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ये भी एक ज़िंदगी - 6

अध्याय 6

घर में आकर बताया घर वाले भी बड़े खुश हो गए। लड़का मुकेश स्वतंत्र विचारों का है। लड़की यहां पर खुश रहेगी।

मुकेश को कह दिया हम सब तैयार हैं। मुकेश ने भी कह दिया मैं तैयार हूं। मैं एम.ए. फाइनल में थी। जवान लड़की के मन में लड्डू तो फूटते ही हैं।

पापा मम्मी को लगा हम बेकार में इतने परेशान हो रहे थे हमें तो बहुत बढ़िया लड़का मिल गया।

लड़के मुकेश को बुलवाया गया। आ जाइए शादी पक्का-वक्का कर देते हैं। मुकेश जी पधार तो गए। पर कोई भी बात सीधे तरह से कह नहीं रहे थे। कह रहे थे इसे M.A. फाइनल कर लेने दो, फिर करेंगे। हमारे बीच में समझौता करने वाले एक डॉक्टर दंपत्ति बीच में थे। उन्होंने भी कहा M.A. तो कर ही लेगी। मुकेश जी बोले "जरूर क्यों नहीं शादी M.A. के बाद ही होगी। अभी सिर्फ पक्का कर दीजिएगा ।"

मम्मी मेरी अड़ गई। "शादी अभी करनी है तो हम सगाई करेंगे वरना सगाई भी हम बाद में ही करेंगे | इतने दिनों तक शादी को रोकना ठीक नहीं |"

मुकेश जी अपनी जिद्द पर अड़े हुए थे। रात काफी देर तक बहस हुई। आखिर मेरी मां ने कहा हम यहां शादी नहीं करेंगे। यह आदमी एक डिसिजन भी ले नहीं सकता वह आगे क्या करेगा? मेरी मां तो तेजतर्रार और होशियार भी थी । अम्मा ने डिसिजन ले लिया यहां नहीं करना। रात को सब सो गए।

सुबह जब उठे तो मुकेश जी बोले "माता जी मैं तैयार हूं।" फिर चारों तरफ खुशी का वातावरण हो गया और शगुन के एक सौं एक रुपये देकर रोका हो गया। शादी की डेट 30 नवंबर को फिक्स हो गई।

उनको वापस जाने के लिए ट्रेन कब-कब है पूछने के लिए बड़े भैया को स्टेशन भेजा।

"भैया बोला दोपहर को 12:00 बजे ट्रेन है।"

"खाना खिलाकर मुकेश जी को रवाना कर दिया।"

मुकेश जी स्टेशन पहुंचे तो पता चला ट्रेन दिन के नहीं रात के 12:00 बजे हैं। अब मुकेश को सारा दिन स्टेशन पर ही गुजारना  पड़ा । मुकेश जी रात के 12:00 बजे ट्रेन में बैठे। मन ही मन सोच रहे थे कि इस लड़के ने ऐसा क्यों किया? हमें तो यह बात बताई नहीं। यह बात तो शादी के बाद पता चली। जब मुझसे पूछा "तुम्हारे भाई ने ऐसे क्यों किया?" तब मुझे पता चला |

"मेरा भाई ऐसे करने वाले में से तो नहीं है परंतु सीधा है दिन के या रात के 12:00 बजे ध्यान नहीं दिया यह उसकी गलती थी।"

मेरी मां को बहुत चिंता हुई कि क्या होगा कैसे होगा जो होगा ठीक होगा क्या? मुकेश ठीक रहेगा क्या ? कोई धोखा तो नहीं होगा ?

हमारे पिताजी तो मुकेश शर्मा जी की तारीफ करते न अगाते थे।

शादी तो सिंपल ढंग से करनी थी। खास परिवार के दो-तीन मित्रों को बुला लिया था। ताकि गवाही दे सकें ।

दूल्हे मुकेश जी ने कहा था मेरे बाबूजी तो नहीं आएंगे। पर मेरा छोटा भाई किशन और एक-दो लोग आ जाएंगे। पर ऐन वक्त पर सिर्फ दूल्हा मुकेश ही आया। ऐन वक्त पर कर भी क्या सकते थे। अम्मा तो बहुत परेशान हुई | मेरे पापा ने ज्यादा चिंता नहीं की | मन में उठे संशय को दूर न कर पाने पर भी  शादी कर दी। भगवान के ऊपर भार डाल दिया। भगवान जो करेगा भला करेगा। ऐसा सोच लिया |

बहुत ही साधारण ढंग से शादी कर दी गई। मेरी मां मेरे लिए बहुत सारे गहने चांदी के बर्तन सब देने लगी। तो उनके मित्रों ने कहा "अभी ज्यादा मत दो एक बार जाकर आने दो फिर देना।"

फिर भी बहुत कुछ दे दिया। दूसरे दिन तो नहीं तीसरे दिन मैं और मुकेश जी गंतव्य स्थान की ओर रवाना हो गए।

ना बारात, न लोग, ना रिश्तेदार बड़ा ही अजीब सा माहौल था ! पता नहीं मेरे मां-बाप ने भी कैसे मुझे भेज दिया! अभी सोचो तो मुझे आश्चर्य होता है। उस समय मैं डरी नहीं पता नहीं क्यों? जब जो होना होता है शायद इसी को कहते हैं होनी को कोई टाल नहीं सकता!

सीधी गाड़ी तो थी नहीं तीन चार जगह गाड़ी बदलकर जयपुर पहुंचे। जयपुर से छोटे गांव में पहुंचना था।

रास्ते में पति मुकेश फरमाते हैं "वहां सबसे यह मत कहना अभी शादी हुई है। यू कह देना पहले से शादी हुई है।"

"ऐसा क्यों ?" ऐसा क्यों |

"इनकम टैक्स ज्यादा लगता है ना इसीलिए मैंने सबसे कहा हुआ है कि मैं शादीशुदा हूं।" मुझे तो ऐसा लगा मेरे सिर पर किसी ने हथौड़ा मार दिया हो।

इनकम टैक्स के बारे में मैं कुछ भी नहीं जानती थी। वह उसे सच साबित कर रहे थे। अब सीधी सादी लड़की मैं भी उसे सही मान लिया।

वहां गई तो मेरी बड़ी आवभगत हुई। चपरासी ने खाना बनाया। वहां लाइट भी नहीं थी। बहुत बड़ा पुराना महल था। सर्दी का मौसम जल्दी ही अंधेरा हो जाता था । हम शाम को 6:00 बजे पहुंचे अंधेरा हो गया था। मुझे तो भूत बंगला लगा। डरते-डरते सीढ़ियां चढ़ी।

ऊपर के मंजिल में रहने का मकान था। इतने विशाल कमरे जिसमें हमारा पूरा घर समा जाएं। खाना खाकर सो गए।

सवेरे उठ कर देखा तो एक पोस्टकार्ड पड़ा था। मैं उत्सुकता वश उसे उठाकर पढ़ने लगी‌।

प्रिय बेटा,

यहां राजी खुशी है। वहां तुम ठीक होगे। अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखना। तुमने शादी की बात लिखी थी। खुशी की बात है तुम शादी कर लो। कोई चिंता मत करो। अभी एक नया कानून पास हुआ है। सरकारी कर्मचारी भी एक बीवी होते हुए दूसरी शादी कर सकता है। तुम कोई चिंता मत करो। मुसलमान भी तो कई बीबी रख सकते हैं। मेरा सिर चकराने लगा। "यह क्या लिखा है?" मैंने पूछा।

"मेरी शादी हो गई थी । क्या करूँ कुछ समझ में नहीं आया | मेरा दिमाग खराब हो गया।"

24 साल की लड़की क्या करती। फोन की सुविधा तो उस जमाने में था ही नहीं। इस गांव से चिट्ठी लिखो तो वह कब पहुंचेगा पता नहीं। पोस्ट तो मैं कर नहीं सकती ? किसी को देना पड़ेगा। क्या करूं? घर वालों को कैसे बताऊं? बताना चाहिए क्या? नहीं बताना चाहिए? यह किस दुविधा में मैं पड़ गई?

चपरासी ने आकर बताया "आपसे मिलने कोई आया है।"

उस अनजान औरत से मैं क्या कहती? उसका आदर सत्कार किया। चपरासी चाय बनाकर लेकर आया। मैंने अपनी लाई हुई मिठाइयां उन्हें दी।