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एक दुनिया अजनबी - 29

एक दुनिया अजनबी

29-

"चलो, पहले आँसू पोंछो ---"विभा ने साधिकार कहा |

वॉशरूम में ले जाकर उसके मुह -हाथ धुलवाए, साफ़, धुला हुआ नैपकिन उसे दिया | हाथ-मुह धो-पोंछकर अब वह पहले से बेहतर स्थिति में थी |

अब वह सलीके से सोफ़े पर आकर बैठी थी, अपने -आपको सँभालते हुए |

विभा उसके लिए शर्बत और कुछ नाश्ता ले आई थी |

"लो, खा लो मृदुला, ख़ाली पेट लगती हो ? मालूम है, ज़्यादा देर ख़ाली पेट नहीं रहना चाहिए ? "

मृदुला कुछ बोल नहीं सकी, उसकी ऑंखें बोल रही थीं, कुछ शेयर करना चाहती हो जैसे किन्तु कोई बहुत मोटा संकोच का पर्दा उसके मुख पर पड़ा था | गले में कुछ फँसकर निकलें, न निकलें की तर्ज़ पर एक सुगबुगाहट सी उसके मन में चल रही थी |

"बात तो कुछ गंभीर है, बताओ मृदुला ----" शर्मा जी के स्वर में अपनत्व था |

"हाँ, कुछ अधिक परेशानी हो तो इलाज़ हो सके ---" विभा ने कहा |

"पैसे की चिंता मत करना, मैं तुम्हें लेकर चलूँगा, सारे टेस्ट करवा लेते हैं, क्यों विभा ? "

"जी, बिलकुल ---" विभा ने अपने सह्रदय पति की हाँ में हाँ मिलाई |

"दीदी ! किसका टेस्ट करवाएँगी ? मेरे मन का ? अतीत का या फिर -? "वह फिर चुप हो गई |

निश्चेष्ट सी मृदुला का चेहरा अजीब सा हो उठा, जैसे वह इस दुनिया में ही नहीं थी | सच तो यह था कि विभा व शर्मा जी दोनों घबरा गए थे, समझ में ही नहीं आ रहा था कि मृदुला को हो क्या रहा था ? उसे कैसे सँभालें ?

विभा व शर्मा जी के ज़ोर देने पर मृदुला ने अपनी कहानी सुनानी शुरू की |मृदुला महाराष्ट्र की थी | उसके पिता का बंबई से नागपुर तक का मछली का बड़ा व्यापार फैला हुआ था | कई सौ कर्मचारी उसके पिता के मुलाज़िम थे | चार बहन-भाई थे उसके लेकिन उसका कहने को कोई नहीं था |

"तुम सबको जानती हो, पूरे परिवार को ---? "

"जी, दीदी ---"

"तुमने अपने परिवार में जाने की कोशिश नहीं की ? "

"क्यों करनी चाहिए दीदी ? " मृदुला का स्वर कठोर था |

"मृदुला वो तुम्हारे माता-पिता हैं ---" शर्मा जी भी बोल पड़े |

"जन्म देने से माता-पिता हो गए ? उनके कर्तव्य कुछ नहीं थे ---" वह फिर से रो पड़ी

"दीदी ! मेरी कहानी आप सुनेंगी तो सो नहीं पाएंगी ---"

"मृदुला ! तुम अपनी कहानी सुनाकर हल्की हो जाओ, हम सुनेंगे तुम्हारी कहानी ---भैया कहा है न तुमने मुझे ? "शर्मा जी भावुक हो उठे |

समृद्ध परिवार की मृदुला का जन्म ही उसके लिए एक श्राप था | उससे पहले मृदुला के दो बड़े भाई थे | इस बार उसके माता-पिता को एक बिटिया की इच्छा थी | समय पर मृदुला का जन्म हुआ, सब बड़े खुश थे |डॉ. ने बच्चे को पिता के हाथ में देते ही एक तुषारापात कर दिया ;

"बेटी है न ---? "पिता बड़े उत्साह में थे |

डॉक्टर चुप थी, उसके मुख से कुछ शब्द ही नहीं निकल रहे थे|

"बोलिए न डॉक्टर साहिबा, बिटिया है न ? "

पिता ने हाथ में पकड़ी कपड़े की पोटली को देखते हुए एक बार फिर से पूछा | कपड़ा हटाकर बच्चे का लिंग तो वह देख नहीं सकता था, आख़िरकार पिता था |

"ये ----थर्ड जेंडर है ---"बहुत मुश्किल से डॉक्टर के मुख से शब्द निकले | बच्चे का जन्म होते ही डॉक्टर के पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई थी |
"मतलब --- "मृदुला के पिता का हाथ बच्ची को लेकर काँप उठा |

"मैं आपको मतलब तो कैसे समझाऊँ भाऊ --पण ये न तो बेटा है, न ही बेटी --"डॉक्टर का स्वर भी रुआँसा था | जानती थी भाऊ की पोज़ीशन व उनकी इच्छा को लेकिन उसके हाथ में तो कुछ भी नहीं था |

उन थिरकते हाथों से यदि डॉक्टर ने बच्चे को न ले लिया होता तो शर्तिया वह ज़मीन पर पटक दी जाती और उसके प्राण-पखेरू हो जाते |

बच्ची के पिता ने डॉक्टर की आफ़त कर डाली थी किन्तु उसके वश में क्या था ? वह इतना निर्मम बन गया था कि उसने बच्चे की माँ को भी बच्चा देखने नहीं दिया और पत्नी को लेकर घर आ गया |

"देखने तो देते ----"माँ अपने नवजात शिशु को देखने के लिए रोती, कलपती रही |

"क्या देखोगी --माँस के लोथड़े को ---? "उन्होंने पत्नी को जताया कि उसने मृत बच्चे को जन्म दिया था |

किसी माँ के मरी हुई संतान भी जन्म लेती है तब भी वह उसे अपनी गोदी में लेकर, अपने हृदय से चिपटाकर धाड़ मारकर चीख लेती है, ईश्वर से थोड़ी नाराज़गी प्रगट कर लेती है, उससे इस अन्याय का कारण पूछ लेती है पर उसके बच्चे को तो उसके हाथों में दिया ही नहीं गया था |