ek ladka ko dekha to aisa laga - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

एक लड्का को देखा तो ऐसा लगा - 2


#एक लडका को देखा तो ऐसा लगा (भाग - २)

मैनै दौड कर भागते हुए बसको रोकनी चाही... लेकिन मुझे उस बसके कन्डक्टरके सिवा और कोई देख न सका । सायद उस कन्डक्टर ने अपनी उस बेईज्जतीका बदला लेने के लिए जान बुझकर मुझे वही छोडकर बस चला दिया था । मेरे बहूत कोसिसो के बाव्जुद भि मै उस बस को रोक न सका और मेरी आखो के समने से वो बस तेजी से निकल गयी ।।

उस बस मे मेरा बैग भी छुट गया था, जिस मे मेरे सारे कपडे, जरुरी के कुछ सामान.... और कुछ पैसे भी थे.....मै नही जानता था कि ये कन्डक्टर ईस तरह से मुझेसे अपनी भडास निकालेगा...

लेकिन मै भी हार मान्नेवालो मे से नही था... मैने तुरन्त वहाँ पास के ही ट्राफिक पुलिस कैप मे गया और उनसे सारी समस्या बताई । भगवानका शुक्र था कि उन लोगो ने मेरी बातोको समझा और मेरे सहायताके लिए तैयार हो गए ।

उस पुलिस कैप के हेड अफिसर ने मुझसे उस बस कि टिकट मानगी, जिस पर उस बस का नम्बर लिखा हुवा था । मैनै वो टिकट अपनी पौकेटसे निकाल कर उस औफिसरको दे दिया । औफिसर ने तुरन्त पोखरा शहर के बस स्टेन के ट्राफिक पुलिस से समपर्क किया और उन्हे सारे बिवरण बताकर मेरे बैगको सुरक्षित रखनेको बोल दिया ।

फिर उन पुलिस वालो ने एक दुसरे बस से मुझे पोखरा तक छोड्ने की बात की। और उन लोगो के मदत से मै दुसरी गाडी से पोखरा तक पहुँचा । मैने उन पुलिस वालोका दिल से शुक्रिया अदा किया, जिनके कारण मुझे अब फिर दोबारा बस टिकट कटवानी नही पडी औ मै अच्छे से अपने गन्तब्य तक पहुँचा गया ।

पोखरा बस स्टेन पर मै जैसे ही पहुचाँ वहाँ के ट्राफिक पुलिस के मद्धत से मुझे फिर से मेरी बैग सही सलामत वापस मिल गयी... जिसके अन्दर सारे सामान सुरक्षित थे ।

सर्फराज मामा से हुयि बातो के अनुसार जैसे कि मुझे बताया गया था , मै पोखरा सहेर के उसि बस स्ट्यान्ड मे उन लोगो का इन्तेजार करने लगा। फिर मुझे वहाँ के प्रतिक्षालय कक्ष मे उस फर्निचर बर्कशप के कुछ आदमी लेने आए और मै उन लोगो के साथ उस दुकान के ओर चल पडा ।

जब मै उस फर्निचर बर्कशप मे पहुचा तो वहाँ मैने देखा कि मेरे ही उम्र के और कई सारे लडके वहाँ पे काम कर रहे थे ।

फिर मुझे उस वर्कशप के मालिक से मिलवाया गया । जिन्हाने मुझे बताया कि.... सुरु के २–३ दिन तक मुझे कोई पगार नही मिलेगी । ईस दौरान मुझे वहाँ कि सारी काम सिखने होनगे । मुझे वहाँ रहने और सोने के लिए एक कमरा दिया जाएगा और दो बक्त का खाना । फिर जब मै पुरी तरह से काम सिख जाउगा तो मुझे पैसे भी मिलने लंगेगे ।

"बस २–३ महिनो की तो बात है...ईस दौरान खुब मन लगाकर काम सिख लुगाँ और जल्दी से यहाँ के हर काम की सारी बारिकिँया समझ लुँगा । और जब पैसे मिलने लंगेगे तो अम्मी को भी ज्यादा काम नही करना पडेगा ।""""

मै अपने ईसी उम्मीद और सपने के बदौलत वहाँ पे काम सिखने लगा । मैने गाँव के अम्मीको खबर कर दिया था कि मै शेहेर अच्छे से पहँच गया हु और काम भी अच्छी मिल गयी है ।

मै जीस वर्कशप मे काम करता वहाँ फर्निचर के सारे सामान लगायत अच्छे अच्छे डिजाईन के सोफा सेट भी बनते थे ।

मैने धीरे धीरे वहाँ पे एडजस्ट होने की कोशिश कर रहा था । काम की सारी बारिकीया भी अच्छे से सीख रहा था । मेरे सपनो और उम्मीदो के सहारे ही मै एक एक दिन काट रहाँ था । धिरे धिरे समय भी बित रहा था अब मुझे वहाँ गए लगभग १ महिना हो चुका था ।

कहते है ना.... हमेशा ईन्सान की सोचे जैसी हर चिज नही होती । मैने तो अपने आनेवाले उज्जवल भबिष्य के सपनो मे खोया वहाँ एक एक दिन काट रहाँ था..

लेकिन मुझे ये मालुम ना था की ईस दुनिया मे मुझे हर मोड पर, हर राह पर, हर सडक पर। हर कस्बे पर, गाँव। शहर मे मुझे....एक जीस्म के भुखे भेडिया मिलेगा ।

वैसा हि हवश के भेडिये जो मेरे गाँव मे बहूत पहले एक बार मेरे अंकल के भेष मे मुझे अपना शिकार बनाना चाहता था । उस से तो मैने उस वक्त किसि तरह से खुद को बचा लिया था ।।.. लेकिन आज फिर मुझे यहाँ भी हवश का भुखा भेडिया दिखाई दे रहा था....

उस वर्कशपका जो मालिक था... उसके ईरादे सुरुके दिन से ही मुझे ठिक नही लगते थे । एक अजीब से गंदे नजर से हर बक्त जैसे घुरता रहता हो मुझे ।

उस वर्कशप के पासवाले घर मे टोटल १० बडे बडे कमरे थे और उसी १० कमरे मे हम ४० कमदार एडजस्ट करके रहते थे ।

चार और अलग कमरा था जहाँ २ कमरा मे वो वर्कशपका मालिक रहता था और बाकी २ वहाँ के मेड, पिउन और स्वीपर लोग रहते थे ।

एक रात हम सब खाना खा कर सोने ही जा रहे थे की अचानक वहाँ के पिउन आकर मुझसे बोला की, “तुम्हे ईस वर्कशप के मालिक ने अपने कमरे के बुलाया है ।”

मुझे कुछ आश्र्चय से लगा... ईतनी रातको उन्हे मुझसे क्या काम पड गयी... लेकिन हाकिमका आर्डर था तो मुझे जाना ही था..

मै जब उनके कमरे मे पहुचा तो वो अपने बेडपर बैठे हुए थे । मुझे देखते ही वो बोले, अरे नाहब आवो यार बैठो..

उनके बोलने के आन्दाज और मुह से आ रही गंदी बास ने मुझे ये येकिन दिला दिया था कि.. उन्होने शराब पी रखी है ।

मै डरते डरते धिरे कदमो से उनके पास गया हि था कि उन्होने तभी तुरन्त अपनी हाथो से मेरी बाह पकड कर जोर से खिचाँ और बेड पर पटक दिया....

औ खुद वो झट से जाकर दरवाजा लक कर दिया ये सब देख मै हका-बका रह गया... मै डर से कापते हुए बोला.. "सर ये आप क्या कर रहे है ????"

उन्हाने शराब के नशे मे बोला, अभी मालुम चल जायगा... तुम नही जानते की मै तुम्हे कितना पसन्द करता हु...जब से तुम यहाँ आए हो तभी से मेरी नजर तुम पर थी । ये सब सुनकर मेरे रोगटे खडे हो गये थे... मैने रोते हुए बोला.. सर ये आपँ क्या बोल रहे हो..प्लीज मुझे जाने दिजिए ।

वो मालिक उसी अन्दाज मे बोला.... अरे सच ही तो कह रहाँ हु.. मेरी नजर तो कब से तुम पर थी... और आज जाकर तुम मेरे हाथ लगे हो और तुम बोल रहे हो की तुम्हे जाने दु.. ।

ईतना कहते ही वो आदमी, अपना शर्टका बटन और पाजामा उतारने लगा ।

ईस बीच मैने कितना चिखा, चिल्लाया, मद्धत की भीख मागी, रहम की गुजारिस की... लेकिन उस राक्षस ने मेरी एक ना सुनि.. हवस कि गंदी आग से जल रहे उस आदम के जीस्म अब एक कठोर लोहे सा मजबुत हो गया था । उस रात बहुत हाथ पैर मारे, बचने की कोसिस की लेकिन मै एक १६ सालका अबोध लडका उस ४० सालके मोटे तगडे राक्षस के सामने कुछ ना कर सका । उस भेडिये ने उस रात मेरे जीस्म को छल्ली छल्ली कर दिया । अपनी हवश की आग मे उसने मेरी चीख पुकार और दर्द को अनसुना कर दिया और सारी रात मेरे जीस्मको एक भुखे लोमडी के तरह नोचता रहा... । रातभर मेरे आखो से खुन भरे आसु बहते रहे और मै दर्द से चिखता रहा...मेरे दर्द भरे वो कराह उस निच आदमी के मजे के आगे फिका पड रहा था सायद ।

सारी रात.. एैसे ही दर्द भरि वो बहसीपन और हैवानियतका खेल चलता रहा.. और अगली सुबह उसने मुझसे कडे सब्दो मे कहाँ,... "अगर ईस बारेमे किसी से भि तुम ने कुछ बताया तो वो मुझपर पैसे चोरीका ईल्जाम लगाकर मुझे जेल भेजवा देगा"""
..उस वर्कशप के मालिक ने मुझे ये भी बताया की... आज ये जो कुछ भी हुवाँ ये कोई नई बात नही है....बल्की ईस वर्कशप मे काम कर रहे उन तमाम बच्चो और लडकोको ये मालिक अपनी हवश का शिकार बना चुका है... और आज तक उसके डर के मारे किसि ने भी अपना मुहँ नही खोला.... और अगर मैने भी ईस बारे मे किसि से कुछ भी कहाँ तो अन्जाम बहुत बुरा होगा ।

एैसे ही कई सारी, डर, धम्कीयो और चेतावनी के साथ उस सुबह मुझे अपने कमरे से बाहर भेजा था उस वर्कशप के मालिक ने...

जिन्दगी मे पहली बार किसी ने मेरे साथ आज ये कुकरम किया था... मेरी मरजी के बगैर मेरे साथ रिलेशन बनाये थे । मेरी ईजजत और असमतको बडे ही बेरहमी से लुटा गया था.. दर्द और नफरत से उस दिन मै टुट सा गया था . . . . . . . . . !!

ईतना कहते कहते “नाहब” की आखो मे आसु आ गए... मैने उसे सहुनुभुती के साथ हौसला दिया । उसे पानी पिलाया और उसे धाडस दिया । पानी पिकर वो कुछ देर खामोश बैठा रहा ....

ईस दौरान मै भी उसकी आप बिति सुनकर कापँ सा गया था । ईन्सान के ईतने सारे दोहरे चेहरे होते है.. और हर नकाब के पिछे एक खुनकार हवश का भुखा भेडिया...

“नाहब” की ये कहानी सुनकर मै भी ये सोचने पर मजबुर हो गया की... सच मे आज भी ईन्सान के सकल मे कई सारे राक्षस और हैवान छुपे बैठे है ??

लेकिन ये नाहब की कहानी की अन्त नही बल्की अभी तो ये सिर्फ सुरुवात थी... अभी तो यसके जीवन मे एैसे एैसे मोड आने बाकी थे... जो हम सब के होश उडा देने वाले थे . . . . . !!

आगे की कहानी अगेले ऐपीसोड मे . .