Kataasraj.. The Silent Witness - 23 books and stories free download online pdf in Hindi

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 23

भाग 23

अब नाज़ के सब्र का बांध टूट गया। वो आरिफ के गले लग कर रो पड़ी। रोते रोते बोली,

"आरिफ…! मुझे अम्मी अब्बू और पुरवा की याद आ रही है। सब मुझे छोड़ कर चले गए। मैं पुरवा को रोक रही थी पर वो रुकी नहीं। बोली.. उसकी अम्मा नही मानेगी।"

नाज के रोने की वजह जान आरिफ हंस पड़ा। और नाज़ को समझाते हुए बोला,

" क्या.. नाज़ तुम बच्ची वाली हरकत कर रही हो। लड़कियां तो कितनी दूर दूर ब्याह के जाती है। जहां से जल्दी आना जाना नही हो पाता। अब सलमा दादी खाला को ही देख लो। कितनी दूर चली गई है। सालो बीत जाता है उन्हे आए।"

फिर हाथ से इशारा करते हुए बोला,

"तुम तो यहीं बगल में ही आई हो। और वो भी पहले से जाने समझे घर में। घर में सभी से तुम अच्छे से परिचित हो। फिर जब तुम्हारा दिल करे कहना मैं ले कर चलूंगा मिल आना परिवार वालों से। फिर कुछ समय बाद खुद ही चली जाया करना। या फिर अपनी अम्मी को ही बुला लिया करना। ये घर उनके लिए भी अनजान तो है नही। पहले उन्ही का हुआ करता था। बस इतनी सी बात के लिए रोना धोना…..! चलो अब रात हो गई है सो जाओ।"

इतना कह कर आरिफ ने नाज़ को लिटा दिया और चादर ओढ़ा दिया। नाज़ ने भी जो थकी हुई थी सोने के लिए अपनी आंखे बंद कर ली।

इधर पुरवा जैसे ही घर पहुंची। जल्दी से साड़ी को उतारा और कपड़े ले लिए बंधी रस्सी पर टांग दिया। फिर वही समीज सलवार पहन लिया जिसे सुबह पहना था।

उर्मिला भी घर आकर अनमनी और उदास थी। जितनी देर अपनी सखियों के साथ थी हंस खिलखिला रही थी। पर घर वापस आते ही उसे आने वाले दिन की चिंता सालने लगी। जो आज मुझ पर बीती है वही कल तुम पर बीतेगी। ये दुनिया की रीत है। जो परिस्थिति आज नईमा की है वही साल भर बाद उसकी होगी। जो दर्द आज नईमा महसूस कर रही है, वही तकलीफ उसे भी साल भर बाद उसे भी होगी। उसी चिंता में उर्मिला डूबी हुई थी। कब वो बिस्तर पर लेटी और कब सोचते सोचते उसकी आंख लग गई पता ही नही चला।

सुबह उठी तो रोज मर्रा का निपटने के बाद ध्यान आया कि कल सलमा, साजिद और नईमा मिलने आयेंगे। घर तो साफ सुथरा ही था क्योंकि अभी गुलाब बुआ के आने पर घर की साफ सफाई हुई थी। उसने मन ही मन सोचा चलो अच्छा है घर साफ है वरना अभी फिर काम बढ़ जाता।

सलमा और साजिद को अशोक और उर्मिला ने आमंत्रित तो कर लिया था। पर उन्हें एहसास था कि उनकी ओर सलमा की हैसियत में जमीन आसमान का अंतर था। अब उनका स्वागत भी तो उनकी हैसियत के हिसाब से ही होना चाहिए। उर्मिला इसी उधेड़ बुन में उलझी हुई थी। अगर बाजार से मिठाई मंगवाएं तो एक तो पैसे खर्च होंगे। दूसरे चार पांच मिल तो जाना ही पड़ेगा।

उर्मिला ने सोचा उससे अच्छा है कि घर में दो दो भैंसों का दूध इफरात है। उससे ही मिठाई बना लेती है। दूध को पहले खोया बना लिया। फिर उसमे से आधे खोए का गुलाब जामुन और आधे की केसर बर्फी बना ली। जो बिल्कुल बाजार जैसी बनी।

पुरानी कुर्सी को खूब धो पर चमका दिया। जिससे साजिद को बिठाने में शर्मिंदगी ना महसूस हो।

अब उर्मिला पूरी तरह पुरवा को शादी के लिए सीखा पढ़ा कर तैयार कर देना चाहती थी।

अगले दिन सुबह ही खेत से ताजी सब्जियां ला कर बनाया और बढ़िया सी खीर बनवा दी पुरवा से। काम खत्म होते ही उर्मिला ने आज फिर पुरवा को साड़ी पहनने को कहा। थोड़े से जिद्द के बाद आखिर पुरवा मान गई साड़ी पहनने को। पर शर्त यही थी कि। चलने में दिक्कत होती है। इसलिए वो चलने फिरने वाला काम नही करेगी मेहमानो के सामने। अगर कहीं गिर गई उनके सामने तो फिर बड़ी बेइज्जती हो जायेगी। उर्मिला मान गई कि जब तब जरूरी नहीं होगा वो उसे नही उठाएगी।

सुबह कुछ हल्का सा खा कर सलमा अपने शौहर साजिद के साथ आने को तैयार हुई। उसने अमन को भी साथ चलने को कहा। पहले तो अमन ने मना कर दिया कि वहां वो औरतों के बीच क्या करेगा जा कर..? फिर भी जब सलमा नही मानी तो अमन को चलना ही ठीक लगा। अभी तक तो उसका समय बड़े ही अच्छे से आरिफ के साथ कट जाता था। पर अब आरिफ को नाज़ से ही फुरसत नहीं थी। वो अमन के कहने पर बाहर जाता भी उसके साथ तो। बस घड़ी दो घड़ी के लिए। फिर जल्दी से घर वापस आना चाहता। और आते ही नाज़ के पास चला जाता। जब से अमन आया था उसका मन लग गया था नई जगह होने के बावजूद। इसकी सबसे बड़ी वजह आरिफ था। आफिर के दोस्ताना व्यवहार से अमन का अजनबी पन महसूस ही नही हुआ यहां पर। फिर वो जहां कहीं भी जाता हरदम अमन को साथ लिए रहता था।

अब जब से आरिफ का निकाह हो गया था। वो बाहर ना के बराबर ही जाता था। अमन अकेले ऊब जाता था। इस लिए अम्मी के कहने पर राजी हो गया उर्मिला के घर जाने के लिए। पर शर्त ये थी कि वो अम्मी अब्बू के साथ नही जायेगा। उसने थोड़ी बहुत घुड़सवारी सीख ली थी आरिफ से। अब वो अकेले ही अभ्यास करना चाहता था।

सलमा को उसके अकेले आने पर कोई एतराज नहीं था। वो बोली,

"वो तो ठीक है तुम अकेले आओगे। पर कैसे आओगे..? उनका घर तुम कैसे जान पाओगे….?"

अमन बोला,

"अम्मी …! आप उसकी चिंता मत करें। मैं एक बार आरिफ भाई जान के साथ गया था उनके घर।"

सलमा ने हैरानी से अमन की ओर देखा।

वो बोला,

"अरे…! अम्मी…! वो उनकी बेटी है ना… क्या नाम है उसका…. क्या नाम.. है.."

सलमा बोली,

"पुरवा…"

" हां ..! हां…! उससे ही कोई किताब लेने थी उनको। फिर साथ में मुझे भी लेते गए थे।"

अमन ने नाज़ से मिलने वाली बात साफ छुपा ली। क्योंकि आरिफ ने मना किया था उसको।