Kataasraj.. The Silent Witness - 71 books and stories free download online pdf in Hindi

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 71

भाग 71

पुरवा मंदिर और घाटों की सफाई झाड़ू से करती तो अमन घड़े से पानी डालता। पुरवा अम्मा-बाऊ जी के कपड़े धुलती तो अमन उन्हें सूखने के लिए डाल देता। सूखने पर तह करके रख देता।

ऐसे ही काम करते हुए आपस में हंसी भी करते रहते। पुरवा कपड़े घुल रही थी और अमन वही सीढ़ियों पर अधलेटा सा आराम की मुद्रा में बैठा प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद ले रहा था। ये आनंद प्रकृति के सौंदर्य से ज्यादा पुरवा का सौंदर्य उसे दे रहा था। वैसे वो पुरवा को निहारता पर जैसे ही पुरवा की आंखें उसकी ओर घूमती वो दूसरी ओर देखने लगता।

अचानक से कपड़े धुलते हुए पुरवा को भूंजी का ध्यान आया। अपने उसने अमन से पूछा,

"अच्छा अमन ..! ये बताइए..अधिकतर नाम तो हमने सुने है। पर ये भूंजी कैसा नाम है…? मैने आज तक नहीं सुना था। पता है.. जब कोई उसे उसके नाम से पुकारता था तो मेरी हंसी ही नही रुकती थी। क्या बताऊं…. कितनी मुश्किल से अपनी हंसी रोकती थी मैं।"

अमन हंसते हुए बोला,

"ये भूंजी नानी के परिवार में ही पैदा हुई यही दरबान से इसका ब्याह हुआ था। इसके तीन बच्चे हुए। बेटियों की शादी हो गई और बेटा अपनी दुलहन को ले कर ससुराल में बस गया। ये तो बस यहीं की हो कर रह गई। इसका नानी के बिना और नानी का इसके बिना रहना मुश्किल है। दरअसल बात ये है, इसका असली नाम तारा है। पर तुमने रंग देखा इसका…? नानी जब भी इसे देखती तो कहती तारा तो चमकता है। ये किसने तेरा नाम तारा रख दिया…? तेरा नाम तो भूंजी हो जाना चाहिए। जैसे किसी ने तेरे चेहरे को आग में भूंज दिया हो। बस… इसी तरह कहते कहते .. यही उसका नाम ही हो गया।"

पुरवा अमन की बात पर हंसी और कुंड से अंजुरी में पानी भर कर उछाल दिया। और बोली,

"वो भूंजी.. आप.. भूंजा..।"

अमन हंसते हुए तेजी से सीढ़ियां उतर कर गया और बोला,

"अच्छा.. मैं भूंजा हूं..? मैं भूंजा हूं..?"

फिर उसने भी एक अंजुरी पानी भर कर पुरवा पर डाला और तेजी से दौड़ते हुए सबसे ऊपर वाली सीढ़ी पर जा कर खड़ा हो गया।

अब चार दिन बीत गए थे। कल सुबह हवन होना था और फिर उसके बाद वो सभी वापस चोवा -सौदान -शाह नानी के घर लौट जाते।

शाम की आरती में उर्मिला, अशोक और सलमा आंखे बंद किए हुए भोले शंकर का ध्यान करते हुए पूरे समर्पण के साथ गा रहे थे,

ॐ जय शिव ओंकारा..

भोले हर शिव ओंकारा..

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्धांगी धारा।

पुरवा और अमन मंदार, मोंगरा और अपराजिता का फूल उन पर चढ़ा रहे थे।

अमन की जिंदगी में अभी तक किसी भी लड़की ने उसे आकर्षित नही किया था। पर पुरवा में ना जाने कैसी कशिश थी कि वो सब कुछ जानते हुए.. अपने और उसके बीच में मौजूद गहरी खाई को समझते बूझते हुए भी खुद को उसके जादू से बचा नही पा रहा था।

जब से उसकी सिंधौली में पहली मुलाकात हुई थी तब से वो जितना उससे कटने की कोशिश करता… जितना सोचता कि उसके बारे में ना सोचूं उतना ही और उसकी खयाल में डूबता चला जाता।

पुरवा की भी स्थिति इससे बहुत कुछ अलग नही थी। उसे तो पता था कि बाऊ जी उसका नाम किसी और के नाम से जोड़ने की पूरी तैयारी कर चुके है। बस कुछ ही महीनों में उसकी मांग में किसी के नाम का सिंदूर होगा। पर ये .. दिल..? ये क्या चाहता है..? ये क्यों एक ऐसे शख्स से लगाव अपनापन महसूस कर रहा है जिसके बारे में सोचना भी गंभीर अपराध है।

पर ये दिल..! इस पर किसी का काबू रहा है क्या..? बड़े बड़े ऋषि-मुनि, बड़े बड़े तपस्वी तो इससे बच नहीं पाए तो हमारी क्या बिसात है..?

दिन भर के जप से उर्मिला अशोक और सलमा तीनों ही बेहद थक गए थे। जमीन पर बिछी दरी पर लेटते ही तीनों सो गए।

अशोक के बगल में लेटे अमन की आंखों से नींद कोसों दूर था। वो दूर घट किनारे जलती लालटेन की लाल लाल लौ को घूर रहा था।

पुरवा भी नींद का दिल खोल कर बेसब्री से इंतजार कर रही थी। जितना मनुहार करती आने का वो उतना ही दूर भाग रही थी। इस कोशिश में जैसे ही आंखें बंद करती .. आंखो के सामने अमन का मुस्कुराता हुआ चेहरा उभर आता। बार बार वो करवट बदल रही थी।

पुरवा को बार -बार करवट बदलते देख अमन को एहसास हो गया कि उसे भी नींद नहीं आ रही है। आहिस्ता से बोला,

"नींद नहीं आ रही।"

पुरवा बोली,

"नही..।"

फिर जैसे उसका गला सूखने लगा।

वो उठी और कमरे के कोने में रक्खे घड़े से पानी निकालने लगी गिलास में।

पर घड़ा पूरा टेढ़ा कर डाला पर पानी की दो चार बूंदों के सिवा और पानी गिलास में नही गिरा। पुरवा को अपनी गलती का एहसास हुआ। वो आज रात को घड़े में पानी भरना भूल गई है।

वो वापस आ कर लेट गई।

पुरवा ने धीरे से उर्मिला को छुआ और बोली,

"अम्मा..! अम्मा..! प्यास लगी है। घड़े में पानी नहीं है।"

उर्मिला झुंझलाते हुए बोली,

"अब मुझे सोने दे..। जा.. जा कर पी ले।"

और वो फिर से गहरी नींद में सो गई।

अमन ने फुसफुसाते हुए पूछा,

" क्या हुआ..? पिया पानी..?"

पुरवा ने भी वैसे ही जवाब दिया,

"नही है..।"

अमन बोला,

"जाओ .. बाहर कुंड से ले लो।"

पुरवा बोली,

" नही .. रात में अकेले डर लगता है।"

अमन बोला,

"डरो मत.. मैं साथ चलता हूं।"

इतना कह कर अमन उठ कर खड़ा हो गया।

अमन को खड़े हुआ देख कर पुरवा भी उठ बैठी। फिर घड़े की बजाय बड़ा लोटा ले लिया कि इस समय इसी से काम चल जाएगा। सुबह फिर घड़ा भर लेगी।

वो लोटा ले कर अमन के पीछे पीछे चल दी।

बाहर कमरे से निकलते ही उन्होंने देखा चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ था।

जो भी तीर्थ यात्री थे कमरों में गहरी नींद में सोए हुए थे। गरमी के दिन थे पर चारों ओर घिरी पहाड़ियों और पेड़ पौधों की वजह से गर्मी का एहसास नहीं हो रहा था। सरोवर के पानी की वजह से धीरे धीरे बहने वाली हवा शीतलता फैला रही थी चारों ओर।

अमन किनारे खड़ा रहा और पुरवा सीढ़ियों से नीचे उतर गई पानी लेने।