Deserted books and stories free download online pdf in Hindi

सुनसान

जुलाई महीने की सुबह 4 बजे मैं तैयार होके जूत्ते पहन कर घर से निकला। अँधेरा था, पर मेरा रोज़ का यही नियम था।
जिम का रास्ता यहाँ से लगभग 4 किलोमीटर था। आसमान में बादल आये हुए थे और बूंदें बरस पड़ने को तैयार ही थी। फिर भी निकला, सोचा बरसेंगी तो भीग लेंगे ,इतनी गर्मी में कौन बारिश में नहीं भीगना चाहेगा, रास्ते में कुछ जगह सुनसान पड़ती थी. कोई लड़की होती तो शायद निकलने से पहले १०० बार सोचती पर मैं तो लड़का हुं, इसका कुछ तो फायदा होगा ही सो बस अपनी मस्ती में चले जा रहा था। आधा रास्ता पार कर भी लिया।
अचानक लगा की कोई हल्की सिसकने की आवाज़ें आ रही है । पर मौसम बड़ा शानदार था तो नज़रअंदाज़ करके आगे बढ़ने लगा पर आवाज़ फिर आयी और साथ आयी कुत्तों के भौंकने की आवाज़ें। मन दहल गया क्यूंकि कुत्तों से ऐसे ही डर लगता था ऊपर से अँधेरा भी था पीछे पड़ेंगे तो बचाने भी कोई न आएगा। पर इंसानी फितरत (की जिस चीज़ से डर लगे उसी के पास जाने की खुजली होती है ) ने पैरों को उधर ही मोड़ दिया. सोचा की अगर पीछे पड़ेंगे तो हाथ में रोड तो है ही, देखा जायेगा. सो पास पहुंचा तो मैं और भी दहल गया।
एक नवजात सा बच्चा जो शायद एक या दो दिन का होगा पर मुझे जानकारी नहीं है, तो शायद कुछ घंटों का ही होगा या होगी, को कुत्ते खसोट रहें हैं जो उसके पेट का और नीचे का हिस्सा खा चुके थे . हे भगवान् ! जिंदगी में बहुत कुछ देखा पर ये नहीं देखना, बस ये एक बुरा सपना ही है मैं नींद से जागूँगा और ये बुरा सपना टूट जायेगा. पर ये उतना ही सच था जितना की दुनिया में महाकाल है। पर ये उनका काम नहीं हो सकता, ये तो शैतान ही कर सकता है। मुझे ये नहीं देखना। तो क्या करूँ? यहाँ से भागूं ?पर मेरे पैर क्यों नहीं उठ रहे ?? आज खुद को इतना कायर क्यों महसूस कर रहा हूँ?
फिर होश में आया तो कुत्तों को भागने की सोची डर भी लगा पर करना तो था ही तो पत्थर इक्कट्ठे किये और फेंकने लगा कुत्तों पे। जानवर ही तो थे इंसान तो थे नहीं जो कुत्तापना दिखाते, भाग गए. मैं हिम्मत जुटाके पास गया देखा की हलकी साँसे चल रही थी मुँह से हलकी हलकी आवाज़ निकल रही थी। खून के आंसू रो रहा था मैं। क्या १०० नंबर डायल करूँ? पर बचने की कोई उम्मीद नहीं थी।शायद कुछ पलों में ही उसकी साँसें निकल ही जाएगी। तो अब मुझे क्या करना है वापस घर जाऊं या यहीं रुकूँ ?? पर इसको तकलीफ हो रही होगी, तो!!!! तब मन में आया वो ख्याल जो शायद कोई हैवान भी न कर सके।
तुरंत बेरहमी से उस बच्चे का नाक और मुंह कस के दबा दिया. खून से भरा हुआ शरीर था उसका, पर मैंने आँखें बंद कर ली
हाथों में खून लग गया था, बंद पलकों के बाँध तोड़ के गरम पानी तेज़ी से बहने लगा था पर आज मेरे साथ भगवान भी रोया था। उसके आंसुओं में मेरे आंसू छिपने लगे थे।
जान बची ही कितनी थी चाँद पलों में वो भी निकल गयी। फिर वहीँ गढ्ढा खोदा अपने हाथ और हाथ में थमी रोड से, लगा जैसे शायद मेरे आँखों से निकले तेज़ाब ने धरती फाड़ दी हो। शरीर साथ छोड़ रहा था लगा जैसे आज मेरा भी आखिरी वक़्त है पर इतना पुण्य कभी किया ही नहीं था कि इतनी जल्दी इस बेरहम दुनिया से दूर चला जाऊं। इंसानियत को उस गढ्ढे में डाला ऊपर कांपते हाथों से मिट्टी डाली और वहीँ घुटनों पे बैठा उस बच्चे को बोला की अगर वापस आओ इस दुनिया में तो मेरे पास ही आना मैं तुम्हारा बहुत ख्याल रखूँगा. और कहीं मत जाना। अभी सारी तकलीफों से मुक्त हो जाओ। वापस मेरी लाश घर लौट आयी पर आज मुझे ये घर भी नहीं लग रहा था। शायद ये पूरी दुनिया एक श्मशान ही है। जिसकी कठोरता मैंने देख ली थी।

समाप्त