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अच्छाईयां – ११

भाग – ११

अब तक आपने देखा की....

सूरज को फुटपाथ से नई जिन्दगी देनेवाले उनके दादाजी दीनानाथ भी उनसे नफ़रत करने लगे थे | संगीत की विश्व की प्रतियोगितामे फर्स्ट होने के बाद उनको ड्रग्स सप्लाय में पाच साल केद हुई थी | उनका अतीत आज भी उनका पीछा नहीं छोड़ रहा था | वो फिर फुटपाथ पे आ गया वहा उनकी मुलाक़ात छोटू और फिर गुलाब जामुन से हुई और उनकी जिंदगी के कई सवाल खड़े हो गए......

अब आगे....

‘सुगम..... बेटा सुगम.... कहाँ गई...? देख मम्मी तेरे लिए क्या लाइ है ?’ सरगमने घरमें आते ही सुगम को ढूंढने लगी | सरगम को पता था की वे दो दिन सुगम को पहलीबार अकेला छोड़कर गई थी इसलिए वे नाराज होगी |

‘हम आपसे नाराज है.... हम आपसे बात नहीं करेंगे...!’ सुगम दूर कोने से नाराज हो के खडी थी |

सरगम को उनकी नाराजगी दूर करना अच्छी तरह से आता था | उसने अपने पर्समेसे चोकलेट्स निकाली और बोली, ‘ तो फिर ये सारी चोकलेट्स मैं अकेली ही खाऊँगी |’

चोकलेट्स को देखते ही सुगम दौड के आई और उसने सरगम के हाथमे से सारी चोकलेट्स ले ली | सरगमने उसको गोदीमें उठा लिया और उनके लागो पर पप्पियाँ करती हुईबोली, ‘ मेरी लाडो.... मेरी जान....! मुझे भी तुम्हारी बहुत याद आती थी ’

‘तुम मुझे छोड़कर कहा गई थी...? हमें बिलकुल अच्छा नही लगता था...मैं नाराज हूँ मगर एक अंकलने मुझे शिखाया जीसे हम प्यार करते है उससे हमें नाराज नहीं होना चाहिए | ’ सुगम चोकलेट खाते खाते बोली |

तभी दादाजी घरमें दाखिल हुए और बोले, ‘ ये तो तुम्हारी मम्माने हमें भी नहीं बताया..|’ दादाजी को देखते ही सरगमने उनके पाँव छुए |

‘खुश रहो... तुम्हारा काम पूरा हो गया...??’ दादाजीने आशीर्वाद देते हुए पूछ भी लिया | सरगम कुछ देर चुप रही और फिर अपना सामन रखने रूममें चली गई | दादाजी को लगा की शायद सरगम थकी हुई होगी इसलिए वे भी वहा से चले गए |

सरगम किचन में थी तभी सुगम बोली, ‘ मम्मा तुम्हे पता है, तुम्हारे जाने के बाद एक अंकल कोलेज में आये थे, उन्होंने हमारा पियानो भी ठीक कर दिया.... और उसने वो वाला गीत भी बजाया जो तुम मुझे हररोज शिखाती हो....!!’

सुगम की ये बात सुनकर सरगम किचन से बहार आई उनके हाथमें कटोरा था, वो तुरंत बोली, ‘ क्या नाम था उस अंकल का ?’

सुगम कह रही थी, ‘ अरे क्या नाम बताया था....?? मैं भूल गई.... और हाँ दादाजी भी उनको पहचानते थे, मैंने भी जब मेरा नाम बताया तो उस अंकलने कहा की तुम्हारी मम्मा का नाम सरगम तो नहीं ?? और जब मैंने हां कहा तो उनकी आँखे भर आई थी | दादाजीने फिर मुझे वहा से घर भेज दिया... और फिर मैं जब वापस गई तो देखा की उस अंकलने सारे बदमाशो की पिटाई की... उनका नाम सुनते ही सब भाग गए.... उनको भी चोट लगी थी और खून भी बह रहा था मगर किसीने उसकी मदद नहीं की | उसने इतना अच्छा काम किया फिर भी किसीने उसको थेंक्यु नहीं बोला | वो तुमसे मिलाना चाहते थे मगर किसीने उसको रोका नहीं |

‘क्या नाम था उस अंकल का...?’ अब सरगम सुगम के पास आ गई थी और पूरा ध्यान सुगम के होठो पे था |

‘मम्मा... उसने मुझे ये दिया....|’ सुगमने सफ़ेद हीरो की माला भी दिखाई |

उसे देखते ही सरगमने कहा , ‘उनका नाम सूरज तो नही था ....?’

‘हाँ सूरज ही था...!’ ये सुनते ही सरगम के हाथो से कटोरा गीर गया और उसके कांच फर्श पर बिखर गए | सरगम का ध्यान फिर भी सुगम की बातो पर ही था |

‘मम्मा तुम भी उनको पहचानती हो...? वे अच्छे थे मगर कोलेज में सभी लोग उनसे नफ़रत करते थे ..!’ सुगमने कहा |

‘और उसने क्या कहा....?’ सरगम सुनने के लिए बेताब थी |

सुगमने फिर कहा, ‘ वे कहते थे की तुम अपनी मम्मा को बहुत प्यार करना.... और फिर चले गए...! मम्मा वे किसीसे नाराज नहीं थे... वे कहते थे की जो हमें प्यार करते हैं वे ही हमें डांटे तो उनसे बुरा नहीं लगना चाहिए, ये उनका हक़ है...’

सरगम की आँखे भर आई थी और वो सुगम से चिपक गई |

‘मम्मा मुझे ये माला कैसी लगेगी?’ सुगमने वे माला अपने हाथो से गले लगते हुए कहा |

‘परी जैसी लगती हो तुम... और ये दादाजी को मत बताना की सूरज अंकलने तुम्हे दी है वरना वे नाराज हो जायेंगे... मैं उसे अलमारीमें रख देती हूँ... तुम हाथ मुंह धो लो खाने का वक्त हो गया है, मैं दादाजी को भी बुला के आती हूँ | ’ सरगमने सुगम के हाथो से माला लेते हुए कहा |

सरगमने उसे अलमारीमें रखा और दादाजी के कक्षमें गई | दादाजी के हाथमें तस्वीर थी और वो उसे देख रहे थे |

‘दादाजी, खाने का वक्त हो गया है..’ सरगम ने कहा मगर दादाजी तस्वीरमें खोए हुए थे | उस तस्वीर में सरगम, श्रीधर और सूरज की बचपन की तस्वीर थी |

‘क्या हुआ दादाजी ?’ सरगमने उसके पास आते हुए कहा |

‘ये तो तुम्हारी बचपन की तस्वीर देख रहा था | वक्त कैसे गुजर जाता है और किस दिन कौन से मोड़ पर ले आता है वो हमें पता भी नहीं चलता | हम तो केवल उनको देखते है और उनसे शिखते है | जब तुम छोटी थी तब तुम्हारे मम्मी पप्पा हमें छोड़कर चले गये...वे कहते थे की हमारी बेटी का ख्याल आपको ही रखना है... मुझे कभी कभी लगता है की क्या मैं तुम्हे सही प्यार दे पाता हु की नहीं ? अब मेरी उम्र भी इतनी रही की तुमको समझ पाउ... तेरी शादी हो जाए फिर मैं भी चैन से मर पाऊंगा...!’ और उसकी आँखे बहने लगी |

‘क्या दादाजी आप भी.... देखो मुझे कोई परेशानी नहीं है और मुझे तो गर्व है की मेरे दादाजी मेरे मम्मी पप्पा से बढकर मेरी परवरीश कर रहे है... पुरानी बाते भूल जाए और अभी खाना ठंडा हो रहा है...!’ सरगमने वे तस्वीर दादाजी के हाथो में से ले ली और उसकी जगह पर रखदी |

‘सरगम तुम खुश हो?’ आज दादाजी चिंतित थे |

सरगम ने उस तस्वीर के सामने देखा और कहा, ‘मैंने जब से जिंदगी को समझा है तब से लगा है की आप से अच्छी परवरीश मेरी कोई नहीं कर शकता | आपने अपने हाथो से मुझे खाना खिलाया है, आपने कभी मुझे मेरे मम्मी पापा की कमी महसूस होने नहीं दी | मैं खुश हु और गर्व भी है की आप जैसे दादाजी मेरे पिताजी के रूपमें मेरे साथ है |’ और सरगमने दादाजी को हाथ पकड़ के खड़ा किया और आगे चलने का ईशारा किया |

‘सरगम, हर माँ बाप की ख्वाहिश होती है की अपने बच्चो को खुश रखे | छोटे होते है तो वे छोटी छोटी बातो में खुश रहते है मगर बड़े हो जाते है तो उन्हें खुश रखना आसान नहीं होता | तुम अब बड़ी हो गई हो...| लड़की को माँ की जरुरत रहती है, और मैं तुम्हारी माँ बनके तुम्हारी खुशिया नहीं पता कर शकता |’ दादाजी खड़े हुए मगर आज उनका मन कही और था |

‘दादाजी आप भी ऐसी बाते न करे... मुझे अच्छा नहीं लगता |’ सरगमने कहा |

दादाजी के कदम रुके वे ओर भी कुछ कहना चाहते थे, ‘ सरगम आज कोलेज में.....!’

दादाजी कुछ कह रहे थे तभी सुगम कक्ष में आई और चिल्लाते हुए बोली, ‘ मुझे जोरो से भूख लगी है... मैं कबसे आपका इंतज़ार कर रही हूँ |’

दादाजी के शब्द रुक गए | सरगम भी सुनना चाहती थी के दादाजी क्या कहेंगे मगर सुगम को देखकर शायद दादाजी चुप हो गए थे |

‘तुम शहर सूरज को लेने गई थी?’ दादाजी ने खाते खाते पूछ लिया और सरगम का निवाला अपने हाथोमें ही रुक गया |

क्रमश:....