सबा - Novels
by Prabodh Kumar Govil
in
Hindi Philosophy
तेरी पगार कितनी है?
- तीन हज़ार!
- महीने के?
- और नहीं तो क्या, रोज़ के तीन हज़ार कौन देगा रे मुझको?
- ऐसा मत बोल, दे भी देगा! उसने कनखियों से लड़की की ओर देखते हुए कहा।
लड़की शरमा गई।
लड़के ने धीरे से लड़की का हाथ अपने हाथ में लेकर दबा दिया। लड़की के हाथ न हटाने पर वो उत्साहित हुआ। दोनों टहलते हुए बगीचे के गेट पर साइकिल लेकर देर से खड़े कुल्फी वाले की ओर जाने लगे।
वो दोनों आसपास की बस्तियों में ही रहते थे। कभी- कभी इसी तरह छिप- छिपा कर यहां सार्वजनिक गार्डन में चले आते थे और कुछ देर बातें करते हुए घूमते थे।
- तेरी पगार कितनी है? - तीन हज़ार! - महीने के? - और नहीं तो क्या, रोज़ के तीन हज़ार कौन देगा रे मुझको? - ऐसा मत बोल, दे भी देगा! उसने कनखियों से लड़की की ओर देखते हुए ...Read Moreलड़की शरमा गई। लड़के ने धीरे से लड़की का हाथ अपने हाथ में लेकर दबा दिया। लड़की के हाथ न हटाने पर वो उत्साहित हुआ। दोनों टहलते हुए बगीचे के गेट पर साइकिल लेकर देर से खड़े कुल्फी वाले की ओर जाने लगे। वो दोनों आसपास की बस्तियों में ही रहते थे। कभी- कभी इसी तरह छिप- छिपा कर यहां
इस मुलाकात में दोनों कुछ खुल गए। एक दूसरे के बारे में जानकारी भी हासिल कर ली। अब जब कभी काम से सुविधा होती, दोनों कुछ दूर के एक पार्क में मिलने का मौक़ा और बहाना ढूंढ लेते। लड़का ...Read Moreबड़ी सी आलीशान दुकान में चौकीदारी भी करता था और कभी - कभी भीड़ - भाड़ ज़्यादा होने पर भीतरी काउंटरों पर भी बुला लिया जाता था। मोल तोल के लिए। एक दिन दोनों पार्क में हमेशा की तरह टहल रहे थे। सहसा लड़की बोली बोली - तुझे कितनी तनखा मिलती है? - दस हजार। लड़के ने तुरंत कहा। उसकी
दोनों की घनिष्ठता बढ़ने लगी और अब उनकी यही कोशिश रहती कि जब भी मौक़ा मिले, वो कहीं न कहीं मिलने की योजना बनाएं। लड़की ने एक अकेली महिला का खाना बनाने का जो काम लिया था वो इसी ...Read Moreथा जहां लड़का काम करता था। भोजन बनाने में जैसे लड़की के हाथ- पैरों में कोई जादू असर कर जाता और वो झटपट काम निपटा कर लड़के की दुकान की ओर दौड़ लगा देती। साइकिल तो थी ही। आननफानन में पहुंच जाती। जो लड़का पहले पांच बजे भागने को तैयार रहता था और कभी ज़्यादा काम होने पर बेमन से
आज लड़का नहीं आया। लड़की पेड़ के नीचे अपनी साइकिल लिए बहुत देर तक खड़ी रही। बार- बार उस सड़क की ओर देखती जिससे लड़का आया करता था पर लड़के का कहीं कोई नामोनिशान नहीं था। कभी - कभी ...Read Moreआता- जाता अजनबी अकेली लड़की को इस तरह खड़ी देख कर गहरी नज़र से उधर देखने लग जाता तो लड़की झल्ला जाती। वह अपने को किसी तरह व्यस्त बताने के लिए अपनी साइकिल में ही किसी नुक्स को टटोलने लग जाती। लेकिन फ़िर अचानक लड़की को याद आ जाता कि इसी तरह एक दिन साइकिल की चेन उतर जाने से
लड़की रात भर न सो सकी। रह रह कर यही सोचती रही कि दीदी ने उन्हें कब और कहां देख लिया। लड़के का नाम उन्होंने कैसे जान लिया जबकि खुद उसने अब तक कभी लड़के से पूछा नहीं। और ...Read Moreसब कुछ जान लेने के बाद ऐसा क्या हुआ कि दीदी उसे लड़के से मिलने के लिए मना कर रही है। वह दीदी से कुछ पूछ भी न सकी। अगले दिन शाम को जैसे ही लड़का आकर लड़की से मिला, लड़की ने पहला काम यही किया कि उससे उसका नाम पूछा और उसे अपना नाम बताया। लड़के का नाम राजेश
क्या इसीलिए ऐसा कहा जाता है कि इश्क सबसे पहले इंसान की नींद उड़ाता है। रात इतनी गहरी हो गई पर बिजली को नींद ही नहीं आ रही थी। इधर से उधर करवटें बदलती। थोड़ी- थोड़ी देर बाद पानी ...Read Moreके लिए उठती। कहते हैं कि आदमी मेहनत करे तो चैन की नींद सोता है। पर बिजली को देखो, तीन- तीन घरों का काम ले लिया, मन लगा कर मेहनत से काम करती है फिर भी नींद का कहीं नामोनिशान नहीं।और तीन ही क्यों, उसके अपने घर का काम कौन करेगा? वो कोई रानी - महारानी थोड़े ही है कि
बिजली चलती- चलती रुक गई। उसने आंखें तरेर कर राजा की ओर देखा और बोली - फिर तूने क्या कहा?- मैं क्या कहता, मैं तो चुपचाप बैठा रहा। राजा मासूमियत से बोला।बिजली बिफर पड़ी और लगभग चीख कर बोली ...Read Moreचुपचाप क्यों बैठा रहा? उस हरामखोर का मुंह नौंच लेता। उसकी हिम्मत कैसे हुई ऐसी बात कहने की? और तू... तू भी तो कम नहीं, उसने कहा और तूने सुन लिया। जवाब नहीं दे सकता था तू उसे?- क्या जवाब देता? राजा बुदबुदाया।- अच्छा?? अब ये भी मैं ही बताऊं कि क्या जवाब देता तू उसे? तेरे कलेजा नहीं है?
आज उनकी छुट्टी थी। शायद इसीलिए वो इतनी शांति और आराम से बैठी थीं। वो कोई किताब पढ़ रही थीं। जब उन्होंने देखा कि बिजली रसोई से अपना काम ख़त्म करके जाने के लिए उनके पास अनुमति लेने आई ...Read Moreवो पल भर के लिए क़िताब अपनी आंखों के सामने से हटा कर उससे बोलीं - बैठ!बिजली को थोड़ा अचंभा हुआ। उसे यहां काम करते हुए इतने दिन हो गए थे पर पहले तो उन्होंने कभी बिजली को बैठने के लिए नहीं कहा। कहतीं कैसे, वो तो ख़ुद हमेशा जाने की जल्दी या हड़बड़ी में होती थीं, बिजली से काम
बिजली और राजा की मुलाकातें दिनोंदिन बढ़ने लगीं। लेकिन कभी - कभी दोनों इस संयोग के याद आने पर चिंतित ज़रूर हो जाते थे कि ऐसा क्यों होता है कि कभी कोई बिजली को, तो कभी कोई राजा को, ...Read Moreदूसरे से मिलने से रोकता है। आश्चर्य तो इस बात का था कि ऐसा कहने वाले ये जानते तक न थे कि वे दोनों कब मिलते हैं और कहां मिलते हैं। क्या लोगों को वो बहुत छोटे लगते हैं?आज जब मैडम ने बिजली से पूछा कि उसकी शादी कब होगी तो वो यही सोच कर उनके सामने बैठ गई कि
राजा कुछ बेचैन सा था। दोपहर बाद जब ग्राहकों की भीड़ कुछ कम हुई तब वह कौने वाले शोरूम तक पहुंच कर एक छोटा सा सुंदर पर्स खरीद भी लाया था और उसे सुंदर सी पैकिंग में भी डलवा ...Read Moreथा। उसे ये तो नहीं मालूम था कि बिजली के पास इस पर्स में रखने लायक पैसों की बचत कब तक होगी लेकिन वो ये ज़रूर जानता था कि इसे देख कर बिजली बेहद खुश ज़रूर हो जायेगी। जन्मदिन पर प्रेमिका प्रेमी से कुछ पाकर खुश होती ही है। और उसकी इस खुशी से राजा को ये मौक़ा हासिल हो
और कोई दिन होता तो शायद राजा इस तरह बिजली को यहां आते देख कर उस पर गुस्सा हो जाता कि वो यहां क्यों चली आई।लेकिन आज उसे बिजली के आने से बड़ी राहत महसूस हुई। बिजली भी खाली ...Read Moreमें समय ख़त्म हो जाने के बाद भी राजा को चौकीदार की तरह यहां अकेले बैठे देख कर कुछ - कुछ माजरा तो समझ ही गई और कुछ उसे जल्दी- जल्दी राजा ने बता दिया।राजा गिफ्ट को मेज की दराज में रख कर बिजली से छिपाए रहा। तोहफ़ा कोई ऐसे थोड़े ही दिया जाता है कि पाने वाला सामने आ
बिजली तीन दिन से घर से बाहर नहीं निकली थी। घर में भी वो या तो चुपचाप एक कौने में गुमसुम उदास बैठी रहती या फिर तंग सीढ़ियों के सहारे छत पर पहुंच कर रोती रहती। चमकी ने दो- ...Read Moreबार उसे इस तरह परेशान हाल देख कर कुछ पूछना भी चाहा पर बिजली टाल गई। जब उसने कुछ नहीं बताया तो चमकी ने भी ज़्यादा ध्यान नहीं दिया। सोच लिया कि उसकी तबीयत ठीक नहीं होगी। और अपने काम में लग गई।मां को ज़रूर कुछ खड़का सा हुआ कि लड़की काम पर क्यों नहीं जा रही है! लेकिन पूछने
मैडम धाराप्रवाह बोल रही थीं और बिजली उनके सामने चुपचाप बैठी कौतुक से उनकी बात सुन रही थी। कभी- कभी जब बिजली को मैडम की बात बहुत ही अटपटी या अनहोनी सी लगती तो वह असमंजस में अपनी दोनों ...Read Moreअपने गालों पर रख लेती और उछल कर उकड़ूं बैठ जाती। उनकी बात सुनने में उसे ये भी ख्याल नहीं रहता कि उसने अपने पैर कुर्सी की गद्दी पर टिका दिए हैं।मैडम भी उसे ऐसा करते देख कुछ नहीं बोलती थीं। शायद उन्हें लगता होगा कि जाने दो, गंदा करेगी तो क्या, कल खुद ही साफ़ भी करेगी। आखिर थी
शाम का धुंधलका सा था। बिजली छत के एक कौने में मुंडेर पर सिमटी- सिकुड़ी बैठी थी कि चहकती हुई चमकी ऊपर आई।आते ही शुरू हो गई, बोली - तू अपनी साइकिल में ढंग से साफ - सफाई क्यों ...Read Moreरखती? कभी तो तेल- ग्रीस कुछ लगाया कर। चेन जाम हुई पड़ी है। जंग खाई।- क्या हुआ? बिजली ने उसके इतने सारे उलाहने सुने तो धीमे से बोल पड़ी।चमकी बोली - अरे बीच सड़क पर एकदम से रुक गई साइकिल। मैंने ज़ोर से धकेल कर आगे बढ़ाने की कोशिश की पर टस से मस नहीं हुई, बल्कि चेन और उतर
- तू चलेगी?- कहां!- मेरी सहेली के घर।- क्यों, क्या है वहां? बिजली ने कहा।- आज उसकी सगाई है रे। चमकी ने चहकते हुए कहा।- तो मैं चल कर क्या करूंगी, तुम जाओ। सहेली तुम्हारी है। मेरा वहां क्या ...Read Moreबिजली ने पल्ला झाड़ते हुए कहा।- काम तो किसी का भी क्या होता है सगाई में। मौज मस्ती करेंगे, खायेंगे - पियेंगे और...- ...और? बिजली ने उत्सुकता से पूछा।- उसके दूल्हे को देखेंगे। चमकी ने मानो कोई रहस्य खोल कर पटाक्षेप कर दिया।बिजली बुझ सी गई। फ़िर मंद स्वर में बोली - दूल्हे को क्या देखना है? एक जैसे होते
चमकी को इसमें कोई भी परेशानी नहीं हुई। परेशानी क्या होनी थी। पुलिस थाना था भी पास में, और उसमें काम करने वाले विक्रम अंकल तो उसकी एक सहेली के पापा ही थे। सब काम फटाफट हो गया।अब तक ...Read Moreकाम निपटाने की भाग - दौड़ में चमकी के मन में कोई खलबली नहीं आई थी पर अब घर में लौट आने के बाद एक डूबी उदासी उसके चारों ओर फैलने लगी।उसने मां को कुछ नहीं बताया था। बापू अभी तक आए नहीं थे। वो जानती थी कि ये खबर ऐसी नहीं है कि जिसे छिपाया जा सके। और ऐसी
रास्ते भर बिजली कुछ न बोली। वह किसी कठपुतली की तरह साथ चलती रही। उसने अपने चेहरे को इस तरह ढक रखा था कि वो तो उन सबको अच्छी तरह देख पा रही थी लेकिन उनमें से कोई भी ...Read Moreचेहरा नहीं देख पाया था। किसी ने ऐसी कोशिश भी नहीं की। उस बड़ी सी जीप में कुल छः सात लोग थे। लंबा रास्ता था। लगभग दो घंटे का सफ़र करने के बाद जब एक छोटे से गांव के ढाबे पर गाड़ी रुकी तो सब लोग नीचे उतर गए लेकिन बिजली उसी तरह पीछे की सीट पर अकेली बैठी रही