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सफ़रनामा: यादों का एक सुनहरा दौर - भाग २ - निर्दोष

शामलाजी, गुजरात-राजस्थान बॉर्डर पर गुजरात के अरवल्ली जिले में स्थित एक छोटे से कस्बे में पिछले कुछ दिनों से काफी हलचल थी। नया साल बस १ दिन की दूरी पर था और अरवल्ली पुलिस को बड़ी मात्रा में कोई अवैध दारू की तस्करी होने की सूचना अपने सूत्रों द्वारा मिली थी। इस तस्करी को रोकने के लिये शहरी पुलिस ने हाईवे पर चुस्त बंदोबस्त किया था ताकि, कोई भी वाहन बिना पुलिस चेकिंग वहां से गुज़र न सके।

इस चुस्त बंदोबस्त के पीछे की एक प्रमुख वजह यह थी कि, कुछ दिनों पहले डिलक्स गैस जो गुजरात की रसोईया गैस उपलब्ध करवाती मुख्य कंपनीयो में से एक थी उसकी ट्रक से बड़ी ही मात्रा में अवैध दारू की तस्करी पकड़ी गई थी जिसमे पुलिस को अपनी कार्यप्रणाली को लेकर मीडिया के कई सवालों का सामना करना पड़ा था। अपनी इसी छबी को सुधारने और गुजरात की ड्राई स्टेट की छबी को कोई आंच न आने पाये इसी उद्देश्य से पुलिस हर संभव प्रयास कर रही थी।

तकरीबन, आधा दिन गुज़र चुका, दोपहर तक कोई ऐसी घटना घटी ही नही। ऐसा मालूम पड़ रहा था कि शहरी पुलिस अपने सूत्रों द्वारा मिली जानकरी पर भरोसा करके भूल कर बैठी थी या फिर अवैध दारू की तस्करी करनेवालो को पुलिस के इस ऑपरेशन का पता लग चुका था और उन्होंने अपनी योजना को अंजाम देने का वक़्त या तरीका बदल दिया था।

शाम के लगभग ४:३० मिनट का वक़्त होने को था, हवालदार मनु सितापरा ने एक ट्रक को अपने हाथ मे पुलिस का डंडा आड़ा दिखाते हुवे सिटी बजाके रोका।

"क्या हुआ साब?" साइड पर ट्रक को रोककर ट्रक ड्राइवर ने हवालदार से पूछा। जवाब में हवालदार ने ड्राइवर को ट्रक से नीचे उतरकर पुलिस जांच में सहयोग देने के लिये कहा।

आधी से ज़्यादा ज़िंदगी जी चुका वह ड्राइवर उम्र के ७० के दशक के नज़दीक पहुंचा सा दिखाई पड़ता था। चेहरे पर पड़ी झुर्रियां, और उसके फटे-पुराने कपड़े जो धूमिल हो चुके थे, साथ उसकी लाल रंग की टोपी जो वक़्त के साथ-साथ अपना वास्तविक रंग खो चुकी थी और कई जगहों से जीर्ण हो चुकी थी गंवाही दे रही थी कि, ड्राइवर की जिंदगी कितनी संघर्ष भरी रही थी, उसने अपनी पूरी जिंदगी में कभी खुशियाँ नही देखी थी, यदि देखी भी तो वे क्षणिक भर की थी। ख़ुशियों ने उसके घर का दरवाजा हमेशा के लिये कभी खटखटाया ही नही था।

"लाइसेंस दिखाओ अपना।" RJ14-BD-1945 ट्रक की नम्बर प्लेट को पढ़ते हुवे हवालदार ने कहा।

"अच्छा तो अब्दुल समद नाम है तुम्हारा, हिमाचल से हो। पर यह ट्रक तो राजस्थान की है न? क्या है इस ट्रक में? तस्करी या चोरी का माल तो नही?" बिना ट्रक ड्राइवर की उम्र का तकाजा किये हवालदार ने अपनी वर्दी का रॉब जाड़ते हुवे कई सारे सवाल एक ही साथ कर डाले।

"कुछ नही साब, बस सेब के बक्से भरे हुवे है, कल तक अहमदाबाद पहुचाने है।" हवालदार के या फिर उसकी वर्दी के रोब से डरा हुवा वो सहमी सी आवाज़ में बोला।

"चलो, खोलो इस कार्गो को, दिखाओ हमें।" वर्दी का रॉब जमाना चालू रखते हुवे बिना ही ड्राइवर की ओर देखे वो ट्रक के पिछले हिस्से की ओर बढ़ने लगा और ड्राइवर भी हवालदार के पीछे धीमे-धीमे कदम उठाकर उसके आदेश का पालन करने के लिये चल पड़ा।

बहुत सारे बक्से और सुखी हुई घास नज़रो के सामने थी जब ड्राइवर ने कार्गो का दरवाजा खोला, विस्तार से चेकिंग करने के लिये हवालदार ने अपने एक और सहकर्मी को आवाज़ लगाई और वे दोनों ट्रक में चढ़कर बक्सों की तलाशी लेने लगे।

देवदार की लकड़ी से बने उन बक्सों पर हरे रंग में आर्मी स्टेंसिल तरह के अक्षरों में हिंदी भाषा के शब्द 'कश्मीरी सेब' अंग्रेज़ी में अंकित किये हुवे थे। हवालदार बारी-बारी से सभी बक्सों की तलाशी ले रहे थे और अब तक के जितने भी बक्से उन्होंने तलाशे उनमे से सिर्फ और सिर्फ सेब ही निकले सेब के अलावा और कुछ नही मिला।

लेकिन, जब वे बक्सों की अंतिम लाइन की ओर बढ़े और अंतिम लाइन के बक्सों की तलाशी लेने के लिये बक्सा खोला तो बक्से के साथ-साथ हवालदार की आँखे भी खुली की खुली रह गयी।

"देखिये सर, हमें क्या मिला है!" ट्रक में से चिल्लाये हुवे उस हलवालदार की आवाज़ अरवल्ली जिले के DYSP अर्जुन सिंह तक पहुंची जो हाईवे के साइड में बनी एक कामचलाऊ हेड पोस्ट पर कोई २ नागरिक के साथ कुछ पेपरवर्क करने में व्यस्त था।

शामलाजी पुलिस पर लगे इल्ज़ाम और पुलिस की प्रतिष्ठा को बनाये रखने के हेतु और उद्देश्य से अर्जुन खुद वहां पर उपस्थित था। अन्य पुलिसवालों से वह बिल्कुल ही विपरीत था। उसकी लंबी हाइट, चौड़ा सीना, घुमावदार मुछे, क्लीन शेव, आंखों पर लगे काले चश्मे, हाथ मे पहनी हुई महंगी घड़ी, बिना धूल लगे बिल्कुल साफ-सुथरे उसे एक ऐसा पुलिसवाला बनाती थी जिसे देखकर हर बॉलीवुड का डायरेक्टर अपने हीरो को कोई फ़िल्म में पुलिसवाला बना सके।

हलवालदार की आवाज़ सुन अपना सारा पेपरवर्क छोड़ वह अपने कामचलाऊ आफिस से बाहर निकला और ट्रक की ओर बढ़ने लगा। जब वह ट्रक के पिछले हिस्से की तरफ पहुंचा तो हवालदार ने अंग्रेज़ी शराब की बोतल हाथमे उठाकर दिखाई जिसको अर्जुन ने उसकी ओर फेंकने को कहा।

"बड़वाइज़र, अंग्रेजी है यह" हवालदार द्वारा फेंकी गई बोतल को कैच कर ठीक से निहारते हुवे अर्जुन ने कहा।

"तो कुल मिलाकर कितनी बोत्तल मिली है, हवालदार साहब?" हवालदार के छोटे से होदे का व्यंग्य करते हुवे अर्जुन ने पूछा जो हवालदार की छोटी सी समझ से बिलकुल परे था। वो तो बस इसी बात को सोच कर खुश था कि, उसने दारू से भरी एक यरख पकड़ी थी और अब उसकी प्रमोशन होगी। मन ही मन वो ख्याली पुलाव पंकाने लगा था।

"सर ज़्यादा तो नही २०-२५ बोतलें है।" अर्जुन के सवाल का जवाब देते हुवे हवालदार ने ड्राइवर की ओर देखते हुवे चेहरे पर शैतानी मुस्कराहट के साथ कहा।

अपनी ट्रक में दारू की यह बोतलें देख ड्राइवर तो मानो सकपका गया था उसके पैरों तले से ज़मीन खिसक गयी थी। वो आंखों देखी पर यकीन नही कर पा रहा था कि, आखिरकार क्या हो चुका था। उसे बस इसी बात की चिंता खाये जा रही थी कि, वो उम्र के इस पड़ाव में जेल नही जाना चाहता था। उसकी शक्ल भी यह बात बयां कर रही थी कि, वो निर्दोश था और उसे फंसाया जा रहा था। खुद को इतनी बड़ी सी मुसीबत से कैसे छुड़ाये यह उसकी समझ मे नही आ रहा था। वह अर्जुन के कदमो में गिरकर गिड़गिड़ाने लगा।

"मैं निर्दोष हूं साहब, मैं निर्दोष हूं।" बुढ़ापे में उसकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगी जो उसके चेहरे पर जमे हुवे मेल को धो रही थी लेकिन, साथ-साथ ही उसे और भी ज़्यादा मायूस और उदास बना रही थी।

"उठिये चचा, यह क्या कर रहे है आप?" उस बूढ़े ड्राइवर के कंधों को सहारा देते हुवे और उसकी ज़ाहिफी का लिहाज़ करते हुवे उसको उठाते हुवे अर्जुन ने कहा।

"मैं नही जानता साहब, यह बोतलें मेरी ट्रक में कैसे आयी, मैं निर्दोष हूं साहब, खुदा के लिये मुझे जाने दिजिये।" अपने हाथ जोड़कर वो अपने उस खुदा का वास्ता देने लगा जिसने उसके जीवन मे सिर्फ और सिर्फ कठिनाइयां ही लिखी थी।

"पानी लाओ चचा के लिये।" ड्राइवर की कही जा रही हर एक बात को अनसुना करते हुवे अर्जुन ने पास में खड़े हवालदर को आदेश देते हुवे कहा।

"यह लीजिये चचा, पानी पीजिये और इत्मीनान रखे।" पानी का गिलास ड्राइवर के हाथों में थमाते हुवे अर्जुन ने कहा जो पानी का गिलास लेने के लिये ना-नुकर कर रहा था।

जब उसके थरथराते हुवे बूढ़े हाथो ने अर्जुन के हाथ से पानी का गिलास थामा तभी अर्जुन ने अंदाज़ा लगा लिया था कि, सच मे ही ड्राइवर बिल्कुल ही निर्दोष था और उसे फंसाया जा रहा था और पुलिस को भी गुमराह किया जा रहा था।

"तो बताइये चचा, कहा लेकर जा रहे थे यह बोतलें?" भले ही अर्जुन ने ड्राइवर के निर्दोष होने का अंदाज़ लगा लिया था, भले ही उसका अंदाज़ यह भी कह रहा था कि, पुलिस को गुमराह किये जा रहा था लेकिन फिर भी, उसका पुलिस दिमाग इस बात का प्रमाण मांग रहा था और इसी प्रमाण के चलते अर्जुन ने ड्राइवर की उम्रदराज़ी का लिहाज़ करते हुवे प्रश्न पूछा।

अभी पानी का गिलास पीने से ड्राइवर को तसल्ली क्या मिली थी कि, अर्जुन के इस सवाल ने ड्राइवर को फिर से डरा दिया उसकी आँखों से फिर अश्रुधारा बहने लगी और वह अपनी कही हुई बात फिरसे दोहराने लगा कि, वो निर्दोष है।

"चलिये चचा, एक पल को हम मान भी लेते है कि, आप निर्दोष है, आपको फंसाया जा रहा है, लेकिन यह बोतलें आपकी ट्रक में कब और कैसे आयी? खुद चलकर तो आयी नही होगी? आपने नही रखी होगी तो किसी और ने रखी तो होगी न! बस उसका नाम बता दीजिये, मैं आपसे वादा करता हूँ कि आपको कुछ नही होगा, आपको मैं यही से ही छोड़ दूंगा, बिना कोई कानूनी करवाई के।"

अर्जुन की बात सुन ड्राइवर खामोश रहा। उसका बस एक ही कहना था कि, वह निर्दोश है और उसे नही पता कि, वो बोतलें कब, कैसे उसके ट्रक में आयी।

"चचा, कही ऐसा तो नही, थोड़े-बहुत पैसे कमाने के चक्कर मे थोड़ी सी बोतलें आपने अपने ट्रक में रखवा दी हो और अगर पकड़े भी जाते हो तो सब यही कहेंगे कि, पुलिस को असली अपराधी नही मिला तो एक बिचारे मजबूर, गरीब, लाचार, बेबस, बूढ़े इंसान को फंसा दिया और फिर हमें मजबूरन आपको छोड़ना पड़े, नही चचा?" अर्जुन ने ठीक वैसे ही कड़वी और रुआबदार बात कही जो हर पुलिसवाले की पहचान करवाती है।

"साहब, मैं एक पक्का मुसलमान हूं, इस्लाम हमें कभी इसकी इज़ाज़त नही देता, और साहब, पैसा कमाना तो दूर की बात ऐसी हराम की चीज़ों को मैं हाथ भी नही लगाता।" अर्जुन के बारी-बारी पूछे जाने पर भी ड्राइवर था कि अपनी बात पर अड़ा ही रहा।

अर्जुन चाहता तो था कि, ड्राइवर को जाने दे, ड्राइवर की बात पर उसे विश्वास भी आने लगा था लेकिन, वह अपने फ़र्ज़ से बंधा हुई था। अपनी वर्दी के प्रति उसकी एक ज़िम्मेदारी थी जो उसे ऐसा करने से रोक रही थी। आखिरकार उसने ट्रक को पुलिस स्टेशन के कंपाउंड में ले जाने का आदेश दे दिया जहां पर ज़ब्त किया गया अवैध माल और उपयोग में लिये गये वाहन को रखा जाता था। वैसे देखा जाये तो ज़ब्त किये हुवे माल और वाहनों को रखने के लिये सरकार द्वारा कोई खास व्यवस्था उपलब्ध करवाई नही गयी थी जो पुलिस की कार्यप्रणाली तो ठीक सरकार की कार्यप्रणाली पर भी कई सारे सवाल उठाती थी जो गुजरात को एक ड्राई स्टेट के रूप में दिखाने के देश भर में डींगे बजा रही थी।

जब हवालदार सितापरा ट्रक को पुलिस स्टेशन के कंपाउंड में ले जाने के लिये ट्रक में चढ़ा ही था तभी, तेज़ गति से एक और ट्रक सामने की ओर से आती हुइ दिखी। दूर से देखने पर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि, ट्रक ड्राइवर बहुत ही जल्दी में था। दूर से खड़े हवालदार ने सिटी बजाते हुवे अपने हाथ मे डंडा पकड़े हुई ट्रक को साइड में पार्किंग करने का इशारा किया लेकिन, ट्रक ज्यो की त्यों यूँही आगे बढ़ती रही। जब हवालदार को लगा कि, अब यह नही रूकेगा तो उसने सही वक़्त पर छलांग लगा दी और अपनी जान बचा ली। हाईवे पर बने सेफ्टी बैरियर्स को रौंदते हुवे वह ट्रक आगे निकल गयी जैसे कानून नाम की कोई चीज़ दुनिया मे थी ही नही, और अगर थी तो उसे कुछ फर्क नही पड़ता था।

"राणे, गाड़ी निकालो।" जब ट्रक सारे सेफ्टी बैरियर्स को रौंदते हुवे आगे निकल गया तब उसका पीछा करने के लिये अर्जुन ने अपने ड्राइवर राणे को आदेश दिया।

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