Bhootiya Express Unlimited kahaaniya - 13 books and stories free download online pdf in Hindi

भुतिया एक्स्प्रेस अनलिमिटेड कहाणीया - 13

एपिसोड १३ काळा जादू


"विलासराव..! मैंने आज तक भूत-प्रेत की बहुत सी घटनाएँ देखी हैं
देखा और उसमें से पीड़ितों को बाहर भी निकाला.. लेकिन..
"लेकिन...........!......क्या जगदीश जी....जारी रखिए....बात कर रहे हैं...!"
" विलासराव ..! कुछ ..चीज़ें इंसान की जानकारी के बिना घटित होती हैं।
वहाँ हैं ...! और कम से कम कहने के लिए....मैं बस इसी तरह चीज़ों को बदलता हूँ
मैं तो मदद ही करता हूँ..., बाकी भूत-प्रेत तो मैं ही प्रकट कर देता हूँ
नहीं कर रहा... ! परन्तु जो विपत्ति तुम पर पड़ी है वह बड़ी भयानक है
और इसका समाधान और मैं भी वो कौन लोग हैं
कलालय ..!”
"क्या...? कौन है वो आदमी..!"
विलासराव ने जोर से कहा
"क्या...? कौन हैं वो लोग?"

विलासराव ने यह वाक्य थोड़ा जोर से बोला, जिससे होटल में आसपास बैठे लोग आश्चर्य और थोड़ी अलग नजर से विलासराव की ओर देखने लगे.

विलासराव कहते हैं...! लेकिन मेरा यह कथन आपके मन में है
आप कितना विश्वास कर सकते हैं...! और कितना...! लेकिन यह मैं हूं
नहीं बता सकता...! लेकिन मैंने जो देखा...और महसूस किया....!
तदनुसार मेरा संदेह विस्तार से बता रहा है.. कि वह वही है
...लोग तुम पर जादू कर रहे हैं! लेकिन सच बताओ
...इससे पहले कि मैं आपसे कुछ प्रश्न पूछूं, और यदि क्यों.. तो वो।
प्रश्न का उत्तर...! मैं स्पष्ट हो गया, अर्थात, यदि मेरे प्रश्नों के तार आपके उत्तर से जुड़े होते, तो मेरा संदेह पक्का हो जाता! वे आदमी कौन हैं, मैं आपको बता सकता हूं..!'' जगदीशराव के इस वाक्य पर विलासराव थोड़ा हक्के-बक्के रह गये और फिर कभी-कभी सवालों पर सिर भी हिला देते थे,
"ठीक है...! जगदीश.. जी..........पूछो...!" विलासराव ने कहा और जगदीशराव ने प्रश्न पूछ लिया।

"विलासराव..! क्या तुम्हें याद है...? वो वक़्त जब हम मिले थे जब हमने देखा था...! वो वक़्त... तुमने मुझे अपने बदलावों, अपनी पत्नी के बदलावों और अंततः अपने परिवार के बदलावों के बारे में बताया था...?"

" हाँ.. ! हाँ ... ठीक है ... " विलासराव ने इतना कहा .
उससे जगदीशराव आगे की बात करने लगे।

“लेकिन विलासराव तुमने मुझे एक बात नहीं बताई..........?
तुम्हारे दोनों भाई संपत्ति के लिए लड़ रहे हैं...?!..."

"हाँ, मैंने कहा नहीं..! लेकिन तुम्हें यह कैसे पता...?"
विलासराव के इस वाक्य पर जगदीशराव ने रामचन्द्र की ओर देखकर कहा।''रामचंद्र ने मुझसे कहा था कि.... और एक बात विलासराव
देखो मैंने तुम्हें वह पानी की बोतल दे दी..? तो फिर मैं तुम्हें क्या बताने जा रहा था?"

"आपने कहा होगा कि, अगर कोई चीज़ आपको परेशान करती है, तो चलो उल्टी कर दें
मुझे बताओ...!"
विलासराव ने सही जवाब दिया, जिस पर जगदीसराव बोलने लगे.

"बिल्कुल..आपने कहा..विलासराव! फिर आप मुझे ऐसा कह रहे हैं..?"

''नहीं...!'' विलासराव ने मुंह फिराते हुए कहा।

''बता क्यों नहीं......?'' जगदीश राव आपके हैं
उसने आँखें सिकोड़ते हुए कहा।

"मैं बताना चाहता था.... लेकिन तुम्हारे आने के बाद मैं भूल गया...!"
विलासराव ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा. यह सोच-सोच कर मानो उसका सिर उदास हो रहा था।

" अच्छा ठीक है...! कोई बात नहीं.. अब... एक.... आखिरी.... और आखिरी.. सवाल.... " जगदीश राव इतना कहकर अपनी कुर्सी से थोड़ा आगे बढ़े और एक थोड़ा गंभीर। हॉट ने कहा।
"जिस दिन मैं तुम्हारा घर देखने आया था..! उस दिन रामचन्द्र ने मुझसे कहा था कि..तुम..सुबह घर से निकली हो-तो..!"

"हाँ...! क्योंकि दो दिन तक घर में कोई नहीं था...! तो घर साफ़ करना चाहिए था...! क्योंकि जब आपने कहा था कि आप घर देखने आएँगे!"

"अच्छा...! तो अब बताओ...! क्या उस दिन किसी ने तुम्हें कुछ खाने-पीने को दिया?"
जगदीशराव ने विलासराव की ओर देखकर कहा।
तभी विलासराव ने उसके सिर पर हाथ फेरा और याद करने लगा,

“हाँ, मेरे बड़े भाई की पत्नी.. यानि..।”
मेरी बड़ी भाभी आई हुई थी. ..उसने मुझे कोकम पीने को दिया...! "विलासराव के इस वाक्य पर, जगदीशराव की आँखें एक निश्चित लयबद्ध रोशनी से चमक उठीं, और उन्होंने रामचन्द्र की ओर देखा, तभी रामचन्द्र ने धीरे से पानी का गिलास उनके सामने उठाया और गट-गट करके सारा पानी पी गए।"विलासराव अब मेरे एक आंतरिक प्रश्न का उत्तर दें...?
जिस दिन तुमने अपनी पत्नी को छोड़ा...!महेरी....!
उस दिन कोई आपके लिए खाना बनाता है कि..
क्या आप इसे स्वयं बना रहे हैं? "

"दूसरे शब्दों में, मैं घर आने के लिए नीता का घर छोड़ दिया
शाम का वक्त था! तो मेरे हिस्से का खाना मेरे लिए एक बड़ी भाभी की तरह था...था...!"
जैसे ही विलासराव का यह वाक्य काफी हुआ तो जगदीशराव ने भावुक होकर कहा.
"! देखिये रामचन्द्र..! मेरा ....शक...सच निकला....!"
जगदीशराव ने रामचन्द्र की ओर देखकर कहा। लेकिन विलासराव को यह समझ ही नहीं आया कि जगदीशराव क्या कह रहे हैं.

"जगदीशजी आप क्या बात कर रहे हैं...? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है।"
विलासराव ने ऐसे कहा जैसे समझ नहीं रहा हो। दोनों टायसर के साथ मेज पर
जगदीश राव ने हाथ रखते हुए और सिर आगे बढ़ाते हुए कहा।

"विलासराव, मैंने जो भी प्रश्न पूछा है, उसका सूत्र आपके उत्तर से जुड़ता है और उसके कारण मेरा संदेह कई गुना अधिक सार्थक साबित हुआ है...! क्या आप जानते हैं, विलासराव, वे लोग कौन हैं...?" :"
जगदीशराव ने विलासराव की ओर देखकर कहा, विलासराव ही
उसने इनकार में सिर हिला दिया. विलासराव को मानो कुछ समझ ही नहीं आया.

"रामचंद्र..........! मुझे लगता है तुम्हें विलासराव को बताना चाहिए कि वे आदमी कौन हैं...! क्योंकि या तो तुम उसके दोस्त हो..! और वह मेरी बातों से ज्यादा तुम्हारी बातों पर भरोसा करेगा..!"
"ठीक है..जगदीश जी...!"
रामचन्द्र ने बारी-बारी से जगदीशराव और विलासराव की ओर देखा और यह वाक्य कहा और बोलना जारी रखा।
"विलास...! इन 5 दिनों में जगदीशजी ने जो भी साधना की,
उन्हें पता होगा...! कि तुम्हें नीता वाहिनी कहा जाता है
और उसने तुम दोनों पर जो जादू किया...तुम्हारा
यह घर के लोगों ने ही किया था,''
"क्या…!" विलासराव एक बार फिर जोर से चिल्लाये, और उनका
इस शोर से होटल में बैठे सभी लोग विलासराव के पास गए
..आंखें फटने लगीं और इस बार उन लोगों को ऐसा महसूस हुआ
....गले हो गया, वह विलासराव मूर्ख व्यक्ति है!''

“विलास शांत हो जाओ…!”
"मैं कैसे शांत हो सकता हूं...! क्या आप जानते हैं कि आप किस बारे में बात कर रहे हैं..., मेरे परिवार के लोग ऐसा व्यवहार क्यों करेंगे...? और मान लीजिए मैं विश्वास करता हूं, तो आपके पास क्या सबूत है?"

क्रमश :