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एक दुनिया अजनबी - 28

एक दुनिया अजनबी

28-

मृदुला सुरीली थी, अक्सर उसे ही गाते देखा है उसने |वह गा रही थी ;

ठाढ़े रहियो ओ बाँके यार रे ----

दो किन्नर उस पर नाच रहे थे |

गज़ब का लचीलापन था उसकी आवाज़ में --

इसके बाद उसने गाना शुरू किया ;

डमडम डिगा डिगा, मौसम भीगा भीगा

बिन पीए मैं तो गिरा ---

कितना पुराना गाना ! आज तक ज़िंदा है ? वह कोई क्लासिक चीज़ तो थी नहीं, फिर भी | कुछ चीज़ें ख़ास क्षेत्र में लंबे समय तक ज़िंदा रहती हैं, उसने सोचा |

उस दिन उसे जैसे एक तारतम्य में रेलगाड़ी वाली किन्नर जिसने उसकी बर्थ से गिरती हुई बेटी को सँभाल लिया था जो उसके बेटे को पार्ले बिस्किट का पैकेट देकर भरी आँखों से ओझल हुई थी और साथ ही उसके ही नृत्य-गुरु जी से दीक्षा लेने वाली वेदकुमारी भी याद हो आई | मृदुला तो वर्तमान में उसके सामने थी ही|

उसने देखा है अक़्सर इन लोगों के पैट गाने होते हैं या फिर कुछ ब्याह के, या जच्चा-बच्चा ! हाँ, एक आशीष का गाना ज़रूर होता है जिसे ये सब मिलकर गाते हैं |एक मृदुला ही थी जिससे सेमी क्लासिकल गानों की फ़रमाइश की जाती, पूरी महफ़िल जैसे गुप्प होकर बैठ जाती थी उस समय, जब ये गाती थी |इनके साजिंदे भी साथ होते, बहुत अच्छा ग्रुप था इनका !

अपने वर्तमान समय की अजीब सी स्थिति ने उसे एक किनारे पर ला खड़ा कर दिया है |अब वेदकुमारी जैसी ही ख़ूबसूरत मृदुला उसके घर हर बार-त्यौहार पर आती | वह कहीं से भी एक किन्नर नहीं लगती थी जैसे वेदकुमारी की बहन ही हो |

मृदुला से मिलना भी उसके लिए एक अनहोनी घटना से कम नहीं था जिसके बारे में केवल उसके पति जानते थे, वो भी इसलिए कि पति-पत्नी में अच्छी मित्रता थी, दोनों अपनी-अपनी बातें, समस्याएँ एक-दूसरे से शेयर करते | अपने बचपन व किशोरावस्था की सब बातें उसने उनसे शेयर की थीं|यौवनावस्था में तो वह उनकी ज़िंदगी में आ ही गई थी | उन दोनों में एक मित्रता भरी समझ पनप गई थी जिसमें सभी बातें पारदर्शी थीं |

पड़ौस के एक घर में लगभग दस वर्ष पहले मृदुला अपने पूरे टोले के साथ आई थी जब उस घर के इकलौते पुत्र का विवाह हुआ था | दस वर्षों बाद उस घर में बेटे का जन्म हुआ था, उन्होंने अपने सारे रिश्तेदारों को इक्क्ठा कर लिया था और बहुत बड़े पैमाने पर कार्यक्रम किया था |एक विवाहोत्सव जैसा कार्यक्रम था, उसी बच्चे को आशीर्वाद देने व बधाइयाँ गाने मृदुला का टोला आया था |वैसे इस कॉलोनी में विभा जबसे आई थी तबसे ही मृदुला व उसके टोले का यहाँ आना-जाना शुरू हुआ था |

उस दिन गर्मी कुछ अधिक ही थी | गाना-नाचना करने के बाद जब सब लोग विदा लेने लगे, जाने क्यों मृदुला को चक्कर आने लगे | बच्चे वाले घर से उनकी सब लेन-देन हो चुकी थी और पूरा जत्था उधर से निकल रहा था | किन्नरों के इस ग्रुप ने एक वैन खरीद रखी थी और हर जगह ये सब उसीसे आते-जाते थे |

उस घर के ठीक सामने मि.शर्मा का यानि विभा का घर था | मृदुला को बहुत गर्मी लग रही थी, उसे चक्कर आ रहे थे, उत्सव वाले घर में बहुत भीड़-भड़क्का होने के कारण आराम करने की सुविधा नहीं थी |वैसे भी इन लोगों की अधिकतर घर के आँगन तक ही तो पहुँच होती है |

एक शर्मा जी का ही घर था जहाँ मृदुला बिना किसी रोक-टोक के आ-जा सकती थी |

"मृदुला ! तुम इधर, मेरे घर पर आराम कर लो, मैं तुम्हें नींबू -पानी बना देती हूँ|फिर ऑटो से चली जाना| " विभा ने अपनत्व से कहा |

"मृदुला की 'ग्रुप-लीडर लक्ष्मी अम्मा थीं, उन्हें विभा का विचार सही लगा | उन लोगों को अभी कई घरों में बधाईयाँ देने जाना था |

"पर, भैया होंगे न घर पर ? "मृदुला ने संकोच से कहा |

"कमाल हो मृदुला ---भैया तुम्हें जानते हैं न | हर बार तो दिवाली, होली पर आती हो | भैया तुमसे अनजान तो नहीं हैं ---"विभा ने हँसकर कहा था |

इस प्रकार पहली बार मृदुला विभा के घर पर आराम करने के लिए आई | विभा नीबू-पानी बनाने चली गई, शर्मा जी घर पर ही थे ;

"कैसी हो मृदुला ? क्या हुआ ? "

"अच्छी हूँ भैया, आप कैसे हैं ? देखिए न, आपको परेशान करने आ गई | थोड़ा सा चक्कर आ गया था, दीदी ले आईं मुझे ---"

"अरे ! तो क्या हुआ ? तुम्हारा ही घर है ---" सरल भाव से शर्मा जी ने बड़े अपनत्व से उत्तर दिया था |

मृदुला की आँखें झरने की तरह झरने लगीं |अब तक विभा भी अपने हाथ में ग्लास पकड़े पहुँच गई थी | पति को उससे बात करते देख उसे अच्छा भी लगा और आश्चर्य भी हुआ | शर्मा जी किसी से बहुत जल्दी खुलते नहीं थे, आज मृदुला से बड़े अपनत्व से बातें कर रहे थे |

"देखना ज़रा, इसकी तबियत ज़्यादा खराब तो नहीं है ? मैं डॉक्टर को बुलाऊँ ? "वे वास्तव में चिंतित थे, मृदुला के आँसू रुक ही नहीं रहे थे और शर्मा जी सकते की हालत में थे | उन्होंने तो उससे केवल उसके हालचाल जानने की कोशिश की थी|

"क्या हुआ मृदुला, ज़्यादा कुछ हो रहा है क्या ? चलो, ये नींबू-पानी पीयो --" विभा ने अजीब सी स्थिति में बैठी मृदुला को उठाकर ग्लास उसके हाथ में पकड़ाया |

"नहीं दीदी ठीक हूँ -वो तो भैया ने इतने अपनेपन से पूछा तो मैं अपने को रोक नहीं पाई --"

उसने ग्लास में से घूँट-घूँट शर्बत पीना शुरू किया, उसकी आँखों से झरते आँसू शर्बत के ग्लास में टपक रहे थे | विभा ने उसके हाथ से ग्लास ले लिया ;