देस बिराना

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24 सितम्बर, 1992। कैलेंडर एक बार फिर वही महीना और वही तारीख दर्शा रहा है। सितम्बर और 24 तारीख। हर साल यही होता है। यह तारीख मुझे चिढ़ाने, परेशान करने और वो सब याद दिलाने के लिए मेरे सामने पड़ जाती है जिसे मैं बिलकुल भी याद नहीं करना चाहता। आज पूरे चौदह बरस हो जायेंगे मुझे घर छोड़े हुए या यूं कहूं कि इस बात को आज चौदह साल हो जायेंगे जब मुझे घर से निकाल दिया गया था। निकाला ही तो गया था। मैं कहां छोड़ना चाहता था घर। छूट गया था मुझसे घर। मेरे न चाहने के बावजूद। अगर दारजी आधे- अधूरे कपड़ों में मुझे धक्के मार कर घर से बाहर निकाल कर पीछे से दरवाजा बंद न कर देते तो मैं अपनी मर्जी से घर थोड़े ही छोड़ता। अगर दारजी चाहते तो गुस्सा ठंडा होने पर कान पकड़ कर मुझे घर वापिस भी तो ले जा सकते थे। मुझे तो घर से कोई नाराज़गी नहीं थी। आखिर गोलू और बिल्लू सारा समय मेरे आस-पास ही तो मंडराते रहे थे।

Full Novel

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देस बिराना - 1

देस बिराना सूरज प्रकाश पहली किस्त 24 सितम्बर, 1992। कैलेंडर एक बार फिर वही महीना और वही तारीख दर्शा है। सितम्बर और 24 तारीख। हर साल यही होता है। यह तारीख मुझे चिढ़ाने, परेशान करने और वो सब याद दिलाने के लिए मेरे सामने पड़ जाती है जिसे मैं बिलकुल भी याद नहीं करना चाहता। आज पूरे चौदह बरस हो जायेंगे मुझे घर छोड़े हुए या यूं कहूं कि इस बात को आज चौदह साल हो जायेंगे जब मुझे घर से निकाल दिया गया था। निकाला ही तो गया था। मैं कहां छोड़ना चाहता था घर। छूट गया था ...Read More

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देस बिराना - 2

देस बिराना किस्त दो मैं हौले से सांकल बजाता हूं। सांकल की आवाज थोड़ी देर तक खाली आंगन में कर मेरे पास वापिस लौट आयी है। दोबारा सांकल बजाता हूं। मेरी धड़कन बहुत तेज हो चली है। पता नहीं कौन दरवाजा खोले.... । - कोण है.. । ये बेबे की ही आवाज हो सकती है। पहले की तुलना में ज्यादा करुणामयी और लम्बी तान सी लेते हुए.... - मैं केया कोण है इस वेल्ले....। मेरे बोल नहीं फूटते। क्या बोलूं और कैसे बोलूं। बेबे दरवाजे के पास आ गयी है। झिर्री में से उसका बेहद कमज़ोर हो गया चेहरा ...Read More

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देस बिराना - 3

देस बिराना किस्त तीन आंगन में चारपाई पर लेटे लेटे गुड्डी से बातें करते-करते पता नहीं कब आंख लग होगी। अचानक शोर-शराबे से आंख खुली तो देखा, दारजी मेरे सिरहाने बैठे हैं। पहले की तुलना में बेहद कमज़ोर और टूटे हुए आदमी लगे वे मुझे। मैं तुरंत उठ कर उनके पैरों पर गिर गया हूं। मैं एक बार फिर रो रहा हूं। मैं देख रहा हूं, दारजी मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए अपनी आंखें पोंछ रहे हैं। उन्हें शायद बेबे ने मेरी राम कहानी सुना दी होगी इसलिए उन्होंने कुछ भी नहीं पूछा। सिर्फ एक ही वाक्य कहा ...Read More

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देस बिराना - 4

देस बिराना किस्त चार आगे कोतवाली के पास ही नंदू का होटल है। चलो, एक शरारत ही सही। अच्छी की तलब भी लगी हुई है। नंदू के हेटल में ही चाय पी जाये। एक ग्राहक के रूप में। परिचय उसे बाद में दूंगा। वैसे भी वह मुझे इस तरह से पहचानने से रहा। नंदू काउंटर पर ही बैठा है। चेहरे पर रौनक है और संतुष्ट जीवन का भाव भी। मेरी ही उम्र का है लेकिन जैसे बरसों से इसी तरह धंधे करने वाले लोगों के चेहरे पर एक तरह का घिसी हुई रकम वाला भाव आ जाता है, उसके ...Read More

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देस बिराना - 5

देस बिराना किस्त पांच इस वक्त मेरा सारा ध्यान उस करतार सिहां की तरफ है जो अपनी लड़की मेरे बांधने की पूरी योजना बना कर आया हुआ है। अच्छा ही है कि आज मैं नंदू के साथ बाहर निकल जाऊंगा, नहीं तो वो मुझे अपने सवालों से कुरेद - कुरेद कर छलनी कर देगा। कैसे शातिराना अंदाज पूछ रहा था - बंबई विच तुसीं कित्थे रैंदे हो और घर बार दा की इंतजाम कित्ता होया ए तुसी..? जैसे मैं बंबई से उसकी दसवीं या नौंवी पास लड़की से रिश्ता तय करने के लिए यहां आया हूं। न बात न ...Read More

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देस बिराना - 6

देस बिराना किस्त छह लौट रहा हूं वापिस। एक बार फिर घर छूट रहा है..। अगर मुझे ज़रा-सा भी होता कि मेरे यहां आने के पांच-सात दिन के भीतर ही ऐसे हालात पैदा कर दिये जायेंगे कि मैं न इधर का रहूं और न उधर का तो मैं आता ही नहीं। यहां तो अजीब तमाशा खड़ा कर दिया है दारजी ने। कम से कम इतना तो देख लेते कि मैं इतने बरसों के बाद घर वापिस आया हूं। मेरी भी कुछ आधी-अधूरी इच्छायें रही होंगी, मैं घर नाम की जगह से जुड़ाव महसूस करना चाहता होऊंगा। चौदह बरसों में ...Read More

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देस बिराना - 7

देस बिराना किस्त सात तो ... अब ... हो गया घर भी..। जितना रीता गया था, उससे कहीं ज्यादा लिये लौटा हूं। तौबा करता हूं ऐसे रिश्तों पर। कितना अच्छा हुआ, होश संभालने से पहले ही घर से बेघर हो गया था। अगर तब घर न छूटा होता तो शायद कभी न छूटता.. उम्र के इस दौर में आ कर तो कभी भी नहीं। बस, यही तसल्ली है कि सबसे मिल लिया, बचपन की खट्टी-मीठी यादें ताज़ा कर लीं और घर के मोह से मुक्त भी हो गया। जिसके लिए जितना बन पड़ा, थोड़ा-बहुत कर भी लिया। बेबे और ...Read More

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देस बिराना - 8

देस बिराना किस्त आठ देवेंद्र जी के साथ उस दिन की बातचीत के कुछ दिन बाद ही अलका दीदी घेर लिया है। उनके साथ बैठा चाय पी रहा हूं तो पूछा है उन्होंने - ऑफिस से आते ही अपने कमरे में बंद हो जाते हो। खराब नहीं लगता? - लगता तो है, लेकिन आदत पड़ गयी है। - कोई दोस्त नहीं है क्या? - नहीं। कभी मेरे दोस्त रहे ही नहीं। आप लोग अगर मुझसे बात करने की शुरूआत न करते तो मैं अपनी तरफ से कभी बात ही न कर पाता। - कोई गर्ल फ्रैंड भी नहीं है ...Read More

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देस बिराना - 9

देस बिराना किस्त नौ समझ में नहीं आ रहा, किन झमेलों में फंस गया हूं। जब तक घर नहीं था, वे सब मेरी दुनिया में कहीं थे ही नहीं, लेकिन एक बार सामने आ जाने के बाद मेरे लिए यह बहुत ही मुश्किल हो गया है कि उन्हें अपनी स्मृतियों से पूरी तरह से निकाल फेंकूं। हो ही नहीं पाता ये सब। वहां मुझे हफ्ता भर भी चैन से नहीं रहने दिया और जब वहां से भाग कर यहां आ गया हूं तो भी मुक्ति नहीं है मेरी। अलका दीदी मेरी परेशानियां समझती हैं लेकिन जब मेरे ही पास ...Read More

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देस बिराना - 10

देस बिराना किस्त दस गोल्डी से इस बीच एक दो बार ही हैलो हो पायी है। वह भी राह एक बार बाज़ार में मिल गयी थी। मैं खाना खा कर आ रहा था और वह कूरियर में चिट्ठी डालने जा रही थी। तब थोड़ी देर बात हो पायी थी। उसने अचानक ही पूछ लिया था - आप आइसक्रीम तो खा लेते होंगे? - हां खा तो लेता हूं लेकिन बात क्या है? - दरअसल आइसक्रीम खाने की बहुत इच्छा हो रही है। मुझे कम्पनी देंगे? - ज़रूर देंगे। चलिये। - लेकिन खिलाऊंगी मैं। - ठीक है आप ही खिला ...Read More

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देस बिराना - 11

देस बिराना किस्त ग्यारह गोल्डी के इस तरह अचानक चले जाने से मैं खाली-खाली सा महसूस करने लगा हूं। बार मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है कि मेरे दिल को हर आदमी खेल का मैदान समझ कर दो चार किक लगा जाता है। जब तक अकेला था, अपने आप में खुश था। किसी के भरोसे तो नहीं था और न किसी का इंतज़ार ही रहता था। गोल्डी ने आ कर पहले मेरी उम्मीदें बढ़ायीं। यकायक चले जा कर मेरे सारे अनुशासन तहस-नहस कर गयी है। पहले सिर्फ अकेलापन था, अब उसमें खालीपन भी जुड़ गया है जो मुझे ...Read More

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देस बिराना - 12

देस बिराना किस्त बारह सारी तैयारियां हो गयी हैं। सामान से भी मुक्ति पा ली है। तनावों से भी। एक दूसरे किस्म का, अनिश्चितता का हलका-सा दबाव है। पता नहीं, आगे वाली दुनिया कैसी मिले। जो कुछ पीछे छूट रहा है, अच्छा भी, बुरा भी, उससे अब किसी भी तरह का मोह महसूस करने का मतलब नहीं है। पूरे होशो-हवास में सब कुछ छोड़ रहा हूं। लेकिन जो कुछ पाने जा रहा हूं, वह कैसे और कितना मिलेगा, या मिलेगा भी या नहीं, इसी की हलकी-सी आशंका है। उम्मीद भी और वायदा भी। वैसे तो इतना कुछ सह चुका ...Read More

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देस बिराना - 13

देस बिराना किस्त तेरह तो...मैं .. आखिर देस छोड़ कर परदेस में आ ही पहुंचा हूं। कब चाहा था - मुझे इस तरह से और इन वज़हों से घर और अपना देस छोड़ना पड़े। घर तो मेरा कभी रहा ही नहीं। दो-दो बार घर छूटा। गोल्डी ज़िंदगी में ताजा फुहार की तरह आकर जो तन-मन भिगो गयी थी उससे भी लगने लगा था, ज़िंदगी में अब सुख के पल बस आने ही वाले हैं, लेकिन वह सब भी छलावा ही साबित हुआ। अब मेरे सामने एक नया देश है, नये लोग और एकदम नया वातावरण है। एक नयी तरह ...Read More

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देस बिराना - 14

देस बिराना किस्त चौदह हम नये घर में सारी चीजें व्यवस्थित कर रहे हैं। गौरी यह देख कर दंग कि मैं न केवल रसोई की हर तरह की व्यवस्था संभाल सकता हूं बल्कि घर भर के सभी काम कर सकता हूं। कर भी रहा हूं। पूछ रही है - आपने ये सब जनानियों वाले काम कब सीखे होंगे। आपकी पढ़ाई को देख कर लगता तो नहीं कि इन सबके लिए समय मिल पाता होगा। - सिर्फ जनानियों वाले काम ही नहीं, मैं तो हर तरह के काम जानता हूं। देख तो रही ही हो, कर ही रहा हूं। कोई ...Read More

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देस बिराना - 15

देस बिराना किस्त पंद्रह हम पहले गौरी के स्टाल पर गये हैं। पूरा स्टाफ उसे और मुझे शादी की कर रहा है। कई लोग तो आये भी थे रिसेप्शन में। अब वह सबसे मेरा परिचय करा रही है। स्टाफ की तरफ से हमें एक खूबसूरत बुके दिया गया है। वाकई बहुत अच्छी शाप है उसकी। वहां कॉफी पी कर गौरी मुझे द बिज़ी कॉर्नर में ले कर आयी है। मैनेजर से परिचय कराया है। मैनेजर साउथ इंडियन है। उसने बहुत ही सज्जनता से हमारा स्वागत किया है और पूरे स्टाफ से मिलवाया है। स्टोर्स में सब जगह घुमाया है। ...Read More

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देस बिराना - 16

देस बिराना किस्त सोलह सारी चिंताओं में घिरा ही हुआ हूं कि एक साथ तीन चिट्ठियां आयी हैं। इस में एक-एक करके तीनों खत खोलता हूं कि शायद इनमें से ही किसी में कोई सुकून भरी बात लिखी हो लेकिन तीनों ही पत्रों में ऐसा कुछ भी नहीं है। पहला खत गुड्डी का है - वीर जी, आपका प्यारा सा पत्र, आपकी नन्हीं सी प्यारी सी दुल्हन के फोटोग्राफ्स और खूबसूरत तोहफे मिले। इससे पहले बंबई से भेजा आपका आखरी खत भी मिल गया था। मैं बता नहीं सकती कि मैं कितनी खुश हूं। आखिर आपको अपना घर नसीब ...Read More

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देस बिराना - 17

देस बिराना किस्त सत्रह डिपार्टमेंटल स्टोर का सारा हिसाब-किताब कम्प्यूटराइज्ड होने के कारण मैं हमेशा खाली हाथ ही रहता यहां तक कि मुझे अपनी पसर्नल ज़रूरतों के लिए भी गौरी पर निर्भर रहना पड़ता है। मैं भरसक टालता हूं लेकिन फिर भी शेव, पैट्रोल, बस, ट्राम, ट्यूब वगैरह के लिए ही सही, कुछ तो पैसों की जरूरत पड़ती ही है। मांगना अच्छा नहीं लगता और बिन मांगे काम नहीं चलता। इस कुनबे के अलिखित नियमों में से एक नियम यह भी है कि कोई भी कहीं से भी हिसाब में से पैसे नहीं निकालेगा। निकाल सकता भी नहीं क्योंकि ...Read More

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देस बिराना - 18

देस बिराना किस्त अठारह समझ में नहीं आ रहा कि इन पत्रों का क्या जवाब दूं। अपने यहां के संभालूं या देहरादून के। दोनों ही मोर्चे मुझे पागल बनाये हुए हैं। गुड्डी ने तो कितनी आसानी से लिख दिया है बेशक भारी मन से ही लिखा है लेकिन मैं कैसे लिख दूं कि यहां भी सब खैरियत है जबकि सब कुछ तो क्या कुछ भी ठीक ठाक नहीं है। मैं तो चाह कर भी नहीं लिख सकता कि मेरी प्यारी बहना, खैरियत तो यहां पर भी नहीं है। मैं भी यहां परदेस में अपने हाथ जलाये बैठा हूं और ...Read More

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देस बिराना - 19

देस बिराना किस्त उन्नीस शिशिर बेशक इतनी आसानी से सारी बातें कह गया था लेकिन मेरे लिए ये सारी इतनी सहजता से ले पाना इतना आसान नहीं है। शिशिर जिस मिट्टी का बना हुआ है, उसने शिल्पा की सच्चाई जानने के बावजूद उसे न केवल स्वीकार कर रखा है बल्कि अपने तरीके से उसे ब्लैकमेल भी कर रहा है और रिश्तों में बेईमानी भी कर रहा है। ये तीनों बातें ही मुझसे नहीं हो पा रहीं। न मैं गौरी के अतीत का सच पचा पा रहा हूं, न उसे ब्लैकमेल कर पाऊंगा और न ही इन सारी बातें के ...Read More

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देस बिराना - 20

देस बिराना किस्त बीस इन दिनों खासा परेशान चल रहा हू। न घर पर चैन मिलता है न स्टोर्स समझ में नहीं आता, मुझे ये क्या होता जा रहा है। अगर कोई बंबई का कोई पुराना परिचित मुझे देखे तो पहचान ही न पाये, मैं वही अनुशासित और कर्मठ गगनदीप हूं जो अपने सारे काम खुद करता था और कायदे से, सफाई से किया करता था। जब तक बंबई में था, मुझे ज़िंदगी में जरा सी भी अव्यवस्था पसंद नहीं थी और गंदगी से तो जैसे मुझे एलर्जी थी। अब यहां कितना आलसी हो गया हूं। चीजें टलती रहती ...Read More

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देस बिराना - 21

देस बिराना किस्त इक्कीस यह इन दो ढाई साल में पहली बार हो रहा है कि मैं और मेरे इस तरह अकेले और इन्फार्मली बात कर रहे हैं। उन्होंने मेरी सेहत के बारे में पूछा है। मेरी दिनचर्या के बारे में पूछा है और मेरी उदासी का कारण जानना चाहा है। पहले तो मैं टालता हूं। उनसे आंखें मिलाने से भी बचता हूं लेकिन जब उन्होंने बहुत ज़ोर दिया है तो मैं फट पड़ा हूं। इतने अरसे से मैं घुट रहा था। कितना कुछ है जो मैं किसी से कहना चाह रहा था लेकिन आज तक कह नहीं पाया ...Read More

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देस बिराना - 22

देस बिराना किस्त बाइस लगभग छः महीने हो गये हैं सिरदर्द को झेलते हुए। इस बीच ज्यादातर अरसा आराम करता रहा या तरह तरह के टैस्ट ही कराता रहा। नतीजा तो क्या ही निकलना था। वैसे सिरदर्द के साथ मैं अब स्टोर्स में पूरा पूरा दिन भी बिताने लगा हूं लेकिन मैं ही जानता हूं कि मैं कितनी तकलीफ से गुज़र रहा हूं। बचपन में भी तो ऐसे ही दर्द होता था और मैं किसी से भी कुछ नहीं कह पाता था। सारा सारा दिन दर्द से छटपटाता रहता था जैसे कोई सिर में तेज छुरियां चला रहा हो। ...Read More

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देस बिराना - 23

देस बिराना किस्त तेइस मैं धीरे-धीरे बोलना शुरू करता हूं - इस दर्द की भी बहुत लम्बी कहानी है जी। समझ में नहीं आ रहा, कहां से शुरू करूं। दरअसल आजतक मैंने किसी को भी अपने बारे में सारे सच नहीं बताये हैं। किसी को एक सच बताया तो किसी दूसरे को उसी सच का ...Read More

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देस बिराना - 24

देस बिराना किस्त चौबीस हाई स्कूल कर लेने के बाद एक बार फिर मेरे सामने रहने-खाने और आगे पढ़ने समस्या आ खड़ी हुई थी। यहां सिर्फ दसवीं तक का ही स्कूल था। बारहवीं के लिए नीचे मैदानों में उतरना पड़ता। मणिकर्ण का शांत, भरपूर प्राकृतिक सौन्दर्य से भरा वातावरण ...Read More

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देस बिराना - 25

देस बिराना किस्त पच्चीस मालविका जी लंच के लिए जिस जगह ले कर आयी हैं, वह शहरी माहौल से दूर वुडफोर्ड के इलाके में है। भारतीय रेस्तरां है यह। नाम है चोर बाज़ार। बेशक लंदन में है लेकिन रेस्तरां के भीतर आ जाने के बाद पता ही नहीं चलता, हम लंदन में हैं या चंडीगढ़ के बाहर हाइवे के किसी अच्छे से रेस्तरां में बैठे हैं। जगह की तारीफ करते हुए पूछता हूं मैं - ये इतनी शानदार जगह कैसे खोज ली आपने? मुझे तो आज तक इसके बारे में पता नहीं चल पाया। हंसती हैं मालविका जी - ...Read More

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देस बिराना - 26

देस बिराना किस्त छब्बीस इसी हफ्ते गौरी की बुआ की लड़की पुष्पा की शादी है। मैनचेस्टर में। हांडा परिवार सारी बहू बेटियां आज सवेरे-सवेरे ही निकल गयी हैं। हांडा परिवार में हमेशा ऐसा ही होता हे। जब भी परिवार में शादी या और कोई भी आयोजन होता है, सारी महिलाएं एक साथ जाती हैं और दो-तीन दिन खूब जश्न मनाये जाते हैं। हम पुरुष लोग परसों निकलेंगे। मैं शिशिर के साथ ही जाऊंगा। अभी दिन भर के कार्यक्रम के बारे में सोच ही रहा हूं कि मालविका जी का फोन आया है। उन्होंने सिर्फ तीन ही वाक्य कहे हैं ...Read More

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देस बिराना - 27

देस बिराना किस्त सताइस बाहर अभी भी बर्फ पड़ रही है लेकिन भीतर गुनगुनी गरमी है। मैं गाव तकिये सहारा लेकर अधलेटा हो गया हूं और संगीत की लहरियों के साथ डूबने उतराने लगा हूं। ब्रांडी भी अपना रंग दिखा रही है। दिमाग में कई तरह के अच्छे बुरे ख्याल आ रहे हैं। खुद पर अफ़सोस भी हो रहा है, लेकिन मैं मालविका जी के शानदार मूड और हम दोनों के जनमदिन के अद्भुत संयोग पर अपने भारी और मनहूस ख्यालों की काली छाया नहीं पड़ने देना चाहता। मुझे भी तो ये शाम अरसे बाद, कितनी तकलीफ़ों के सफ़र ...Read More

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देस बिराना - 28

देस बिराना किस्त अठाइस धीरे धीरे अंधेरे में उनकी आवाज उभरती है। - मेरा घर का नाम निक्की है। भी मुझे इस नाम से बुला सकते हो। जब से यहां आयी हूं, किसी ने भी मुझे इस नाम से नहीं पुकारा। एक बार मुझे निक्की कह कर बुलाओ प्लीज़ .. मैं बारी-बारी उनके दोनों कानों में हौले से निक्की कहता हूं और उनके दोनों कान चूम लेता हूं। निक्की खुश हो कर मेरे होंठ चूम लेती है। - हां तो मैं अपने बचपन के बारे में बता रही थी। - मेरे बचपन का ज्यादातर हिस्सा गुरदासपुर में बीता। पापा ...Read More

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देस बिराना - 29

देस बिराना किस्त उन्तीस उन्हीं दिनों हमारे ही पड़ोस के एक लड़के की पोस्टिंग उसके ऑफिस की लंदन शाखा हुई। जाने से पहले वह मेरे पास आया था कि अगर मैं बलविन्दर को एक खत लिख दूं और उसे एयरपोर्ट आने के लिए कह दूं तो उसे नये देश में शुरूआती दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ेगा। मेरे लिए इससे अच्छी बात क्या हो सकती थी कि इतने अरसे बाद बलविन्दर के पास सीधे ही संदेश भेजने का मौका मिल रहा था। मैंने बलविन्दर को उसके बारे में विस्तार से खत लिख दिया था। तब मैंने बलविन्दर के लिए ...Read More

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देस बिराना - 30

देस बिराना किस्त तीस हॉस्टल में हमारा यह तीसरा दिन था। आखिरी दिन। बड़ी मुश्किल से हमें एक और की मोहलत मिल पायी थी। इतना ज़रूर हो गया था कि अगर हम चाहते तो आगे की तारीखों की एडवांस बुकिंग करवा सकते थे लेकिन अभी एक बार तो हॉस्टल खाली करना ही था। हमारा पहला दिन तो बलविन्दर को खोजने और उसे खोने में ही चला गया था। वहां से वापिस आने के बाद मैं कमरे से निकली ही नहीं थी। हरीश बेचारा खाने के लिए कई बार पूछने आया था। उसके बहुत जिद करने पर मैंने सिर्फ सूप ...Read More

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देस बिराना - 31

देस बिराना किस्सा इकतीस मेरा वहां यह तीसरा दिन था। ये तीनों दिन वहां मैंने एक मेहमान की तरह थे। जब घर के मालिक की हालत ही मेहमान जैसी हो तो मैं भला कैसे सहज रह सकती थी। हम आम तौर पर इस दौरान चुप ही रहे थे। इन तीन दिनों में मैंने उससे कई बार कहा था, चले शो रूम देखने, वकील से मिलने या विजय के यहां शो रूम के पेपर्स देखने लेकिन वह लगातार एक या दूसरे बहाने से टालता रहा। मैं तीन दिन से उसकी लंतरानियां सुनते सुनते तंग आ चुकी थी। हम इस दौरान ...Read More

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देस बिराना - 32 - अंतिम भाग

देस बिराना किस्त बत्तीस तीन दिन तो हमने आपस में ढंग से बात भी नहीं की थी। सिर्फ चौंतीस की सैक्सफुल और सक्सैसफुल लाइफ थी मेरी और मैं एक अनजान देश की अनजान राजधानी में पहुंचने के एक हफ्ते में ही सड़क पर आ गयी थी। इतना कहते ही मालविका मेरे गले से लिपट कर फूट फूट कर रोने लगी है। उसका यह रोना इतना अचानक और ज़ोर का है कि मैं हक्का बक्का रह गया हूं। मुझे पहले तो समझ में ही नहीं आया कि अपनी कहानी सुनाते-सुनाते अचानक उसे क्या हो गया है। अभी तो भली चंगी ...Read More