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किला

"अरे, तू चिंता क्यों करता है?? मैं हुं ना तेरे साथ। मेरे होते तुझे कोई हाथ भी नहीं लगा सकता" संयम ने अपने दोस्त को कहा। उसका दोस्त काफी कमजोर और डरपोक था। उसका सब मजाक उड़ाते थे। बबलू और उसके दोस्तों का ग्रुप तो उसको बहुत बुली भी करता था। उसके परिवार में भी इसकी स्थिति कोई बेहतर न थी। सौतेली माँ गाहे-बगाहे काम के लिए दौड़ाती थी, न करने पर खाना नहीं मिलता था। भूखे पेट सोना उसके लिए काफी मुश्किल था।

उसे याद आता था, जब दो साल पहले वो 7 साल का था, तब एक दिन स्कूल से लौटने पर उसे माँ न दिखी थी। घर में काफी रिश्तेदार जमा थे, कइयों की आँखों में उसने आंसू भी देखे थे। उसके बाद कुछ ही दिनों में उसे ये एहसास हो गया था कि माँ अब कभी न लौटेगी। कुछ महीने ही बीते थे कि एक दिन पापा के साथ एक बहुत ही सुंदर औरत आयी और चिंटू बेटा कहते हुए उसके सीने से लग गयी। तब बुआ ने बताया था कि ये उसकी माँ ही है, जो रूप बदल कर आयी है। उसकी समझ में कुछ न आया फिर भी वो खुश था। पर ये खुशियां कुछ ही दिनों की ही बात थी फिर सब बदल गया.....

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ऐसी ही एक सुबह वो स्कूल से आ रहा था कि बबलू ने और उसके दोस्तों ने घेर लिया। उसने भागने की कोशिश की, परन्तु उसके छुपने की जगह से उसे ढूंढ ही लिया गया। वो सब उम्र में उससे कई साल बड़े थे। उन्होंने उसे उठाया और कीचड़ भरे गढ्ढे में फेंक दिया। जब वो निकलने लगा तो उसको सीने पर लात मारकर वापस गिरा दिया। वो सब चारों तरफ से उसे घेर कर उसके साथ फुटबॉल खेलने लगे, जिसमे बॉल वही था।

.....कि तभी कोई आया, वो शरीर से काफी मजबूत लग रहा था। उसने आते ही बिना कुछ बोले उन सबको धूल चटा दी, वो सब भाग लिए।

उस दिन वो घर पहुंचा तब उसकी चोटों की परवाह न करते हुए, गंदे कपड़ों के लिए पहले उसको मार पड़ी फिर खाना भी न दिया गया। परन्तु आज उसको इसका इतना फर्क न पड़ा। ये उसको पड़ चुकी आदत थी या एक बड़े भाई जैसा रक्षक मिलने की खुशी, वो भी नहीं जानता था।

उसके बाद वो किसी बड़े भाई की तरह उसका ख्याल रखने लगा। उसके होते कोई उसे हाथ भी न लगाता। बबलू गैंग की तो हवा ही वाम मार्ग (पिछवाड़े) से निकल गयी, वो तो दुबारा सामने ही नहीं आया। संयम उसे हमेशा कहता था कि "हिम्मत वाला बन वर्ना सब तुझे ऐसे ही दबाते रहेंगे, मैं हूँ तब तक तुम्हारी रक्षा करूँगा, जब न होऊंगा तब....!!!!! तुम्हें पता है मैं पुलिस का बड़ा अफसर बनूंगा, अपराधी मेरे ख्याल से ही कांपेंगे, अगर मैं भी डरने लगा तो सबकी रक्षा कौन करेगा???"

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एक दिन वो गायब हो गया, कहाँ गया, कब गया? कोई न जान पाया, बस गायब हो गया। फिर वापस न मिला। पुलिस में भी रिपोर्ट की गयी, पर न मिला। किसी ने अफवाह उड़ा दी कि कोई तांत्रिक ले गया उसे और बलि दे दी। सब लोग समय के साथ भूल गए पर चिंटू न भूला। सही मायनों में तो वो अब अनाथ हुआ था। पर अबकी बार कुछ अलग हुआ था......

हमेशा दबने वाला चिंटू अब बदलकर सामने आया। जब सौतेली माँ ने खाना देने से इंकार किया, तब उसने गुस्से में पूरा खाना ही खराब कर दिया। जब हाथ उठाया गया तो उसने हाथ पकड़ लिया। जब किसी ने बुल्ली करने की कोशिश की तब उसने उसकी अच्छी सी मरम्मत कर दी।

कई साल बीत गए कल का दब्बू चिंटू आज का दबंग आईपीएस आकाश बन गया था। शहर के अपराधियों में खौफ था उसका। जहाँ कहीं उसकी पोस्टिंग हुई, वहाँ क्रिमिनल्स को बुरी तरह से धराशायी कर दिया उसने। अब अपने काम का लाभ उसे मिला और वो अपने ही शहर में आया।

कुछ अजीबोगरीब कत्ल के केस उसके हाथ आये। कुछ लोग बड़े ही अजीब पैटर्न से मरे थे। उनकी एक एक हड्डी को तोड़ कर उनके शरीर में गाँठ लगाकर उनको गठरी की तरह बाँध दिया जाता था, वो भी उनके जिन्दा रहते, ताकि वो तड़प तड़पकर मरे तो कुछ के चबाये हुए अवशेष ही मिलते।

एक दिन किसी ने आकाश को गुप्त खबर दी कि एक आदमी शहर के किले में छुपा हुआ है। उसे वहाँ घुसते-निकलते कइयों ने कई बार देखा है। उसकी हरकतें संदिग्ध है। आकाश वहाँ टीम के साथ गया तो उसको चारों तरफ से घेर लिया गया। वो शहर के कुख्यात अपराधियों का साझा प्रयास था। उनके हथियार एकदम आधुनिक थे। आकाश के अपराध उन्मूलन से घबराकर उन्होंने उसके ही उन्मूलन का प्रयास किया।

वो लोग अपनी सफलता को लेकर बहुत श्योर थे। आकाश को भी अब उन अपराधियों की सफलता में कोई संदेह न रहा था, परन्तु उसके जबड़े आपस में भींच गए और उसने लड़ने की ठान ली। पुलिस टीम और क्रिमिनल टीम ने अपने-अपने हथियार संभाल लिए।

"गजब हो गया.....इस किले के सारे दरवाजे बंद हो गए है और वो खुल ही न रहे है. गोलियां भी बेअसर हो रही है." एक चमचे ने आकर घबराये हुए लहजे में अपने लीडर को कहा।

"क्या भौंक रहा है?? ये लकड़ी के सौ-सौ साल पुराने दरवाजे कब तक टिकेंगे?? चल मैं देखता हूँ। " उस लीडर ने कहा, परन्तु उसके माथे पर चिंता की लकीरें साफ दिख रही थी। वहाँ पर सबका ध्यान एकाएक एक दूसरे से हट गया।

" ये किला भूतिया है, यहाँ के बारे में सुना है कि यहाँ जो भी आया इस किले ने उसे निगल लिया। मैंने तो रॉकी भाई को बोला भी था कि किले की जगह कोई दूसरी जगह जाल बिछाते हैं, परन्तु वो माने ही नहीं। बोले कि अच्छा ही है, भूतिया अफवाह है तो यहाँ कोई नहीं आएगा और पोलिसवाले कहाँ गायब हुए किसी को पता न चलेगा।" एक हथियारबन्द क्रिमिनल ने अपने साथी को धीरे से फुसफुसा कर कहा।

उसको अपने साथी से कोई जवाब न मिला तो उसने उसके कंधे पर हाथ रखा और अपनी तरफ हल्का सा घुमाया। घुमाते ही उसकी चीख निकल गयी, क्योंकि उसके साथी की पुतलियां एकदम सफेद थी और वो किसी सूखी हुई लाश, जो सैंकड़ों साल पुरानी हो, की तरह लग रहा था। जैसे किसी ने उसको चूस लिया हो। वो लाश गिरी और सबका ध्यान उस तरफ गया। सबके सब आतंकित हो गए ये देखकर।

उनमें से एक आदमी चिल्लाया -" ये जगह श्रापित है, भक्ष लेती सब यहाँ से निकलो।" ऐसा कहते हुए उसने एक दरवाजा खोला और बाहर निकलकर भागने लगा।

एक जोरदार चीख गूंजी और सबका आतंक दोबाला हो गया क्योंकि उस दरवाजे की पीछे फर्स नहीं था बल्कि एक गढ्ढा था जिसमे नुकीले नेजे लगे हुए थे, जिनमे उसकी पिरोयी हुई लाश थी। सबके देखते ही देखते वो दरवाजा बंद हो गया। जब किसी ने हिम्मत करके उसे वापस खोला तो वहाँ कोई गढ्ढा न था।

अचानक वहाँ चली एक तेज हवा जब सबको छूकर गुजर गयी तब तक किसी को ये भान न रहा कि सारे खिड़की दरवाजे तो बंद है हवा कहाँ से आएगी, परन्तु स्थिति पर गौर तब गया जब कुछ आदमी वहाँ इस तरह गिर गए जैसे उन्हें बीच में से काटा गया हो। ये देख अब वहाँ भगदड़ मच गयी। जिसको जहाँ जगह मिली वो वहाँ से बाहर निकलने की कोशिश करने लगा, परन्तु कोई फायदा न हुआ कोई भी दरवाजा पूरा जोर लगाने से भी न खुला। गोलियों से भी किसी दरवाजे पर खरोंच तक न आयी। इधर पुलिसवाले भी अपने प्रयास कर रहे थे. परन्तु उनकी हालत भी बदमाशों से कुछ बेहतर न थी।

दो हवलदार ने जैसे ही भागने के लिए एक कोना ढूंढ़ा, वहाँ पहले से ही दो अपराधी छुपे हुए थे। उनको देख एक बार तो हवलदारों की आँखें सिकुड़ी, परन्तु अभी दुश्मनी निभाने का समय न था। यहाँ किले में कुछ अजीब हो रहा था, जिससे बचने का समय था। उन्होंने जैसे-तैसे करके एक दरवाजा खोला और वो चारों के धक्का देने से खुल भी गया। परन्तु खुलते ही उन चारों की चीखों से वो किला गूँज उठा। सामने का नजारा ही ऐसा था वो दरवाजा किसी विशाल तीखे दांतो वाले मुँह का था, जिसकी लपलपाती जुबान कई गज लम्बी थी। उन दांतों ने तीन को तो बेरहमी से चबा लिया, परन्तु एक अपराधी की टांग ही उखड़ी थी। वो दर्द से बिलबिलाते हुए पीछे हटा परन्तु उस जुबान ने उसकी दूसरी टांग पकड़ के मुंह में खींच लिया और चबा डाला।

रॉकी जो इन अपराधियों का लीडर था, ये सब देख रहा था। आतंक और भय की अधिकता में उसने अपना मानसिक संतुलन खो दिया और अपनी गन से अंधाधुंध फायर करने लगा उस किले की दीवारों पर। उसने अंधेपन में ये भी न देखा कि उसने वहाँ मौजूद बहुत सारे आदमियों को ही भून डाला था। उसकी उंगली ट्रिगर पर कसी रह गयी। उसको होश तब आया जब उसकी गोलियां ख़त्म हो गयी। उसके साथियों की लाशें बिछी हुई थी, साथ ही कुछ पुलिसवाले भी वहाँ अपनी सासें छोड़ चुके थे, परन्तु उसका ध्यान सामने दीवार पर था जहाँ गोलियां धंसी थी और उन छेदों से खून बह रहा था। उसके डर और आश्चर्य का पार न रहा परन्तु ये स्थिति ज्यादा देर न रही जब एक झाड़ (फानूस) का नुकीला हिस्सा ऊपर से आकर उसके सिर में घुस गया।

आकाश ने देखा ये लोमहर्षक दृश्य कि उस फानूष के बिजली के तार किसी चूषक की भाँति रॉकी का खून चूस रहे थे। वो हरे पीले तार लाल हो गए थे। आकाश ने बिना सोचे उस झाड़ पर अपनी सर्विस रिवाल्वर से गोलियां चला दी। झाड़ पर असर तो क्या होना था, वो वापस ऊपर अपनी जगह पर खिंच गया और सेट हो गया।

आकाश ने नोटिस किया कि वहाँ अब उसके अलावा कोई न बचा था। उसको भी अब लग रहा था कि यहाँ से बचकर निकलना अब नामुमकिन है। उसके जबड़े भींच गए थे। उसने तय कर लिया कि वो यूँ हार न मानेगा, अंतिम सांस तक निकलने की कोशिश करता रहेगा। उसने वहाँ पड़ी एक अपराधी की गन उठायी और ताबड़तोड़ दीवारों पर गोलियां बरसाने लगा। उसे यूँ लगा कि जैसे किला चीख रहा हो, उसके घावों में से खून रिस रहा था। परन्तु अचानक आकाश के पैरों में कुछ जड़ें लिपटती चली गयी और उसे मुँह के बल गिरा कर खींचने लगी। वो उसे एक खुले दरवाजे के पार खींचने लगी, जिसके पार एकदम घुप्प अँधेरा ही नजर आ रहा था। आकाश ने दरवाजे की चौखट पकड़ ली।

उसके हाथ छूटने लगे थे, खिंचाव अधिक था। अचानक उसे अपनी जेब में रखे लाईटर का ख्याल आया। उसने जैसे-तैसे करके एक हाथ से लाइटर को निकाला, उसे जलाया और उस जड़ के छुआ दी। ऐसा लगा कि जड़ तड़प उठी। वो लाइटर से जलने वाली न थी परन्तु इतनी ढ़ीली जरूर पड़ गयी कि आकाश ने खुद को छुड़ाकर वापस आने में सफलता प्राप्त कर ली। उसने बिना देर किये वहाँ पड़ी एक और गन उठायी और उस पीछा करती जड़ पर ताबड़तोड़ फायर झोंक मारे। जड़ से भी खून के फौव्वारे छूटे और वो पीछे अँधेरे में गुम हो गयी और वो दरवाजा बंद हो गया।

आकाश ने हैरत के साथ अनायास ही गोलियों से बींधी उस दीवार को छू लिया। उसे ये महसूस हुआ कि दीवार धड़कनें ले रही है।

आकाश अचम्भे में पड़ गया, वो खुद से बोलने लगा -" आखिर हो क्या तुम?? जिस तरह तुमने सब लोगों को ख़त्म किया है, तुम कोई आदमखोर हो, परन्तु ये असम्भव है। कोई बेजान चीज कैसे आदमखोर हो सकती है??"

इतने में आकाश की पीठ से कुछ भारी सामान जोर से आ टकराया और आकाश की हड्डियां कड़कड़ा उठी। वो उसी दीवार से टकराया और पलभर में ही उसे बहुत कुछ दिखाई दे गया।

' एक तांत्रिक ....... हर बार नया शिकार .......बलि ....... अर्द्धबेहोश लड़के-लड़कियां ...... तिलक लगे ......... हवा में उठा गंडासा ........ खच्चाक की आवाज और बहता रक्त ....... वो रक्त धीरे-धीरे किले की दीवारों से नींव में जाता हुआ और किले को जैसे पोषण मिलता हुआ ...... वो तांत्रिक तो चला जाता पर अपने कुकृत्य का अंजाम पीछे न देख पाता। फिर एक दिन उस तांत्रिक को ही उस किले ने पकड़ लिया। उसको तो पूरा चबा ही डाला था उसने।'

आकाश की आँखें खुली, उनमें आंसू थे क्योंकि आज उसे अपने दोस्त के गायब होने का रहस्य पता चल गया था। परन्तु फिलहाल उसे किले से निकलना था। उसने फुर्ती से वहाँ पड़ा एक चाकू उठाया और अपनी बेल्ट में खोंस लिया। फिर उसने वहाँ पड़े हथियारों में से जितने वो ले सकता था लिए और सुसज्जित हो गया। तभी किले का फर्नीचर हवा में एक-एक कर उड़ता आया और उस पर हमला करने लगा। कईयों पर उसने गोलियां चलायी, कइयों से वो किसी तरह बचा और कइयों से चोटें भी खायी। प्रयास करते-करते वो थक गया था कि तभी फिर से कुछ जड़ों ने उसके पैर पकड़ लिए। वो कुछ कर पाता कि तभी कुछ और जड़ों द्वारा उसके हाथ भी पकड़ लिए गए। वो जड़ें उसे अलग-अलग दिशा से खींचने लगी। उसे लगने लगा कि अब उसका शरीर और नहीं झेल पायेगा।

तभी उसे याद आयी एक बात, वो पूरी ताकत लगा चिल्ला उठा -" तुमने कहा था कि तुम्हारे होते मुझे कोई हाथ भी नहीं लगा सकता, तू हमेशा रहेगा मेरे साथ। भूल गया अपनी बात....???"

उसके इतना कहते ही वहाँ एक जलजला सा आया हो जैसे। वहाँ का सामान बहुत ही तेजी से उछलने लगा और इधर-उधर गिरने लगा। परन्तु उसी सामान में एक केरोसिन का डिब्बा भी था, जो जड़ों पर उछल कर गिरा और आकाश ने वो देख लिया। वो जड़ें पूरी केरोसिन से भीग गयी और आकाश ने वापस अपना लाइटर हाथ में लिया। अब वो जड़ें उसकी मंशा समझ गयी। कुछ और जड़ें आकर आकाश के हाथ को विपरीत दिशा में खींचने लगी।

आकाश ने अपना पूरा जोर लगा दिया, ये उसके पास आखिरी मौका था। उसके चेहरे की एक-एक मांसपेशी यूँ फूल गयी थी जैसे फटने वाली हो। आखिर उसे सफलता मिली और उसने लाइटर जला ही लिया और जड़ों को लौ दिखा दी।

उसे यूँ लगा जैसे वो किला चीख रहा हो। जड़ों ने आग पकड़ ली और वो धूं-धूं कर जलने लगी। बंद किले में तेजी से धुआं भरने लगा। आकाश का भी दम घुटने लगा। उसने जैसे-तैसे घिसटते हुए एक दरवाजा खोलने की कोशिश की, परन्तु वो न खुला। उसने अब उम्मीद छोड़ ही दी थी कि तभी पास वाला एक दरवाजा खुला। आकाश ने बची-खुची हिम्मत जुटाई और उस दरवाजे से बाहर निकला। बाहर निकलते ही उसने राहत की सांस ली, क्योंकि वो उस किले की इमारत से ही बाहर आ गया था। उसने पलटकर देखा तो उसे दिखाई दिया उसका दोस्त। वो दरवाजे पर खड़ा मुस्कुरा रहा था, मानो कह रहा हो -" अरे तू चिंता क्यों कर रहा है, मैं हूँ न तेरे साथ?? मेरे होते तुझे कोई हाथ भी नहीं लगा सकता...."

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"किला पूरी तरह खाक हो चुका है, इस धरोहर का बहुत नुकसान हुआ है। परन्तु कुछ लोगों का कहना है कि ये किला श्रापित था, इसमें कोई आता-जाता न था। वहीं कुछ लोगों ने ये भी कहा है कि कल शाम को कुछ अपराधी किस्म के लोग इसमें गए थे और उनके पीछे कुछ पुलिस वाले भी अंदर गए थे, जो अब पूरी तरह गायब हैं। आईपीएस अधिकारी आकाश जी का कहना है कि इस मामले की पूरी जांच होगी। दोषियों पर सख्त कार्यवाही की जाएगी। इसके आगे वो कुछ न बोले। मैं के.वी.न. न्यूज से 'पूजा कुमारी' कैमरामैन 'प्रतीक' के साथ।"

समाप्त.......