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हॉरर मैराथन - 6

भाग 6

कहानी को बीच में रूकते हुए अशोक उठा और अपने टेंट में जाकर पानी की बोतल लेकर आ गया। उसने पानी पिया और फिर कुछ देर के लिए खामोश हो गया। इस बीच साहिल और राघव ने कुछ और लकड़ियां आग में डाल दी ताकि आग जलती रहे।

यार अशोक तेरी कहानी तो मुझे बहुत डरा रही है। मैं तो सोच-सोचकर ही मरी जा रही हूं कि अगर ऐसा मेरे साथ सच में हो जाए तो मेरा क्या होगा। शीतल ने कहा।

मुझे तो बहुत मजा आ रहा है। मैं तो जानना चाहती हूं कि शीशे के भूत का सस्पेंस क्या है ? अशोक तू जल्दी से आगे की कहानी सुना यार। मुझे जानना है कि आगे क्या हुआ। मानसी ने कहा।

हां कहानी तो बहुत मजेदार है। सोच कर देखो यार कि हम शीशे के सामने हो, खुद को देख रहे हो, अपने बाल संवार रहे हो, और शीशे में दिखने वाला अक्स हमारी हरकत को हमें ना दिखाए और सिर्फ बुत बनकर खड़ा रहे। राघव ने कहा।

चल अशोक आगे बता, फिर क्या हुआ ? क्या शीशे का भूत सभी के सामने आ गया था, क्योंकि मधुमिता ने तो लड़के को देख लिया था, क्या बाकि लोगों ने भी उस लड़के को देखा ? साहिल ने कहा।

अशोक ने फिर अपनी कहानी को आगे बढ़ाया।

चाय ऑडर करके रीमा कहने लगी। मेरी बात को हँसी में बिल्कुल मत टालना। रीमा ने कल हुई सारी घटना मधु को बयां की।

मधुमिता ने भी रात का आँखों देखा हाल सुनाया।

रीमा ने मधुमिता को हिदायत दी। घर में रहकर इस विषय पर किसी से चर्चा मत करना। अंकल-आंटी को भी बाहर ही कही सारी बात बताना।

मधुमिता- तू ठीक कह रही हैं। वैसे भी माँ बात को हँसी में ले लेंगी और अभी तो पापा अपने गाँव गए हैं। सोच रहीं हूं, माँ के साथ आज तेरे घर पर ही रहूं।

रीमा- गुड आइडिया।

मधुमिता ने माँ को फोन किया और रीमा के घर आने का कह दिया। फिर पापा को फोन किया और उनसे भी यही कहा।

कृष्णकांत- बेटा, मैं कल सुबह आऊँगा।

अगली सुबह कृष्णकांत अपने एक मित्र यज्ञदत्त शर्मा के साथ रीमा के घर आए। रीमा और मधुमिता ने अपनी आपबीती उनको बताई। कृष्णकांत ने भी सीढ़ी पर हुए हादसे का जिक्र किया।

सबकी बात सुनकर यशोधरा घबरा गई।

यशोधरा- हे राम, इतने दिनों तक हम भूत के साथ रह रहे थे। मेरी राम भी नहीं सुनते वरना उनके रहते मजाल हैं कि वो भूत घर में टिक पाता। मैं तो अब उस घर में कदम नहीं रखूँगी।

यज्ञदत्त शर्मा- भाभीजी आप बिलकुल चिंता न करें। मैं इसी सिलसिले में यहाँ आया हूँ। आप लोग यहीं रहें मैं कृष्णकांत के साथ शीशा देखने जाता हूं।

कृष्णकांत और यज्ञदत्त घर पहुँचते हैं। शीशा मधुमिता के रूम में हैं कहकर कृष्णदत्त ने अपने मित्र को रुम की दिशा बता दी।

यज्ञदत्त अकेले ही रूम में गए। शीशा दरवाजे के बायीं तरफ था। यज्ञदत्त शीशे के सामने जा खड़े हुए। उन्हें अपना प्रतिबिंब काला दिखा। उन्होंने बिना देर किए शीशे को अभिमंत्रित धागे से बांध दिया। शीशा थरथराने लगा, मानो भूकंप आ गया हो।

यज्ञदत्त बाहर आकर कृष्णकांत से शीशे का इतिहास जानने लगें। कैसे, कब और कहाँ से शीशा आया सारी बात जान लेने के बाद शर्माजी ने शीशे का बिल मांगा। बिल पर दुकानदार के नम्बर थे। उससे बात करने पर पता चला कि उसने भी वह शीशा बंजारा मार्केट से लिया था। उसने बंजारा मार्केट की दुकान नंबर 30 के मालिक का नाम व पता दे दिया।

कृष्णकांत व यज्ञदत्त बंजारा मार्केट की शॉप न. 30 पर पहुँचे।

यज्ञदत्त- क्या आप ही मोहनलाल हैं ?

दुकानदार- जी, कहिए।

यज्ञदत्त- शीशे की तस्वीर दिखाते हुए, यह आपके यहाँ से प्रदर्शनी की दुकान पर बेचा गया था ?

दुकानदार- जी

यज्ञदत्त- आपके पास कैसे आया ?

दुकानदार-यहीं कोई साल-दो साल पहले एक मेडम जी बेच गई थीं, और मुझसे उसकी कोई कीमत नहीं ली। मैंने भी महँगे शीशे के बदले उन्हें एक शो पीस दिया था। मेरे पास उनका पता लिखा हुआ हैं, कहकर वह दौड़कर डायरी ले आया और तेजी से पन्ने पलटने लगा।

ए/2 - केसरबाग सेक्टर 15 यहीं हैं उनका पता।

यज्ञदत्त और कृष्णकांत पते को ढूंढते हुए ए/2 केसरबाग के सामने खड़े हो गए। बंगला बेहद खूबसूरत था। बेल बजाने पर नौकर आया, शर्मा ने कहा - मालिक से मिलना हैं, बहुत जरूरी काम से आये है।

नौकर अंदर चला गया। थोड़ी देर बाद बाहर आया और गेट खोलकर आंगतुकों को अंदर ले गया।

दोनों को हॉल में बैठने को कहा।

5-10 मिनट बाद एक खूबसूरत सी महिला आई, उम्र लगभग 45 होंगी। हाथ जोड़ते हुए बोली- माफ कीजिएगा मैंने आपको पहचाना नहीं।

कृष्णकांत ने अपना व यज्ञदत्त का परिचय देते हुए, सारी बात उन्हें बताई।

शीशे का जिक्र सुनते ही महिला की आँखे नम हो गई। वह कहने लगी। मेरा बेटा ऋषभ बहुत ही होनहार था। हर बात में अव्वल रहता। उसे दो ही शौक थे एक्टिंग और बाइक राइडिंग। पर किसे पता था उसका दूसरा शौक ही उसकी जान ले लेगा। ढाई साल पहले उसका एक्सीडेंट हो गया था। वह जब भी घर पर होता तो सारा दिन उस शीशे के साथ रहता। उसी के सामने खाना-पीना, उसी से बातें करना। उसी के सामने एक्टिंग की प्रेक्टिस किया करता। जब वो नहीं रहा तो उस शीशें का मैं क्या करतीं। इसलिए मैंने शीशा बंजारा मार्केट में दे दिया। कहकर महिला रोने लगीं।

कृष्णकांत और यज्ञदत्त ने उन्हें ढांढस बंधाया और सारी बात उनको बताई और कहा क्या आप शीशा फिर से लेना चाहेंगी क्योंकि उसमें आपके बेटे की आत्मा हैं, वह आपके साथ रहेगा तो आपको कभी नुकसान नहीं पहुचाएगा।

महिला रोते हुए कहने लगी- मेरे बेटे को ऐसे अपने साथ रखकर तो मेरी आत्मा रोज दुःख पाएगी। क्या उसकी मुक्ति का कोई उपाय नहीं कर सकते ?

कुछ देर सोचने पर यज्ञदत्त ने कहा- चूंकि उनकी अकाल मृत्यु हुई हैं इसलिए ये तो ईश्वर के ही हाथ में हैं, हम तो कुछ नहीं कर सकते। पर हाँ यदि आपको उचित लगे तो शीशा ठाकुर जी के मंदिर में लगवा देते हैं।

महिला को उनका यह प्रस्ताव बहुत अच्छा लगा।

महिला भी दोनों के साथ कृष्णकांत के घर के लिए रवाना हो गई।

कृष्णकांत ने यशोधरा और मधुमिता को फोन करके घर आने को कहा।

कुछ ही देर में सभी लोग कृष्णकांत के घर पर थे।

मिसेज जोशी (ऋषभ की माँ) मधुमिता के रूम में गई और धागे से बंधे शीशे के सामने खड़ी हो गई।

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