Hamesha-Hamehsa - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

हमेशा-हमेशा - 1

दूर पहाड़ों के पीछे डूबता सूरज, आसमान में फैली लाली, ख़ूबसूरत वादियों को धीमे-धीमे से आगोश में लेता शाम का धुंधलका और बदन को सिहराने वाली ठंडी हवा; ये सारे हसीन मंज़र उसके नज़रिए से ग़मगीन से थे। अपने अंदर के दर्द को आज तक अपने सीने में समेटे रखने में उसे कभी इतनी तकलीफ़ नहीं हुई जितनी आज अपनी खुशी के लिए एक फ़ैसला लेने में हो रही थी। शमा ने अपनी कलाई घड़ी पर नज़र डाली, 6:45 बज रहे थे। अँधेरा होने को था। बालकनी का दरवाज़ा बंद करके वो सीधी किचन में गई और अपने लिए गर्म चाय बनाई, सोचा चाय पीकर कुछ देर आराम करेगी लेकिन चाय के पहले घूँट के साथ ही उसके विचारों की श्रृंखला सात साल पीछे लौट गई जहां 20 साल की हँसती-खेलती शमा अपनी सहेलियों के साथ अव्वल दर्जे से बीए पास करने की खुशी मना रही थी।

शमा की सबसे अच्छी सहेली पूजा ने उसके कान में धीरे से कहा शमा जी ज़रा इधर-उधर भी देख लो। पूजा की आंखों में छुपी शरारत के पीछे के कारण को भांपकर भी शमा ने अपनी मुस्कुराहट छुपा कर उसे ऊपर-ऊपर से डाँट दिया। पूजा चुप तो हो गयी पर उसकी मुस्कुराहट से ज़ाहिर था कि शमा की नाराज़गी कितनी बनावटी थी। पूजा को डाँट तो दिया लेकिन अपनी आंखों को इधर-उधर किसी को ढूँढने से शमा खुद भी नहीं रोक पा रही थी।

कुछ देर सबकी नज़र बचाकर यहाँ-वहाँ देखने पर शमा को कुछ ही दूर गुलमोहर की नीचे अकरम दिखाई पड़ा। अकरम, जो उसके बचपन का दोस्त था, जिसके साथ आज तक उसने अपना हर दु:ख और हर सुख बांटा था, जो उसके ख़्वाबों को महकाता था। वही अकरम जिसके दूर होने के बावजूद हर पल साथ होने का एहसास शमा को होता था। और क्यों न हो आखिर वो शमा का पहला प्यार जो था।
अकरम की आँखों में शमा ने हमेशा अपने लिए प्यार देखा था मगर उसकी ख़ामोशी शमा को दिल का हाल बयां करने से रोक लेती थी। हर पल, हर लम्हा जिसे शिद्दत से चाहा कहीं उसकी दोस्ती भी न छिन जाए, यही सोचकर शमा आज तक चुप थी। लगता था जैसे ये प्यार एक ख़्वाब बनकर आँखों की दहलीज़ के अंदर ही रह जाएगा।

अपने ख़यालों में खोई शमा को पूजा ने इशारा किया कि अकरम उससे मिलना चाहता है, अभी। अपनी सहेलियों के घेरे से निकलकर शमा पहुँची उसी गुलमोहर के नीचे, जो उसके और अकरम के हर झगड़े और सुलह का गवाह था। शमा के पहुँचते ही अकरम ने उसे हमेशा की तरह चॉकलेट का डिब्बा देकर मुबारक़बाद दी लेकिन आज अकरम कुछ बदला-बदला, कुछ ज़्यादा ही चुप-चुप सा लग रहा था। शमा के बार-बार पूछने पर अकरम ने उससे वादा लिया कि वो उसकी बात पर नाराज़ नहीं होगी। शमा के हाँ कहने पर अकरम बोला, "शमा, तुम्हें याद है न पिछले महीने मेरा इंजीनियरिंग का रिजल्ट आया था और मैं कैंपस प्लेसमेंट से खुश नहीं था? मैंने मुंबई की एक कंपनी में जॉब के लिए अप्लाई किया था। वहाँ से अपॉइंटमेंट लैटर आ गया है और इसी हफ़्ते ज्वाइन करना है।
"तुम भी न कमाल करते हो अकरम! तुम्हारा ख़्वाब पूरा हुआ है! ख़ुशी की इस बात पर कौन कम्बख़्त नाराज़ होगा भला......... ?"
"कुछ और भी है, सुन तो लो!" अकरम ने शमा की बात काटते हुए कहा।
"बोलो।"
"पढ़ाई के बाद नौकरी और फिर शादी - यही होता है न?"
"हाँ।"
"तो नौकरी मैंने ढूँढ ली है। और अब अगर मैं तुम्हें पसंद हूँ तो शादी करोगी मुझसे?"
शमा कुछ बोल न सकी। अकरम ने आज उससे वो कहा जो वो आज तक सुनने को तरसती रही। सावन की पहली बारिश की तरह उसके दिल को भिगो गए अकरम के अलफ़ाज़ और वो इतना ही कह पायी, "शमा ने तो किसी और के बारे में सोचा ही नहीं है अकरम। जो आपकी मर्ज़ी है, वही मेरी भी है।"

ढलते सूरज की मद्धम रौशनी में दो दिल अपने प्यार के पूरे होते सपने को आँखों में संजोए घर की ओर चल दिये। रास्ते भर दोनों यही बात करते रहे कि पहले शमा के घर जाकर उसके वालिद कुरैशी साहब को सब कुछ बताएंगे क्योंकि वो अकरम की कोई बात नहीं टालते और फिर जाएंगे अकरम के अब्बू के पास कुरैशी अंकल को ढाल बनाकर। दोनों को मालूम था कि कुरैशी अंकल अपनी बेटी और अकरम के रिश्ते को अपना लेंगे और बाकी सब को वो ख़ुद मना लेंगे।
घर की दहलीज़ पर कदम रखते ही दोनों चौंक गए क्योंकि वहां तो जश्न का सा माहौल था। शमा को देखते ही कुरैशी साहब ने उसकी पेशानी चूमकर, उसे गले लगा कर कहा, "शमा आज तुम अव्वल दर्जे से पास हुई हो इस बात की हमें बेहद ख़ुशी है। आज इस मुबारक मौक़े पर हमारे पास भी तुम्हें देने के लिए एक ख़ुशख़बरी है। अलीगढ़ वाले मामू के बड़े बेटे फ़राज़ के साथ अगले महीने की इक्कीस को तुम्हारा निकाह तय हुआ है। अब ज़िंदगी के इम्तिहान में भी अव्वल आना मेरी बच्ची।"

शमा पर जैसे बिजली गिर पड़ी। न तो कुछ बोल सकी और न ही कुछ सुनने की हिम्मत रही। किसी तरह हिम्मत बटोर कर अम्मी के सीने से लगकर बोली, "अम्मी मैं और अकरम........"
लेकिन आगे के लफ़्ज़ उसके सीने में ही दफ़्न हो कर रह गये। अम्मी ने उसके मुँह में मिठाई का टुकड़ा डाल दिया और उसके कान में बोलीं,"अच्छी बेटियाँ वालिदैन के फ़ैसलों से बग़ावत नहीं करतीं। तुमने हमेशा माँ-बाप की इज़्ज़त और ख़ानदान की आबरू का पास रखा है। उम्मीद है आज भी हमें रुसवा नहीं करोगी।"
बुत सी बनी शमा ने एक बेबस नज़र अकरम की ओर डाली। अम्मी ने आगे बढ़कर अकरम के मुँह में भी मिठाई का टुकड़ा डाल दिया। अकरम की आँखों से दो गर्म आँसू ढुलक कर उसके चेहरे को भिगोते, फिसल कर कहीं खो गये और उन्हीं की तरह, अकरम भी पीची की ओर मुड़ा और न सिर्फ कुरैशी साहब के घर बल्कि शमा की ज़िन्दगी से भी हमेशा-हमेशा के लिए चला गया।

शमा ने अपने सपनों, ख़ुशियों और अपनी जान को जाते देखा पर शमा नहीं रो पायी। पूरी रात शमा ने किस तरह काटी ये सिर्फ़ उसका दिल जानता था या अकरम महसूस कर सकता था पर वो पास नहीं था। और अब तो शमा को अपने ही दिल में अकरम की मौजूदगी भी थोड़ी ग़लत लग रही थी। किसी और का नाम लिख दिया गया था शमा के लाल जोड़े पर और अब उसी का हक़ था दिल और ख़यालात पर भी।

अगली सुबह का सूरज मानो दो प्यार करने वालों के दिल के लहू से नहाकर इतना सुर्ख़ था। हवा की तरह उड़ता वक्त वो दिन भी ले आया जब शमा के घर बारात आनी थी। हाथों की लाल मेहंदी में अकरम का अक्स उभरता नज़र आया पर ये थी तो फ़राज़ के नाम की। लाख चाहकर भी शमा अपने दिल की बात किसी से न कह सकी और उसने तय किया कि वो अपने नसीब को दिल से अपनाएगी। एक बीवी पर जो कुछ भी फ़र्ज़ है, वो उसे पूरी शिद्दत से निभाएगी।
ढोलक की थाप और शगुन के गीतों की आवाज़ में शमा ने अकरम के आख़िरी ख़याल को भी अपने दिल से रुख़सती दे दी।

.... To be continued