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तस्वीर में अवांछित - Novels
by PANKAJ SUBEER
in
Hindi Moral Stories
तस्वीर में अवांछित (कहानी - पंकज सुबीर) (1) ‘‘रंजन जी, आ रहे हैं ना आप ?’’ उधर से फ़ोन पर आयोजक ने शहद घुली आवाज़ में पूछा। ‘‘नहीं भाई साहब मैं पहले ही कह चुका हूँ रविवार को मैं कार्यक्रम नहीं लेता। एक ही दिन मिलता है परिवार के साथ बिताने को। उस पर भी पिछले दो माह से रविवार को भी व्यस्तता बनी रही है इसलिए अब कुछ आराम चाहता हूँ।’’ रंजन ने विनम्रता पूर्वक उत्तर दिया। ‘‘रंजन जी हम आपका नाम प्रचार में उपयोग कर चुके हैं’’ आयोजक ने दयनीय स्वर में कहा। ‘‘मगर मैंने तो आपको स्वीकृति
तस्वीर में अवांछित (कहानी - पंकज सुबीर) (1) ‘‘रंजन जी, आ रहे हैं ना आप ?’’ उधर से फ़ोन पर आयोजक ने शहद घुली आवाज़ में पूछा। ‘‘नहीं भाई साहब मैं पहले ही कह चुका हूँ रविवार को मैं ...Read Moreनहीं लेता। एक ही दिन मिलता है परिवार के साथ बिताने को। उस पर भी पिछले दो माह से रविवार को भी व्यस्तता बनी रही है इसलिए अब कुछ आराम चाहता हूँ।’’ रंजन ने विनम्रता पूर्वक उत्तर दिया। ‘‘रंजन जी हम आपका नाम प्रचार में उपयोग कर चुके हैं’’ आयोजक ने दयनीय स्वर में कहा। ‘‘मगर मैंने तो आपको स्वीकृति
तस्वीर में अवांछित (कहानी - पंकज सुबीर) (2) रंजन उठ कर टीवी चालू करना चाह ही रहा था कि अचानक वही पता नहीं कौन से नाम वाला आ गया ‘‘क्या बात है आज तो घर पर ही हैं।’’ ‘‘हाँ ...Read More..... आइये ना ’’ कहते हुए रंजन ने उस आदमी को बैठने का इशारा किया। कुर्सी पर बैठने के बाद उस पता नहीं कौन से नाम वाले आदमी ने सामने टेबल पर रखी किताब उठा ली और उसे पलटने लगा। रंजन ग़ौर से उस राधेश्याम, घनश्याम या शायद दिनेश को देखने लगा। अभी दो रोज़ पहले इंदौर के उस कार्यक्रम
तस्वीर में अवांछित (कहानी - पंकज सुबीर) (3) लड़की ने जो टीवी पर फिल्म देख रही थी अंदर जाकर कुछ सामान ज़ोर से पटका और फिर किसी खिड़की या शायद दरवाज़े को ज़ोर से लगाया। सारी की सारी आवाज़ें ...Read Moreतक पहुंचीं, ज़ाहिर सी बात है पहुंचाने के लिए की गईं थीं तो पहुंचेगी ही। अंदर कुछ देर तक अंसतोष अपने आपको विभिन्न ध्वनियों के माध्यम से व्यक्त करता रहा, फिर जैसी की असंतोष की प्रवृति होती है वह धीरे धीरे कम होता हुआ समाप्त हो गया। असंतुष्ट होना सबसे अस्थायी गुण है। कई बार तो समय के साथ हम