Kataasraj.. The Silent Witness - 72 books and stories free download online pdf in Hindi

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 72

भाग 72

नीचे पानी के करीब जा कर पुरवा ने लोटा डाल कर पानी को हिलाया और फिर नीचे से पानी भर लिया।

खुद हाथों से अंजुरी बना कर पानी पी कर प्यास बुझाई गट गट की आवाज बता रही थी कि वो बहुत प्यासी थी। और फिर से लोटा को भर कर वो वापस मुड़ी।

वो जैसे ही मुड़ी किसी से टकरा गई। टकराते ही उसकी घुंटी घुंटी सी चीख निकल गई। उसकी चीख को दबाने को एक मजबूत हाथ ने उसका मुंह बंद कर दिया। डर से पुरवा का बदन कांपने लगा कि ये कौन आ गया..! और अमन कहां चला गया उसे इस तरह अकेला छोड़ कर। वो उसे अपनी सुरक्षा के लिए ही उसे साथ ले कर आई थी।

जब खुद को संभाला और गौर से देखा तो वो अमन ही था। उसे देख कर पुरवा का भय कम हुआ।

पर आश्चर्य हुआ कि अमन तो ऊपर खड़ा था कब वो नीचे आ गया उसे पता भी नही चला।

अपना हाथ धीरे से पुरवा के मुंह से हटाया और बोला,

"क्या कर रही हो पुरु…..! सब सो रहे हैं। इस तरह चिल्लाओगी तो क्या कहेंगे सब..? मुझ गरीब को ही मार और जिल्लत मिलेगी कि इसी ने कुछ बत्तमिजी की होगी।"

पुरवा तो जैसे अपना होशो हवास ही खो बैठी थी। वो सुन्न सी अवस्था में अमन से उसी तरह लगी हुई खड़ी रही। अपनी बातों का कोई जवाब ना पा कर अमन भी जैसे खुद को संभाल नही सका। पुरवा की खामोशी ने उसे एक अजीब सी हालत में पहुंचा दिया। जो हाथ कुछ क्षण पहले पुरवा के मुंह पर था, अब वो उसे अपने बाजुओं में कसे हुए था।

पुरवा थोड़ा सा कसमसाई और जाने किस भावना के वशी भूत हो कर उसके भी हाथ खुद बखुद अमन के कंधे पर लग गए।

एक अजीब सी दुनिया थी जब वो एक दूसरे के आलिंगन में थे।

तभी पानी में कोई आहट हुई और वो वापस होश में आए।

खुद पर काबू पाते ही पुरवा एक झटके से अमन से अलग हो गई।

अमन ने बात को संभाला।

और उसके हाथ को पकड़ कर बोला,

पुरवा अभी अभी जो कुछ हुआ वो अनजाने में हुआ मेरा यकीन करो। मैं तो नीचे इस लिए चला आया था कि कहीं तुम डर ना जाओ। पर.. पर.. अब जो कह रहा हूं वो पूरे होशो हवास में कह रहा हूं। पुरु..! मैं तुमसे प्यार करने लगा हूं। इतना प्यार करने लगा हूं कि चारों ओर मुझे तुम ही तुम नजर आती हो।"

पुरवा धीरे से बोली,

"अमन..! ये क्या कह रहे हो।"

"सच कह रहा हूं पुरु..! बिलकुल सच।"

अमन ने उसके चेहरे को अपने हाथों में थाम कर कहा।

"और पुरु..! इनकार तो तुम्हारी आंखों में भी मुझको नहीं नजर आ रहा। मैं अच्छे से पढ़ सकता हूं तुम्हारे दिल की बात।"

जैसे पुरवा की आवाज कहीं दूर से आ रही हो। वो दुखी स्वर में बोली,

"पर.. क्या फायदा अमन… हमारे तुम्हारे बीच इतनी गहरी खाई है कि उसे कोई भी पाट नही सकता।"

अमन वही सीढ़ियों पर पुरवा का हाथ थामें हुए बैठ गया और बोला,

"मैं पाटूंगा ये खाई। जब भगवान ने हममें कोई फर्क नहीं किया तो ये दुनिया वाले कौन होते हैं हमें अलग करने वाले..? "

पुरवा बोली,

"नही अमन..! मैं अपने बाऊ जी का गुरुर हूं। मैं अपनी अम्मा का अरमान हूं। अपने छोटे भाइयों के लिए आदर्श हूं। मैं उनका ये गुरुर टूटने नहीं दूंगी। मेरे जीवन का हर फैसला लेना उन्हीं का अधिकार है। और ये अधिकार मैं उनसे कभी नही छीनूंगी।"

अमन ने अपने हाथो में पुरवा का हाथ थामा और शिवलिंग वाले मंदिर के बंद कपाट के सामने खड़ा हो गया।

उसके हाथों को थामे हुए हाथ में जल ले कर बोला,

"पुरु..! मैं महादेव की शपथ लेता हूं। मेरे जीवन में आने वाली पहली और आखिरी लड़की तुम्हीं होगी। जैसे उन्होंने सती माता के वियोग में तांडव कर के पूरी सृष्टि को हिला दिया था। वैसे ही मैं भी तुम्हें पाने के लिए कुछ भी कर जाऊंगा।"

इसके बाद वो दोनो बड़ी देर तक वहीं घाट पर बैठ कर एक दूसरे में खोए रहे।

अमन पुरवा के हाथ में पड़े कंगन से खेलते हुए बोला,

"पुरु..! नानी जान.. पागल या सनकी नहीं हैं। उन्हें लगता है हम दोनों के ही दिल की बात पता चल गई थी। तभी तो तुम्हें ये कंगन पहना कर मेरी दुल्हन घोषित कर दिया। किसी की भी परवाह नही की। ना मेरे अब्बू अम्मी की, ना तुम्हारे बाऊ जी अम्मा की।"

अंदर कमरे में जाने को दोनो में से किसी का दिल नहीं कर रहा था। अब ये अनमोल समय उनकी जिंदगी में कभी नही आयेगा।

पर आखिर कब तक बैठे रहते। अच्छा समय तो इतनी तेजी से पंख लगा कर उड़ जाता है कि पता भी नही चलता। सुबह की आगाज़ को चिड़ियों ने चह चहाना शुरू किया। पुरवा बोली,

"अमन ..! अब चलना चाहिए। कोई उठ गया तो आफत हो जायेगी।"

अमन बोला,

"पुरु..! देख लो अगर तुम मुझे ना मिली तो महादेव जी की तरह मैं भी रो रो कर तुम्हारी याद में एक तालाब यहां और एक इस्माइलपुर में बना दूंगा। क्यों कटास राज आप गवाह हो ना हमारे पवित्र प्यार के..?"

जाने कैसे दूर कहीं से घंटी की आवाज सुनाई दी। जबकि अभी तो पूजा का वक्त भी नही हुआ था। जैसे वो हामी भर रहे हों कि हां मैं हूं ना..! खामोश गवाह तुम्हारे पवित्र प्यार का।

अमन बोला,

"देखा पुरु..! अब तो कटास राज भी हामी भर रहे है। अब तो तुम्हें यकीन हो गया कि मेरा प्यार सच्चा है तभी कटास राज अपनी सहमति दे रहे हैं।"

पुरवा और अमन सीढ़ियां चढ़ कर वापस लौटने लगे।

पुरवा तेजी से आगे आगे आ गई और अमन पीछे रह गया।

कमरे के दरवाजे तक आ कर पुरवा फिर से वापस भागते हुए लौटी और अमन को कस कर अपनी बाहों में भर लिया। फिर तुरंत ही अलग हो कर बोली,

"अमन ..! तुम हमेशा मेरे दिल में रहोगे। ये शरीर भले ही परिस्थिति वश किसी और का हो जाए। पर दिल में आने वाले पहले और आखिरी पुरुष तुम ही रहोगे।"

इसके बाद पुरवा धीरे से आई और अम्मा के बगल में सो गई।