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हॉरर मैराथन - 7

भाग 7

उधर उनका प्रतिबिंब उन्हें रोता हुआ दिखा। वह शीशे से लिपटकर रोने लगीं। मेरा प्यारा बच्चा, तू मुझे छोड़कर क्यों चला गया। कुछ देर तक शीशे को गले से लगाए रखा फिर अपने आँसू पोछते हुए वह चुपचाप खड़ी हो गई। उन्होंने देखा उनका प्रतिबंब मुस्कुरा रहा था। अपने बेटे को खुश जानकर उनके मन को राहत मिली।

बाहर लोडिंग रिक्शा आ गया था। शीशे को सावधानी के साथ रख दिया गया।

मधुमिता की आँखे नम हो गई। उसे लगा मानो कोई अजीज दोस्त उससे विदा ले रहा हैं।

लोडिंग रिक्शा स्टार्ट हुआ और उसी के साथ कृष्णकांत जी पूरे परिवार के साथ अपनी कार में बैठ गये, मिसेज जोशी अपनी कार में थीं। सब लोडिंग रिक्शा को फॉलो कर रहें थे।

लोडिंग रिक्शा एक भव्य कृष्ण मंदिर के सामने रुक गई। शीशा उतारा गया। सब लोग शीशे के पीछे हो लिए।

ठाकुरजी की सुंदर मूर्ति के सामने सब लोग हाथ जोड़कर विनती करने लगें।

पुजारी जी ने शीशे को उस जगह लगवाया जहाँ ठाकुरजी को नित्य श्रृंगार के बाद शीशा दिखाया जाता हैं।

ठाकुरजी की आरती का समय हो गया था। मंदिर के पट बंद हो गए। प्रभु का श्रृंगार होने लगा।

मिसेज जोशी सहित सभी लोग मंदिर परिसर में आरती के लिए इंतजार कर रहें थे। धीरे-धीरे मंदिर परिसर भक्तजनों से खचाखच भर गया।

पट खुला और जैसे ही ठाकुरजी को श्रृंगार के लिए शीशा दिखाया गया। तेज धमाके की आवाज के साथ शीशा तड़क गया।

यज्ञदत्त जी ने जय जय श्री राधे के जयकारे लगाए। मंदिर परिसर जय जय श्री राधे के जयकारे से गूंज उठा। कृष्णकांत ,यज्ञदत्त, मिसेज जोशी कृष्ण जी के सामने नतमस्तक होकर उन्हें धन्यवाद देने लगे। भगवान ने ऋषभ की आत्मा को शीशे व इस संसार से मुक्त जो कर दिया था।

अशोक ने भी अपनी कहानी पूरी की और फिर सभी ने एक साथ ताली बजाकर उसका अभिवादन किया। फिर मीनू ने कहा- यार मजा आ गया अशोक तेरी कहानी में। खासकर जिस तरह से भूत को मुक्ति मिली है ना, ये तरीका बिल्कुल अलग ही था।

हां, पर मुझे एक बात समझ नहीं आ रही है कि हमने अब तक दो कहानी सुनी और दोनों ही कहानी में भूतों ने किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। क्या भूत सच में इतने शरीफ भी होते हैं। साहिल ने हंसते हुए कहा।

ओए भूतों के चरित्र पर तू पीएचडी बाद में कर लेना, पहले ये बता कि कहानी कैसी लगी ? मीनू ने साहिल से पूछा।

नो डाउट कहानी बहुत अच्छी थी। अशोक भी ऐसी कहानी सुना सकता है, मुझे यह नहीं पता था। साहिल ने मीनू की बात का जवाब देते हुए कहा।

वैसे दोस्तों कहानी के साथ अगर गरमागरम चाय भी हो जाए तो कहानी सुनने और सुनाने का मजा दोगुना हो जाएगा, क्या हो ? इस बार अशोक ने कहा।

हां यार, सच में फिर तो मजा ही आ जाएगा। राघव ने कहा।

चलो ठीक है तुम तीसरी पर्ची निकालो, तब मैं और मानसी चाय बना लेते हैं। शीतल ने मानसी की ओर देखते हुए कहा।

फिर वे दोनों टेंट में गई और चाय बनाने के लिए सामान लेकर आ गई। आग पर उन्होंने चाय बनाई और फिर गिलास में सभी को चाय दे दी। सभी ने चाय पीना शुरू की और साहिल ने एक पर्ची निकाली। इस बार पर्ची पर मानसी का नाम निकलकर आया।

अब मानसी ने अपनी कहानी शुरू की।

मनप्रीत अपने माता-पिता की इकलौती सन्तान हैं। वह मध्यमवर्गीय परिवार का युवा लड़का हैं। जो न सिर्फ बड़े सपने देखता हैं, बल्कि उन्हें साकार करने के लिए दिन-रात कड़ी मेहनत करता हैं। सुबह 9 बजे दुकान चला जाता हैं और रात 8 बजे घर आने के बाद अपनी पढ़ाई करता हैं।

मनप्रीत के पिता सुखराम अशासकीय विद्यालय में शिक्षक हैं। उनकी आय इतनी नहीं हैं जिससे पूरे परिवार का खर्चा वहन हो सकें। इसलिए सुधा यानी मनप्रीत की माँ भी पापड़ बनाकर हाथ खर्च निकाल लेती हैं। कम आय के बावजूद सभी खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं।

एक दिन मनप्रीत खुशी से चिल्लाता हुआ हाथ मे अखबार लिए हुए घर में प्रवेश करता है।

सुधा- क्या हुआ रे मनु ? कोई खजाना मिल गया हैं क्या...?

मनप्रीत- बस यूं ही समझ लो माँ। देखों सरकार ने युवा लड़कों के लिए कितनी अच्छी योजना बनाई हैं ‘युवा उद्यम योजना‘। मैं भी लोन लेकर अपनी खुद की दुकान डालूंगा माँ।

सुधा- हाँ, बेटा तेरे सभी मनोरथ सिद्ध हो।

मनप्रीत ने लोन के लिए फॉर्म भर दिया, उसने कपड़े का बिजनेस श्रेणी का चयन किया और अपनी ही दुकान के मालिक से कोटेशन बनवा लिया। जल्दी ही उसे 5 लाख का लोन मिल गया और उसने गर्ल्स वियर की दुकान डाल ली। मनप्रीत सुंदर, सुशील और मेहनती लड़का हैं, इसलिए उसकी दुकान बहुत ही जल्दी प्रसिद्ध हो गई और उसकी अच्छी बिक्री होने लगीं। उसने दुकान को आधुनिक ढंग से बनवा दिया। तरह-तरह की ड्रेस पहने हुए डमी लड़कियों को लुभाती। अब तो मनप्रीत ने अपने काम मे मदद के लिए दो लड़के भी रख लिए। वह दिन दुगुनी रात चौगुनी तरक्की करने लगा।

एक दिन दुकान बैठे हुए ही अचानक मनप्रीत का सर दर्द से फटने लगा। उसने पेन किलर ली पर उससे जब कोई राहत मिलती न दिखी तो दुकान को लड़कों के सुपर्द कर वह घर चला गया।

सुधा- तू लगातार काम में ही व्यस्त रहता हैं। थोड़ा आराम भी किया कर। स्वास्थ्य सही रहेगा तभी अपने सभी सपने पूरे कर पाएगा।

मनप्रीत - जी माँ, अबसे ध्यान रखूँगा।

शाम 5 बजे मनप्रीत सोकर उठा। अब उसे हल्का महसूस हो रहा था। वह सुधा के पास गया। सुधा किचन में चाय बना रहीं थीं।

मनप्रीत को देखकर बोली- अब आराम हैं ?

हाँ माँ- अंगड़ाई लेते हुए मनप्रीत ने कहा।

चाय पीकर मनप्रीत दुकान रवाना हुआ। दोनों लड़के मनप्रीत को हिसाब बताने लगे।

मनप्रीत ने दोनों को धन्यवाद देते हुए कहा- भाइयों तुम दोनों तो मेरे विश्वासपात्र हो। मुझे हिसाब नहीं देखना हैं। आज तुमने ही सब कुछ संभाला हैं इसलिए आज दुकान मैं अकेला ही मंगल कर दूंगा। तुम दोनों अब जाकर आराम करो।

जी सर- कहकर दोनों लड़के वहाँ से चले गए।

रात 9 बजे मनप्रीत दुकान मंगल करने की तैयारी करने लगा। वह बाहर टंगे हुए कपड़ों को निकाल ही रहा था कि शटर नीचे गिर गई। मनप्रीत ने शटर खोलने की कोशिश की पर वह नाकाम रहा। वह कुछ करता इससे पहले उसे अपने पीछे से किसी के हँसकर गुजरने का अहसास हुआ। वह तेजी से मुड़ा तो देखा वहाँ कोई नहीं था। उसे दुकान के ऊपरी भाग में कुछ हलचल सुनाई दी। उसने कोशिश की तो शटर खुल गया था।

वह धीरे-धीरे एक-एक सीढ़ी को चढ़ते हुए पूछता- कोई हैं क्या वहाँ ?

जब वह ऊपर पहुँचा तो वहाँ सन्नाटा था, लेकिन वह जगह जैसे कुछ कह रहीं हो। वहाँ किसी के होने का अहसास मनप्रीत को भयभीत कर रहा था। तभी मनप्रीत के फोन की रिंग बजी। मनप्रीत उसकी आवाज से डरकर उछल गया। सुधा का फोन था।

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