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यह गाँव बिकाऊ है-एम एम चन्द्रा

समीक्षा
यह गाँव बिकाऊ है
उंपन्यास
एम एम चंद्रा

युवा उपन्यासकार एम. एम. चंद्रा द्वारा रची जा रही उपन्यासत्रयी का दूसरा उपन्यास " यह गांव बिकाऊ है "डायमंड पब्लिकेशन से प्रकाशित हुआ है। इस उपन्यास में एम.एम.चंद्रा के भीतर बैठा किसान,खेती और गांव का जानकार- विमर्शकार व्यक्ति अपने पूरे कौशल,पूरे तर्क, विचारधारा और विजन के साथ उपस्थित हुआ है ।
इसका शीर्षक चौंकाने वाला है । जिसे पढ़ कर पाठक सोचता है कि ऐसा कैसे मुमकिन है कि कभी कोई गाँव किसी हाट बाजार में बिकाऊ भी हो सकता है! सहज ही पाठक की जिज्ञासा और कौतूहल उपन्यास की ओर आकर्षित करता है । उपन्यास से गुजरने के बाद पाठक को लगता है कि यह शीर्षक पाठक को आकर्षित करने या वाग्जाल में फंसाने के लिए नहीं रखा गया बल्कि एक गाँव में चले एक सुचिंतित आंदोलन के बाद निराश किसानों का अपने गांव के बाहर लगाया गया घोषणापत्र है। जैसे कि मॉल में विभिन्न चीजों के दाम और सेल की प्रक्रिया विक्रय की स्थिति दर्शाई जाती है उसी तरह चौपाल यानी चौराहे पर नगला गांव के बारे में वोट लगा दिया गया है कि यह गांव बिकाऊ है।
आइए इस उपन्यास की कहानी पर बातचीत करें
उपन्यास की कहानी में नगला गांव का फतेह जो शहर में एक मिल में मजदूर था वह अपने मिल बंद होने की वजह से अपनी गृहस्थी समेटकर गांव वापस लौट आता है और नगला की बस्ती से 3 किलोमीटर दूर के चौराहे यानी चौपाले पर रुक कर गांव जाने के लिए किसी साधन यानी ट्रॉली या बुग्गी का इंतजार कर रहा है कि गांव का बड़ा किसान पल्ली अपने ट्रैक्टर ट्रॉली के साथ अचानक फतेह सिंह को दिख जाता है। फतह उसे रोककर उसकी टोली में अपनी गृहस्ती का सामान और परिवार जनों को बैठा कर खुद पीछे पीछे साइकिल पर गांव चल देता है। फतेह के साथ उसका छोटा बेटा अघोघ साइकिल पर बैठा हुआ है । रास्ते में वह गांव के खेत,मस्जिद, मंदिर आदि के बारे में बेटे को बताता हुआ चलता है। गांव पहुंच कर फतह एक बड़े किसान बल्ली के यहां खेतिहर मजदूरी करने लगता है। जबकि अघोघ उसी गांव के कुक्कू, सलीम और राजेश से मित्रता कर लेता है। इन चारों युवकों की दोस्ती उपन्यास की पूरी कथा में चलती है। चारों की दोस्ती परस्पर बहस, मतभेद, विवाद, प्रेम और एकता व समर्थन के साथ पकती जाती है। एक बरस की खेती की बर्बादी और बड़े नुकसान के बाद बल्ली आत्महत्या कर लेता है ।एक बड़े किसान द्वारा की गई आत्महत्या की यह घटना इलाके में भय पैदा कर देती है। बल्ली के बाद उसका बेटा राजेश अपनी खेती संभालता है। फतेह पूर्ववत खेतों में काम करता रहता है। फतेह का बेटा अघोघ और उसके दोस्त यानी कुक्कू, सलीम और राजेश आपस में रोज और खूब खूब मिलते हैं । एक बार नंगला गांव में किसान पंचायत आयोजित की जाती है, जिसका भाषण सुनने के लिए कुक्कू, सलीम और अघोध पहुंचते हैं, लौटते में अघोघ के मन में यह चिन्तन होता है कि वह अपने गांव में भी किसान संगठन बनाएगा और जब तक दूसरे ना मिले वे चारों दोस्त किसान संगठन बनाएंगे । इसका नाम किसान सभा रखा जाएगा। अशोक के संकल्प में मित्रों से लेकर पिता तक और ग्रामवासी सरकारी मशीनरी यहां तक कि सांसद हुकम सिंह तक बाधा डालते हैं । लेकिन चारों मित्र मिलकर अंततः अपनी संस्था किसान सभा को पहले सांगठनिक स्तर पर मजबूत करते हैं और जन पुस्तकालय स्थापित करते हैं। जहां वे गांव के लोगों युवकों को वैचारिक रूप से परिपक्व और समृद्ध करते हैं। इस जन पुस्तकालय के लिए वे बेहिचक ग्राम वासियों से चंदा या कुछ भी सहयोग यानी कुर्सी टेबल तक दान में लेते हैं और पुस्तकालय चलाते हैं। फिर कुछ समय बाद जब चारों तरफ के गांवों में भी जागृत करने के लिए किराया यात्राएं करने लगते हैं तो केवल संगठन स्तर पर ना रह जाए मैदानी स्तर पर भी कुछ हो इस आशय से नए और अनोखे आंदोलन चलाने लगते हैं। जिसमें पहले चुनाव बहिष्कार, फिर "किडनी बिकाऊ है" की घोषणा करते किसान और अंततः "यह गांव बिकाऊ है" की घोषणा करके उनकी किसान सभा एक हलचल पैदा कर देती है, जो आसपास के गांवों में भी फैल जाता है। किसान सभा बनाने के समानांतर उपन्यास में कुक्कू का राजेश की बहन सविता के प्रति आकर्षण, अघोघ के भाई दिनेश का शहर में धंधा करने जाना, अघोघ का कॉलेज में प्रवेश तथा वहां की लाइब्रेरी से किताबों तक उसकी पहुंच, प्राध्यापक के माध्यम से वैचारिक समृद्धि प्राप्त करना ...जैसी कई घटनाएं चलती रहती हैं ।
इलाके का सांसद बार-बार इस गांव के किसान आंदोलनों को विपक्षियों द्वारा प्रेरित राजनीतिक आंदोलन युवकों का शिगूफा और अंततः वामपंथियों द्वारा गुमराह युवकों का आंदोलन बताकर महत्वहीन करना चाहता है ,वह जनता और प्रशासन तथा सरकार का ध्यान नगला गांव के किसान आंदोलन से हटाना चाहता है । लेकिन अघोघ और उसके तीनों दोस्त विचलित नहीं होते ।
कथानक के तौर पर यह कथा किसानों की वृहद गाथा के रूप में सामने आती है। इसमें किसान सभा , किसान आंदोलन मुख्य कथानक है, सहायक प्रसंग के तौर पर दीगर किसान समस्याएं संवाद में या सूचनाओं में आती हैं । प्रक्ररी या उप कथाएं कम है ,शायद लेखक का यह उद्देश्य भी नहीं है। कथा में कुछ महत्वपूर्ण मोड़ हैं -जैसे गांव में किसान पंचायत का आयोजन और अघोघ का उसमें जाना, बल्ली की आत्महत्या, किडनी बेचना है आंदोलन, चुनाव बहिष्कार आंदोलन, एसडीएम का गांव में आकर जो प्ले पर बैठे हड़ताली ओं को हटाने का प्रयास। इन सब मोड़ों पर कथानक बदलाव लेता है , बदलता है और नए आयाम में प्रवेश कर जाते है । इस कथानक को कुल 44 भागों में लिखा गया है हर भाग को एक अंक दिया गया है। इसका 44 वा भाग तीन महीने बाद के नाम से लिखा गया है, जिसमें चारों मित्रों के परस्पर सम्बंध खराब होने का जिक्र है , जो कबीर नाम के पत्रकार के माध्यम से पाठकों को ज्ञात होता है। दरअसल कबीर वह पाठ पत्रकार है जो इस गांव के समाचारों को लगातार अखबार में छपता रहा है और सांसद से इस गांव के इस तरह के आंदोलनों के बारे में सवाल जवाब भी करता रहा है । वह अपनी नौकरी गंवा बैठा है लेकिन अंततः दिल्ली में किसी अखबार में नौकरी पा गया है।
एक अनूठे शीर्षक पर रचे गए इस उपन्यास में चार प्रमुख पात्र हैं, जिनमें अघोघ उपन्यास का नायक तो नहीं पर कथा का केंद्रीय चरित्र जरूर है, जो प्रमुख चरित्र और वैचारिक रूप से उपन्यास की रीढ़ कहा जा सकता है । अन्य चरित्र अपनी अपनी विशेषताओं के साथ उपन्यास में पूरी सफलता से आते हैं । अन्य चरित्रों में है -राजेश जो किसान बल्ली का बेटा है, बड़े किसान परिवार से आता है उसके पिता आत्महत्या कर चुके हैं, राजेश पर जिम्मेदारी है परिवार की शुरू में किसान सभा से दूरी बनाकर रखता है, बाद में जब किसान सभा में बार बार जुड़ने की आवक बात करता है तो वैचारिक रूप से सहमत होकर वह किसान सभा से इतना गहरे से जुड़ जाता है कि जब पब्लिक बार-बार पूछती है ग्रामीण बार-बार पूछते हैं कि आपकी किसान सभा का नेता कौन है , अध्यक्ष कौन हैं तो अघोघ के प्रस्ताव पर राजेश अध्यक्ष का पद भी स्वीकार कर लेता है। कुक्कू इस उपन्यास का महत्वपूर्ण पात्र है, वह कहने को तो बनिया का बेटा बताया गया है यानी व्यापारी का पुत्र । वह सीधा सीधा किसान सेना का समर्थक है, जिसका अर्थ है कि भ्रष्ट लोगों को गोली मार दो ,जो किसानों का विरोध करें उन्हें गोली मार दो । वह सविता से प्यार करता है ,एक दिन उसका इजहार भी करता है। सविता और उसके सवाल जवाब बहुत बुद्धिमत्ता पूर्ण है ।कुक्कू ही आंदोलन के चलते किडनी बेचने की घोषणा का आंदोलन सुझाव देता है ज्जिसे मान लिया जाता है फिर सामूहिक आत्महत्या का प्रस्ताव भी वह प्रवेश करता है, जिसे अब वह साफ मना कर देता है। सलीम इस चौकड़ी का तीसरा पात्र है, जोकि हाजी दादा का नाती है, जिसके ब्याह के लिए दादा रोज बहू खोज रहे हैं ।सलीम सहज और सुलझे मस्तिष्क का है ,वह अशोक और राजेश के कहे अनुसार किसान सभा में बहुत सक्रिय रहता है। चौथा प्रमुख पात्र अघोघ है जो एक मिल मजदूर का बेटा है बौद्धिक चेतना से संपन्न है, हर मुद्दे पर बुद्धि वादी है और तर्क से भरा हुआ जवाब देता है । वह अपने दोस्तों का समर्थन करता है, ताकि एकता ना टूटे। आंदोलन उसके ही दिमाग में आते हैं। सभा उसकी ही मस्तिष्क में आती है ,जो आंदोलन तक जाती है और जब राजेश कहता है कि हमारा आंदोलन के राजनीतिक है , तो अघोघ चुपचाप उसको समझाता है कि जो हम सरकार से कुछ मांगते हैं तो कुछ भी गैर राजनीतिक नहीं होता, हर आंदोलन राजनीति ही होता है। उपन्यास के अंत में गांव के बाहर बोर्ड लगाने का सुझाव वही देता है और एक फ्लैक्स पर लिखा जाता है -यह गांव बिकाऊ है!
उपन्यास के अंत में लग जाता है, अन्यस्त्री पात्रों में क्षेत्रों में सविता है जो राजेश की बहन है कुक्कू जिसे मन ही मन प्यार करता है । एक पात्र पटवारी जी हैं जो है तो किसान ,लेकिन सामान्य किसान की तरह हैं और इनके किसान सभा के हर मुद्दे पर वे ईन से सहमत रहते हैं । रामू काका जो चौपले पर चाय की दुकान करते हैं ,बोलते कम है पर मन ही मन और अपने व्यवहार से इन युवकों का समर्थन करते हैं और एक ऐसा व्यक्ति जो बहुत छोटे बाजार में है ,पर पूरा कृषक है इस रूप में उपन्यास में आते हैं फतेह सिंह सैनी , अघोघ के पिता एक मिल मजदूर हैं और गांव में आकर खेतिहर मजदूर बन जाते हैं, वे यथार्थवादी हैं , कल्पना में नहीं जीते कठोर यथार्थवादी हैं , वे समाज के पारंपरिक पिता है यानी कि गुस्सा जब आता है तो अघोघ को पीट भी देते हैं। उपन्यास के अन्य चरित्रों में सांसद हुकम सिंह है जो एक ऐसा जन प्रति है जो बहुत शातिर है और अपना वर्चस्व बनाए रखते हैं , कम बोलते हैं और जब बोलते हैं तो विरोधियों को अराजकतावादी या कानून से बाहर आंदोलन चलाने वाले लोग बताते हैं। पत्रकार कबीर इस उपन्यास का महत्वपूर्ण चरित्र है जो उपन्यास में घट रही कहानियों को नगला में घट रही खबरों को मीडिया जगत तक पहुंचाता है और उस पर विचार करने को सबको मजबूर कर देता है।
उपन्यास में संवादों का बड़ा महत्व होता है इस उपन्यास में भी लेखक ने कहीं बहुत लंबे और गंभीर संवाद लिखे हैं तो कहीं बहुत छोटे मजाक किया पन से भरे हुए संवाद लिखे हैं ।उपन्यास के आरंभ में सपरिवार फतेह को आया हुआ देख के चौपला यानी चौराहे पर चाय की दुकान करने वाले रामू काका की बाजी देखिए-
₹ रामू काका ने हिम्मत करके पूछ ही लिया "क्या फतह पूरा परिवार साथ लाए हो ?सब ठीक तो है ?"
"नहीं काका एक ही परिवार लाया हूं दूसरी बीवी और बच्चे कल आएंगे ! कुछ भी ठीक नहीं है ।"
"तुम तो नाराज हो गए !"
"क्या नाराज होने का ठेका सिर्फ सरकार को है एक नागरिक को नहीं"
(पृष्ठ 14)
किसान पंचायत की बात पर सबसे पहले राजेश गुस्सा होता है -
अघोघ ने बिना किसी भूमिका के पूछा "क्या तुम आज शाम होने वाली किसान पंचायत में जाओगे ?"
राजेश किसान पंचायत का नाम सुनते ही बिफर गया" यह संगठन ठीक नहीं है! इनके विचार हमारे पिताजी से नहीं मिलते! पिताजी का कहना है इनके विचार बड़े किसानों के पक्ष में नहीं हैं, जब इनके विचार हमसे मिलते ही नहीं तो इनकी पंचायत में हम क्यों जाएं ?"
(पृष्ठ 42)
अघोर फतेह चक गांव में प्रवेश कर रहे हैं तो एक सज्जन उनसे पूछते हैं
"कहां जा रहे हो" यह प्रसंग भी लेखक ने बहुत अच्छे संवादों के माध्यम से लिखा है-
अघोघ बोलता ही जा रहा था और धीरे-धीरे अंधेरा बढ़ने लगा था। वे लोग गांव के मध्य से गुजर रहे थे उनको बतिताता देख गांव के एक बुजुर्ग ने उन्हें टोका" किसके घर जा रहे हो भाई?"
फतेह सिंह ने जवाब दिया "मेहर सिंह के यहां !"
"मेहर सिंह कौन? मेहर सिंह तो कई हैं!
किस मेहर सिंह के घर जा रहे हो ?"
फतेह जानता था कि गांव के लोग आदमी की जाति को न जाने कितने तरीके से पूछ लेते हैं ,इसलिए उसने कहा" मेहर सिंह जो बताशा बनाते हैं !"
"वह यह कहो ना मेहर सिंह दूधिया के यहां जा रहे हो ! जात छिपाने की क्या जरूरत है( पृष्ठ 23)
आंदोलन क्रांति के बारे में अघोघ पटवारी जी की यह संवाद बहुत महत्वपूर्ण है- "दुनिया के जन संघर्षों का एक सबक यह भी है कि कोई भी जन आंदोलन लंबे समय तक नहीं चलाया जा सकता. लंबे समय तक संघर्ष करने के लिए बहुत से काम जरूरी है."
"जैसे !हमें भी तो बताओ" पटवारी जी ने कहा ।
"अभी सिर्फ हमारे गांव में ही जन पुस्तकालय है ,आंठों गांव में प्रयास चल रहा है, गांव पुस्तकालय स्थापित करना, हर गांव में चिंतनशील युवा किसानों को जोड़ना, हर गांव में एक यूनिट बनाकर किसानों की चेतना को विकसित करना यह क्या कम काम है करने के लिए।"
" यह तो बहुत लंबे समय तक चलने वाली प्रक्रिया है 'पटवारी जी ने अपनी प्रतिक्रिया दी ।
" तो आप 1 दिन में ही क्रांति करना चाहते हो ?अरे भाई बच्चे को भी पैदा करने के लिए 9 महीने की जरूरत पड़ती है ।आप लोग जुमा जुमा 4 दिन में इंकलाब करना चाहते हो। आपको यह कब समझ आएगा कि किसान संगठन बनाना भी किसान आंदोलन का ही हिस्सा है(पृष्ठ152)
आंदोलन के लिए चौपले पर बैठे लोगों को हटाने के लिए प्रशासन अपने गांव पर चलता है । यह प्रश्न और यह संवाद भी बड़े महत्व है ।
अगले दिन एसडीएम साहब बहुत से आला अधिकारियों के साथ नगला गांव का दौरा करने गए । जब अफसर जाते हैं पुलिस ना जाएगी नहीं हो सकता कोई अप्रिय घटना ना घटे ,इसलिए पटवारी जी आला अधिकारियों के सामने डटे रहे। एसडीएम ने अपना सरकारी फर्ज निभाया "आप लोग कानून को तोड़ने का काम मत करो , वरना सभी को जेल तक जाना पड़ सकता है !"
पटवारी जी भी आज पूरे रंग में थे उन्होंने ऐसा जवाब दिया जिसकी किसी ने भी उम्मीद नहीं की थी ,ज़पहले "अपने दामाद दयाल सिंह पूंजीपति को जेल में डालो, जिसने किसानों को मिलने वाले पानी को जहरीला बना दिया। पहले उस मशीन टू कंपनी के मालिक को जेल में डालो जिसके बीज खाद और कीटनाशक खरीद कर हमारे खेत बंजर हो गए।"
राजेश ने पटवारी जी के साथ मोर्चा संभाला और एसडीएम साहब को करारा जवाब दिया "साहब किसान अपने गांव की चौपाल पर हैं, ना सड़क जाम कर रहे हैं ,न कोई कानून तोड़ रहे हैं गांव हमारा खेत हमारे चौपाल हमारी, किस जुर्म में आप हमें अंदर करेंगे?"
" अंदर करने के लिए जुर्म कि नहीं आदेश की जरूरत होती है (पृष्ठ 164)
कुक्कू द्वारा सरिता को किए गए प्रेम इजहार के संवाद भी बहुत अच्छे हैं ।
एक दिन प्रचार अभियान के बाद कुक्कू ने सविता के सामने अपने प्रेम का इजहार किया लेकिन सविता ने उसकी किसी भी बात का कोई जवाब नहीं दिया।
एक दिन मौका देखकर कुक्कू ने सविता से फिर सवाल किया "तुमने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया. मैं अभी तक तुम्हारे जवाब का इंतजार कर रहा हूं !" कुक्कू हम लोग कब से एक दूसरे को जानते हैं?" सविता ने सवाल किया ।
"जब से किसान सभा में तुम ने काम करना शुरू किया है!" कुकू का जवाब
" फिर इतनी जल्दी फैसला कैसे हो गया कि तुम्हें मुझसे प्यार है ।क्या तुमने इस बारे में मुझसे पूछा नहीं।" कुकू के पास नहीं के सिवा कोई जवाब नहीं था
" देखो कुकू जब हम एक साथ काम करते हैं या रहते हैं ,स्वाभाविक रूप से एक-दूसरे को पसंद करते ही हैं, लेकिन वह प्यार हो जरूरी नहीं !अच्छा एक बात बताओ तुम्हें किसी फिल्मी हीरोइन से प्यार हुआ है?"
" नहीं "
"कभी हो ही नहीं सकता क्योंकि वह तुम्हारे व्यवहार का हिस्सा नहीं है। इसलिए यह प्यार मोहब्बत की बात यहीं खत्म कर दो यदि लंबे समय तक मतलब यदि हम दोनों का मकसद नहीं बदला और हमने तीन चार साल दोस्ती में सही से गुजार दिए तब हम इस विषय में सोचेंगे। दूसरी बात मेरे व्यवहार और तुम्हारे व्यवहार में जमीन आसमान का अंतर है। यदि जीवन का लक्ष्य एक हो तो यह अंतर भी कोई मायने नहीं रखता लेकिन यदि व्यवहार में भी अलग हो और लक्ष्मी अलग हो तो यह प्यार व्यार जीवन भर तकलीफ देता है, न जीने देता है ना मरने देता है, इसलिए यह प्यार का मामला काम और जीवन जीने का ढंग ज्यादा है (पृष्ठ 166)
किडनी आंदोलन के ग्यारहवे दिन राजेश की बैठक में मित्रों के बीच दिया गया आघोघ का व्याख्यान लंबा जरूर है लेकिन वह विचार परक, तथ्यपरक और तर्क भरा है ।इस भाषण का सार यह भी है कि आंदोलन व्यक्ति मुखी नहीं संस्थान मुखी होना चाहिए। इसमें से हम लोगों में से कोई ना हो पर यह आंदोलन चलता रहे।( पृष्ठ 172)
यह आंदोलन सचमुच इन चारों के हट जाने के बाद भी उपन्यास में चलता हुआ भी बताया गया है। उपन्यास की सबसे बड़ी खासियत एक है इस उपन्यास का न केवल तात्कालिक किसान आंदोलन से जुड़ना है , बल्कि इस तरह से उसका शाश्वत व सर्वकालिक हो जाना भी है। क्योंकि इसके किसान आंदोलन करने दिल्ली नहीं जाते ,बल्कि अपने गांव पर चौपाल में अथवा 3 किलोमीटर दूर चौपले पर यानी चौराहे पर आंदोलन करते हैं। किसान के बारे में सरकार का रुख, उद्योग पक्तियों तथा कृषि से जुड़ी दवा बीज खाद कंपनियों का रूप उपन्यास में उभरकर आया है।
प्रशासन के अधिकारियों और तथाकथित जनप्रतिनिधियों के बारे में भी उपन्यास में लंबे प्रसंग हैं ।लंबी चर्चा है और तीखे वास्तविक लगते हुए कथन है , संवाद हैं या कहीं फिकरे हैं। उपन्यास की कथा इसका परिवेश ग्राहक आकार की मांग करता है, लेकिन एमएम चंद्रा ने इसे महज 170 पेज में ही समेट दिया है, शायद कथा को छोटा रखना उनकी कलम का स्व नियंत्रित संयम और दबाव था ,जिसका उपन्यास पर असर दिखता भी है । कहीं-कहीं इसलिए उपन्यास की सीमा भी लगता है । इसके तमाम प्रसंग सूचना मात्र हैं उनका चश्मदीद वर्णन नहीं आ सका है ,तो उपन्यास में लेखक की वैचारिक प्रखरता प्रायः कथानक पर हावी है। इसके संवाद व भाषण के रूप में वैचारिक प्रखरता खूब बरसती है ।
उपन्यास में स्त्री पात्र कम है और शायद किसान से संबंधित उपन्यास में कम ही उचित होते, लेकिन एकमात्र स्त्री पात्र जो सविता है, वह खूब मुखर है ,विचार प्रवण हैं । यूं तो अघोघ की मां, प्रभु की दादी और भी दूसरे चरित्र इस उपन्यास में आए हैं । उंपन्यास में आरक्षण पर कुक्कू व राजेश के बीच बहस होती है जो उम्दा बातचीत है , लेकिन कुकू और सलीम नहीं चाहते कि फालतू मुद्दों पर बात हो। यह बहस एकता में बाधा है इसलिए बहस रोक दी जाती है । यह उपन्यास एक्टिविस्ट और वैचारिक कथाकार द्वारा लिखा गया सशक्त ऊपन्यास है। भाषा शैली , वाक्य विवरण बड़े सशक्त रूप में सामने आते हैं ।
इस उपन्यास की अगर विशेषताओं को हम देखेंगे तो हमें साफ साफ नजर आता है कि उपन्यास ने अपने संक्षिप्त रूप में भी बहुत सारे मुद्दे छूने की कोशिश करता है । इस उपन्यास में उस वायदा व्यापार की भी चर्चा है, जहां ना तो फसल होती और ना गोदाम ,केवल सौदे होते हैं, वह भी अगले साल आने वाले फसल के और इसी आधार पर लोग करोड़ों रुपए कमा लेते हैं।
गांव बिकाऊ है की बात एकदम पाठक को नई लग सकती है , लेकिन लेखक ने बाकायदा बताया है कि अमेरिका का एक गांव ऐसा भी है जिसने पहली बार अपने बिकने की घोषणा की थी । इस साल अमेरिका के कई शहर दिवालिया हो गए हैं ,शहर के शहर "बिकाऊ हैं "का नारा लगा रहे हैं (प्रष्ठ172 )
एमएम चंद्रा तीन उपन्यास लिख रहे हैं, उनकी उपन्यास सीरीज पहला हिस्सा प्रोस्टोर नाम से है जिसमें इस उपन्यास के चरित्रों की पूर्व कथा है, फतेह वहां मजदूर के रुप में है ,उसके बेटे दिनेश, रमेश ,अघोघ हैं । वहां मजदूर आंदोलन की बात होती है, उस उपन्यास में एक फैक्ट्री के आसपास मजदूर बस्ती के बसने, उजड़ने और कहीं और बसने की कथा है। जिसके बारे में भूमिका के रूप में विवेक मिश्र ने संक्षेप में बताया है और प्रश्नों की तारीफ करते हुए इस उपन्यास यानी यह गांव बिकाऊ है की भी प्रशंसा की है ।
इस उपन्यास में बहुत सारे मजेदार प्रसंग भी आते हैं ,जिसमें गांव का जोहड़ कितना गहरा है?, इस सवाल के बारे में बेटे को बताते हुए अचकचा जाता है ।फतेह तो जब लोग अपने मित्रों से पूछता है कि इस गांव की विशेषता क्या है ? तो राजेश और कुक्कू भी यही कहते हैं कि इस गांव का जोहड़, जिसकी गहराई का कुछ पता ही नहीं है । बाद में मंदिर की ऊंचाई और तीसरी बार के इसी सवाल के जवाब में राजेश बताता है कि बल्ली किसान का घेर सबसे बड़ा है ,एशिया का सबसे बड़ा घेर हो सकता है । यह सुनकर अघोघ कहता है -क्या इसका कोई सरकारी रिकॉर्ड है ?
तो सब चुप रह जाते हैं ।
उंपन्यास खूब-खूब होमवर्क और अध्ययन के बाद लिखा गया है ,इसमें किसानों की प्राया सारी समस्याओं पर चर्चा है और उपन्यास का मूल बिंदु किसान सभा बनाना, किसानों की समस्याओं को उठाना रखा गया था। जिसमें लेखक बहुत सफल हुआ है । यह उपन्यास कृषक और गांव के बारे में लिखे गए उपन्यासों में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाएगा, इसके अध्ययन के बाद ऐसा निसंकोच कहा जा सकता है।
राजनारायण बोहरे
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