Rangun Cripar aur April ki ek udaas raat book and story is written by PANKAJ SUBEER in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Rangun Cripar aur April ki ek udaas raat is also popular in Love Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
रंगून क्रीपर और अप्रैल की एक उदास रात - Novels
by PANKAJ SUBEER
in
Hindi Love Stories
रंगून क्रीपर और अप्रैल की एक उदास रात (कहानी : पंकज सुबीर) (1) हवा में उदासी घुली हुई है। उदासी, जो मौसमों की थपक के साथ पैदा होती है। बाहर वसंत और पतझड़ क्या है, कुछ समझा नहीं जा सकता। जिसे नहीं समझा जा सकता, वह हमेशा सबसे ज़्यादा उदास करता है। हवा में गरमी के आने की आहट भरी हुई है। मगर अभी आहट ही है। भूरी-मटमैली-सी ज़मीन पर उसी के रंग में रँगे हुए उदास पत्ते बिछे हुए हैं। उदास और सूखे पत्ते। कभी हरे थे, भरे थे। पहले हवा को यह झुलाते थे, अब हवा इनको झुला
रंगून क्रीपर और अप्रैल की एक उदास रात (कहानी : पंकज सुबीर) (1) हवा में उदासी घुली हुई है। उदासी, जो मौसमों की थपक के साथ पैदा होती है। बाहर वसंत और पतझड़ क्या है, कुछ समझा नहीं जा ...Read Moreजिसे नहीं समझा जा सकता, वह हमेशा सबसे ज़्यादा उदास करता है। हवा में गरमी के आने की आहट भरी हुई है। मगर अभी आहट ही है। भूरी-मटमैली-सी ज़मीन पर उसी के रंग में रँगे हुए उदास पत्ते बिछे हुए हैं। उदास और सूखे पत्ते। कभी हरे थे, भरे थे। पहले हवा को यह झुलाते थे, अब हवा इनको झुला
रंगून क्रीपर और अप्रैल की एक उदास रात (कहानी : पंकज सुबीर) (2) ‘‘कॉलेज में नंदू और हमारी पहचान हुई। हम दोनों उन्नीस-बीस की उमर में थे। नंदू और मेरे बीच लव एट फर्स्ट साइट वाला मामला ही हुआ। ...Read Moreके शुरू के दिनों में ही हमारी दोस्ती ऐसी हुई कि अब तक चल रही है। टच वुड।’’ कहते हुए शुचि ने कुर्सी के लकड़ी के हत्थे को छू लिया। ‘‘कॉलेज के दिन हमारे जीवन के सबसे सुनहरे दिन होते हैं, वो फिर कभी नहीं लौटते। इन दिनों को भरपूर जीना चाहिए। भरपूर। जिस गोल्डन टाइम की बात की जाती
रंगून क्रीपर और अप्रैल की एक उदास रात (कहानी : पंकज सुबीर) (3) ‘‘तुझसे नाराज़ नहीं ज़िंदगी हैरान हूँ मैं..... यह गाना मेरा बहुत फेवरेट था लेकिन कुछ समझ नहीं आता था कि ये क्या बात है कि नाराज़ ...Read Moreहूँ बस हैरान हूँ। अजीब सी बात है। बहुत समझने की कोशिश करती थी लेकिन कुछ पल्ले नहीं पड़ता था कि आख़िरकार इसका मतलब क्या है। जब बहुत ज़्यादा उत्सुकता बढ़ गई तो ज़िंदगी ने ख़ुद ही एक दिन समझाने की व्यवस्था कर दी कि ले अब अपने अनुभव से ही समझ ले।’’ शुचि की आवाज़ में हल्का-हल्का दर्द घुल
रंगून क्रीपर और अप्रैल की एक उदास रात (कहानी : पंकज सुबीर) (4) ‘‘आंटी.. आपका मन ठीक नहीं है तो अब रहने दीजिए, वैसे भी रात बहुत हो गई है।’’ कहते हुए पल्लवी ने रिकॉर्डर बंद कर दिया। ‘‘हाँ... ...Read Moreसच में रात तो बहुत हो गई है, बात करते हुए पता ही नहीं चला.... लेकिन अब बहुत थोड़ी ही बची है कहानी, पूरी कर ही लेते हैं। डॉक्टरी पेशे में कुछ भरोसा नहीं है कि कब इमरजेंसी आ जाए, और उस पर गायनोकोलॉजिस्ट के लिए तो और भी मुश्किल है समय निकालना। आज समय निकला है तो कहानी पूरी