The one whom you drink, the one who is happy... books and stories free download online pdf in Hindi

जिसे पिया चाहे वही सुहागन...

सलीहा बेचारी दुबली पतली सी साँवली सी लड़की, सब कहते थे कि उसके सीने में शायद दिल नहीं था, क्योंकि अगर दिल होता तो वो ज़रूर खूबसूरत मर्दों को देखकर धड़कता,सलीहा बहुत काली थी, ऊपर से सींंक सी पतली,कमर का तो कुछ अता पता ही नहीं था,उसकी अम्मी उसे खिला खिलाकर परेशान थी लेकिन मजाल है की सलीहा के बदन में कुछ भी लग जाएं,उसके बदन पर माँस चढ़ने का नाम ही ना लेता था, रंग रुप अल्लाह ने ऐसा दिया था कि लोंग तौबा करते थे, लोग उसके वालिदैन पर तरस खाया करते थे कि न जाने किस जनम की सज़ा भुगत रहे हैं बेचारे, यहाँ अच्छी-भली हसीन जहेज़ वालियों को कोई नही पूछता,लोग मुँहमाँगा दहेज माँगकर ब्याहते हैं....अल्लाह की इस रहमत को कौन बदनसीब समेटेगा?सलीहा बदसूरत ही नहीं उदासीन भी थी क्योंकि उसकी बदसूरती ने उसके दिल-ओ-दिमाग दोनों पर कब्जा कर लिया था,वो कितनी भी सँज सँवर ले लेकिन उसमें रंगत ना आती थी,इसलिए वो खुद से और दुनिया से चिढ़ी चिढ़ी रहती थी......

और दूसरी तरफ थे रहमान अली,जिन्हें देखकर दिलवालियाँ हाय...हाय...किया करतीं थीं, वो थे भी सिर से पैर तक बेहद खूबसूरत और दिलचस्प हाय...हाय,उनका सोने सा दमकता रंग, काली घटाओं को मात देते खमदार बाल, गहरी भूरी आँखें...ऐसी आँखें कि एक बार कोई जी भर के उनमें झाँक ले तो जनम-जनम के लिए उनका हो जाए, उनकी मीठी-मीठी मुस्कुराहट एक जहर की तरह थी जिस पर शहीद होने को जी चाहे,उन्हें देखकर ख़ुदा की कुदरत याद आ जाती थी,मालूम होता था बड़ी फुरसत से मजे ले-लेकर अल्लाह ने उन्हें गढ़ा था,
बड़ी कम उम्र में उन्हें हसीनाओं के दिल के साथ खेलने का चस्का लग गया था, आसपास की तकरीबन सब लड़कियाँ उन पर दिल हार चुकी थीं,वें उन हसीनाओं के दिल के साथ खेलते और जब उनसे जी भर जाता तो किनारा कर लेते, जिस महफ़िल में जाते, दिलवालियों के टूटे दिलों के ढेर लग जाते, शौहर अपनी बीवियाँ समेटने में लग जाते या बीवियों के साथ महफिल से बाहर निकल जाते, कुँवारी लड़कियों की माएँ फौरन उन पर मेहरबान हो जातीं,जब वकालत कर रहे थे ,तभी निकाह के पैग़ाम आने लगे थे,इसलिए वकालत के बाद वें विलायत चले गए,क्योंकि उनके अब्बाहुजूर के पास बेशुमार दौलत थी,ठहरे अकेली औलाद तो सब उन्हीं का था,जब विलायत से लौटे तो महबूबाओं की तादाद इस तेज़ी से बढ़ी कि सम्भालना मुश्किल हो गया,आएं दिन लोंग उनकी मेहमाननवाजी करने लगे,दे दावतों पे दावतें होने लगीं, एक से एक तीखी सलोनी हसीनाएँ अपनी अदाओं से उनका दिल जीतने पर तुल पड़ीं,लेकिन कपड़े की दुकान वाला अगर पचास-साठ थान खोलकर आपके सामने फैला दे तो चुनाव करना जरा मुश्किल हो जाता है,यही हाल बेचारे मिस्टर हाय...हाय यानि की रहमान अली का हुआ,कभी एक पसंद आई, कभी दूसरी और कभी एक साथ कई-कई पसंद आ जातीं और फिर सब जल्दी ही दिल से भी उतर जातीं, कोई उनके मुकाबले की थी भी कहाँ? वें हसीनाएंँ भी जानती थीं कि वो उनकी पहुँच से बाहर हैं, मगर दिल से मजबूर थीं, उन्हें देखकर ठंडी आहें भरने लगती और रातों को आँसुओं से तकिये भिगोने के सिवा उनके पास और कोई चारा नहीं बचा था.....
सलीहा दिनभर अपनी क्लीनिक में काम करती क्योंकि वो एक डाक्टर थी,उसने अपने घर में ही क्लीनिक खोल रखा था क्योंकि उसके वालिद की बहुत बड़ी हवेली थी,उसका एक यही सकारात्मक पहलू था कि वो एक डाक्टर थी और लोगों का इलाज करके उन्हें ठीक कर देती थी,लड़की को जब अल्लाह ने शक्ल सूरत नहीं बक्शी तो उसके वालिद ने सलीहा को आगें पढ़ाने का सोचा,सोचा कम से कम काबिल डाक्टर ही बन जाएं क्योंकि काबिल बीवी तो वो बनने से रही,वो एक अच्छी सर्जन भी ,लोगों के घाव में ऐसे टाँके लगाती थी कि दो दिन बाद ही इन्सान दुरूस्त हो जाता था,ऐसे ही उसने ना जाने कितने लोगों की चिकित्सा करके उन्हें ठीक किया था,चौराहे वाले चाचा के पेट में तो एक बार सब्बल घुस गई थी,सब हिम्मत हार बैठे लेकिन सलीहा ने हिम्मत ना हारी और सब्बल पेट से निकाल कर ऐसा इलाज किया कि अब तो पेट के टाँके भी नहीं दिखते,उसने बहुत से लोगों का इलाज किया और वें सब बिना परेशानी के कुछ दिनों बाद एक दम दुरूस्त हो गए....
विलायत से लौटने के बाद अब रहमान अली की अय्याशी जोरों पर चल रही थी,इसलिए शबाब,शराब और कबाब ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया और उनका वजन बढ़ने लगा,अल्लाह के करम से उनके बदन का माँस भी बेशरम होकर बढ़ने लगा था,तोंद निकलने लगी थी,लेकिन वें तब भी अपने पर कोई रहम नहीं खा रहे थें,एक रात उन्होंने इतना ठूस लिया कि ले उल्टी ....ले दस्त ,उनका हाल बेहाल हो गया,तो उनके वालिदैन को कुछ नहीं सूझा फौरन मोटर में डालकर सलीहा के घर ले गए,सलीहा किसी भी वक्त लोगों का इलाज कर दिया करती थी,उसे वक्त की कोई पाबंदी नहीं थी,बस उसके लिए उसका मरीज खुदा होता था इसलिए वो मन लगाकर उसका इलाज करती,इसलिए उसने उस रात रहमान अली का भी इलाज कर दिया....
कुछ दवाओं और इन्जेक्शन के बाद रहमान की तबियत में कुछ इजाफा हुआ, सलीहा की दवाओं से उन्हें फायदा हुआ और वें अब होश में थे,उन्होंने सलीहा को देखा,उन्होंने पहले भी सलीहा को काफी महफिलों में देखा था लेकिन उसकी बदसूरती ने कभी उनको उससे बात करने की इजाजत नहीं दी,बदसूरत इंसान से उन्हें चिढ़ थी, उनकी समझ से खास तौर से औरत को तो बदसूरत होने का हक ही नहीं होना चाहिए, अगर औरत हसीन नहीं तो इस दुनिया में है ही क्यों? उसे पैदा ही नहीं होना चाहिए,इसीलिए सलीहा को देखकर उनके रोंगटे खड़े हो जाते थे, तवे के समान काली, ऊपर से सींक जैसी पतली,कमर इतनी पतली कि माँस चढ़ने की दुआँ माँगती थी,ना बदन में रंगत ना चेहरे पर रूआब.....
रहमान अली अब ठीक थे तो सलीहा उनसे बोली....
वरज़िश किया कीजिए रहमान साहब वरना मोटे और थुल-थुल हो जाएँगे...
तब रहमान मियाँ बोलें....
""शुक्रिया आपकी राय का डाक्टरनी साहिबा।
उस रात किसी हसीना के तसव्वुर में खोने की बजाय रहमान अली गुस्से से फनफनाते हुए बोलें..,
"काली माई...!न जाने अपने आपको क्या समझती है,कमबख्त मरी हुई छिपकली! ख़ुदा कसम उबकाई आती है इसे देखकर......
उनकी फुसफुसाहट सलीहा ने सुन ली,लेकिन वो बोली कुछ भी नहीं....
दूसरे दिन जब रहमान मियाँ अपने घर जाने लगे तो उन्होंने सलीहा से बदला लेने का सोचा और उससे बोलें....
मोहतरमा !निकाह नहीं करेगीं क्या ?निकाह की उम्र तो बीती जा रही है आपकी, इरादा क्या है? क्या उम्र भर निकाह नहीं करेगीं?
अब सलीहा गुस्से से बिफर पड़ी और रहमान अली से बोली..
निकाह क्यों नहीं करूँगीं भला?मुनासिब इन्सान तो मिलें....
तब रहमान मियाँ ने पूछा....
और मौहब्बत कब करेगीं?
तब सलीहा बोली....
मौहब्बत बगैर शादी कब होती है भला !वो तो तलाक़ होता है, कोई भला आदमी मिला तो शानदार इश्क किया जाएगा उसके बाद ही निकाह होगा....
तब रहमान अली बोलें....
मेरे बारें में क्या ख़याल है?
तब सलीहा बोली....
जनाब!ज़िक्र भले आदमी का हो रहा था,तो वो भले आदमी आप नहीं हो सकते!तौबा करें, आप भले आदमी तो क्या आपको तो आदमी कहना ही दगाबाज़ी है,
रहमान अली ने गुस्से से पूछा....
तुम्हारा मतलब क्या है...?मैं आदमी नहीं!
तब सलीहा बोली.....
आप तो माशूक हैं! भई !मुझसे तो माशूक न झेले जाएँ! अरे कहाँ मैं आपके नखरे उठाती फिरूँगी!
तब रहमान अली बोले.....
तो तुम समझती हो कि कोई तुम्हारे नखरे उठाने को मरा जा रहा है?
तब सलीहा बोली....
कोई तो ज़रूर उठाएगा,
रहमान ने पूछा,कौन?
तब सलीहा बोली,जिसे गरज होगी वो मेरे नखरे उठाएगा ही,
तब रहमान अली बोले,कभी आईने में मुँह देखा है?
तब सलीहा बोली.....
रोज़ देखती हूँ और आईने से पूछती हूँ, आईने..... ऐ आईने! बता तो , कोई है दुनिया में मुझसे ज़्यादा हसीन और खूबसूरत? आईना कहता है अजी !तौबा कीजिए! आपसा बदसूरत कोई नहीं,मुझे मालूम है रहमान मियाँ !मैं बहुत बदसूरत हूँ और मुझसे कोई निकाह नहीं करेगा,आप जैसा खूबसूरत जवान तो कभी नहीं....
सलीहा का जवाब सुनकर रहमान मियाँ बिना बोलें वहाँ से चले आएं लेकिन सलीहा की बातों ने उनके दिल में जगह बना ली,अब रहमान साहब की मुसीबत बढ़ गई,उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि उन्हें उस बदसूरत लड़की से मौहब्बत कैसे हो गई,
वें यही सोचते रहते थे कि बदसूरत लड़की से इज़हार-ए-इश्क कैसे किया जाएं,जमाना क्या कहेगा,बदसूरत लोंग ईमान के पक्के होते हैं,कैसें बहलेगी भला सलीहा, कम-उम्र भोली-भाली हसीना को बहलाना तो आसान था और सभी ये काम कर सकते हैं, लेकिन सलीहा मेरी मौहब्बत कैसें समझेगी,अब रहमान साहब का इश्क़ जिस्मानी नहीं रूहानी हो गया था,हिम्मत करके रहमान मियाँ ने सलीहा के घर निकाह का पैगाम भिजवा दिया,लेकिन सलीहा ने ये कहकर मना कर दिया कि........
ना बाबा! मैं कहाँ जलेबियों की थाल पर से सारी उम्र मक्खियाँ उड़ाती फिरूँगीं,रहमान साहब ठहरे माशूक,उनमें किसी का शौहर या बच्चों का बाप बनने की क्षमता ही नहीं है,मुझ जैसी बदसूरत औरत को ऐसा छबीला शौहर कैसे हज़म होगा ,ना भई! मैं क्या करूँगी ऐसे हसीन दूल्हे का? मुझे उन्हें किराए पर चलाना है क्या?
उसकी बात रहमान साहब ने सुनी तो बिस्फोट हो गया और वें बोलें....
कमबख्त!का दिल तो सूरत से भी काला है....
रहमान साहब ने अब सलीहा का जिक्र करना छोड़ दिया था,लेकिन दिल को कैसें समझाते?फिर एक दिन रहमान साहब किसी पार्टी में गए और वहाँ किसी दीवान से बदजुबानी कर बैठें,इसी बात पर हाथापाई हो गई और दीवान साहब घोड़े की तरह बिदक गए और अपनी पिस्तौल निकाल कर उन्होंने रहमान साहब की पेट में गोली दाग दी,वहांँ मौजूद ल़ोग फौरन रहमान साहब को मोटर में लेकर सलीहा के घर भागें,सलीहा फौरन ही रहमान साहब के इलाज में जुट गई और काफी मसक्कत के बाद गोली निकालने में कामयाब रही,टाँके लगने के बाद रोगी के होश में आने का इन्तजार होने लगा,कुछ देर बाद रोगी को होश आया और उसके अम्मी अब्बू ने सलीहा का शुक्रिया अदा किया....
कुछ दिनों बाद रहमान मियाँ की हालत में सुधार हुआ और उनके बयान के मुताबिक दीवान को पकड़ लिया गया,एक महीने बाद रहमान साहब की क्लीनिक से छुट्टी हुई तो उन्होंने सलीहा से कहा......
मैं जाऊँ....
जी!अपना ख्याल रखिएगा,अभी आपकी सेहद पूरी तरह से ठीक नहीं है.....
तो फिर आप मेरे साथ चलिए मेरा ख्याल रखने के लिए,रहमान साहब बोलें....
लेकिन मैं ही क्यों? और भी तो हसीनाएंँ हैं दुनिया में,सलीहा ने पूछा.....
तब रहमान साहब बोले....
क्योंकि जिसे पिया चाहे वही सुहागन....
रहमान साहब की बात सुनकर सलीहा शरमा गई और बोली.....
सेहरा बाँधकर आऐगें,तभी आपके साथ चलूँगी....
सलीहा की बात सुनकर रहमान साहब मुस्कुरा दिए....

समाप्त.....
सरोज वर्मा.....