Mahila Purusho me takraav kyo ? - 1 in Hindi Human Science by Captain Dharnidhar books and stories PDF | महिला पुरूषों मे टकराव क्यों ? - 1

महिला पुरूषों मे टकराव क्यों ? - 1

आपने एक खेल कभी अपने बचपन मे खेला होगा दो दल बच्चो के बनाये जाते है एक दल घोड़ी बन जाता है दूसरे दल वाले उनकी पीठ पर बैठ जाते हैं फिर एक बच्चा पूछता है "धींगा ऊपर कौन चढ़ा ? चढ़े हुए बच्चे बोलते हैं "धींगा" फिर घोड़ी बने हुए बोलते हैं उतरो धींगा हम चढ़े " फिर ऊपर चढ़े बच्चे घोड़ी बन जाते हैं और वे ऊपर चढ जाते हैं । यह खेल इसी क्रम मे चलता रहता है । ठीक ऐसे ही महिला पुरूषों से इसे जोड़कर देख सकते हैं । कभी महिला पुरूषों पर भारी होगी कभी पुरूष भारी होंगे । दोनों के बलाबल में संतुलन बहुत जरूरी है । जिस तरह से आज महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए काम हो रहा है सरकारे कानून बना रही हैं । महिलाओं का उत्पीड़न न हो इसके लिए एनजीओ काम कर रहे हैं महिला आयोगों का गठन हो रहा है इन सबके प्रयासों से सुधार होता भी दिखाई दे रहा है । महिलाओं की भागीदारी हर क्षेत्र मे बढ भी रही है । अब तो महिलाओं की सोच इतनी बदल गयी है वे पुरूषों से किसी भी क्षेत्र में खुद को कम नहीं समझती । बच्चों को पालने से लेकर रसोई मे खाना बनाने तक पुरूषों से अपेक्षा करने लगी है और पुरूष यह सब कर भी रहे हैं । किन्तु महिला पक्ष को बढावा इसी तरह मिलता रहा तो जैसे पुरूष प्रधान समाज आज है वैसे ही एक दिन महिला प्रधान समाज बन सकता है । अधिकारोों की प्यास महिलाओं मे रूकने वाली नही है । एक दिन पुरूष बेचारा बन सकता है । दुनिया मे एक ऐसा क्षेत्र अभी है जहां महिलाओं की प्रधानता है । वहा अपहरण पुरूषों के होते है उत्पीड़न पुरूषों का होता है उत्पीड़न करने वाली महिलाएं हैं ।
भारत में भी देखे तो पूर्वोत्तर में फैसले महिलाओं द्वारा लिए जाते हैं । यहां तक की कुछ जगहों पर विवाह के बाद ससुराल पुरूष जाता है । परिवार मे जन्मी लड़की वारिस बनती है ।
मेरा मंतव्य यह है कि एक वर्ग को अधिक बढावा मिलता रहा तो जो कानून इनको सशक्त करने के बने है वे एक दिन पुरूषो के उत्पीड़न का कारण बन सकते हैं । अतः यह मान लेना कि महिलाएं उत्पीड़न नहीं कर सकती यह गलत हो सकता है पुरूषों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए काम होना चाहिए ।

जिस तरह आज पुरूष प्रधान समाज ने नारी को दबाकर रखा है उसे कभी भी स्वतंत्र नही होने दिया । कभी धर्म की आड मे उसे प्रतिबंधित करके रखा कभी उसे घर परिवार की जिम्मेदारी मे उलझाये रखा कारण जो भी रहे हो । चाहे आक्रान्ताओं के आक्रमण रहे हो चाहे उनकी संस्कृति का प्रभाव रहा हो ।

यहां मै स्पष्ट करता चलू भारतीय संस्कृति में नारी को हमेशा बराबरी का दर्जा देने की बात कही है ।

गृहस्थी सुचारू रूप से चले आपसी टकराव न हो बच्चो मे श्रेष्ठ संस्कार पड़े । इसके लिए व्यवस्था दी की तुम घर देखो पुरूष आजीविका के साधन जुटाएंगे। तुम दोनों कर्तव्य बोध के साथ अपनी गृहस्थी चलाओ । संभवतः कार्य की बांट का उद्देश्य स्वस्थ सुसंस्कारी समाज का निर्माण रहा हो ।

किन्तु धीरे धीरे पुरूष प्रधान समाज बनने लगा बाहर का सारा काम देखते देखते नारी घरों तक सीमित होती गयी । इसके लिए विदेशी आक्रमणों का होना लंबे समय तक विदेशियों का शासन करना शिक्षा पद्धति मे बदलाव होते रहना नारी को शिक्षा से दूर रखना ये सब नारी को अज्ञानता के अंधकार मे डालते गये । नारी पुरूषों द्वारा लगाये प्रतिबंधो को झेलती गयी ।

धीरे धीरे पश्चिमी देशो का प्रभाव बढा उनके रहन सहन बोलचाल को सभ्य मानकर अपनाया जाने लगा ।

क्रमश---

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सामाज के मनोविज्ञान को समझाने का प्रयास जिस पर किसी का ध्यान ही नही गया

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