया न तो तुझे दारु की दुकाण में बिठा दूंगा.’’
‘’ दारु की दुकान’’ ? बैजनाथ कुछ समझ नहीं पाया.
‘’हां दारु की दुकाण. एक और ठेके की एप्लीकेशन डाल रखी है. कारपोरेटर बणते ही अपने नाम से एक ठेका एलाट हो जायेगा . तब तू सारा दिन बैठकर दारु बेचा कर. अब तू जादा मेरा टैम खराब न कर. चल उठा पोस्‍टर और लग जा काम पे .’’
‘ जी, अच्‍छा. बैजनाथ ने कहा दारु की दुकान के अंदर पोस्‍टर उठाने के लिए आगे बढ़ा. पर पता नहीं क्या हुआ उसके पैर दुकान के अंदर जाने की बजाए बाहर की ओर आ गये. दुकान के बाहर आते ही वह तेज कदमों से अपने घर की ओर जाने लगा

उसे बाहर जाता देख चौधरी रणवीर सिंह ने ऊंची आवाज में कहा. ‘’ ओए बैजनाथ कै हो गया भाई .’’

लेकिन बैजनाथ ने उसकी आवाज नहीं सुनी. वह तेज –तेज क़दमों से चलने लगा. उसके सारे सपने टूट कर बिखर चुके थे . सपने क्या जिंदगी ही टूटकर बिखर गई थी. यह नये युग की धूल भरी नई हवाएं थीं , चौधरी रणवीर सिंह के ठेके से बाहर निकलते वक्‍त उसके दिल से यह भी आवाज आ रही थी कि दारु का ठेका लेने के लिए बेचैन चौधरी रणवीर सिंह चुनाव न जीते तो बेहतर है. यदि ऐसा हो तो बहुत अच्‍छा होगा .

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हरियश राय
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