विनाशकाले.. - Novels
by Rama Sharma Manavi
in
Hindi Fiction Stories
लाल जोड़े में सजी रेवती हाथों में जयमाल लेकर जब स्टेज पर आई तो बाराती-घराती उसके अप्सरा जैसे रूप को देखकर दूल्हे के भाग्य की सराहना करने लगे।शर्म से झुकी रेवती की पलकें जब जयमाल डालने के लिए ऊपर ...Read Moreतो दूल्हे मनोहर को देखकर हक्की-बक्की रह गई, उसके हाथ जहां के तहां रुक गए।बगल में खड़ी बड़ी बहन तथा भाभी उसके सफेद पड़े चेहरे को देखकर सारा माजरा समझ गईं।रेवती कोई गलती न कर दे,इस डर से झट मजाक करते हुए उसका हाथ थामकर वर के गले में जयमाल डलवा दिया।धीमें स्वर में दीदी की चेतावनी भरी आवाज उसके कानों में पड़ी कि कोई बखेड़ा मत खड़ा करना,तेरी और सबकी भलाई इसी में है, अतः चुपचाप शादी हो जाने दे।रेवती के सपनों पर मनों पत्थर पड़ चुके थे, उसने यंत्रचालित सा समस्त रस्मों को कब पूर्ण किया,कब विदाई हो गई, उसे कहाँ होश था।मां, दीदी के उपदेश कानों ने सुन लिए कि तेरी किस्मत अच्छी थी,तू इस गरीबी से बाहर आ गई, मनोहर तुझे पलकों पर बिठा कर रखेगा,पल्लू से बांधकर रखना।धन-सम्पन्न परिवार है, तेरी दोनों छोटी बहनों का भी बेड़ा पार करा देगा।
प्रथम अध्याय----------------- लाल जोड़े में सजी रेवती हाथों में जयमाल लेकर जब स्टेज पर आई तो बाराती-घराती उसके अप्सरा जैसे रूप को देखकर दूल्हे के भाग्य की सराहना करने लगे।शर्म से झुकी रेवती की पलकें जब ...Read Moreडालने के लिए ऊपर उठीं तो दूल्हे मनोहर को देखकर हक्की-बक्की रह गई, उसके हाथ जहां के तहां रुक गए।बगल में खड़ी बड़ी बहन तथा भाभी उसके सफेद पड़े चेहरे को देखकर सारा माजरा समझ गईं।रेवती कोई गलती न कर दे,इस डर से झट मजाक करते हुए उसका हाथ थामकर वर के गले में जयमाल डलवा दिया।धीमें स्वर में दीदी की
द्वितीय अध्याय ------------------ गतांक से आगे ….. कमरे में आने वाला मनोहर ही था,उसे देखते ही वह भयभीत हिरनी की भांति सहम गई।विदाई के समय दीदी एवं भाभी ने स्पष्ट रूप से ...Read Moreहिदायत दी थी कि पति को नाराज मत करना, उसकी हर इच्छा को पूर्ण करना।सखियों-बहनों से इतनी जानकारी तो मिल ही चुकी थी कि सुहागरात का मतलब न ज्ञात हो। मनोहर निकट आकर बैठ गया, फिर उसके हाथों में हार का डिब्बा पकड़ाते हुए कहा कि देखकर बताओ,मेरा उपहार कैसा लगा?रेवती ने घबराते हुए उत्तर दिया कि आपने दिया है तो अच्छा ही होगा। एक
तृतीय अध्याय---------------गतांक से आगे ….. अब जब रेवती ध्यान से इधर एक वर्ष की स्थिति पर गम्भीरता से विचार कर रही थी, तो उसकी निगाहों से पर्दा हट रहा था और शेष रेखा ने बताया था।एक बार ...Read Moreजीजाजी को चाय देने कमरे में गई थी तो चाय के साथ उन्होंने उसका हाथ भी पकड़ लिया था, किशोरी रेखा को पुरुष का प्रथम स्पर्श अच्छा लगा था, जिससे उसने हाथ छुड़ाने का कोई उपक्रम नहीं किया।मनोहर खेला-खाया वयस्क पुरुष था,उसे समझने में तनिक विलंब नहीं हुआ कि रेखा बड़ी आसानी से उसकी गिरफ्त में आ जाएगी।उसने प्रयास प्रारंभ कर
चतुर्थ अध्याय---------------गतांक से आगे …. रेवती के जीवन में छाए उदासी के बादलों की परछाई उसके मन के साथ- साथ चेहरे पर भी नजर आती थी।दमकता चेहरा अब मुरझाया से रहने लगा था।जब पति ही अपना न ...Read Moreतो साज-श्रृंगार किसके लिए करती।वह अक्सर सोचती कि ईश्वर ने उसके साथ यह अन्याय क्यों किया।रूप थोड़ा कम देता,परन्तु भाग्य पर यूँ स्याही तो न फेर देता। जब मन कमजोर होता है तो उसे भटकते देर नहीं लगती।चोट खाया हृदय, आहत स्वाभिमान अक्सर बदला लेने की प्रवृत्ति के वशीभूत होकर अपना ही सर्वनाश कर बैठता है।या शायद मन की रिक्ति उसके
अंतिम अध्याय-------------/// गतांक से आगे….. मनोहर को अपने व्यवसाय एवं रेखा से फुरसत ही नहीं थी,न विशेष दिलचस्पी थी रेवती में।किन्तु रेवती और आलोक का प्रेम काकी की अनुभवी आंखों से छिपा नहीं ...Read Moreसका।वे नहीं चाहती थीं कि रेवती उन फिसलन भरी राहों पर चलकर दुबारा घायल हो जाय।अतः उन्होंने उचित अवसर देखकर रेवती को समझाना चाहा कि बेटी एक बार जीवन में धोखा खा चुकी हो,दूध का जला छाछ भी फूंककर पीता है, इसलिए कोई गलत कदम मत उठा लेना, जो भी करना सोच-समझकर करना,अन्यथा तुम्हारे साथ- साथ बच्चों की भी जिंदगी बर्बाद हो जाएगी। काकी की