Udaan, prem sangharsh aur safalta ki kahaani - 8 books and stories free download online pdf in Hindi

उड़ान, प्रेम संघर्ष और सफलता की कहानी - अध्याय-8

वह उठा तैयार हुआ और रायपुर की ओर निकल पड़ा। वह 10:30 बजे ही उनके घर के आस-पास ही पहुँच गया था। परंतु एक घंटे तक वहीं घर के आस-पास घूमता रहा। उसकी जान अटकी हुई थी कि क्या होगा ? बार-बार घर की ओर जाने की हिम्मत करता फिर रूक जाता। जब 12 बजने में सिर्फ 10 मिनट रह गये थे तब उसको अनु का ख्याल आया कि वह कुछ गलत हरकत ना कर ले इसलिए फाईनली घर के बाहर पहुँच गया। उसकी मनःस्थिति चरम पर थी पर उसके हाथ में कुछ नहीं था। उसने घंटी बजाई अनु का छोटा भाई बाहर निकला और बोला अंदर आईये। वो अंदर गया और सबको देखा कि घर पर कौन-कौन था कहाँ पर बैठे हैं। उसका दिल जोर-जोर से धड़का रहा था। पर अब तो वह घर के अंदर आ गया था। अतः उसे तो बोलना ही था। उनके पिता नीचे चटाई पर बैठे थे। अनु भी वहीं आकर बेड पर बैठ गई। उसकी माता भाई सभी वहीं आकर बैठ गए।
आओ बैठो। अनु के पिता ने कहा।
जी।
क्या कर रहे हो आजकल ?
जी अभी दुर्ग में रह रहा हूँ।
बताओ क्या बात करना चाहते हो अनु कह रही थी। तुम्हें कुछ बात करनी है।
प्रथम का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। सांस भी तेज चल रही थी। एक मिनट के लिए उसने गहरी साँस ली और बोला।
अंकल मैं कुछ हिम्मत करके आपसे माँगने आया हूँ, आपसे प्रार्थना है कि आप नाराज नहीं होंगे और मेरी बात शांति से सुनेंगे।
हाँ बताओ क्या बोलना है।
आप अनु के लिए तो लड़के देख ही रहे हैं।
तो ?
मैं कह रहा था अंकल। प्रथम चुप हो गया।
हाँ बोलो ?
मैं कह रहा था अंकल कि मैं आपकी बेटी से शादी करना चाहता हूँ। प्रथम का दिल चरम पर धड़कने लगा आखिर उसने बोल ही दिया जो बोलने आया था।
क्या बोले ?
मैं कह रहा था अंकल कि मैं अनु से शादी करना चाहता हूँ।
अनु का भाई उठकर खड़ा हा गया। प्रथम एकदम डर गया। उसे लगा वो उसे आकर मार ही देगा। अनु बीच में बोली, तू नीचे बैठ मैं बोल रही हू ना तू नीचे बैठ, पापा को बात करने दे।
उसके पापा जोर-जोर से रोने लगे।
तू चुप कर तेरी वजह से पापा का ये हाल हो रहा है। छोड़ मुझे, छोड़ दे। अनु का भाई चिल्लाया।
बंटी तू बैठ जा। अनु के पिता बोले - मेरा ही नसीब खराब है लगता है अपने बच्चों की परवरिश ठीक से नहीं कर पाया। तुम लोग मुझे मार क्यों नहीं डालते। तुम लोगों को इतने अच्छे से पाल पोसकर बड़ा किया और तुम्ही लोग अब समाज में मुझे बदनाम करना चाहते हो। क्या बिगाड़ा हूँ तुम लोगों का हाँ बेटा बताओं क्या बिगाड़ा हूँ, तुम लोगों का।
पापा प्रथम अच्छा लड़का है। अनु ने कहा।
पर दूसरे समाज का तो है। तुमको अपने समाज में कोई मिला नहीं ?
मुझे तो समाज और जाति की समझ नहीं थी पापा। जो मिला वो बता रही हूँ।
अरे मैं देख रहा था तुम्हारे लिए लड़के एक से बढ़कर एक, सरकारी नौकरी वाले उसमें क्या दिक्कत थी।
कोई दिक्कत नहीं थी पापा। बस इतनी ही दिक्कत थी कि मैं उनसे पहले मिल ली अनु ने कहा।
आप इनके लिए मानेंगे तभी हम लोग शादी करेंगे। पापा अन्यथा मैं शादी ही नहीं करूंगी।
कितनी कमाता है ये भला, कि तुमको ले जाना चाहता है।
जी अंकल साढ़े तीन हजार।
बस और कुछ बचा कर रखे हो बैंक में।
नहीं अंकल।
तो कैसे पालोगे मेरी बेटी को।
ठीक से रखूँगा अंकल आप चिंता मत करिए। प्रथम बोला।
कैसे ठीक से रखोगे, खुद का तो रहने खाने का ठिकाना नहीं है तुम्हारा।
ऐसी बात नहीं है अंकल। अब मैं एक जगह रूक गया हूँ।
वहीं रहते-रहते एग्जाम की तैयारी करूंगा।
तो क्या ऐसे ही परेशानियों में डाल दूं, अपनी बेटी को ?
मैं ऐसा नही कह रहा हूं अंकल, पर आप मुझ पर भरोसा कर सकते हैं। अब प्रथम में थोड़ी हिम्मत आ गई थी।
मैं कुछ नहीं बोल सकता अभी। तुम जाओं यहाँ से, पहले अच्छी नौकरी ढूँढो फिर मै विचार करूंगा। उनके पिता ने कहा।
अंकल मैं प्रार्थना करता हूँ कि इस संबंध में अनु को कुछ ना कहे। अगर आपको ये गलत लगता है तो सारी गलती मेरी है। मैं हाथ जोड़कर आपसे माॅफी मांगता हूँ। पर मैं अनु के बगैर नहीं रह पाऊँगा। प्लीज, प्लीज अंकल एक बार मेरे विषय में विचार करिए। ठीक है अंकल मैं जाता हूँ, यहाँ से।
प्रथम बाहर निकला तो सिर्फ अनु बाहर आई छोड़ने के लिए।
तुम्हें तो बहुत अच्छे से आता है अपनी बात मनवाना। प्रथम ने अनु से कहा।
अब थोड़ा धैर्य रखो और ऐसी वैसी कोई हरकत करने की जरूरत नहीं है। तुम्हारे पापा को मालूम है कि वो तुम पर जोर जबरदस्ती नहीं कर सकते। इसलिए थोड़े दिन चुपचाप बैठो और मुझे बताना मेरे जाने के बाद क्या हुआ।
अब तुम अंदर जाओ। मैं दुर्ग जा रहा हूँ , प्रथम बोले।
और निकल गया।
अनु अंदर आई तो माहौल एकदम गरम था तेरी हिम्मत कैसे हुई उसको बुलाने की ? अनु का भाई चिल्लाया, मतलब तू छुपछुप कर उससे बात करती है।
हाँ करती हूँ पर मैं पापा का सम्मान करती हूँ करके उसको यहाँ बात करने बुलाई। नहीं तो अगर मैं चाहती तो भाग भी सकती थी।
तेरा क्या भरोसा जब तू इतना कर सकती है तो भाग भी सकती है। भाई बोला।
इसको बोलो पापा कि चुप रहे। मैं आपको बिना बताए नहीं जाऊंगी। आप मान जाओं ना पापा प्लीज। मेरी खुशी के लिए प्लीज।
अनु के पिता चुप थे।
थोड़ी देर बाद बोले तुम लोग चुप रहो और जाओं यहाँ से। मैं अभी बात नहीं करना चाहता। प्लीज जाओ।
सभी चुपचाप अपने कमरे में चले गए।
इधर प्रथम भी दुर्ग आ गया और उसकी कोचिंग और कॉलेज की दिनचर्या चलने लगी। महीना खत्म होने पर उसे दोनो ही जगहों से बहुत कम सैलरी मिली थी। क्योंकि दोनो ही जगहों पर उसने 10 दिनों से ज्यादा नहीं पढ़ाया था। परन्तु उसने तय कर रखा था कि वह इन पैसों में से कुछ का बर्तन और राशन खरीद लेगा। कुछ उधारी में और कुछ नगद ऐसे करके उसने एक सिलेण्डर भी ले लिया और घर पर ही खाना बनाना चालू कर दिया।

विवाह:-

अभी 15 ही दिन बीते थे कि अनु का फोन कॉलेज में आ गया।
हैलो। मैं अनु बोल रही हूँ।
हाँ अनु कैसी हो। कोई प्रॉब्लम तो नहीं ? क्या हुआ था मेरे आने के बाद।
वो सब मत पूछो। मुझे अभी शादी करनी है आपसे।
प्रथम चकरा गया।
क्यो बोली ? प्रथम पूछा।
मुझे अभी शादी करनी है आपसे। करोगे कि नहीं ये बताओ।
एक दिन में कैसे शादी हो जायेगी अनु।
तो तीन दिन। तीन दिन के अंदर मुझसे शादी करो।
ऐसे कैसे पॉसिबल है अनु। न तुमने अपने घर में बताया है ना मैंने अपने घर में बताया है। ऐसे बिना बताए कैसे कर लें शादी। और करेंगे कहाँ ये बताओं। प्रथम बोला।
वो सब मुझे नहीं मालूम। चलो चार दिन। चार दिन के अंदर करो शादी।
क्या एक-एक करके दिन बढ़ा रही हो। ये क्या कोई खेल है। तुम हमेशा दबाव बनाती हो और मुझे झक मारकर तुम्हारी इच्छा पूरी करनी पड़ती है। पर ये तो बहुत बड़ा डिसिजन है। घर में तो बताना पड़ेगा ना, चाहे वो लोग माने या न माने।
हाँ आप बोल तो ठीक रहे हो चलो पाँच दिन।
पाँच दिन के अंदर करो शादी।
फिर तुमने दिन कहा अनु। ये सब इतनी जल्दी संभव नहीं है तुम समझती क्यों नहीं ?
मुझे कुछ नहीं समझना है। मुझसे शादी करना है कि नहीं ये बताओ।
हाँ करना है बाबा पर।
पर-वर कुछ नहीं, मैं नहीं जानती कहाँ करना है, कैसे करना है, किसको बताना है। वो सब आप जानो। मुझे सिर्फ शादी करनी है या बोलो तो अभी मैं मंगलसूत्र पहन लेती हूँ और सिंदूर लगा लेती हूँ। अनु बोली।
लड़ाई कराओगी घर में। सब मुझे दोष देंगे इतना समझ नहीं आता तुमको।
अच्छा आप चिल्लाओं मत। पापा ने बोला तुम्हारा जो मन करे वो करो। तो मैंने उनको बता दिया कि शादी तो मैं उन्हीं से करूंगी। वो कुछ नहीं बोले। बस यही बोले तुम्हारी मर्जी।
तो फिर इतनी जल्दी क्या है। प्रथम पूछा।
यहाँ सब मुझे सुनाते हैं मै हर पल आहत होते रहती हूँ। या तो आप मुझे मार दो या ले जाओ। मैं और सहन नहीं कर सकती। मुझे अभी, अभी, अभी, शादी करनी है। अब आप जानो कैसे करनी है।
ठीक है बाबा मैं इंतजाम करता हूँ। तुम बुधवार को दोपहर 2 बजे फिर फोन करना, मैं यही खड़ा रहूँगा, तब तक एकदम चुपचाप घर में पड़े रहना और कोई गलत हरकत नहीं करना।
शाम को शहर आकर प्रथम ने सबसे पहले अपने घर में फोन किया।
हैलो, पिताजी।
हाँ प्रथम बोलो।
आपके समझाने के बावजूद हालात कुछ ऐसे बन रहे हैं कि मुझे निर्णय लेना पड़ सकता है। प्रथम बोला।
देखो बेटा हमारे समाज में कुछ लोग सिर पटक लो तो भी नहीं मानने वाले फिर भी मैं सामाजिक बैठक कराकर प्रस्ताव रखंूगा। मेरे सहमत होने या ना होने से कुछ फर्क नीं पड़ता। हम जिस समाज में रहते हैं उसकी कुछ परंपराएं निर्धारित हैं। उसके खिलाफ जाएंगे तो लोग तो विराधे करेंगे ही। पिताजी ने कहा।
मुझे इस बात से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता पिताजी कि दूसरे लोग या रूढ़िवादी लोग क्या सोचते हैं। आप लोग एग्री हैं तो मुझे कोई चिंता नहीं। प्रथम ने कहा।
तुम्हारी मर्जी बेटा। परन्तु हम लोग अभी नहीं आ पायेंगे।
ठीक है पिताजी।
ठीक है बेटा।
प्रथम मानसिक रूप से थोड़ा व्यथित तो था क्योंकि किसी भी परिवार के लिए यह आदर्श कार्य तो नहीं था।
परन्तु इतनी तसल्ली थी कि उसे परिवार को पता था।
उसने फिर मयंक को फोन लगाया। इत्तेफाक से वो उस वक्त रूम पर ही था।
हैलो मयंक।
हाँ सर। आप कैसे हो ?
मैं तो ठीक हूँ, तुम कैसे हो ?
ठीक हूँ सर बस तैयारी चल रही है।
अच्छा है भाई। कम से कम तुम बिना चितांओं के, बिना स्ट्रगल के तैयारी कर पा रहे हो। ईश्वर करे तुम जल्दी से पी.एस.सी. सलेक्ट हो जाओं।
धन्यवाद सर बताइये क्या बात है। मयंक बोला।
याद है तुमने कहा था कि तुम मेरी शादी करवाओगे।
जी सर। अच्छे से याद है।
तो अगर तुमको समय मिले तो इस संडे से पहले या संडे को ही अनु को लेकर दुर्ग आना है शादी के लिए।
अरे वाह ये तो अच्छी बात है सर। मैं बिल्कुल उनको लेकर आ जाऊँगा। आप मंदिर जाकर तय कर लीजिए। फिर मुझे बता दीजिएगा।
थैंक्यू मयंक। मैं तुमको कल शाम को फोन करूंगा इसी समय। प्रथम बोला।
ठीक है सर मैं बाईक का इंतजाम कर लेता हूँ ताकि बस-वस का झंझट ना रहे।
ठीक है मयंक। अच्छा कल फोन करता हूँ।
प्रथम रूम पर आ गया। उसने गोलू वर्मा को पूछ लिया कि आर्य समाज मंदिर कहाँ पर है। उसने बताया कि सेक्टर-6 भिलाई में बड़ा मंदिर है। जहां विवाह के कार्यक्रम आयोजित कराए जाते हैं।
सुबह कॉलेज जाने से पहल आटो लिया और सीधे आर्य समाज मंदिर पहुंचा ।
मेरा नाम प्रथम है और मैं आर्य पद्धति से विवाह करना चाहता हूँ। प्रथम ने पूंछा।
आप अपने विवाह की बात कर रहे हैं ?
जी मैं अपने विवाह की बात कर रहा हूँ।
तो आपके पैरेन्ट्स।
जी वो तो नहीं आ सकेंगे।
तो वधु के पैरेन्ट्स ?
वो भी नहीं आयेंगे।
नहीं आएंगे मतलब आप प्रेम विवाह कर रहे हैं क्या ?
जी ऐसा ही समझ लीजिए।
देखो बेटा ये उचित नहीं है आप अपने परिवार के साथ और सहयोग से आइए, आपका विवाह धूमधाम से कराते हैं।
ऐसा तो संभव नहीं हो पाएगा पंडित जी।
तो क्या बिना उनकी सहमति के आप विवाह कर रहे हो।
ऐसा है भी और नहीं भी पंडित जी।
मतलब ?
हमारे पैरेन्ट्स की जानकारी में है परन्तु वे इस शादी में सामाजिक कारणों से शामिल नहीं होंगे।
प्रथम ने सोचा नहीं था कि मामला कठिन होने वाला है।
देखो बेटा आर्य समाज का नियम है कि वर-वधू के सुरिक्षत भविष्य की जाँच करने के पश्चात ही विवाह का आयोजन करे।
तो पंडितजी उसके लिए मुझे क्या करना होगा ?
आप जॉब में हो ?
जी मैं कॉलेज में पढ़ाता हूँ।
तो फिर आप कॉलेज से अपनी तनख्वाह लिखवा कर ले आओ और दूसरा आपको 2200 रूपए की रशीद कटानी पड़ेगी।
ठीक है पंडित जी और शादी का सामान ?
कुछ तो यहाँ मिल जाएगा। कुछ सामान का लिस्ट मैं आपको दे देता हूँ, वो आपको लाना पड़ेगा।
पंडित जी विवाह की तिथि क्या होगी।
अगले हफ्ते 11 तारीख को शुभ मुहुर्त है आप लोग सुबह 8 बजे तैयार होकर आ जाइए। फिर करते हैं।
प्रथम वहाँ से निकल गया। कॉलेज पहुँच कर उसने सैलेरी स्टेटमेंट के लिए आवेदन किया और दूसरा इमरजैंसी वाला कारण बताया। दूसरी एक समस्या पैसे की भी थी। उसे कम से कम 4000 तो चाहिए ही थे। उसने दुर्ग के ही आपने एक पुराने मित्र को आफिस से फोन लगाया।
हैलो निशांत ? मैं प्रथम बोल रहा हूँ।
अरे हाँ प्रथम, कैसे याद किया भाई।
यार कुछ दिनों के लिए थोड़े पैसे चाहिए थे।
कितने ?
चार हजार। इतने की अचानक क्या आवश्यकता आ पड़ी।
एक इमरजैंसी आ गई है यार।
यार इतना तो नहीं हो पायेगा।
जितना भी हो सके दे दे यार। मैं अगले महीने लौटा दूंगा।
यार एक हजार से ज्यादा नहीं दे पाउंगा।
चलो ठीक है निशांत मैं कॉलेज के बाद आता हूँ। तुम्हारे पास।
ओके।
फिर उसने अपने एक और दोस्त को रायपुर घर में फोन लगाया।
हैलो प्रशांत।
हैलो प्रथम भैया कैसे हो?
ठीक हूँ भाई तुम कैसे हो ?
भाई कुछ पैसो की आवश्यकता थी।
अच्छा किसलिए भैया ?
बस थोड़ी इमरजेंसी आन पड़ी है अगले महीने दे दूंगा।
ठीक है भैया कितना चाहिए था ?
लगभग तीन हजार चाहिए था भाई।
घर में बात करके देखता हू भैया जितना हो पाएगा दे दूंगा।
ठीक है भाई मैं कल सुबह से आऊँगा। कॉलेज जाने से पहले।
ठीक है भाई मैं कलेक्टोरेट गार्डन में मिलंूगा 8 बजे।
ठीक है भाई मैं आता हूँ।
प्रथम ने फोन रख दिया उसने सोचा चलो कम से कम तीन हजार का इंतजाम हो जाएगा। बाकी ऊपर नीचे मैं देख लूंगा। वैसे भी उसे इस महीने कोचिंग से लगभग छह हजार मिलने वाला था और तनख्वाह मिलाकर लगभग दस हजार हो जाता। तो उस पैसे से वो प्रशांत और निशांत को उनका पैसा वापस कर देगा।
शाम को कोचिंग के बाद वो निशांत के घर गया और हजार रूपया ले लिया। दूसरे दिन सुबह उठा और कॉलेज जाने से पहले ही प्रशांत के पास चला गया।
वह कलेक्टोरेट गार्डन पहुँचा तो प्रशांत बैठा हुआ था। हैलो भैया। प्रशांत बोला
हैलो भाई कैसे हो ?
ठीक हूँ भैया आइये बैठिए।
थैक्स भाई।
थैंक्स किसलिए भैया।
तुमने समय पर मेरी मदद की इसलिए।
क्या भैया आप भी शर्मिंदा कर रहे हो। आपने भी तो समय समय पे मेरी मदद की है।
फिर भी थैंक्स प्रथम बोला।
भैया दो हजार का ही अरेंजमेंट हो पाया।
अच्छा चलो ठीक है, इतना काफी होगा।
भैया एक बात पूंछू, इतनी इमरजेंसी क्या आ गई ?
प्रशांत तुम तो छोटे भाई की तरह हो तुमसे क्या छिपाना। मैं शादी कर रहा हूँ इसी हफ्ते आर्य समाज मंदिर में।
अच्छा मैं समझ गया भैया और अधिक बताने की आवश्यकता नहीं है। आपको शुभकामानाएँ।
थैंक्स प्रशांत मैं ये पैसे अगले महीने लौटा दूंगा।
कोई बात नहीं भैया जब मन करे लौटा दीजिएगा।
ठीक है भाई मैं चलूंगा। कॉलेज के टाईम तक पहुँच जाऊँगा।
ठीक है भैया मुझे भी ऑफिस जाना है आपको फिर से शुभकामनाएँ।
थैक्स भाई बाय।
प्रथम रायपुर से वापस दुर्ग कॉलेज में आ गया। वह दोपहर दो बजे आफिस में जाकर फोन के पास खड़ा हो गया । उसे मालूम था कि अनु ठीक दो बजे फोन करेगी। ठीक दो बजे फोन बजा।
हैलो।
हाँ हैलो मैं अनु बोल रहीं हूँ ।
हाँ बताइये क्या हुआ। कुछ इंतजाम हुआ कि नहीं ।
सब हो गया है अनु, थोड़ी कठनाई आई परन्तु सब अरंजेमेंट हो गया ।
कब होगी हमारी शादी ?
ग्यारह तारीख को सुबह नौ बजे ।
कहाँ पर ?
यहीं भिलाई सेक्टर -6 में आर्य समाज का मंदिर है वहीं पर।
तो मै कैंसे आऊँगी वहाँ पर इतनी सुबह से ?
कोई प्राॅबलम नहीं होगी तुम सिर्फ चैक तक आ जाना वहाँ से तुमको मयंक बाइक से ले आएगा।
अच्छा ठीक है। अनु खुशी से बोली आखिरकार उसकी मनोकामना पूरी हो रही थी।
क्या पहन कर आऊॅ ?
कोई भी साड़ी पहन कर आ जाना बस मंगलसूत्र और सिंदूर को लेते आना।
ठीक है रंखू । प्रथम बोला।
ठीक है। अनु चहक रही थी।
प्रथम फोन रखकर विभाग मे चला गया। घर आया तो सोचने लगा कहाँ मैं पीएससी की तैयारी करना चाहता था और जीवन ने कहाँ लाकर खड़ा कर दिया है। उसे मालूम था उसके हालात सामान्य नहीं थे और वह बार-बार ईश्वर से एक ही सवाल पूछता था और कितने दिन संघर्ष करना पड़ेगा भगवान। वह सोचता था क्यूं हालात मेरे वश में नही है क्यूं सभी घटनाएँ अपने आप ही घटित हो रही है। उसका मन बहुत विचलित था। इसी तरह समय बीत गया और ग्यारह तारीख आ गयी।
वह सुबह घर से निकला और आॅटो लेकर आर्य समाज मंदिर पहुंच गया। वह 8:30 को पहुँच गया था। परन्तु अनु अब तक नहीं आई थी।
पंडित जी ये रहा मेरा सार्टिफिकेट मैने कॉलेज से ले लिया था और ये 2200 रूपए रसीद के लिए। आपने जो सामान लिखा था वो भी ले आया हूँ । प्रथम ने कहा।
अच्छा लाईये दीजिए। और वधु कहाँ है ?
9 बजे तक आ जायेगी पंडित जी।
और कन्यादान कौन करेगा ?
भाई कर सकता है कि नहीं पंडित जी ? उसने सोचा मयंक कर देगा।
हाॅ बिलकुल कर सकता है परन्तु दंम्पति रहे तो बेहतर होता।
अब मेरे तो यहाँ कोई परिचित का नहीं है पंडित जी। प्रथम ने कहा।
मै अपने परिचित के लोगों को बुला लूं तो चलेगा ?
हाँ पंडित जी बिलकुल बुला लीजिए। लो वो लोग भी आ गए।
आओ मयंक आओ अनु।
कोई तकलीफ तो नहीं हुई आने में मयंक ?
नहीं सर मैडम वक्त पर चैक में खड़ी थी। मैं बस पहुँचा और यहाँ ले आया ।
तुम ठीक हो अनु ? प्रथम ने पूछा।
हाँ मैं ठीक हूँ । आप बहुत पतले दिख रहे हो ?
हाँ अब जैसा हूँ वैसा ही तुमको एक्सेप्ट करना पड़ेगा। विचार कर लो अभी भी समय है तुम्हारे पास।
किस बारे मे ? अनु ने पूछा।
यही कि मुझसे शादी करनी है कि नहीं ?
चुपचाप मंडप मे बैठ जाओ वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा अनु बोली ।
अच्छा बाबा सॉरी तुमको कुछ बोलो तो भड़क जाती हो।
चलो आ जाओ। वहीं मंडप में चलतें हैं पंडित जी बुला रहे है।
वो पहली मुलाकात और आज का ये दिन दोनो जीवन के लिए अद्भुत था। आखिरकार सभी परिस्थितियों से लड़ते, हारते, जीतते, संघर्ष करते, गिरते हपटते, शादी हो ही गई।
प्रथम ने अनु के गले में वरमाला डाली और फिर मंगलसूत्र पहनाया वो क्षण अनु के लिए अनमोल था। अनु ने सोचा नहीं था ये सब हो पाएगा पर उसकी सोच अब यकीन में बदल गई थी ।
थैंक्यू प्रथम जी। अनु ने कहा।
क्यों ? प्रथम ने पूछा।
आप नहीं समझेंगे। अनु ने फिर से कहा।
अरे क्यों नहीं समझेंगे। तुम बतओगी तभी तो समझेंगे ना ? प्रथम ने पूछा ।
मेरे सपनो की पराकाष्ठा थी शादी और आपने उसे मेरे खुशी के लिए जिस तरह भी हो पाया पूरा किया। अनु झुकी और प्रथम के पैरो को छूकर अपने हाथ माथे से लगाई।
प्रथम ने उसे ऊठाया। सबके सामने उसके माथे को चूमा और कहा - तुम्हारे लिए कुछ भी ।
अनु की आँखें गीली हो गई। उसके बाद दोनो की आँखों से आँसू छलक गये ।
सारी औपचारिकताएं पूरी होने के बाद पंडित जी को दान दक्षिणा देने के बाद प्रथम ने पूछा - चलोगी मेरे साथ, अभी ?
नहीं प्रथम जी, घर जाऊँगी और माता-पिता से आशीर्वाद लेकर ही आऊँगी चाहे वो डाॅटें मारे या पीटे। अब मैं वापिस जाने के लिए नही आऊँगी । आऊँगी सिर्फ आपका घर बसाने।
ठीक है अनु मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा। सीधे कॉलेज ही आना क्योंकि घर तुमने देखा नहीं है आफिस पहुंच कर मुझे विभाग से बुलवा लेना।
वैसे कब तक आओगी तुम ?
कल या परसों तक। घर की स्थिति भी देखनी पड़ेगी।
ठीक है अब तुम जाओ। प्रथम ने कहा।
फिर प्रथम मयंक के पास आया।
मयंक मै तुम्हे सारी जिंदगी याद रखूॅगा तुमने मेरे कठिन समय में मेरी मद्द की हैै।
अरे कोई तकलीफ नहीं है सर। आप लोग खुश रहें मुझे और क्या चाहिए।
ठीक है भाई तुम ले जाओ अनु को। मैं भी निकलता हूँ कम से कम आधे दिन कॉलेज अटेंण्ड कर लेता हूँ।
दोनो अपनी-अपनी मंजिल की ओर निकल गए। प्रथम घर पहुॅचा तो देखा कि यह तो किसी महिला के रहने लायक भी नही तो वह साफ सफाई में जुट गया। उसने गोलू वर्मा तथा धीरज दोनो को बता दिया कि उसने शादी कर ली है और एक दो दिन में उसकी पत्नि आने वाली है।