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A Dark Night – A tale of Love, Lust and Haunt - 14

हॉरर साझा उपन्यास

A Dark Night – A tale of Love, Lust and Haunt

संपादक – सर्वेश सक्सेना

भाग – 14

लेखक - आशीष कुमार त्रिवेदी

आज विशेष अनुष्ठान था। आज की तीन बलियों के बाद किताब का अंतिम अध्याय लिखने का काम शुरू होना था। आज शैतान के देवता की मूर्ति भी बहुत भयानक लग रही थी। उसका चेहरा बहुत ही भयावह था। उसकी बाहर निकली हुई जीभ आगे से दो भागों में विभक्त थी। उस मूर्ति के नुकीले पंजे जिनमें केवल तीन उंगलियां और एक अंगूठा था। चार उंगलियों वाला नुकीला पंजा भय उत्पन्न कर रहा था।

शैतान की मूर्ति को घेरे कुछ लोग खड़े थे। उन लोगों ने एक खास किस्म का लिबास पहना हुआ था। लिबास ऊपर से नीचे तक काला था। मूर्ति को घेरकर खड़े लोगों के चेहरे गायब थे। उनकी जगह उन लोगों ने जानवरों के चेहरों की खाल पहनी हुई थी। उन सभी लोगों के सर पर सींग थे।

वह सभी लोग अजीब से मंत्रों का उच्चारण कर रहे थे। तभी उन लोगों की तरह ही काला लिबास पहने कुछ लोग आए। उन लोगों के साथ दुल्हन की तरह सजी हुई तीन स्त्रियां थीं। स्त्रियां बेसुध हालत में थीं। साथ में उनके तीन नवजात बच्चे थे।

नए आए हुए तीन व्यक्तियों में एक खास व्यक्ति था। बाकी के दो उसके आधीन थे। एक आदमी जिसने भेड़ के चेहरे की खाल और सींग पहने हुए थे उसने तांत्रिक से आदेश लेकर नवजात शिशुओं की तरफ बढ़ा। सभी ज़ोर ज़ोर से मंत्रोच्चार करने लगे। भेड़ के चेहरे की खाल पहने आदमी ने एक बच्चे को उठा लिया। बेहोशी की हालत में भी उसकी मां तड़प उठी। आदमी बच्चे को लेकर दूसरे आदमी के पास गया। उसने लोहे की अंगारे के समान लाल लोहे की छड़ से बच्चे की नाज़ुक खाल पर कुछ लिखा। बच्चा दर्द से तड़प उठा। रो रो कर बुरा हाल हो गया और कुछ समय में वह मर गया। उसकी मां निढाल होकर बेहोश हो गई।

बची हुई दो स्त्रियों में से एक ने सोचा कि इन दुष्टों के हाथ उसका बच्चा लग गया तो यह लोग उसे बहुत तड़पाएंगे। इसलिए जिस आदमी ने उसे पकड़ रखा था उससे खुद को छुड़ाकर उस औरत ने पास पड़े चाकू से अपने ही बच्चे की हत्या कर दी। उसकी इस हरकत से अनुष्ठान में व्यवधान आ गया। सभी इस व्यवधान से परेशान हो गए। लेकिन उनका मुखिया तांत्रिक बिल्कुल परेशान नहीं था।

जिस आदमी के बंधन से वह औरत छूटकर भागी थी तांत्रिक ने उस आदमी को एक अजीब सी सजा दी। उस आदमी को अपना दिल स्वयं ही अपने सीने से निकालना पड़ा। वह आदमी मर गया और जिस बच्चे की मृत्यु हुई थी वह जीवित हो उठा।

उस बच्चे की मां को जबरन खींचकर उन लोगों ने शैतान की भयानक मूर्ति के आगे घुटनों के बल बिठा दिया। अपने चेहरों पर जानवरों की खाल पहने हुए उन काले सायों ने उसके हाथों को लकड़ी का एक लट्ठा रखकर सीधे करके बाँधा गया था। जिसके खिंचाव से उसका वक्षःस्थल और आगे उभर आया था। वह एक जवान औरत थी।

उस औरत की पीठ मूर्ति के चेहरे की ओर थी और चेहरा सामने अग्निकुण्ड की तरफ था। अग्नि कुंड के पास लकड़ी के एक कुंदे पर उसका बच्चा उल्टा लटका हुआ था। उस बच्चे का सर बिल्कुल आग की लपटों के ऊपर था। वह आग की आंच से झुलसकर परेशान हो चीख रहा था। उसकी चीख सुनकर भी उसकी माँ कुछ नहीं कर पा रही थी। अपनी नजरें झुकाए वह चुपचाप बस आँसू बहा रही थी।

तभी वो भेड़ की खाल पहने तांत्रिक ने जो कल तक सामान्य दिखता था उसने अपने चेहरे से भेड़ की खाल नोचना शुरु कर दिया जिसके पीछे उसका असली रूप दिखाई दिया जो बेहद डरावना और घिनौना था। उसका चेहरा ऐसा था जैसे मधुमक्खी के छत्ते को जगह-जगह से खोद दिया गया हो। जिसे देखकर वो स्त्री और भी भयभीत हो गई।

तांत्रिक एक भयंकर अट्टहास करते हुये बोला “ हा..हा..हा..हा... मेरे कई रूप हैं लेकिन मेरा असली रूप ये है जो सिर्फ लोग अपनी मौत के पहले ही देख पाते हैं।

ये कहते हुये उसने बच्चे के माथे के बीचो बीच छेद कर दिया। बच्चे का खून बूंद बूंद करके अग्निकुंड में गिर रहा था। हर गिरती बूंद के साथ ही उस शैतान की मूर्ति की दो भागों वाली जीभ हिलने लगती थी। उस शैतान देवता की आँखें भी पूरी खुली हुई थीं।

अब सारे शैतान के पुजारी उस अग्निकुण्ड के चारों ओर अपने घुटनों पर बैठ गए।

रुद्रांश इन सबसे अलग एकांत मे वहीं आँखें बन्द किये शैतान का ध्यान कर रहा था। वो अपने ध्यान में इतना लीन हो गया था कि उसे ये दर्दनाख चीखें भी सुनाई नही दे रहीं थीं। आज के अनुष्ठान में सारी महत्वपूर्ण भूमिका तांत्रिक और उन काले साए वाले आदमियों की थी। रुद्रांश तो उस पल का इंतजार कर रहा था जब उसे किताब का अंतिम भाग लिखना था।

तांत्रिक ने अपनी शक्तियों से पास रखी वो भारी भरकम शैतानी किताब खोली। अब शैतानी किताब के अंतिम अध्याय को लिखे जाने का समय आ गया था।

तांत्रिक ने किताब से कोई मंत्र पढ़कर अग्निकुंड में मुठ्ठी भरकर कोई सामग्री फेंकी। इसके साथ ही शैतान की मूर्ति के हाथ में जान आ गई। उसने आगे बढ़कर उस स्त्री की कमर पर लिपटा एक मात्र धोती का टुकड़ा अपनी भद्दी उँगलियों के लंबे मुड़े हुए नाखूनों में फँसा कर खींच लिया।

तभी अचानक उस औरत में जैसे कोई शक्ति का संचार हुआ हो। वह अपनी जगह से उठी और मुँह से बड़े जोर की चीख निकालती हुई उछली। उसके हाथों में बंधा हुआ वह डंडा खटाक की तेज आवाज के साथ ही टूट गया।

तेज़ हुंकार भरती हुई वह अग्निकुंड की तरफ दौड़ी और किताब को शैतान के हाथ से धकेल कर अपने बच्चे को उस लकड़ी के कुंदे पर से उतार लिया। ये देखकर सारे काले साये और भेडिये जोर जोर से चिल्लाने लगे जिससे रुद्रांश का ध्यान टूटा।

रुद्रांश की आँख खुलते ही उसकी नजर उस भागती हुई औरत पर पड़ी। जिसे देखकर वह चौंक उठा क्युंकि वह कोई और नहीं उसकी प्रेमिका मोहिनी थी। मोहिनी को देखते ही जैसे रुद्रांश पर लाखों बिजलियां गिर गईं हों। वो शैतानी शक्तियों को पाने के लिये इतना लालायित था कि उसने इन सब क्रियाओं पर ध्यान नही दिया, एकाएक अब उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे अब तक उसने जो कुछ भी किया वह बहुत गलत था।

मोहिनी का भी रुद्रांश को देखकर यही हाल था। दोनों के लिये समय जैसे रुक सा गया।

रुद्रांश ने मोहिनी के पास जाकर कहा, "तुम.....तुम यहां कैसे आई ? तुम तो मर चुकी थी।"

मोहिनी ने बच्चे की तरफ इशारा करके कहा, " उस रात के बाद जब मुझे होश आया तो मै कबीले की तरफ भागी पर वहां तुम्हारे पिता जी के आदमियों ने आग लगा दी और मैं बेहोश हो गयीं, फिर बापू ने मुझे ढूंढ़ लिया पर तुम्हारी यह निशानी मेरी कोख में थी। जब मेरे पिता ने मुझे बच्चे की वजह से मारने की कोशिश की तो तुम्हारी निशानी को बचाने के लिए मैं वहां से भाग निकली। बड़ी मुश्किल से बचते बचाते मैं एक सुरक्षित जगह पर पहुंची जहां आपके नौकर रामदास ने मेरी बडी मदद की और् फिर मैने तुम्हारे बच्चे को जन्म दिया। लेकिन इन दुष्ट लोगों ने रामदास को भी मार दिया और मै इनके हाथ पड़ गई....लेकिन तुम.....।"

सब जानकर रुद्रांश को बहुत क्रोध आया। उसने तांत्रिक की तरफ देखा।

तांत्रिक को अभी रुद्रांश की जरूरत थी। उसे ही अंतिम अध्याय लिखना था। वह उसे कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता था। उसने समझाते हुए कहा,

"अपने मकसद के इतने करीब आने के बाद तुम किस चक्कर में पड़ रहे हो। सोचो एक बार जब यह किताब पूरी हो गई तो सारी दुनिया तुम्हारे कदमों में होगी। तुम इस पूरी दुनिया पर राज करोगे। ऐसी ना जाने कितनी मोहिनी तुम्हारे पैरों के पास पड़ी रहा करेंगी। तुम इसकी बातों में मत आओ। अब हमें अपने अनुष्ठान को पूरा करना है। अंतिम अध्याय लिखकर सारी शैतानी शक्तियों के स्वामी बन जाओ।"

रुद्रांश के भीतर एक द्वंद्व चल रहा था। उसके आत्मा की अच्छाई दुष्ट शक्तियों को हराने का प्रयास कर रही थी। दुष्ट शक्तियां प्रलोभन देकर उसे फिर से शैतान का गुलाम बनाना चाह रही थीं।

उसकी मनोदशा को समझकर मोहिनी ने कहा, "रुद्रांश तुम इन लोगों के चंगुल में कैसे आ गए ? तुम तो एक बहुत भले इंसान थे।"

रुद्रांश ने जवाब दिया, " उस एक रात के बाद जब अगले दिन मुझे होश आया तो मै विरह में पागलों की तरह तुम्हें पुकारते हुए कबीले की तरफ जाने लगा। मेरी हालत ऐसी हो गई थी कि कोई मुझे पहचान भी नहीं पा रहा था, मैं चलते चलते कबीले मे पहुंचने से पहले ही राह मे गिर गया, तभी उधर से भागते हुए कुछ लोगों ने मुझे उठाया और बताया कि जमींदार का बेटा और कबीले की लड़की मोहिनी दोनों तूफान मे मारे गए, कई लोग तो कह रहे थे कि जमीदार ने ही दोनों को मरवाया है, इसीलिए अब जमीदार कबीले वालों को छोड़ेगा नहीं, अरे तुम भी भाग जाओ अपनी जान बचाओ, ये कहते हुए वो लोग भी वहाँ से चले गए, और मैं तुम्हारे वियोग में तड़प उठा और फिर जंगल की ओर चला आया| जहां मै इस मक्कार शैतान के बनाये जाल मे फंस गया, मुझे तो इस तांत्रिक ने मार दिया। मैं तो बस एक आत्मा हूं। जिस पर तांत्रिक की शैतानी शक्तियों ने कब्जा कर रखा है।"

मोहिनी ने चौंककर कहा, "क्या....नही नही ये नही हो सकता.....रुद्रांश...तुम नही मर सकते, तुम्हारे लिये ही तो मै अब तक जिन्दा थी, ये सब मेरे बापू के कारण हुया है उसने ही हमें इस हाल मे पहुंचा दिया। तुम इन शक्तियों के चंगुल में मत फंसो। मेरी मानो शैतानी ताकतों का लालच छोड़कर पहले की तरह बन जाओ। तुम्हारी आत्मा को मुक्ति मिल जाएगी।"

तांत्रिक की मजबूरी थी कि वह रुद्रांश के कारण मोहिनी का कुछ कर नहीं सकता था।

तभी कुछ काले सायों के शोर से तांत्रिक का ध्यान अग्निकुंड की तरफ गया जिसमें वो शैतानी किताब गिर कर जल रही थी। ये देख उसके आदमी किताब की रक्षा के लिए अग्नि कुंड की तरफ लपके और तांत्रिक मोहिनी की ओर भागा।

रुद्रांश अपने मन के अंतर्द्वंद से उलझ रहा था।

मोहिनी ने उससे कहा, "यह तांत्रिक तुम्हें धोखा दे रहा है। इसके बहकावे में मत आओ।"

"ये लो अपने खानदान की निशानी को संभालो और भागो यहां से। मैं इन लोगों को अपने पीछे भगाती हूं।" मोहिनी ने बच्चा रुद्रांश की ओर उछालते हुये कहा।

मोहिनी बच्चा रुद्रांश को पकड़ा कर भाग गई।

तब तक किताब आग में जलकर नष्ट हो गई थी। तांत्रिक ने अपने आदमियों को उसके पीछे भेजा। रुद्रांश बच्चे को लेकर भागने ही वाला था कि उसने देखा कि बच्चा मर चुका है। अपने मरे हुए बच्चे को देखकर उसकी आत्मा रो पडी। उसके मन की अच्छाई जागृत हो गई। उसे अब अपने किए पर पछतावा हो रहा था।

तभी तांत्रिक के काले साए वाले आदमी लौट कर आए। उन्होंने बताया कि उस औरत को हम लोगों ने मार दिया है और ये रही उसकी खाल।

रुद्रांश ने अपने मृत बच्चे के शव को अपने हाथों में लिए खड़ा था। वह बहुत दुखी था। मोहिनी की मौत का समाचार सुनकर उसे और भी अधिक कष्ट हुआ। उसने तांत्रिक की तरफ देखकर कहा,

"मैं अब और तुम्हारे झांसे में नहीं आऊंगा। मेरी आत्मा पर से तुम्हारी शैतानी शक्तियों का प्रभाव मिट चुका है। मै तुझे नहीं छोडूंगा कपटी अब तू मेरा कुछ नही बिगाड़ सकता क्यूंकि अब तो तुम्हारी शैतानी किताब भी जल गई है।"

तांत्रिक हंसते हुये कहा, " हा..हा..हा....मेरी किताब तो तुम्हें पूरी करनी ही पड़ेगी। तुम उससे बच नहीं सकते। जो किताब जलकर राख हो गई वह असली किताब नही थी, मैंने अपनी शक्ति से वास्तविक किताब की प्रतिकृति बना ली थी क्युंकि मुझे पहले ही तुम्हारी गद्दारी का अन्देशा हो गया था, मैं इतनी महत्वपूर्ण किताब के साथ कोई जोखिम लेना नहीं चाहता था। असली किताब अभी सुरक्षित है। अब तुम्हें अंतिम अध्याय लिखना होगा...समझे...।"

रुद्रांश ने कहा, "मैं तुम्हारी किताब किसी भी कीमत पर पूरी नहीं करूंगा।"

गुस्से से भरे तांत्रिक ने कहा, "तुम्हें किताब तो पूरी करनी ही पड़ेगी।"

यह कहकर तांत्रिक ने गर्म सलाख से रुद्रांश की छाती पर एक निशान बना दिया। रुद्रांश दर्द से तिलमिला उठा।

रुद्रांश की आत्मा उस दर्द को सह नहीं पा रही थी। उसे मजबूरी में किताब का अंतिम अध्याय लिखना ही पड़ा।

किताब पूरी होने पर तांत्रिक ज़ोर से हंसा। वह बोला, "अब यह किताब मुझे दो। मैं बनूंगा शैतानी शक्तियों का स्वामी।"

मोहिनी ने रुद्रांश को आगाह किया था कि तांत्रिक धोखा देगा। तांत्रिक ने वही किया था। रुद्रांश उसकी चाल पहले ही समझ गया था। उसने चुपचाप किताब के अंतिम अध्याय से पहले वाले पन्ने फाड़ दिेए थे और मुस्कुरा कर किताब तांत्रिक को देते हुए बोला, "तुम्हारी इच्छा पूरी नहीं हो पाएगी। क्योंकी मंत्रों की कड़ी टूट गई है।"

उसने फटे हुए पन्ने उसे दिखाते हुए उसकी आंखों के सामने आग में जला दिए।

ये देख तांत्रिक क्रोध से पागल हो गया और बोला "तुम मुझे धोखा दे रहे हो। पर चाहे कितने भी जन्म ले लो तुम्हें मेरा काम तो करना ही होगा। तुम्हारे सामने कोई और चारा नहीं होगा। मुझे धोखा देने की तुम्हें सजा मिलेगी। किसी भी जन्म में तुम अपनी पत्नी या प्रेमिका के साथ खुशी से नहीं रह पाओगे और तुम्हारी आत्मा ऐसे ही भटकती रहेगी।" ये कहकर फिर तांत्रिक ने गर्म सलाख से रुद्रांश की छाती दाग दी और वो दर्द से तड़प उठा।

एक जोर चीख के साथ ही अखिल को होश आया उसे अपनी छाती में तेज दर्द का अनुभव हुआ। वह वर्तमान में लौट आया पर उसका मन शांत था उसे अपने हर सवाल का जवाब मिल चुका था। मेघा और मोहिनी की शक्ल मिलती थी और अखिल ही रुद्रांश था जिसकी आत्मा बार बार अखिल को उसके भूत और भविष्य मे खुद को घूरते हुये दिखाई देती थी। तांत्रिक ने जैसा कहा था वैसा ही हुआ। उस जन्म में वह मोहिनी से मिल नहीं सका था। इस जन्म में मेघा से शादी होने के बावजूद भी वह उसके साथ सुख से नहीं रह पाया।

वह सोच रहा था कि रुद्रांश और मोहिनी ने उसके बाद ना जाने कितने जन्म लिए होंगे। हर जन्म में उनका एक नया नाम होगा। हर जन्म में वह एक दूसरे से बिछड़ गए होंगे। ना जाने कितने जन्मों से तांत्रिक अपनी किताब पूरी कराने के लिए उसके पीछे पड़ा है।

मोहिनी ने उसके बच्चे को जन्म दिया था। लेकिन तांत्रिक ने उसे छीन लिया था। इस बार तांत्रिक की नजर मेघा और उसकी बेटी पूजा पर है। यह बात दिमाग में आते ही अखिल बेचैन हो उठा।

आखिल के सीने में अभी भी उस जलन का एहसास हो रहा था और सीने पर बना वो निशान चमक रहा था। तांत्रिक ने उसकी आत्मा पर वह निशान लगाकर उसे अपने बंधन में बांध रखा था। बिजली अभी भी चमक रही थी जिसकी चमक मे अखिल ने हवेली की छत पर नजर डाली तो छत पर बनी चित्रकारी मानो जिंदा हो रही थी और बारिश लगातार हुये जा रही थी।

अखिल ने तय कर लिया कि अब इस कहानी का अंत करके ही रहेगा। अपनी बच्ची को बचाएगा। तांत्रिक को उसके मंसूबों में कामयाब नहीं होने देगा।

अखिल पूजा को खोजने के लिए आगे बढ़ा। तभी उसने देखा अनुज का शरीर फर्श पर उसी किताब के पास पडा है और उसके दायें हाँथ की खाल गायब है।