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जादूगर जंकाल और सोनपरी (11) - अंतिम भाग

जादूगर जंकाल और सोनपरी

बाल कहानी

लेखक.राजनारायण बोहरे

11

यह नजारा देख शिवपाल ने देर नही की वह अपनी किलकारी तलवार को हाथ में ले बेधड़क गुफा में घुस गया।

मुख्य गुफा खूब बड़े कमरे के समान थी, जिसमें आस पास छोटी-छोटी गुफाऐं बनी हुई थी। मुख्य गुफा में सामने ही एक चौकोर चट्टान पर एक विशाल चमकती सफेद बड़ी सी गोल गेंद थी जिसमें से रोशनी निकल रही थी यह चंद्र्र मणि थी जिसके भीतर से चंद्रमा की तरह की चांदी जैसी रोशनी लप्प-लप्प हो रही थी।

शिवपाल ने आव देखा न ताव उस मणि पर अपनी जादुई तलवार का एक जोरदार वार किया तो बड़ी आवाज के साथ वह मणि ढड़कती हुई जमीन में गिर गई । शिवपाल ने अपने पांव से उसमें एक धक्का लगाया तो मणि ने फिर एक दो लुढ़कनी खाई । एक एक लात मारता शिवपाल वह ढड़काता हुआ गुफा के बाहर ले आया और पास पड़ा हुआ एक बड़ा सा पत्थर उठा कर उसने मणि पर दे मारा।

पत्थर की तेज चोट पड़ते ही वह मणि एक बहुत तेज धमाके के साथ फूट गयी थी और उसमें से पिघली हुई चांदी के समान एक गाड़ा द्रव पदार्थ बहने लगा था।

क्षण भर के भीतर उस पदार्थ में से इल्लियों और झींगुर जैसे हजारों छोटे छोटे चमकते हुए कीड़े निकल कर उड़ने लगे और आसमानकी तरफ उड़ते चले गये।

शिवपाल ने पास खड़ी परी ने खुश होते हुए बताया कि ये सब की सब जादूगर जंकाल की कैद में रहने वाली वे जादूई शाक्तियां हैं जो अब वापस अपने स्वामी के पास जा रही हैं। इन्हें जादूगर जंकाल ने अपने बल से सिद्ध करके यहां कैद कर रहा था और मनमर्जी से काम करा रहा था।

शिवपाल ने परी को इशारा किया तो पलक झपकते ही जादुई चटाई वहां हाजिर थी और वे लोग झटपट उस चटाई पर जा बैठे थे, नीचे मैदान में से उन्होंने घोड़े को साथ लिया और जल्दी ही वे सातवें समुद्र और जादूगर के टापू की ओर उड़ चले थे।

सातवें समुद्र तट पर मगरमच्छ मौजूद था |

जिसने बात की बात में अपने दोस्तों को उस पार पहुंचा दिया और समुद्र तट पर उतरा तो वहां का नजारा देख कर शिवपाल मूर्ति सा खड़ा रह गया था , क्येांकि टापू के पेड़ो में भयंकर आग लग गयी थी, और उनमें से रोने चीखने की आवाज आ रही थी। ऐसा लगता है कि पेड़ों पर किया गया जादू वापस जा रहा था।

समुद्र तट पर उतर कर वह टापू का चक्कर लगाते हुए पीछे पहुंचा जहां से पिछली बार वह महल में गया था। उसे सबसे पहले वह जादुई दीवार और दरवाजा दिखाई दिया जो अब खण्डहर पड़ा था और जहां मूर्तियो की दीवार थी, वहां सारी मूर्तियां अब जीवित आदमी के रूप में बदल गये थे जो अब भी उसी तरह पंक्ति में खड़े खुशी मना रहे थे।

शिवपाल अपने घोड़े पर बैठ कर जादूगर के महल की ओर बढ़ गया।

उनकी भीड़ के बीच में से होता हुआ शिवपाल किसी तरह महल तक पहुंचा और उसने सोनपरी के महल का ताला तोड़ दिया, भीतर सोनपरी बहुत बैचेनी से उसका इंतजार कर रही थी।

शिवपाल ने देखा कि अपनी शक्त्यिां चले जाने के बाद बहुत कमजोर दिख रहा जादूगल जंकार अपने लाल महल के आंगन मे खड़ा हुआ सबको गालियां बक रहा था जबकि महल के बाहर वे सब लोग जादूगर को मार देने के लिए सिमटने लगे थे जिन्हें उसने अपने जादू से मूर्ति बना कर दीवार की तरह खड़ा कर रखा था और वे अब जादू से मुक्त होकर जंकाल को अपने हाथों से सख्त सजा देने पर आमादा थे।

परी लोक के दसों पहरेदार अब भी डरे हुए से खड़े थे।

जादूगर को उसके हाल पर छोड़कर शिवपाल ने सोन परी को अपने साथ घोड़े पर बैठाया और समुद्र तट की ओर बढ़ गया जहां चंद्र परी अपनी बहन का इंतजार कर रही थी।

दोनों बहने गले मिल कर रो पड़ी।

मगरमच्छ की पीठ पर बैठ कर सातवां समुद्र पार कर शिवपाल तट पर आया तो वहां जादुई चटाई बुलाई गयी।

जादुई चटाई पर बैठ कर आकाशमार्ग से घर की ओर चलते हुए शिवपाल ने रास्ते में पड़ने वाले हरेक समुद्र के तट पर उतर कर समुद्रों का प्रणाम किया और घोड़े, शेर व बाज को उनके घर छोड़ कर अपने गांव शिवपुर आ पहुंचा।

शिवमंदिर के पास दोनों परियां विदा होने लगीं।

अपनी तरफ से दोस्त शिवपाल के लिए बहुत सारे हीरे, मोती और रत्न की पोटलियों के रूप में शिवपाल को भेंट देकर दोनों परियां वापस परीलोक चली गयीं तो शिवपाल खुशी खुशी अपनी मां से मिलने घर चल दिया।

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