Bahubali-3 - bhag-1 books and stories free download online pdf in Hindi

बाहुबली - 3 - भाग-1

एक परछाई तहखाने में कदमों की आहट के साथ बढ़ रही थी यह कटप्पा थे ,कटप्पा के हाथों में खाने की थाली थी दोनों तरफ सलाखें थी तहखाने में कोई शोरगुल नहीं था ,यहां पर मंद अंधेरा था ,कटप्पा आगे से दाएं और मुड़े, सामने की सलाखों के पीछे एक सक्ष अधमरी - सी हालत में जमीन पर पड़ा था ,खुले केशो ने उसके चेहरे को ढक रखा था
कटप्पा उस व्यक्ति के पास जाकर रुक गया और सलाखों के नीचे से उस थाल को धीरे से उस व्यक्ति की तरफ धकेल दिया
"खाना खा लीजिए "- कटप्पा ने कहा
पर उस वक्त उस तरफ से कोई जवाब नहीं मिला-" क्या आप अभी भी यही सोच रहे हैं कि इस चारदीवारी के बाहर भी आपकी कोई दुनिया है "-कटप्पा बोले जा रहे थे -"तो आप बिल्कुल गलत सोच रहे हैं आपकी अंतिम सांसे भी इन सलाखों के पीछे ही निकलेगी । आपको इस सत्य को अपनाना होगा"- कटप्पा ने कहा
उस सक्ष ने धीरे-धीरे हंसते हुए उठने की कोशिश , बालों ने अभी भी चेहरे पर घेरा बना रखा था -"कटप्पा ...!"-इसी शब्द के साथ उस व्यक्ति ने अपने बालों को झट से पीछे दे मारा, यह विज्जलदेव थे -"यह सत्य नहीं ,तुम्हारी भूल है । बहुत बड़ी भूल, अभी सूरा जिंदा है और जब तक सूरा जिंदा है तब तक महेंद्र बाहुबली को विजय तिलक नहीं लगाना चाहिए"- विज्जलदेव ने उन्हें बताया
" मूर्ख है रे तु! जिसे अपने पिता की याद नहीं आई ,वो तुम्हें क्या याद करेगा। और वैसे भी वह अपनी जिंदगी से बहुत खुश होगा। महेश मती से भीड़कर वह अपनी खुशी को बिल्कुल कम नहीं करना चाहेगा "
बिजल देव पुनः हंसने लगा-" जब देवसेना इतने वर्षो से अपने उस पत्र का इंतजार कर सकती है जिसका यह पता भी नहीं था कि वह जीवित है या मर गया तो मैं तो फिर भी अपने उस पुत्र का इंतजार कर रहा हूं जो अभी जीवित है ,"
"हमारे महाराज के आने के बाद इस साम्राज्य की ताकत दोगुनी हो गई है ,ऐसे में कोई भी साम्राज्य माहिष्मती से भिड़ने के बारे में सोच भी नहीं सकता"- एक आक्रोश के साथ जवाब दिया
" नहीं कटप्पा! तुमने मुझे पहचानने में गलती कर दी, यदि अच्छी तरह जानते तो ताकत की बात कभी नहीं करते क्योंकि बड़ी बड़ी ताकतों को मैंने छोटे-छोटे षड्यंत्र से हल किया है। क्या तुम समझ रहे हो कटप्पा ? की मैं क्या कहना चाहता हूं " - विज्जलदेव ने बताया
"कुछ समय पश्चात तुम्हें यह आभास हो जाएगा कि यह चारदीवारी ही तुम्हारी जिंदगी का सत्य है "
"बहुत जल्द देखना कटप्पा, पानी पुल के नीचे से ही गुजरेगा!"
" तुम्हारे पापों का घड़ा इतना भर चुका है विज्जलदेव, कि मुझे तुम्हें दी हुई यह सजा बहुत कम लग रही है यदि सजा देने का मौका मुझे मिले तो इसी वक्त तुम्हें ...!"-कटप्पा ने क्रोध दिखाया
विज्जलदेव कटप्पा की बात पूरी होने से पहले ही जोर से हंसने लगा-" तुम एक गुलाम हो कटप्पा .! "- विज्जल देव ने कहा
मगर कतप्पा के चेहरे पर जरा भी सिकान न थी।
"तुम्हें आदेसो का पालन करना आता है जल्द ही इस सिघसन पर सुरा बैठने वाला है तब तुम्हारी जगह सिर्फ हमारे पैरो टल होगी "
"तुम बी यही हो और हम भी यही है विजजल देव ,जल्दी ही तुम्हें आभास हो जाएगा कि यही सलाखें तुम्हारी जिंदगी का असल सत्य है"- इतना कहकर कट्टपा वापस मुड़े और जाने लगा
"जाओ जाओ कटप्पा!"- विज्जलदेव ने पीछे से हंसते हुए कहा -"आज से दिन गिनने शुरू कर दो जल्दी हमारी सुभ मुलाकात होगी "- विज्जलदेव ने पुनः बताया
कटप्पा शब्दों को अनसुना कर चलता रहा

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"मालिक! हमने आपके पराक्रम और दयालुता के बारे में बहुत से किस्से सुने हैं"-यह एक गरीब आदमी अपने 5-6 साथियों के साथ आया हुआ है, सामने की उच्च गद्दी पर महेंद्र बाहुबली बैठा हुआ था-" हम बहुत दूर से इस आश से आए हैं कि आप हमारी सहायता अवश्य करेंगे"
" आप अपनी समस्या बताइए साथी "-शब्दों के साथ ही बाहुबली अपने सिंहासन से खड़ा हो गया
"हम आपकी सहायता अवश्य करेंगे "-बाहुबली ने पुनः बताया
दरबार में देवसेना अवंतिका सरदार और संपा सभी अपने अपने स्थान पर विराजमान थे ।
"महाराज हमारा गांव छोटा सा गांव है जो जंगल के कंठ पर स्थित है जब भी गांव से युवतियां लकड़ी के लिए जंगल की तरफ जाती हैं तब तब कोई जंगल का विशाल जानवर उन्हें अपना शिकार बना लेता था इसी वजह से गांव के युवक-युवतियों ने जंगल में जाना ही छोड़ दिया लेकिन..!"-उस आदमी ने अपने शब्द रोक लिए
" लेकिन क्या..?"-देवसेना ने अपने स्थान से खड़े होकर पूछा
" लेकिन राजमाता! उसके उपरांत भी ऐसे हादसे होने लगे परंतु अब की बार उस जानवर ने गांव में कदम रख दिए थे"- पुनः उस आदमी ने बोलना शुरू किया-"अब वह जानवर दूसरे तीसरे दिन गांव में आता है और किसी ने किसी को अपनी चपेट में ले लेता है, हे मालिक! हमारी मदद कीजिए"- घुटने टेक वह व्यक्ति बाहुबली के सामने हाथ फैला बैठ गया
" अरे !आप क्या कर रहे हैं"- देव सेना ने उस आदमी को उठाते हुए कहा-"हम आपकी मदद करेंगे पर आप इस तरह से हमें ऋणी मत बनाइए प्रजा धर्म ही हमारा कर्तव्य है उसके लिए आपको पाव पड़ने की जरूरत नहीं है"- देव सेना ने बताया
" मगर राजमाता हम तो दूसरे साम्राज्य से आए हैं"- उस आदमी ने कहा
" दूसरे साम्राज्य से? "-बाहुबली ने प्र्सनातमक भाव दर्शाते हुए पूछा
" हां मालिक हम केसर साम्राज्य से हैं"- आदमी ने उन्हें बताया
उस साम्राज्य का नाम सुनते ही देवसेना के चेहरे का रंग सफेद पड़ गया, मानो के उस साम्राज्य से कोई पुरानी कहानी जुड़ी हो
"तो आपने अपने महाराज से यह जिक्र नहीं किया"- बाहुबली ने पूछा
"नहीं महाराज! हमारे साम्राज्य में महाराज नहीं ,महारानी चित्रा है "
देवसेना धीरे-धीरे वापस अपने स्थान पर जाकर बैठ गई ,
मानो देवसेना किसी गहरी सोच में हो

शेष भाग-2


-:सोमबीर माजरा