Geeta se Shree Krushn ke 555 Jivan Sutra - 125 books and stories free download online pdf in Hindi

गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 125


जीवन सूत्र 316 शुद्ध अंतःकरण के साथ अन्य से एकात्म का करें अनुभव


गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा है: -

योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रियः।

सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते।।5/7।।

इसका अर्थ है, हे अर्जुन!जिसकी इन्द्रियाँ उसके वशमें हैं,जिसका अन्तःकरण शुद्ध है,और जो सभी प्राणियों की आत्मा के साथ एकात्म का अनुभव करता है,ऐसा कर्मयोगी कर्म करते हुए भी उनसे लिप्त नहीं होता।

इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने कर्म करते हुए भी उनसे लिप्त नहीं होने की बात की है। प्रथम दृष्टया तो यह अत्यंत कठिन स्थिति है।हम काम भी करें और उस में लिप्त न रहें।ऐसे में यह संदेह होता है कि इस तरह से काम करने वाला अपना कार्य मन से कैसे संपन्न करेगा?उदाहरण के लिए अगर कोई व्यक्ति फुटबॉल खेल रहा है तो वह जब तक इस खेल में एकाग्रता, चपलता, तेजी और सूझबूझ के साथ नहीं खेलेगा, वह सफल कैसे होगा? बिना इस खेल में डूबे वह इसे खेल कैसे पाएगा?


जीवन सूत्र 317 कर्मों से निर्लिप्त होने का तात्पर्य कर्मों को लापरवाही या अनमने ढंग से करने से नहीं


वास्तव में कर्मों से निर्लिप्त होने का तात्पर्य कर्मों को लापरवाही या अनमने ढंग से करने से नहीं है।कर्मों से निर्लिप्त रहने का तात्पर्य बिना अपनी 100% क्षमता के कार्य करने से भी नहीं है। इसका तात्पर्य कर्मों को करते-करते उसके साथ गहरे राग की स्थापना के निषेध से है।


जीवन सूत्र 318 कर्मों से गहरा राग जड़ता को दे सकता है जन्म


इसका तात्पर्य कर्मों के एक निश्चित फल को लेकर गहरी उम्मीद लगा लेने से है, जिसे छोड़ देना होता है। फुटबॉल के खेल में प्रतिद्वंद्वी टीम पर विजय प्राप्त करने के लिए गोल करना आवश्यक है। यहां इस उद्देश्य और इसके लिए गंभीर प्रयत्नों की मनाही नहीं है। मनाही इस तथ्य को लेकर है,जब खिलाड़ी की सारी कवायद पूरे मैदान में स्वाभाविक खेल खेलने के बदले केवल गोल करने तक सिमट कर रह जाए।अगर वह अपनी तैयारी और योजना के अनुरूप फुटबॉल लेकर गोल दागने में सफल नहीं हो पाता है,तो जैसे वह स्वयं में एक बड़े नुकसान का अनुभव करता है।अगर उसने गोल कर लिया तो मानो उसने दुनिया की बादशाहत पा ली है। गोल कर लेने को वह अपनी सफलता और असफलता से जोड़ देता है।


जीवन सूत्र 319 सफलता से अधिक महत्वपूर्ण है सर्वश्रेष्ठ प्रयास


इसके स्थान पर गोल करने को उसे अपने कार्य को श्रेष्ठतम ढंग से पूर्ण करने की कोशिश से जोड़ना होगा। उसके बाद परिणाम चाहे जो हो,सब स्वीकार।



जीवन सूत्र 320 मतभेद हो मनभेद नहीं


अब ऐसा कर पाना आसान नहीं है। इसके लिए चाहिए इंद्रियों पर नियंत्रण। जिसके लिए क्रमशः अभ्यास आवश्यक है।अपनी अंतरात्मा को कलुषता से मुक्त रखना आवश्यक है। विचारों से सहमत न होते हुए भी दूसरों के साथ एकात्म भाव रखना आवश्यक है।यह सब प्रारंभ में थोड़ा मुश्किल जान पड़ने पर भी।



(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)

(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)



डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय