एपिसोड ३७
अब तक रघु बाबा उस गुफा में प्रवेश कर चुके थे। बाहर से गुफा और अंदर विशाल तहखाना देखकर एक बार तो वे चौंक गए। वे तहखाने की सीढ़ियों से नीचे उतरे। घने कोहरे के साथ ठंड थी। कि अचानक उन्हें धुंध में एक पांच फीट बड़ा पत्थर और उस पर लकड़ी की कब्र नजर आई। वे उस कब्र पर पहुँचे। चौकोर कब्र पर लाल रंग के चमगादड़ की आकृति चित्रित है। वे कब्र का दरवाज़ा खोलने के लिए यह देखने लगे कि कहीं कोई दस्तक वगैरह तो नहीं है, तभी अचानक उनके पीछे अँधेरे में कुछ हलचल हुई और उस अँधेरे में से एक तेज़ आवाज़ आई।
"मालिक बाहर गए हैं..भाटा...! सोवर..क्या आऊं..? हेहेहे!"
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भूषण, ऋषिकेष, चिंतामणि, नागराज सभी रहजगढ़ के जंगल में खो गए थे, यह दरार के निशान से उसे मालूम हुआ।
"मैं अब मर जाऊँगा! मैं अब मर जाऊँगा! वह शैतान किसी को जाने नहीं देगा!" नंगा आदमी अकेला नीचे देख रहा था और रो रहा था।" उसने उस बिल्ली-शिरप्यादा को देखा.. खा लिया..! फिर वह बूढ़ा गुदा गायब हो गया... वह अभी भी गायब है..! गांव कह रहा था! उस शैतान ने क्यों काटा मांस के साथ हड्डी खाओ? ..!" नाग्या नीचे देख रही थी और बाकी सभी लोग कान खड़े करके उसकी बातें देख रहे थे।
"बूढ़े की पीछे देखो! हिहिही..खिखिखी..!"
रघु बाबा के पीछे से एक आवाज और जानवरों की हंसी की आवाज आई, उन्होंने तुरंत पीछे मुड़कर देखा, उनके सामने काले अंधेरे का पर्दा था.. और उस पर्दे के पीछे कुछ अमानवीय छिपा हुआ था।
"वहाँ कौन है! बाहर आओ..?" रघु बाबा ने जोर से कहा.
ठीक वैसे ही, अँधेरे हिस्से में काली रोशनी और उसकी जगह पीली, लाल मिश्रित रोशनी दिखाई दी... और उस रोशनी में रघुबाबा को एक मानव आकृति दिखाई दी, जो घुटनों में सिर दबाये, पत्थर की दीवार के सहारे बैठी हुई थी। कुछ देर तक रघुबाबा उस आकृति को एकटक देखते रहे।
घुटने, हाथ, पैर, सब कुछ धूसर हो गया, मानो मुर्दाघर में कोई लाश उसके सामने बैठी हो।
"कोन हइस आर..?"
"चलो देखते हैं...! हेहेहेहे..खिखिखी।'' हमारे आगे जो कुछ भी है
यह निश्चित रूप से मानव नहीं है.... यह अमानवीय है। इसके विचार बुरे हैं, इसका मकसद..! उनकी वाणी से लेकर उनकी शारीरिक संरचना तक, रघु बाबा निश्चित रूप से इसे एक भयानक उपद्रव के रूप में पहचानेंगे।
उसने अपना हाथ अपने बैग में डालना शुरू कर दिया। इस तरह, वायगू का भूत, जो नीचे बैठा था, धीरे-धीरे अपनी गर्दन ऊपर- करने लगा।
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रात के अँधेरे में "एक नाग्या".. बड़े पेड़ों पर उभरते चाँद की आकृति में.. उसकी रोशनी में नीचे खड़े..! रुष्य, चिन्त्या, भूष्य एक दूसरे को आवाज देकर अपने मित्र को खोज रहे थे।
एक साँप पेड़ के तने के नीचे छिपा हुआ था और इन तीनों को देख रहा था... मानो वह उनकी मस्ती देख रहा हो।
"एक नाग्यावत" चिन्त्या इधर-उधर झाड़ियों में साँप की तलाश कर रहा था। तभी पीछे से हलचल हुई। उसने तुरंत एक पहिया उठाया और पीछे देखा, लेकिन पीछे कोई नहीं था। भूष्य, रुष्य कोई नहीं था।
"मेरे पीछे कोई नहीं था..? मुझे कैसा लगा?"
चिंत्या ने खुद से यह कहा, वह मुड़ा और सीधे सामने देखा....उसी पल उसकी सांसें उसके गले में अटक गईं...उसकी आंखें फैल गईं.क्योंकि वह उसके सामने दांत निकाले खड़ा था..उसके चेहरे पर ऐसा रंग लग गया था एक मरा हुआ इंसान...आंखों में एक आंसू सफेद-सफेद! नागाया को देखकर चिंत्या कुछ कहने ही वाला था कि नागाया ने जंगली जानवर की तरह उस पर हमला कर दिया।
"आआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआ।" भूश्या और रुश्या दोनों ने वह आवाज सुनी, उनके शरीर में रोंगटे खड़े हो गए..उनकी बांहों के बाल खड़े हो गए..शरीर तन गया तो सीने में ट्रेन की तरह दौड़ने लगी।
वह तब आया था जब मौत का खेल शुरू हो चुका था.. वह नींद से जागकर खून की भीड़ को बुझाने आया था.. वह सूखे गले को तर करने आया था।
"चुप रहो..! चुप रहो...!" इतना कहकर रुश्या उसकी ओर दौड़ा और उनके पास पहुंच गया।
"भूष्य..! कुछ तो हो रहा है इस जंगल में.. अब यहाँ रुकने से क्या फायदा.. देखो! नहीं तो हम भी गिर पड़ेंगे.."
रुसिया ने हाँफते हुए कहा।
"क..क.चलो..जल्दी चलते हैं..एथन.!" भूश्या ने रुश्या की बात मान ली और अपनी जान बचाने के लिए कंटीली झाड़ियों के बीच से भागा, जहां उसे रास्ता मिल सके।
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क्रमशः