nafrat ki duniya ko chhodkar.. khush rahna mere yaar books and stories free download online pdf in Hindi

नफ़रत की दुनिया को छोड़कर....खुश रहना मेरे यार

जीव...हाड़-माँस का बना साँसे लेता पुतला। जब वही जीव अपने अंदर एक नए जीव के आगमन की सुगबुगाहट महसूस करता है...वो खुशी मनुष्य तो क्या ...जानवर भी महसूस करता है।

मोहिनी( हथिनी का काल्पनिक नाम) भी आजकल इस खुशी को महसूस कर रही थी। इन दिनों वो पेट में एक अजीब सी सरसराहट और सुगबुगाहट महसूस कर रही थी। एक नन्हा सा जीव उसके शरीर मे साँसे ले रहा था।एक अजीब सी गुदगुदी और खिंचाव उसे महसूस हो रही थी।...पर उस तकलीफ में भी उसे अद्भुत आनन्द का अनुभव हो रहा था। माँ बनने का सुख ही ऐसा होता है। आजकल मोहिनी जब कभी भी जंगल में एकांत पाती अपने गर्भ में पल रहे शिशु से बातें करने लगती।

शिशु - माँ...अंदर बहुत अंधेरा है...मुझे ..मुझे बाहर आना है।

मोहिनी- हा हा हा...इतनी जल्दी... नहीं मेरे लाल...अभी तुम्हें बाहर आने में समय है।

शिशु- माँ ...माँ मुझे बाहर की दुनिया देखनी है। कैसी होगी वो दुनिया..?

मोहिनी - ये दुनिया...ये दुनिया बहुत सुंदर है...इंद्रधनुषी रंगों से भरी ....मानवता और इंसानियत से भरी।

शिशु - माँ ...माँ ये मानवता और इंसानियत क्या होती है?

मोहिनी - मेरे लाल...इस दुनिया मे हमारी तुम्हारी तरह इंसान या मानव भी रहते हैं। ये हमे बहुत प्यार और देखभाल करते हैं और इनके इसी व्यवहार को मानवता या इंसानियत कहते हैं।

शिशु- सच में माँ...इंसान हमे इतना प्यार करते हैं?

मोहिनी - जानते हो बेटा ...इतना ही नहीं ।वो हमें ईश्वर का स्वरूप मानकर पूजते भी है।कोई भी शुभ काम करने से पहले वो हमारा नाम लेते हैं।अपने घर के पूजाघर और देवालयों में भी हमारी मूर्ति को प्रतिष्ठित करके पूजा-अर्चना करते हैं।

शिशु- सच में...कितना अच्छा लगता होगा न ।आपकी ये बातें मुझे एक सपने जैसी लग रही है। मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा।

मोहिनी- जानते हो बेटा...उन्हें ये भी पता है कि हमे खाने में गन्ना,लड्डू और केला बहुत पसंद है। उनके बच्चे जब हमारी पीठ पर बैठ कर घूमते है तो उनकी खुशी देखने लायक होती है।
इतना बेसब्र मत हो... जब तुम इस दुनिया मे कदम रखोगे तब खुद ही अपनी आँखों से देख लेना।

शिशु- माँ ...अब मुझसे इंतजार नहीं हो रहा ...मैं जल्दी से उस दुनिया को देखना चाहता हूँ। माँ बहुत भूख लग रही है।

मोहिनी- हाँ मेरे लाल...तुझसे बातें करने में कितना समय निकल गया...रुको बेटा अभी मैं तेरे लिए कुछ खाने का इंतज़ाम करती हूँ। सामने से कुछ इंसान आ रहे हैं...वो जरूर हमे खाने को कुछ देगे।

मोहिनी - मैंने कहा था न...देखो उन्होंने हमें अन्नानास खाने को दिया है। अब तुम्हारा पेट भर जाएगा।

...पर मोहिनी ये नहीं जानती थी कि ऊपर से इंसान दिखने वाले... वो अंदर से कुछ और ही थे ।

शिशु - माँ .... माँ आपने क्या खाया ...मेरे पूरे शरीर में जलन हो रही है...मेरा दम घुट रहा है। मेरी साँसे ...मेरी साँसे रुकी जा रही है। अंदर का अंधेरा और गहराता जा रहा है।माँ...माँ मुझे बाहर निकालो । माँ....तुम मुझे सुन रही हो न...माँ बोलो न...माँ कुछ तो बोलो....

मोहिनी का सुनहरा सपना बिखर चुका था...विश्वास का धागा टूट चुका था। अब तक जिस भ्रम में वो जीती चली आ रही थी वो...वो कही दूर पड़ा उसकी बेबसी पर मुस्कुरा रहा था।

मोहिनी - मेरे लाल ...मेरे लाल चिंता न करो ...मैं हूँ न तुम्हारे साथ। तुम्हें कुछ नहीं होगा।

बारूद से उसका मुँह पूरी तरह छलनी हो चुका था। जबड़े लहूलुहान हो चुके थे...वो स्तब्ध थी... इंसान के जानवरों की तरह व्यवहार से ...वो सोचती रही हम तो नाहक ही बदनाम है।शरीर शिथिल पड़ने लगा था...साँसे उखड़ने लगा थी...किससे मदद मांगे...इन मनुष्यों से....???

बिना किसी को नुकसान पहुँचाये ... मोहिनी उम्मीद का दामन थामे पास की नदी में उतर गई। आज वो अपनों से ही छली गई थी...उसकी सन्तान जो अभी तक इस दुनिया में भी नहीं आई थी...एक -एक साँस के लिए संघर्ष कर रही थी। भूखे पेट की तपिश पर बारूद की तपिश भारी पड़ गई थी।तीन दिन ...हाँ तीन तक मोहिनी जिंदगी और मौत से संघर्ष करती रही।अचानक उसने अपने पेट मे सुगबुगाहट और सरसराहट महसूस करना भी बंद कर दी। उस अबोध बच्चे का आखिर क्या कसूर था...इस संसार को देखने का उसका सपना ...सपना बनकर ही रह गया और उसके साथ ही चला गया।

मोहिनी के जीवन जीने की इच्छा खत्म हो चुकी थी।अपनो से छले जाने का दर्द वो बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी।वन विभाग ने दो हाथियों के द्वारा उसे बाहर निकालने की भी कोशिश की पर वो ...। सन्तान को खोने का गम और अपनों से छले जाने के दुख ने मोहिनी की आत्मा की हत्या तो कब की कर दी थी और आज उसने जलसमाधि लेकर इस नाशवान शरीर का भी त्याग कर दिया। वो अंत समय तक यही सोचती रही अब मनुष्य अपने बच्चों से क्या बनने को कहेगा ...मनुष्य या जानवर? ये हम बेजुबानों के साथ पहली बार तो नहीं हुआ है ....बेजुबान घोड़े "शक्तिमान" जिसकी हवा में सरपट दौड़ते पैरों को एक मनुष्य ने अपने दम्भ को सुकून पहुँचाने के लिए तोड़ दिए थे...वो पालतू जिसने अपनी वफ़ादारी और विश्वास की न जाने कितनी बार परीक्षा दी होगी ...एक बार ...क्या एक बार भी उस मनुष्य के हाथ नहीं कांपे...। मोहिनी के मन मस्तिष्क में अपने बच्चे के अंतिम शब्द बार-बार गूंज रहे थे ...."माँ तुमने तो कहा था ये दुनिया और इस दुनिया के लोग बहुत खूबसूरत है पर...।" माँ तुमने तो कहा था....."

डॉ. रंजना जायसवाल