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लालच - national story competition jan

लालच

प्रदीप मिश्र

राजधानी का एक नामी नर्सिग होम – मार्डेन नर्सिग होम ! क्रीम कलर में रंगी बहुमंजिली इमारत| सेंट्रल –एयर कंडीशन| हर मंजिल तक लिफ्ट से पहुचने की मुस्तैद व्यवस्था | लिफ्टमैन के टोकाटोकी के बावजूद उसमे सवार होने वालो में रोगियों के अलावा दूर दराज के शहरों से साथ आये तीमारदार कुछ जायदा ही उत्सुक दिखते थे | अब ये और बात है कि लिफ्ट फंस जाने जैसी आपात स्थिति में बाहर निकलने के लिए चीखने –चिल्लाने व बेहोश तक हो जाने वालो में भी यही लोग प्रमुख होते थे | बाहर मुख्य द्वार पर काफी ऊँचा लोहे का गेट, जिस पर काली वर्दी में तैनात ब्लैक कैट कमांडो सरीखे दिखते सिक्यूरिटी गार्ड | पार्किंग में सैकड़ो लग्जरी कारों की भरमार थी, जिसे देख रोडवेज पकड कर वहाँ पहुँचने वाले अधिकांश लोग अपना आधा आत्मविश्वास तो गेट के बाहर ही खो देते थे | वैभव का जो आतंक उनपर हावी होने लगता था, उससे उबरने के उपक्रम में जेब में सहेजकर रखी नोट की कृशकाय गड्डी को एकबार टटोलकर ही वे अन्दर घुसने का साहस जुटा पाते थे| अंदर ओपीडी में काफी चहल-पहल | डॉक्टर की प्रसिद्धि के अनुरूप मरीजो की खासी तादाद | प्रदेश के कोने-कोने से आयी | अपनी बारी की प्रतीक्षा में चौकन्नी बैठी| बैठने की विशेष व्यवस्था के तहत मुलायम, आरामदेह सोफे के कई सेट | गंभीर मरीजो के लेटने के लिए दो तीन बेड एक कोने में रखे थे | रिसेप्सन पर एक स्मार्ट, छरहरी कन्या थी, जिस पर हर आगुन्तक के नजर एकबार टिकती जरूर थी ...अब ये देखना पलभर का होता या फिर अपलक -ये देखने वाले के स्वभाव व परिवार जनित संस्कार पर निर्भर करता था | दो तीन और काउंटर थे, जिनपर ओपीडी फॉर्म देने, पर्चा बनाने और फीस जमा करने का काम निचुड़े चेहरे वाले कुछ स्त्री –पुरुष के जिम्मे था | काउंटर से कुछ फासले पर रखे अकुरियम में तैरती रंगीन-चमकीली मछलियां कंक्रीट के इस जंगल में भी आँखों को बेहद सुकून दे रही थी |

डॉक्टर के केविन के ठीक बाहर दरवाजे से सटी दीवार पर लगे सॉफ्ट बोर्ड में अखबारों की दर्जनों कटिंग लगी थी....ये सभी दूरदराज के कई इलाको में डॉक्टर द्वारा गरीबो के लिए लगाये गये निशुल्क कैम्पों के गुनगान से ओतप्रोत थी | डॉक्टर के भीतर कूट-कूट कर भरी समाजसेवा की भावना को उजागर करती एक तस्वीर ऐसी भी थी, जिसमे वह एक अत्यंत दुर्बल बूढी महिला की पीठ पर हाथ रख बड़ी आत्मीयता से उसका दुःख –दर्द सुन रहे थे| भीतर डाक्टर के केबिन के बीचो – बीच में पड़ी विशालकाय चमचमाती मेज कमरे को दो बराबर भागो में विभाजित कर रही थी | मेज के बांयी ओर आठ दस कुर्सिया पड़ी थी | मरीजो और उनके साथ आये लोगो के बैठने के लिए | मेज के दाई ओर डॉक्टर की कुर्सी थी | सिंहासन के सामान ऊंची व भव्य | कुर्सी के पीछे दीवार से सटे शीशे के दो शो केस में रखी थी तमाम ट्राफियां व प्रमाण पत्र | चिकित्सा क्षेत्र में डॉक्टर के अभूतपूर्व योगदान के गवाह- शिलालेख सरीखे| इसमें सबसे दर्शनीय थी – महामहिम के हाथो पदमश्री ग्रहण करते डॉक्टर की सुनहरे फ्रेम वाली बड़ी सी तस्वीर | सामने मेज पर एप्पल का लैपटॉप, मोबइल, शानदार टेबल लैंप आदि सुसज्जित थे | औसत कद काठी के स्थूलकाय डॉक्टर ने चर्बी से भरे अपने चेहरे पर अतिरिक्त गंभीरता ओढ़ रखी थी | एक छरहरा गोरा हीरो सा दिखने वाला जूनियर डॉक्टर सामने बैठे मरीज की केस हिस्ट्री उन्हें समझा रहा था | मरीज दोनों डाक्टरों के अंग्रेजी में हो रहे वार्तालाप को हक्का-बक्का हो सुन रहा था| सबकुछ उसकी समझ में परे था | जूनियर डॉक्टर से केस हिस्ट्री डिस्कस करने के बाद डॉक्टर ने सामने बैठे मरीज पर एक गहरी नजर डाली तो उसे लगा जैसे डॉक्टर साहब उससे कुछ पूछने जा रहे हो | वह सभंल कर बैठ गया | पर अगले पल ही वह सर झुका कर पर्चे पर कुछ लिखने लगे | बेचारा मरीज डॉक्टर को अपनी करुण व्यथा सुनाने बेक़रार बैठा बस उनका मुंह ताकता रह गया |

अस्पताल के भीतर मरीजो की भर्ती करने के लिए बनाये गए वार्ड कई श्रेणियों में विभक्त थे – आई सी यू वार्ड, प्राइवेट वार्ड, सेमी प्राइवेट वार्ड, जनरल वार्ड आदि | हैसियत के हिसाब से सुविधा पाने की सटीक व्यवस्था| यहाँ का वातावरण अपेक्षाकृत बोझिल सहमा सहमा सा था | जिंदगी से आरपार की लडाई लड़ रहे मरीजो की आँखें खौफजदा थी | पुरुष तीमारदारो के चेहरे उड़े –उड़े थे | वे दवा लाने, जांच रिपोर्ट कलेक्ट करने, कैश काउंटर पर रुपया जमा करने की भागमभाग में थे | कई महिला तीमारदारो की आँखे रोने से सूज गई थी... अक्सर घर पर मरीज की तबियत के बारे में मोबाईल पर बताते बताते जब वे फफक कर रो पड़ती, तो आस पास का माहौल बेहद गमजदा हो उठता | यही जनरल वार्ड में वह मेरे मरीज के बगल वाले बेड पर था | कई दिनों से लीवर की बेहद जटिल बीमारी से जूझता हुआ | दिखने में निपट देहाती, मटमैला धोती कुर्ता (जिनका घड़ी डिटर्जेंट संग संसर्ग हुये महीनो बीत चुके थे ) पहने | गले में अंगौछा| उभर आई हड्डियों वाले सूखे चेहरे पर अधपकी दाढ़ी और कुछ-कुछ डरावनी सी लगती बाहर को निकली पीली –पीली आँखे | पैरो में मोची के कौशल व धैर्य की कई बार परीक्षा ले चुकी एक जोड़ी टूटी फूटी निढाल चप्पले | पैरो में फटी गहरी बिवाईयां गवाह थी – उसके मेहनतकश किसान होने की ...अभावग्रस्त जीवन की |

ऐसे निरीह, पीड़ित लोगो को अस्पतालों में इधर-उधर रिरियाते दुत्कारे जाते देख न जाने क्यों भीतर एक टीस सी उठती है .....जो लोग कभी अपनी जिंदगी को गंभीरता से ले पाने की स्थिति में नहीं होते ...न वे खुद को हेल्थ इंश्योरेंस प्लान से लैस कर पाते और न ही भारी भरकम पेंशन प्लान से | हाड तोड़ मेहनत और रूखी-सूखी जो मिले उसी से बसर कर लेना, जिनके जीवन का आधार होता है | ऐसे हल्के फुल्के लोगो को अपने चपेट में भला क्यों ले लेती है, इतनी गंभीर बीमारियाँ !!! सबसे ज्यादा कोफ़्त तो तब होती है, जब गरीबो की सरकार...गरीबो के द्वार जैसे जुमले उछाल कर सत्ता में आये हमारे जनसेवक अमेरिका –ब्रिटेन –सिंगापुर कही भी जाकर अपनी बड़ी से बड़ी बीमारी को सरकारी खर्चे पर उसकी औकात दिखाकर मुस्कुराते हुए स्वदेश वापस लौटते है |

खैर, इंडोस्कोपी जांच करा कर जब वह वापस वार्ड में लौटा, तो उखड़ा हुआ था | अपने लड़को पर बिना बात के झल्ला रहा था | शाम को राउंड पर जब डाक्टर साहब आए तो वह उठ कर बैठ गया बड़ी तत्परता से |

‘...क्या बात है कोई तकलीफ है ...दर्द वगैरा …’, डॉक्टर ने बड़े शिष्ट अंदाज में पूछा |

‘…साहब हमका छुट्टी चाही .....गाव जायक है …’ वह तैयार बैठा था |

‘… क्यों ? किस हालत तुम यहाँ लाये गए थे भूल गए क्या… अभी भी तुम खतरे से बाहर नहीं हो .....वैसे अगर तुम जाना ही चाहते हो, तो भी आज रात रुक जाओ,,,, कल सुबह चले जाना तब तक ये बोतल भी चढ़ जाएगी ...’डाक्टर का स्वर अब तक स्थिर था |

‘...साहब... का खरचा लागी रात भर कय...’

‘... एक हजार रुपये बेड चार्ज और कुछ दवा...’

‘...साहेब ...बीस हजार लैय कय आयन रहा ...सब खरच होय गा दुइ दिन मा...बस पांच सव बचा है ...यही मा तीन जने कय केरवा-भारा..’ कहते कहते उसके स्वर में शारीरिक पीड़ा से कही अधिक आर्थिक पीड़ा का समावेश हो गया था |

‘...अब इसके लिए मैं क्या कर सकता हूँ ...तुम जाना चाहते हो तो जाओ, पर ऐसी हालत में तुम्हे कुछ हो गया तो मेरे हॉस्पिटल की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी ...’ डॉक्टर ने मरीज को डराने वाले अंदाज में कहा | उसका मूड उखड चुका था|

‘...ठीक हय साहेब ...बस रहम कय के हमका जाय देव...भले हम गेट वप मरि जाई ...हाँ, गाँव पहुच जाब तव खेत पात बेच कय फिर आइब ...इलाज करावय...’ मरीज की बात सुन डॉक्टर की आँखे चमक उठी | वह सलाह देने की मुद्रा में आ गया था | पहले जैसे मुलायम अंदाज में वह बोला ...

“...तो फिर इसमें इतना परेशान होने वाली क्या बात है...अपने एक लड़के को भेज क्यों नहीं देते गाँव ...खेत बेचकर वह रुपये ले आएगा और तुम्हारा इलाज भी चलता रहेगा ...’’

“...हुहं...ये हमरे लरिके कौनव लायेक नाही हय ..हमका भरोसा नाही हय ...हजार क्य बेचिए तव पांच सव बतैहये...हम खुदये जायेक ठोक बजायक सौदा करब...’’

मरीज का ऐसा निश्चय देख डॉक्टर झुझला उठा |

“...लीवर सिरोसिस एडवांस स्टेज में है ...मौत के मुहाने पर खड़ा है, फिर भी लालच देखो इसका ...भाड़ में जाओ ...’ मन ही मन बुदबुदाता डॉक्टर दूसरे बेड की ओर बढ़ गया था |

उसका बड़ा लड़का बड़े विजयी भाव से डिस्चार्ज स्लिप लेकर वार्ड में दाखिल हुआ, तो मरीज ने सुकून की साँस ली | छोटा लड़का बैग में जल्दी –जल्दी सामान भरने लगा | चलते चलते उसने मेरी ओर इतनी आत्मीयता से देखा कि मै उसके करीब चला गया ...

“...अब चलित हय बाबू...राम..राम..’’ कहते –कहते उसके चेहरे पर एक फीकी उदास मुस्कान खिच गयी, जिसमे यहाँ से निकल पाने का फौरी सुकून तो था, पर रफ्ता रफ्ता हाथ से फिसलती जा रही जिंदगी की गहरी टीस भी थी| बाये कंधे पर बड़ा सा चीकट बैग लादे छोटा लकड़ा उसे सहारा देता साथ चल रहा था | मंद कदमो से| बड़े लड़के ने अपने दाहिने हाथ को सिर से कुछ ऊपर उठा रखा था | उसके हाथ में ग्लूकोज की लगभग भरी बोतल थी, जो पिता के शरीर में अब भी बूँद –बूँद कर उतर रही थी |