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क्या तुझे भी इश्क़ है? (भाग-6) 

क्या तुझे भी इश्क़ है? (भाग-6)

भाग-6. तुम विवेकानंद के जैसी बनो!
रात के करीब साढ़े दस बज रहे थे। शिवाक्षी अपने बिस्तर पर लेटी हुई थी। वो अपने फ़ोन पर किसी डबिंग स्टूडियो के नंबर ढूंढ रही थी। इसी दौरान कोई उसका दरवाजा बजाता है।
- हमने बोला था हमें कोई डिस्टर्ब ना करे। अगर हम गुस्सा करते हैं और बिना किसी मतलब के लोगों से झगड़ा करते हैं तो हम इस कमरे में ठीक हैं। हम आज के बाद घर से नहीं निकलेंगे।
उसने बिस्तर पर लेटे-लेटे ही जवाब दिया।
- शिवी बेटा हम तुम्हारे पापा... दरवाजा खोलो!
- पापा हमें अब कोई लेक्चर नहीं सुनना। हमने मम्मा से ही लेक्चर सुन लिया।
- हम कोई लेक्चर नहीं सुनाने आए हैं.. तुम दरवाजा तो खोलो..
उसके पापा ने एक बार फिर प्यार से कहा। जिसके बाद शिवाक्षी बेमन से खड़ी हुई और उसने दरवाजा खोला। उसके पापा खाने की एक थाली के साथ उसके सामने खड़े थे।
- हमको खाना भी नहीं खाना।
उसने मुंह बनाया।
-हमने भी बेटा खाना नहीं खाया है। तुम्हारी माँ पहले से बहुत लेक्चर सुना चुकी है हमें और तुम्हारी तरह हमारा लेक्चर से पेट नहीं भरता है। तुम खाना नहीं खाओगी तो हमें भी भूख नहीं लगेगी ये तुमको अच्छे से पता है। खाना खा लो ना..
उन्होंने प्यार से कहा।
- अच्छा, भूख तो हमें भी लगी थी। बस हम नाटक कर रहे थे। आओ ज़रा... छुपकर खाना खा लेते हैं।
शिवाक्षी ने कहा जिसके बाद उसके पापा ने मुस्कुराते हुए थाली को बिस्तर पर रखा।
- चलो बढ़िया है तुम खाना खाने के लिए मान गई।
- मना कब किया है, आपको कहा था ना हमने। हम शादी के बाद करवा वरवा चौथ का व्रत ना करने वाले, हमसे भूखा नहीं रहा जाता।
- अरे तो तुमको रखने के लिए बोल कौन रहा है.. वैसे भी हम नहीं चाहते तुम्हारी शादी हो..
उसके पापा ने उसे एक निवाला देते हुए कहा।
- उम्म्म.. आप बहुत अच्छे हो। पर पता नहीं आपके जैसे भले इन्सान के वो आंतकवादी प्रवृति की मम्मा कैसे पल्ले पड़ गई...
उसने निवाले को चबाते हुए कहा।
- हा हा हा.. आंतकवादी प्रवृति की। तुम ना.. धीरे बोला करो। वरना तेरी माँ तेरे साथ हमारी भी कुटाई कर देगी।
- पता है हमको.... पर क्या करें। हम हमारे जज्बात दबाकर भी तो नहीं रख सकते ना पापा और मम्मा तो जानबूझकर बात का बतंगड़ बना देती है.. कभी कभी तो मन करता है.. हम भी राहत इंदौरी की तरह कोई तड़कता-भड़कता शेर उन पर लिख दें...
उसने मुस्काते हुए कहा।
- अच्छा! तो तू अब उस पर शेर लिखेगी...
उसके पापा ने धीमें से उससे पुछा।
- अरे मेरे भोले पापा हमने शेर आलरेडी लिख दिया है। अगर आप इरशाद बोलो तो हम सुना भी सकते हैं..
उसने मुस्कुराते हुए कहा।
- अच्छा सच में.. चलो फिर सुनाओ।
- जी.... सुनों फिर.. उम्म्म...
उसने निवाले को पहले निगला।
- इरशाद...
- हूँ सुनो फिर.. पता है हमें तुम करती हो नफरत हमसे जैसे करे कोई तालिबानी...
- वाह.... वाह.... उम्म्म मजा आ गया...
शिवाक्षी के पापा ने निवाले को निगलते हुए कहा।
- हूँ पापा सुनों, पता है हमें तुम करती हो नफरत हमसे जैसे करे कोई तालिबानी..
पर फिर भी हम इश्क करते हैं तुमसे जैसे करे कोई हिन्दुस्तानी..!!
- वाह.. वाह.. वाह... मजा आ गया.. सच में... तुम कमाल की हो... अपनी माँ पर ऐसा लिख दिया।
- कुछ ज्यादा ही वाह वाही नहीं हो रही है क्या बाप-बेटी के बीच में, हमारी चुगली ही हो रही होगी?
लिविंग रूम से शिवाक्षी की माँ ने आवाज दी।
- अरे बाप रे.. उसको सुनाई दे गया... अरे.. कुछ नहीं शिवी की माँ... हम तुम्हारी काहे चुगली करेंगे..
- हाँ..हमारे पास और भी बहुत काम हैं करने को। वैसे भी हमने आपकी चुगली करने का ठेका नहीं ले रखा है। हर वक्त लड़ाई करने के लिए तैयार रहती हो आप....
शिवाक्षी ने जोर से कहा।
- अरे.. शांत हो जा.. ऐसे नहीं बोला करते... शिवी की माँ तुम अपने रूम के अंदर जाओ.. हम बस ऐसे ही बात कर रहे थे.. तुम जाओ...
उसके पापा ने शिवाक्षी के रूम से ही जोर से आवाज दी!
- हम जा रहे हैं.. हमें कोई इंटरेस्ट नहीं है बाप-बेटी की बात सुनने में.. हमारी तो एक ही बेटी है आरू... हमारा कहा भी मानती है.. आप रखो उस सूतली बम को..
उसकी माँ ने जोर से कहा और उसके बाद अपने कमरे में चली गई।
- लो सुन लिया न फिर.. तुम्हें कितनी बार बोला है तुम्हारी माँ से हर बार लड़ाई करने के लिए उतारू मत हो जाया कर..
- अच्छा सॉरी.. पर वो हमारे बीच में क्यों पड़ती हैं.. आपको पता है हमें ये सब अच्छा नहीं लगता..
उसने मुंह बनाते हुए कहा।
- हाँ सब पता है तुझे अच्छा नहीं लगता... पर फिर भी तुझे अपने गुस्से पर काबू रखना चाहिए शिवी... तुम अब बच्ची नहीं रही हो.. आज भी देखो मैटर बढ़ जाता तुम्हारे गुस्से की वजह से.. तुझे अपने गुस्से पर थोड़ा कंट्रोल करना आना चाहिए..
- पापा यू नो.. आज हमारी गलती नहीं थी.. ना उस वक्त और ना अब..
उसने मुंह बनाया।
- तभी तो तुझे कुछ नहीं कहा हमने। पहले अनिरुद्ध की गलती थी... और अब तुम्हारी माँ बीच में बोल गई पर तुझे अच्छे से पता है दुनिया टारगेट उसी को करती है जिसके दिमाग पर कंट्रोल नहीं होता है। दुनिया उस इन्सान को आसानी से हरा देती है जो खुद पर कंट्रोल ना कर सके.. इस लिए हम तेरे भले के लिए ही बोल रहे हैं.. थोड़ा कंट्रोल किया करो बेटा.. वक्त आएगा जब ये सब लोग जो तुमसे लड़ते हैं वही तुम्हारे नेचर की तारीफ करेंगे फिर... आरू को देखो वो कैसे सबसे प्यार से बात करती हैं..
उन्होंने उसे प्यार से कहा।
- हाँ हाँ.. अब आप भी उसकी तारीफ कर दो.. पापा यू नो.. हमें चीजों को मशाला लगाकर बोलने की आदत नहीं है.. अब जो तारीफ डिजर्व ही नहीं करता उसकी क्या तारीफ़ करूँ.. अब आज देखो अनिरुद्ध ने पहले हमारी अनारकली को टक्कर मारी और ऊपर से हमारे ऊपर ही टुनटुनाने लगा। बोलो ये का बात हुई.. फिर बोला मारकर दिखाओ। हमने मार भी दिया.. उम्म्म....
उसने आखिरी निवाला लेते हुए कहा।
- अच्छा ठीक है.. पर फिर भी हम सलाह देंगे तुमको। अब वक्त आ गया है तुमको खुद को बदलना चाहिए। सब मोहल्ले वाले भी तेरे कारनामों की वजह से परेशान रहते हैं। बोलते हैं, पंडित जी ने क्या संस्कार दिए हैं पता नहीं। बेटी तो हर किसी से उलझ पड़ती है...
उन्होंने उदास होते हुए कहा।
- पर कैसे खुद के गुस्से पर काबू करें। हमने योग करके देख लिया, मौन व्रत धारण करके देख लिया.. ऊपर से आपने बोला था हम तामसिक भोजन ना करें.. लहसुन प्याज से भी तो हमने दूरी बना ली.. लेकिन फिर भी.. फिर भी हम खुद के गुस्से पर काबू नहीं रख पाते हैं..
उसने दुखी होते हुए कहा। उसके पिताजी ने थाली में हाथ धोया और उसके बाद बोले- हम हैं ना। हम तुम्हारी हेल्प करेंगे। हम तुम्हारे लिए गिफ्ट लेके आये थे..
उसके पापा ने मुस्कुराते हुए कहा।
- गिफ्ट.. हे.. पापा आप हमारे लिए गिफ्ट लेकर आये हो..
- हूँ.. रुको हम मंगवाते हैं...
उन्होंने कहा और उसके बाद खड़े हो गये। तब तक शिवाक्षी ने भी अपना मुंह धो लिया। उन्होंने दरवाजे के पास जाकर आवाज दी।
- आरू बेटा.. ओ आरू बेटा..
-हाँ पापा।
नीचे से आरोही ने अपने कमरे के अंदर से आवाज दी.
- वो बेटा, हमारे कमरे की टेबल पर एक डिब्बा पड़ा है, लेके आओ ज़रा...
उसके पापा ने प्यार से कहा.
- जी पापा आते हैं लेकर...
कुछ ही देर बाद आरोही उस गिफ्ट वाले डिब्बे को लेकर ऊपर आ गई। उसने अपने पापा को वो डिब्बा दिया और वो चली गई। जिसके बाद शिवाक्षी के पापा उस डिब्बे को लेकर उसके पास आए उन्होंने उस डिब्बे को शिवाक्षी को दिया।
- लो इसे खोलो...
- थैंक यू पापा.. जरुर हमारे काम की चीज होगी..
शिवाक्षी ने उस डिब्बे को खोला। जिसके बाद उसे पता चला उसके अंदर स्वामी विवेकानंद की लिखी चार किताबें थीं - राज योग, हठ योग, कर्म योग और भक्ति योग।
- पापा विवेकानंद जी की किताबें?
- हूँ....इन्हें पढो। ये तुम्हारा गिफ्ट है। स्वामी जी के विचार हर किसी की जिन्दगी को बदलने की काबिलियत रखते हैं। इस लिए तुम्हें उनकी किताबों को पढ़ना चाहिए। हमें पता है इन किताबों को पढ़ने से और इनमें लिखी बातों को फॉलो करके तुम खुद में सकारात्मक बदलाव ला सकती हो शिवी। ये किताबें तुम्हारे गुस्से को कंट्रोल करने में भी मदद करेंगी।
- हूँ पापा... आपने सच में बहुत अच्छा गिफ्ट दिया है हमें..
उसने मुस्काते हुए कहा।
- हाँ, और हम चाहते हैं की तुम इन किताबों को पढ़कर विवेकानन्द जी की तरह बनो। उनकी ही तरह युवाओं की आदर्श बनो। हमें बहुत ख़ुशी होगी उस दिन जब लोग तुझे भी अपना आइडियल मानेंगे बेटा। लोगों से झगड़ा करने में कोई फायदा नहीं है... खुद में बदलाव लेकर आओ.. और जब तुम कामयाब हो गई तो फिर सब जिस बात के लिए तुम्हें बुरा भला कहते हैं उसी के लिए फिर तुम्हारी तारीफ करेंगे...
उन्होंने उसे प्यार से गले लगाया और उसके बाद उसका माथा चूमा।
- हाँ... पापा आप सही कहते हो.. हमें खुद पर काम करना ही होगा... हम अब अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेंगे कि हम अब कभी गुस्सा ना करें.. और ना ही किसी से झगड़ा करें... आई लव यू पापा.... जो आपने हमें इतना अच्छा गिफ्ट दिया..!
शिवाक्षी की आँखों में आंसू थे। जिन्हें देखकर उसके पापा को अब लग गया था कि वो अब अपने आपको जरुर बदल लेगी। हालाँकि विवेकानंद जी की किताबें उसकी जिन्दगी में कौनसा सकारात्मक बदलाव लेकर आने वाली थीं ये तो वक्त ही बताने वाला था। खैर कुछ वक्त के लिए उसके पापा जरुर खुश हो गये थे।
क्रमश: