Geeta se Shree Krushn ke 555 Jivan Sutra - 92 books and stories free download online pdf in Hindi

गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 92

जीवन सूत्र 164 ईश्वर की प्राकृतिक न्याय व्यवस्था का करें आदर



अध्याय 4 के ग्यारहवें श्लोक की पहली पंक्ति "जो मुझे जैसे भजते हैं,मैं उन पर वैसे ही कृपा करता हूँ",पर हमने पिछले आलेख में चर्चा की।

दूसरी पंक्ति के अनुसार सभी मनुष्य सब प्रकार से,मेरे(ईश्वर के) ही मार्ग का अनुसरण करते हैं।

वास्तव में हम मनुष्य जाने- अनजाने एक प्राकृतिक न्याय व्यवस्था के अंतर्गत अपना- अपना कार्य कर रहे हैं।



जीवन सूत्र 165 भक्तों को है ईश्वर को पुकारने का अधिकार


कर्मक्षेत्र में जैसे परिस्थिति उत्पन्न होती है मनुष्य अपनी सूझबूझ अपने अनुभव और आवश्यकता होने पर ईश्वर को सहायता की पुकार लगाकर उस कार्य को पूरा करता है।गीता में कार्य करने के दौरान आसक्ति के अभाव और कर्तापन के अभाव पर बल दिया गया है।


जीवन सूत्र 166 साधना की एक अवस्था में पहुंचने के बाद कार्य स्वतः होने लगेंगे


अपने कर्मों में ऐसा भाव ला पाना आसान नहीं है।यह भी सत्य है कि हम साधारण मनुष्य एकाएक साधना की उस अवस्था को प्राप्त नहीं कर सकते हैं,जहां कर्म हमसे बिना किसी फल की आशा के होने लगे।अनायास होने लगे और बस हम साक्षी भाव से स्वयं कर्म करने के बाद भी उस कर्म को ईश्वर के प्रतिनिधि के रूप में हमारे द्वारा होता हुआ मान लें।



जीवन सूत्र 167 सफलता असफलता दोनों को सहज भाव से लेने की कोशिश करें

सामान्य परिस्थिति में यही होता है कि हम अपना काम करते जाते हैं और अपने परिश्रम के लिए स्वयं उत्तरदाई भी होते हैं।जब काम पूरा होने के बाद सफलता मिलती है तो हम खुशी से उछल पड़ते हैं और अगर काम बिगड़ गया तो झुंझला उठते हैं और दुखी हो जाते हैं।यहां यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि जब अधिकांश लोग अपनी समझ के अनुसार अपनी राह चल रहे हैं।सफलता पर प्रसन्न होकर गर्व के साथ झूम रहे हैं असफलता के लिए इधर उधर की चर्चा और दूसरों पर दोषारोपण करने के बाद अंततः खुद को दोषी मान रहे हैं।ऐसे में भगवान का ये कहना कि सभी मनुष्य सभी प्रकारों से मेरा ही अनुसरण करते हैं,हमें थोड़े आश्चर्य में डाल सकता है।अगर मनुष्य उस परम सत्ता के बताए मार्ग पर चलने लगे,उसकी सूझ और प्रेरणा के अनुसार कार्य करने लगे तो फिर सारी समस्याएं ही समाप्त हो जाएं।


जीवन सूत्र 168 समय की विराट धारा के हम एक जल कण


वास्तव में समय प्रवाहमान है और समय की उस धारा में हम सब बहते चले जा रहे हैं।हमारे कर्मों का पिछला लेखा- जोखा भी हमारे साथ चल रहा होता है।साथ ही हमारी वर्तमान मेहनत भी हमें एक बेहतर परिणाम की ओर ले जाती है।जब हम समय पथ पर आगे बढ़ चुके होते हैं तो निश्चित तौर पर यह होता है कि हम वही कर पाए हैं जो ईश्वर की प्रकृति और उनके बिना अतिरेक हस्तक्षेप वाली व्यवस्था के अनुसार होना सुनिश्चित था।अब यहां अपने कर्म से अपना भाग्य बदलने वाली स्थिति ईश्वर की कृपा से आती है।यहां ईश्वर भी कृपा उन्हीं पर करते हैं जो परिश्रम से,पुरुषार्थ से अनायास अपना भाग्य भी बदलते रहते हैं। इस तरह आस्थावान व्यक्ति और आस्था नहीं रखने वाले व्यक्ति,दोनों समय की उसी एक धारा का अनुसरण करते आगे बढ़ते हैं।ऐसे में फर्क पैदा होता है केवल हमारे दृष्टिकोण,परिश्रम के प्रति हमारे जुनून और आलस्य को त्याग देने के हमारे संकल्प से।


(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)

(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)



डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय