Kataasraj.. The Silent Witness - 24 books and stories free download online pdf in Hindi

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 24

भाग 24

जब अमन ने उर्मिला का घर देखा हुआ है, अकेला आ सकता है तो फिर बाद में आ जायेगा कोई दिक्कत नही।

शमशाद तो सलमा और साजिद के उर्मिला के घर जाने लिए अपनी बग्घी तैयार करवा दी थी। पर सलमा घूमते घामते अपने बाग बगीचे, खेत खलिहान, तालाब पोखर सब देख कर पुरानी यादें ताजा करना चाहती थी। साथ ही साजिद को भी अपना मायके का सब कुछ दिखाना चाहती थी। इसलिए शमशाद को बग्घी के लिए मना कर दिया। पैदल ही साजिद को साथ ले कर उर्मिला के घर के लिए निकल पड़ी। साथ ही अमन को थोड़ी देर में आने की ताकीद कर दी।

सलमा को याद आया उर्मिला के गांव जाने के लिए एक छोटा रास्ता भी हुआ करता था। उसने उसी रास्ते से जाने का फैसला किया। गांव की पगडंडी और मेड़ पर चलते हुए प्रौढ़ा सलमा बिलकुल बच्ची बन गई। अपने घुटनों का दर्द उसे याद ही नहीं रहा। खुशी से चहकती वो रास्ते में पड़ने वाली हर चीज को दिल में संजो लेना चाहती थी। उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे हर पेड़ हर डाल झूम झूम कर स्वागत कर रहे हों। उस पर बैठे पंक्षी जैसे उसके आगमन से खुश हो कर चहचहा रहे हों। हवा में अजीब सा अपनापन था, एक अलग ही खुशबू थी। जो कभी उसे अपने ससुराल की जमीन पर महसूस नही हुई थी।

साजिद सलमा का ये बदला रूप देख कर हैरान भी था और साथ ही खुश भी। अच्छा किया जो सलमा को पहले ही भेज दिया। वो भी एक ही जगह रह कर ऊब जाती होगी। पर घर की जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ कर अपनी ख्वाहिश पूरी करना सलमा को कहां गंवारा था..! उसकी तो पहली प्राथमिकता घर और बच्चे ही रहे है शादी के बाद से। पर अब तो लगभग सारी जिम्मेदारियां पूरी हो चुकी है। बेटा, बेटियां सब का घर बस चुका है। बस अमन ही बाकी है। पर अमन की तरफ से वो दोनो ही निश्चिंत थे क्योंकि वो था ही इतना समझदार। उसे किसी भी चीज के लिए अभी तक रोकना टोकना नही पड़ा था। अपनी सारी जिम्मेदारियां समय से निभाता, अपना सारा काम समय से करता था। वो भी अब अपने कारोबार में दिलचस्पी लेना शुरू कर दे तो फिर उसकी भी जिम्मेदारी से मुक्त हो जायेगे। साजिद मन ही मन सोचता है कि क्या सलमा को कोई अधिकार नहीं है खुश रहने का..? क्या वो साल में कुछ दिन सुकून के बिताने के लिए अपने मायके नही आ सकती है..! और ये फैसला करता है कि वो अब जरूर हर साल सलमा को यहां ले कर आएगा। वो सलमा से कहता है,

"सलमा..! तुम्हे यहां बहुत अच्छा लगता होगा ना…?"

सलमा हंस कर बोलती है,

"भला किस लड़की को अपना मायका अच्छा नही लगेगा…! सच बताऊं आपसे…! जब से आई हूं यहां इतना सुकून मिल रहा है कि पूछो ही मत। कब दिन से रात हो जाती है, कब रात से दिन पता ही नही चलता हंसने बोलने में।"

साजिद फिर बोले,

"मुझे भी बहुत अच्छा लगा यहां आ कर। सच में अपने रिश्तेदारों से मेल मुलाकात करते रहना चाहिए। अब थोड़ा वक्त हमें भी अपने लिए निकालना चाहिए। आखिर कब तक हम घर और बच्चों की जिम्मेदारी के पीछे खुद की इच्छा दबाते रहेंगे..? मैने फैसला किया है कि अब से हम हर साल आया करेंगे।"

सलमा ने हैरत से साजिद की ओर देखा। उनके चेहरे पर बेइंतहा सुकून की झलक दिख रही थी। वो खुशी से बोली,

"सच में साजिद….! आप क्या सच में आएंगे हर साल मुझे लेकर।"

साजिद चलते हुए रुक गए। सलमा के कंधे पर हाथ रक्खा और बोले,

"आपने बिलकुल सही सुना बेगम साहिबा…! आप और हम दोनो ही अब हर साल आया करेंगे सब रिश्तेदारों से मिलने। तब तो आपको कोई शिकायत नहीं रहेगी ना मुझसे..? "

सलमा भी शरारत के मूड में आ गई। बोलो,

"वो तो तब भी रहेगी। चाहे जितना भी अच्छा हो, भला आज तक कोई बीवी हुई है ऐसी जिसे अपने शौहर से शिकायत ना रहती हो …! "

सलमा की बात खत्म होते ही उसकी बातों का मतलब समझ दोनो पति पत्नी खिलखिला पड़े।

कब बातों में रास्ता बीत गया सलमा और साजिद को पता ही नही चला। सामने बस उर्मिला का घर ही दिख रहा था।

सलमा उर्मिला और नईमा से कुछ बड़ी थी। जब चमन पैदा हुआ था तो कुछ समय के लिए उसके अब्बा जान बिदा करा कर ले आए थे। तब वह यहां भी आई थी कुछ दिनों के लिए। उसी समय नईमा का भी निकाह हुआ था। जब वो नईमा के ससुराल उससे मिलने आई थी तो उसी समय उर्मिला के घर भी आई थी।

उस समय जैसा उर्मिला का घर था उससे थोड़ा सा परिवर्तन हुआ था। पीछे तो पूरा घर कच्चा ही था, बाद सामने बारांडा पक्का था। अब उस बरांडे के दोनो तरफ दो छोटे छोटे कमरे बन गए थे। दरवाजे पर जो नीम का पेड़ था अब वो एक विशाल वृक्ष का रूप ले चुका था। साथ में ही एक आम का पेड़ भी तैयार हो गया था। जिस पर खूब बौर लगे हुए थे।

भले ही मार्च का महीना चल रहा था। पर चलने से सलमा और साजिद को पसीना हो आया था।

वहीं बरांडे में खटिया बिछी हुई थी जिस पर अशोक बैठा हुआ था। शायद उन्हीं की प्रतीक्षा कर रहा था।

सलमा और साजिद को आते देख उठ कर खड़ा हो गया और कुछ कदम आगे बढ़ कर स्वागत करते हुए बोला,

"आइए ..! आइए..! साजिद भाई…! आइए सलमा बहन..!"

साजिद को कुर्सी दी बैठने को और सलमा को खटिया पर बैठने को बोला।

बैठते हुए सलमा बोली,

"उर्मिला कहां है..? लग रहा हम जल्दी आ गए। उसका काम अभी खत्म नहीं हुआ है।"

अशोक बोला,

"नही …….! नही….! ऐसी कोई बात नही। काम तो सब निपट ही गया था। वो भी बस यही बैठी आप सब का इंतजार कर रही थी। बस अभी ही उठ कर अंदर है है।"

उसमे ये पूछते ही सलमा की आवाज सुन कर उर्मिला बाहर आ गई। और हंसते हुए सलमा के गले लग गई और बोली,

"उर्मिला यहां है..! अभी तक यहीं बैठ कर आप दोनो का इंतजार कर रही थी। जैसे ही भीतर गई, आप दोनो आ गए।"